Sex kahani अधूरी हसरतें
03-31-2020, 03:47 PM,
RE: Sex kahani अधूरी हसरतें
निर्मला जा चुकी थी शुभम कुछ देर तक वहीं बैठा रहा और खुद देख कर और अपनी मां के बीच हुई गंदी बातों के बारे में सोचता रहा,,,। वह मन ही मन सोचने लगा कि उसकी मां पूरी तरह से बदल चुकी है वाह पहले कभी भी अपनी मां के मुंह से इस तरह के अश्लील शब्दों को भूल से भी नहीं सुना था लेकिन अब तो वह खुले तौर पर उससे खुलकर बातें कर रही थी। लेकिन वह अपनी मां के इस व्यवहार और रवैये से बेहद खुश और आनंदित था । क्योंकि वह तो खुद ही अभी जवानी की दहलीज पर कदम रख रहा था और उसे ऊसकी जवानी को मांजने का पूरा साधन उसे मिल चुका था। शुभम के नजरिए में निर्मला अब उसकी मां नहीं बल्कि एक खूबसूरत जवानी से भरपूर मदमस्त बदन वाली औरत थी। जिसे पाने के लिए मोहल्ले के सारे मर्द हमेशा लालायित रहते हैं और तो और खुद उसके दोस्त भी उसकी मां को भोगने की कल्पना करके ना जाने कितनी बार अपने ही हाथों से अपना लंड हिलाकर पानी भी निकाल चुके हैं। शुभम की आंखों के सामने हमेशा उसकी मां का खूबसूरत बदन किसी बेहद स्वादिष्ट पकवानों से भरी हुई थाली के समान घूमती रहती थी। वह निर्मला को पूरी तरह से प्राप्त कर चुका था,,, उसके बेहद खूबसूरत बदन को भाग चुका था लेकिन फिर भी निर्मला के बदन की कशिश इतनी गहरी थी कि,,, शुभम को सोते जागते उठते बैठते हमेशा उसकी आंखों के सामने निर्मला के खूबसूरत बदन की झलक नजर आती रहती थी। निर्मला के खूबसूरत बदन के हर एक अंग के बारे में सोचते हुए शुभम घंटों गुजार देता था,,,। शुभम की किस्मत जोरों पर थी तभी तो निर्मला खुद आगे चलकर उसके साथ बिना किसी दबाव के बिना जोर जबरदस्ती के उसके साथ संबंध बनाई थी,,,। और दोनों के बीच का यह शारीरिक संबंध पूरी तरह से गहरा हो चुका था लेकिन अभी तक दोनों,,, सिर्फ किनारे पर तेर कर ही मजा ले रहे थे अभी तो उन दोनों को समुद्र के बीचो-बीच जाकर असली तैराकी का मजा लेना बाकी था,,, निर्मला की खूबसूरत बदन की बाल्टी जवानी के रस से एकदम छलक रही थी जिसमें से शुभम के ऊपर तो मात्र कुछ छींटें ही पड़े थे। निर्मला की जवानी के रस में पूरी तरह से शुभम को अभी भीगना बाकी था। और भीगने का सही समय आ चुका था।,,,, कमरे के अंदर उसके सपनों की रानी है उसका बेसब्री से इंतजार कर रही थी।शुभम के पजामे मे उसका लंड पूरी तरह से तनकर तंबू बनाए हुए
था।,,, शुभम भी अब वहां रुक कर अपना कीमती वक्त जाया नहीं करना चाहता था इसलिए वह कुर्सी पर से उठा और सीढ़ियां चढ़ता हुआ अपनी मां के कमरे की तरफ जाने लगा चलते समय उसका लोग पूरी तरह से तंग कर किसी लोहे की रोड की तरह पजामे में तंबू बनाए हुए था। कोई और समय होता तो वह पेंट में बने इस तंबु को छुपाने की पूरी कोशिश करता लेकिन घर में,,, उसके और उसकी मां के सिवा दूसरा कोई भी नहीं था और उसकी मां से छुपाने जैसा उसके पास सब कुछ भी नहीं था इसलिए वह बिंदास हो करके अपना पैंट के ऊपर से ही मसलते हुए अपनी मां के कमरे की तरफ चला जा रहा था। अपनी मां के कमरे के करीब पहुंचा तो देखा कमरे का दरवाजा पूरी तरह से खुला हुआ था और अंदर ट्यूबलाइट कि सफ़ेद रोशनी पूरे कमरे को रोशन किए हुए थी,, उसका दिल जोरों से धड़क रहा था उसे आज अपनी मां के कमरे में जाने से थोड़ा सा घबराहट महसूस हो रही थी और साथ में उत्सुकता भी बनी हुई थी,,,,
इस तरह का डर घबराहट और उत्सुकता के साथ साथ उत्तेजना का अनुभव हर मर्द को अपनी सुहागरात के दिन ही महसूस होती है और ऐसा अनुभव शुभम को भी हो रहा था लेकिन उसकी सुहाग़रात नहीं थी क्योंकि वह अभी तक पूरी तरह से कुंवारा ही था। हालांकि वह सामाजिक तौर पर कुंवारा था लेकिन,,, और शारीरिक तौर पर वह पूरी तरह से मर्द बन चुका था,,, लेकिन संपूर्ण तौर पर मर्द बनने की परिपक्वता अभी भी बाकी थी लेकिन इसका सुचारु रुप से ट्रेनिंग चालू थी। और वैसे भी कहा जाए तो आज शुभम की खास तौर पर सुहागरात ही थी भले ही बिस्तर पर,,, उसकी पत्नी ना होकर उसकी मां ही थी। क्योंकि निर्मला भी इसी पल का बेसब्री से इंतजार कर रही थी जिस तरह का विरोध उसे अपनी सुहागरात के दिन अपने बदन में महसूस हो रहा था,,, जिस तरह की घबराहट और जिस तरह की उत्सुकता उसे पुरुष संसर्ग से मिलने वाला था उसी तरह का अनुभव आज वह कर रही थी।,,
