Sex kahani अधूरी हसरतें
03-31-2020, 03:46 PM,
#97
RE: Sex kahani अधूरी हसरतें
शुभम के हाथों में आई शीतल की पैंटी और ब्रा जिसके बारे में सोचकर वह अभी भी उत्तेजित हो जा रहा था,,, बार-बार वह हाथ में आई ऊसकी पैंटी और ब्रा के आधार पर शीतल की खूबसूरत भरावदार नितंब और उसकी बड़ी-बड़ी गोलाइयों की कल्पना करके पैंट के ऊपर से ही अपने लंड को मसल रहा था। वह अपने कमरे में बैठा हुआ था अभी तक अस्पताल से उसकी मां और नानी नहीं आई थी। अपनी मां की खूबसूरत बुर के दर्शन कर चुका शुभम बार-बार कल्पना में शीतल की बुर का भूगोल किस तरह का होगा उसकी तुलना वह करीब-करीब अपनी मां की बुर से कर रहा था। यह सब सोचकर वह पूरी तरह से उत्तेजित हो चुका था और बिस्तर पर बैठे-बैठे अपनी पेंट को नीचे सरका कर अपने टन टनाए हुए लंड को अपने हाथ में लेकर हिलाना शुरू कर दिया,,। वह मन में कल्पना करते हुए शीतल की खूबसूरत बुर में अपना लंड डालकर मुठ मारना शुरू कर दिया।,,, उसका लंड पूरी तरह से टनटनाकर उसकी हथेली में गर्मी पैदा कर रहा था। वह शीतल को याद करते हुए जोर जोर से लंड हिलाने लगा,,,, और थोड़ी देर बाद ऊसके लंड ने फुवारा छोड़ दिया,,,

करीब शाम ढलने को थी तब दरवाजे की बेल बजी शुभम समझ गया कि उसकी मां और नानी अस्पताल से वापस आ गए हैं,,,। वह जल्दी से जाकर दरवाजा खोला,,, निर्मला अपनी मां को सहारा देकर अंदर ले आ रही थी तभी दरवाजा बंद करते हुए शुभम बोला,,,।

मम्मी नानी का ऑपरेशन हो गया क्या?