शुभम का दिल जोरों से धड़क रहा था अभी तक वह दरवाजे पर ही खड़ा होकर कमरे के अंदर का जायजा ले रहा था,,, उसकी नजर बिस्तर पर गई तो आंखें एकदम से चमक उठी क्योंकि उसकी मां बिस्तर पर पीठ के बल लेटी हुई थी और उसकी एक टांग घुटनों से मुड़ी हुई थी जिसकी वजह से उसकी साड़ी जांघो के नीचे तक सरक गई थी और उसकी सुडौल मोटी मोटी मांसल दूधिया रंग की चिकनी चांद है ट्यूब लाइट की रोशनी में और भी ज्यादा खूबसूरत लग रही थी। शुभम की नजर मिलते ही निर्मला की मोटी मोटी जांघों पर पड़ी तो उत्तेजना के मारे उसका गला सूखने लगा निर्मला कोई का आभास हो चुका था कि शुभम दरवाजे पर खड़ा है इसलिए वह छत की तरफ नजरें गड़ाए मुस्कुरा रही थी बड़ा ही कामुक नजारा देखने को मिल रहा था,,,,,। यह नजारा देखकर तो सुभम के हांथ पैर ऊत्तेजना के मारे कांपने लगे थे।
शुभम की स्थिति खराब होने लगी थी इस तरह का उत्तेजक नजारा देखकर उसके वजन में उत्तेजना कि बाहर भी दौड़ रही थी जिसकी वजह से उससे वहां रुका भी नहीं जा रहा था और एक अजीब सी घबराहट दिमाग में बनी हुई थी जिसकी वजह से वह अंदर भी नहीं जा पा रहा था काफी देर तक वह दरवाजे पर ही खड़ा होकर अंदर के नजारे का रसपान अपनी आंखों से कर रहा था,,,, निर्मला उत्तेजना के मारे गहरी गहरी सांसे लेते हुए अभी तक बड़ी तेज गति से घूम रहे पंखे को ही देख रही थी,,, ऊसके नथुनों मे से अंदर बाहर हो रही उसकी सांसो के साथ साथ ब्लाउज में केद ऊसी बड़ी बड़ी छातियांे ऊपर नीचे हो रही थी जिसे देख कर शुभम का दिल और जोरों से धड़क रहा था। अपनी मां की सांसों के साथ ऊपर नीचे हो रही बड़ी बड़ी चूचियां को देखकर उससे रहा नहीं गया और वह कमरे में प्रवेश कर गया,,, कमरे में प्रवेश करते ही वह सबसे पहले दरवाजे को लॉक करना ही ठीक समझा वैसे तो पूरे घर में निर्मला और शुभम के सिवा कोई भी नहीं था वह दोनों चाहते तो दरवाजा खुला रखकर भी सब कुछ खुले तौर पर कर सकते थे लेकिन,,, फिर भी शायद बंद कमरे के अंदर कुछ ज्यादा ही मस्ती छा जाती है इस वजह से जरूरत ना होने के बावजूद भी शुभम दरवाजे को लॉक करते हुए अपनी मां को ही देखे जा रहा था,,,, बिस्तर पर पीठ के बल लेटी हुई,,, हुस्न की मल्लिका,, निर्मला जब अपने बेटे को दरवाजा लॉक करते हुए देखेी तो उसका बदन मारे उत्तेजना के कसमसाने लगा और वह अपने बेटे की तरफ देख कर मुस्कुराने लगी,,,, शुभम फिर से दरवाजा लॉक करके वहीं खड़ा होकर फिर से अपनी मां की तरफ देखने लगा और उसकी मादक मुस्कान देखकर उसके पैजामे का तंबू और ज्यादा तन गया।,, वह वहीं खड़ा हो कर के अपनी मां को कसमसाते हुए देख रहा था,,, निर्मला के भजन में उत्तेजना की थी तैयारी में रही थी उसके बदन का पोर पोर शुभम की बाहों में समा जाने के लिए आतुर था। वह अपनी उत्तेजना को अपने काबू में नहीं रख पा रही थी और अपने दोनों हाथ को पीछे की तरफ ले जाकर के अंगड़ाई लेते हुए,,, अपने बदन में बेहद कामुक तरीके से हरकत कर रही थी अंगड़ाई लेते हुए वह कभी अपने नितंबों को बिस्तर से ऊपर की तरफ हल्के से उठा देती तो कभी अपनी छातियों को ऊपर उठाकर ऐसा जताने की कोशिश करती मानो वह,,, अपनी दोनों बड़ी बड़ी छातियों को छत से सटा देगी,,, अंगड़ाई लेती हुई निर्मला बिस्तर पर एकदम खुली किताब की तरह लग रही थी जो कि अपने किताब के हर पन्ने को खोलने के लिए बेहद बेसब्र नजर आ रही थी। शुभम का हाथ खुद-ब-खुद पजामे के ऊपर से उसके लंड पर आ गया था और यह नजारा देखकर निर्मला उसकी तरफ करवट लेकर घूमते हुए बोली,,,।

अब वहीं खड़े ही रहोगे या मेरे करीब आओगे,,,,,
( यह निर्मला का बेसब्र निमंत्रण था,,,, और उसका निमंत्रण पाकर शुभम अपने कदम आगे बढ़ाते हुए बिस्तर के करीब जाने लगा,,,, निर्मला को ंऊसकें पेजामें मे बना उसका खुंटा,,, किसी बेहद नुकीला हथियार की तरह नजर आ रहा था जौकी उसकी बेहद नाजुक बदन को भेदने के लिए एकदम तैयार था,,,। पजामें में तना हुआ तंबू देखकर निर्मला के मुंह में पानी आ गया। जिसे वह मुंह में लेकर चूसने का पूरा मन बना चुकी थी वह उस के बेहद करीब था। जी मैं तो आ रहा था कि वह आगे बढ़कर के पजामे को खींचकर नीचे सरका दे और उसके खड़े लंड को हाथ में पकड़ कर सीधा मुंह में उतार कर उसे चूसना शुरू कर दें,,। लेकिन उसके पास समय बहुत अच्छा अभी तो पूरी रात बाकी थी इसलिए जो भी करना था धीरे-धीरे करना था ताकि वह जैसे फूलों में से भंवरा रसों को चूस चूस कर उसके मीठे रस का मजा लेता है उसी तरह वह भी सारी रात अपने बेटे के दमदार लंट मे से सारा रस चूस कर मस्त हो जाए। शुभम बिस्तर के करीब कदम बढ़ाते हुए कभी वह अपनी मां की बड़ी-बड़ी चूचियों को देखता तो कभी उसकी ऊजली नंगी दूधिया जांघों को देखकर मस्त होता जाता,,, वह बिस्तर के बिल्कुल करीब पहुंच गया था उसकी सांसे बड़ी तेजी से चल रही थी,,वह अपना एक हाथ बढ़ाकर अपनी हथेली को उसकी मांसल नंगी जांघों पर रख दिया,,, और हथेली को जांघों पर रखते ही उसे कस कर अपनी हथेली में दबोच लिया,,,, शुभम की इस हरकत पर निर्मला के मुंह से उत्तेजनात्मक सिसकारी निकल गई,,,,