हां बेटा हो गया,,,,

कोई तकलीफ तो नहीं हुई,,,

नहीं ऐसी कोई तकलीफ नहीं हुई बस मम्मी को थोड़ी सी घबराहट हो रही है डॉक्टर ने इन्हें पूरी तरह से आराम करने को कहा है,,,, तू भी नानी का हाथ पकड़ ले सहारा देकर वमेरे कमरे तक ले जाना है,,,
( अगले ही पल निर्मला अपनी मम्मी को बिस्तर पर लेटा दी,,,
निर्मला की मम्मी ऑपरेशन की वजह से थोड़ी घबराई हुई थी और शरीर में कमजोरी भी थी। इसलिए डॉक्टर हमेशा एक जन को इनके पास रहने की हिदायत दिया था। लेकिन शुभम की हालत खराब हो रही थी उसकी इच्छा बहुत कर रही थी निर्मला को चोदने के लिए,,, यही हाल निर्मला का भी था लेकिन वह मजबूर थी वह अपनी मां को एक पल के लिए भी नहीं छोड़ सकती थी क्योंकि वह यही चाहती थी कि जल्दी से जल्दी उन्हें आराम हो जाए ताकि वह उन्हें जल्दी गांव भेज सके,,,, उसे इस बात का डर था कि उसकी गैरमौजूदगी में कहीं कमजोरी की वजह से उन्हें चक्कर आ गया कहीं ऊन्हें चोट लगी तो और मुश्किल हो जाएगी।,,,, शुभम बार-बार अपनी मां को मना रहा था,,,, लेकिन इस बार वह खुद का मन होने के बावजूद भी उसे बार-बार इंकार कर दे रही थी जबकि वह दोनों फायदा उठा सकते थे,,,, पर इसमें थोड़ी मुश्किल थी क्योंकि डॉक्टर ने उन्हें काला चश्मा लगाने को दिया था जो कि हमेशा आंखों पर लगाए ही रहना था। इसलिए अब पहले जैसी वह बात नहीं थी कि वह चश्मा उतार दे तो उन दोनों को खुला दौर मिल जाए। शुभम जैसे तैसे करके निर्मला के बदन को इधर-उधर हाथ लगा कर अपने मन को बहला ले रहा था।
लेकिन यह सबसे उसके बदन की प्यास बुझ नहीं रही थी।
एक तो शीतल ने भी उसकी हालत खराब कर रखी थी।
दो दो खूबसूरत नारियों के खूबसूरत मादक बदन का मायाजाल शुभम के मन मस्तिष्क को अपने वश में जकड़ लिया था। इस बदन की मायानगरी के जाल से निकल पाना दुनिया की किसी भी मर्द के बस की बात नहीं थी और ना ही मर्द लोग इस बदन रूपी मायाजाल से निकलने के बारे में कभी सोच भी सकते हैं। तो शुभम की क्या बिसात थी वह तो अभी अभी जवान हो गया था और सही मायने में ठीक से पूरी तरह से औरत के बदन के भूगोल की पूरी जानकारी भी नहीं ले पाया था। शुभम तड़प रहा था अपनी मां को चोदने के लिए लेकिन उसकी मा ही उसे यह मौका नहीं दे रही थी क्योंकि वह जानती थी बस दो चार दिन की बात है जब उसकी मां चली जाएगी तो वह खुद ही पूरी तरह से खुलकर चुदाई का मजा लेगी,,,,।
और जैसे तैसे करके वह दिन भी आ गया जब निर्मला और शुभम दोनों मिलकर उसे रेलवे स्टेशन ट्रेन पर बिठाने के लिए ले जाने लगे,,,, शुभम तो खुश था ही उसकी मां और भी ज्यादा खुश थी।,,, प्लेटफॉर्म पर थोड़ी ही देर में ट्रेन आ गई और निर्मला ने अपनी मां को ट्रेन में बिठा कर उन से विदा
ली,,, ।
यह पल उनके लिए बेहद खुशी का पल था इस पल के लिए वह दोनों ना जाने कितने समय से इंतजार कर रहे थे। दोनों को अब खुला दौर मिल चुका था एक दूसरे में समाने के लिए शुभम और निर्मला रेलवे स्टेशन से वापस लौटते समय कार में बैठे बैठे एक दूसरे को देख कर मुस्कुरा रहे थे,,,, शुभम बहुत खुश था क्योंकि आज उसकी प्यास बुझने वाली थी चार-पांच दिनों से वह भी तड़प रहा था निर्मला की भी यही हालत थी,,,, वह भी घर पहुंचने का इंतजार कर रही थी,, निर्मला अपनी आदत अनुसार आराम से गाड़ी चला रही थी जल्दबाजी तो उसे बहुत अच्छी घर पहुंचने की लेकिन किसी भी प्रकार की जल्दबाजी में भी वह गाड़ी की गति को अपनी मर्यादा से ज्यादा नहीं बढ़ने देती थी,,। क्योंकि उसे अच्छी तरह से मालूम था कि कितनी रफ्तार को वह अपने कंट्रोल में कर सकती है।
शाम ढल चुकी थी अंधेरा छाने लगा था निर्मला को अच्छी तरह से मालूम था कि अशोक तीन-चार दिनों के लिए बाहर गया हुआ है और घर पर उसके और शुभम के सिवा तीसरा कोई भी नहीं था,,,, निर्मला के मन में ढेर सारी भावनाएं जन्म ले रही थी और वह सारी भावनाएं शारीरिक सुख से जुड़ी हुई थी,,,,, उसे वह दिन याद आने लगा जब वह शादी करके नई-नई घर में आई थी,,,, उस समय उसका पति अशोक उसे बेहद प्यार करता था खासकर के बिस्तर पर,,,, शादी से पहले भी निर्मला को जुदाई के बारे में कुछ भी ज्ञान नहीं था अपनी सहेलियों के मुंह से एकाद दो बार वह चुदाई की बातें सुन चुकी थी,,, लेकिन वह संभोग को प्रेक्टिकली नहीं जानती थी शादी होने के पश्चात जब वह अपने ससुराल आई तो उसका पति अशोक उस से बेहद खुश था वह हर तरह की सुख निर्मला को देने लगा बिस्तर में निर्मला को वह कभी भी कपड़े पहनने नहीं देता था,,, अक्सर जब वह अशोंक के साथ कमरे में होती थी तो वह संपूर्ण रूप से वस्त्र विहीन एकदम नंगी ही होती थी। अशोक उसे कपड़े पहनने ही नहीं देता था हालांकि वह कपड़े खुद अपने ही हाथों से उतारकर निर्मला को पूरी नंगी कर देता था,,, वैसे भी औरत से प्यार करने का यही एक उत्तम तरीका भी था जब तक औरत के बदन से संपूर्ण रूप से कपड़े अलग नहीं हो जाते तब तक उसके सौंदर्य रस का पान ठीक तरह से नहीं किया जा सकता। एक पति को उसकी पत्नी या एक मर्द को एक औरत बिस्तर में संपूर्ण तरह से नंगी ही भाती है। शुरु शुरु में निर्मला के लिए यह एक अजीब सी बात लगती थी उसे अपने पति पर गुस्सा भी आता था लेकिन जब वह निर्मला को नंगी करने के बाद अपनी बाहों में जकड़ता था,,, तो निर्मला का सारा गुस्सा सारा विरोध हवा में फुर्र हो जाता था। आखिरकार वह भी तो थी एक औरत ही उसके भी बदन के कुछ जरूरते थी कुछ चाहती थी,,,। उस समय वह अपने पति की हर हरकत को दिल से स्वीकार कर लेती थी अशोक उसके चुचियों को मुंह में भर कर चूसने के साथ-साथ दांतों से काट भी लेता था जगह-जगह दांत गड़ा देता था लेकिन यह सब निर्मला को उस समय बेहद आनंददायक लगता था,,,, मैं कभी सपने में भी नहीं सोची थी कि एक मर्द को औरत को इस तरह से प्यार करता है। उसकी सहेलियों से जो बात है वह सुनती थी उससे उसे बस इतना ही ज्ञान था कि मर्द अपने लंड को जो कि वह लंड शब्द को कभी भी खुले शब्दों में अपनी जबान पर नहीं आने दी थी,,,, मर्द अपने लंड को औरत की बुर में डालकर अंदर बाहर करते हुए उसे चोदता है बस इतना ही,,,
निर्मला को संभोग के अध्याय में ज्ञान था। लेकिन जब ऊसका वास्तविकता से सामना हुआ तो उसके मन की सारी धारणाएं धरी की धरी रह गई ऐसा नहीं था कि अपनी धारणाओं को गलत साबित होता देख कर उसे दुख पहुंचा हो,,, बल्कि मर्द द्वारा इस तरह किए जाने वाले प्रेम से तो वह एकदम से आनंदित हो उठी,,,, उसकी सांस चलना बंद हो गई थी जिस समय उसके पति ने अपने होठो को उसकी बुर की गुलाबी पंखुड़ियां से सटाया था,,,,। निर्मला को,, उस समय तो बिल्कुल भी यकीन नहीं हुआ कि वह सपना देख रही है या हकीकत है,, उसका संपूर्ण बदन इस तरह से गनगना रहा था कि मानो उसे बिजली के झटके लग रहे हो,,, उसे यकीन नहीं हो रहा था कि उसका पति अपनी जीभ को उस स्थान पर इतनी गहराई तक उतार देगा कि जहां तक उसने उसकी कल्पना भी नहीं की थी,,,, एक पल तो उसे अपने पति द्वारा इस तरह की हरकत करने पर बुरा लगने लगा कि इतनी गंदी जगह पर वह अपनी जीभ अपने होंठ लगाकर कैसे चाट सकता है,,,, लेकिन अगले ही पल जीत के द्वारा बुर कीे गुलाबी पंखुड़ियों पर उसके पति के जीभ की थपथपाहट उसके बदन में उत्तेजना की लहर भर दी,,, निर्मला उससे में उत्तेजना के परम शिखर पर पहुंच चुकी थी और मात्र अपने पति के जीभ से ही वह इतना जबरदस्त पानी छोड़ने लगी कि अशोक यह देखकर एकदम से हैरान हो गया,,,, पहली बार में ही वह अनगिनत अत्यधिक स्खलन होकर वह एकदम से मस्त हो गई,,,,, उसी में यकीन नहीं हो पा रहा था की औरत के जीवन में इस तरह का भी सुख होता है। लेकिन अगले ही पल जब उसके पति ने अपने लंड को उसके मुंह में डालकर उसे चूसने के लिए बोला तो वह मारे गिन्न के उल्टी कर दी,,,
शायद औरतों को पहली बार ऐसा पसंद नहीं होता यह सोच कर अशोक ने उससे मैं उसे कुछ नहीं बोला था और अपने नंबर को उसकी बुर में डाल कर पहली बार उसे चुदाई के सुख से मुखातिब किया था। निर्मला भी अपनी जिंदगी में पहली बार अपनी बुर में लंड को ले रही थी इसलिए उसकी भी उत्तेजना और उत्सुकता कुछ ज्यादा ही बढ़ चुकी थी,,,,
इसलिए वह मस्त होकर अपने पति से चुदवा रही थी और ऐसा लगभग एकाद साल तक चला,,,, लेकिन इन सालों के दरमियान उसने कभी भी अपने पति के लंड को मुंह में लेकर नहीं चूसी,,

धीरे-धीरे अशोक को इस बात का ज्ञान हो गया कि उसकी पत्नी निर्मला कभी भी जैसा वह चाहता है उस तरह से उसके लंड को अपने मुंह में लेकर नहीं चुसेगी,,,,। बिस्तर में वह अपनी पत्नी से जिस तरह का सहकार की कामना रखता था उस तरह का सहकार वह नहीं दे पाती थी। इस बात को लेकर दोनों में कहासुनी भी हो जाती थी। अशोक जैसा चाहता था वैसा करने में निर्मला कोई एतराज नहीं था लेकिन वह जिस माहौल में पली बढ़ी हुई थी,,, संस्कार और मर्यादा का पालन करना उसके धर्म में निहित था,,,, वह अपने संस्कार से परे नहीं जा सकती थी एक तरह से संस्कार की मर्यादा में वह बंध़ी हुई थी,,,, ऐसे में वह अपने पति के लिंग को मुंह में लेकर मुखमैथुन नहीं कर सकती थी और ना ही दूसरी औरतो की तरह खुलकर बिस्तर पर अपना जलवा दिखा सकती थीै,,, ईस तरह से निर्मला अपने संस्कार की वजह से खुल नहीं पाती थी उसे बेहद शर्म सी महसूस होती थी और वही बात अशोकं को बिल्कुल भी पसंद नहीं थी।
बिस्तर में निर्मला अपनी तरफ से कोई भी हरकत नहीं कर पाती थी और ना ही करने को तैयार थी लेकिन अशोक द्वारा की गई सारी हरकत उसे बेहद आनंदित कर देती थी।
इसी वजह को लेकर धीरे-धीरे अशोक का प्यार निर्मला के लिए कम होता गया और जब शुभम का जन्म हुआ तब से तो अशोक लगभग उससे दूर ही रहने लगा,,, वह निर्मला के पास अभी आता था जब उसे उसकी जरूरत पड़ती थी और अपना काम निपटाकर करवट लेकर फिर सो जाता था,,, बरसों से इसी प्रकार का दुख झेल रही निर्मला के जीवन में शुभम की वजह से एक बार फिर से हरियाली आई थी,,, अपने पति के लंड को मुंह में लेने से उसे गिन्न आती थी,, लेकिन जब से वह अपने बेटे के लंड को देखी थी उसके लंड से चुदी थी तब से वह अपने बेटे के लंड को मुंह में लेने के लिए आतुर थी लेकिन अभी भी ऐसा कोई मौका नहीं मिला था कि वह अपने बेटे के लंड को मुंह में ले सके अब तक तो सिर्फ बुर के अंदर डालना और निकालना ही लगा हुआ था,,,
जिस तरह से उसका पति पहली बार उसकी बुर पर अपने होठ रखकर और जीभ को अंदर डालकर उसे चाटा था,,, और उस समय जिस प्रकार का उसे आनंद मिला था उसी प्रकार के आनंद के लिए तड़प रही थी वह भी है चाहती थी कि उसका बेटा भी उसकी बुर पर अपने होठ रखें उसे अपनी जीभ से चाटे,,, उसकी बुर से बेहद प्यार करे उसे मस्त कर दे और ऐसा मौका उसे आज ही मिला था आज वह अपने बेटे के साथ खुलकर मस्ती करना चाहती थी। घर पर उसे कोई रोकने वाला नहीं था कोई टोकने वाला नहीं था,,,, वह बहुत खुश नजर आ रही थी और यही सोचते हुए वह धीरे-धीरे गाड़ी चलाते हुए अपने घर की तरफ बढ़ती चली जा रही थी कि तभी एक रेस्टोरेंट के आगे वह अपनी गाड़ी रोक दी,,,