सससससस,,,,,, हहहहहहहह,,,,,, शुभम,,,,

( निर्मला के मुंह से इतना निकलना था कि वह अपनी मां की नंगी जांघों को चूमना शुरू कर दिया,,,,, वह लगातार अपनी मां की गोरी गोरी मक्खन जैसी जांघों पर अपने होंठ घुमाने लगा,,, लगभग वाह जांघों को अपनी जीभ से चाटना शुरू कर दिया था शुभम के बदनं में पूरी तरह से उत्तेजना भर चुकी थी। अपने बेटे की इस हरकत की वजह से निर्मला भी कामोत्तेजना का अनुभव कर रही थी और उसका बदन कसमसा रहा था धीरे धीरे जिसकी वजह से उसकी शाडी और ज्यादा ऊपर सरकने लगी,

शुभम पागलों की तरह अपनी मां के मांसल जांघों को ही चुमे जा रहा था। और चुमता भी क्यों नहीं निर्मला का बदन का हर एक पोर, हर एक अंग बेहद मांसल और मक्खन की तरह चिकना था। शुभम इतना ज्यादा उन्मादक स्थिति में पहुंच चुका था कि वह अपनी मां की जांघों को चूमते हुए दोनों हाथों से ऊसकी मोटी चिकनी जांघो को भी जोर जोर से दबा रहा था।,,, निर्मला की उत्तेजना हर पल बढ़ती ही जा रही थी उसके मुंह से गरम ंसिसकारियों की आवाज आना शुरू हो गई थी।,,, अपने बेटे की चाहत और उसका पागलपन देखकर निर्मला के मन में उसके मन में दबी ख्वाहिश जगने लगी वह चाह रही थी कि उसका बेटा खुद उसकी पैंटी को नीचे सरका कर उसकी रसीली बुर पर अपने तपते होठ रखकर उसे खूब चाटे।,,, यह ख्याल और ख्वाइश उसके मन में आते ही उसके शरीर में उत्तेजना की लहर दौड़ में लगी वह उत्तेजना के मारे अपने बदन को खासकर के बड़े-बड़े भारी नितंबों को बिस्तर से ऊपर की तरफ उचका ले रही थी,,, खास करके वहां यह हरकत अपने बेटे को उस रसीली बुर की तरफ आकर्षित करने के लिए कर रही थी लेकिन वह तो उसकी जांघो को ही चुमने चाटने में व्यस्त और मस्त हो रहा था।,,,, निर्मला की धड़कनें बढ़ने लगी थी उसकी सांसो की गति के साथ साथ उसकी ब्लाउज के अंदर कैद बड़े-बड़े खरबूजे भी ऊपर नीचे हो रहे थे जो कि बड़े ही उन्मादक लग रहे थे। शुभम पागलों की तरह अपनी हथेलियों को की मां की जांघो के चारों तरफ घुमा रहा था रह रह कर वह अपनी हथेली मैं जानू को कब का दबोच भी ले रहा था जिसकी वजह से निर्मला की सिसकारी और ज्यादा तेज हो जाती थी


सससहहहह,,,, आहहहहहह,,,, शुभम तेरी ईन हरकतो ने मुझे आज अपनी सुहागरात की रात याद दिला दिया।,,,,,

ऐसा क्यों मम्मी,,,,, (वह अपनी मां की जांघों को जीभ से चाटता हुआ बोला।)

तुझे इस तरह से मेरी जांघो को चूम चाट रहा है मेरे बदन में अजीब सी खलबली मची हुई है,,,, तेरी इन हरकतों से मुझे मेरी सुहागरात याद आ गई,,, ऐसी ही घबराहट उत्तेजना और कसमसाहट मुझे उस दिन महसूस हुई थी जब तेरे पापा ने पहली बार मेरे बदन को छुआ था,,, कसम से ऊस पल की कसमसाहट मुझे आज अपने बदन में महसूस हो रही है।,,,
( निर्मला जानबूझकर अपने बेटे से यह बात बोल रही थी क्योंकि वह चाहती थी कि किसी भी तरह से उसका बेटा उसकी रसीली बुर को अपनी जीभ से चाटे,,, बरसो गुजर गए थे उसकी बुर पर किसी मर्द की जीभ का स्पर्श,,, उसके होंठों का स्पर्श नहीं हुआ था,,,, )