क्या हुआ मम्मी यहां गाड़ी क्यों रोक दि,,,।

बेटा अब घर पर चलकर कौन खाना बनाएं इस से अच्छा है कि मैं यही से कुछ खाने के लिए ले लेती हूं,,,

ठीक है मम्मी मैं यहीं इंतजार करता हूं आप लेकर आओ,,
( निर्मला रेस्टोरेंट की तरफ जाने लगी और शुभम कार में बैठे बैठे अपनी मां को जाते हुए देख रहा था निर्मला सीढ़ियां चढ़ते हुए आगे बढ़ रही थी और मैं जिस तरह से सीढ़ियां चढ़ रही थी साड़ी के अंदर उसकी भरावदार गांड की लचक कुछ ज्यादा ही कामुक लग रही थी,,, निर्मला की मटकती हुई गांड को देख कर शुभम का लंड एक बार फिर से खड़ा हो गया,,, वह तब तक अपनी मां को देखता रहा जब तक वह रेस्टोरेंट में दाखिल नहीं हो गई,,,, वह मन ही मन सोच लिया था कि आज घर पहुंचते ही अपनी मां की मस्त गांड से जी भर के खेलेगा,,,, थोड़ी ही देर बाद हाथों में खाने का सामान लेकर वहां रेस्टोरेंट से बाहर निकलती हुई नजर आई,,,,
और दोनों गाड़ी में बैठकर अपने घर की तरफ जाने लगे,,, दोनों को घर पर जल्दी पहुंचने का इंतजार था,,,,,


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RE: Sex kahani अधूरी हसरतें - by sexstories - 03-31-2020, 03:46 PM

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