कैसी कसमसाहट मम्मी,,,, क्या किया था उस दिन पापा ने,,,
( शुभम अपनी मां की नजरों से नजरें मिलाता हुआ बोला,,
निर्मला के लिए भी यही सही मौका था अपने दिल की बात को शुभम से बताने के लिए वह , बातों ही बातों में शुभम से बता देना चाहती थी कि उसे क्या अच्छा लगता है,,,और वह क्या करवाना चाहती है इसलिए वह बोली,,,।)

जाने दे बेटा अब पिछली बातों को याद करके क्या फायदा उस समय का कुछ और था अब वह समय लौटकर तो आने वाला नहीं है,,,( निर्मला बात को घुमाते हुए बोली वह जानती थी कि उसके सा बोलने पर शुभम जरूर उससे पूछेगा इसलिए वह उसकी उत्तेजना को बढ़ाते हुए हल्के से अपनी टांग को थोड़ा सा खोल दी,,, जिसकी वजह से उसकी साड़ी पूरी तरह से नीचे सड़क पर कमर तक पहुंच गई और उसकी मरून रंग की मखमली पैंटी नजर आने लगी,,,, निर्मला के बदन में कोई इस हरकत की वजह से शुभम की नजर निर्मला के ठीक जांघों के बीच ऊसकी मरुन रंग कीे पैंटी पर पड़ी,,, और उसके बाद देने में यह नजारा देखकर उत्तेजना की लहर दौड़ गई,,, एक बार फिर से उसके खुद के ऊपर उसका कंट्रोल नहीं रहा और वहां अपनी दोनों हथेलियों में अपनी मां की नंगी जांघों को दबोच ते हुए बोला,,,,।)

बोलो ना मम्मी क्या किया था पापा ने उस दिन,,,,

तू क्या करेगा जानकर सुभम, बेवजह मेरी भी प्यास बढ़ जाएगी,,,,

नहीं मम्मी तुम को बताना ही होगा आखिर मैं भी तो सुनूं कि पापा ने उस दिन ऐसा क्या किया था कि जो आपके बदन में अजीब अजीब सी कशमशाहट होने लगी थी,,,
( अपने बेटे की यह बात सुनकर निर्मला मन ही मन में सोचा कि यही सही मौका है अपने मन की बात बताने का इसलिए वह अपने बेटे की आंखों में बड़े ही नशीली और कामुक अदा से देखते हुए बोली,,।)

बेटा उस दिन जैसे ही तेरे पापा कमरे में आए आते ही मुझे अपनी बाहों में दबोच लिया और अपने होठों को मेरे गुलाबी होठों पर रखकर चूसना शुरू कर दिए,,,( शुभम बड़े ध्यान से सुन रहा था।) जिस तरह से तेरे पापा ने पूरे जोश के साथ मुझे अपनी बाहों में भरा था मुझे तो ऐसा लग रहा था कि मेरी हड्डियां चटक जाएंगी,,,

क्या सच में मम्मी,,,( शुभम आश्चर्य के साथ बोला)

हां बेटा,,,, शुरु-शुरु में तेरे पापा ऐसे ही थे और उस दिन तो उनकी पहली रात थी इसलिए कुछ ज्यादा ही जोश में थे,,

फिर क्या हुआ मम्मी,,,( शुभम मक्खन जैसी जांघो को हल्के-हल्के सहलाता हुआ बोला,,)

फिर क्या तेरे पापा ने तो ब्लाउज के ऊपर से मेरी दोनो चुचियों को पकड़कर दबाना शुरु कर दिए,,,, मुझे बहुत दर्द कर रहा था लेकिन वह नहीं माने और अगले ही पल मेरे बदन से ब्लाउज और मेरी ब्रा दोनों उतर चुकी थी और वह मन लगाकर मेरी चूचियों को पी रहे थे,,,,( अपनी मां की यह सब बातें सुनकर उत्तेजना के मारे शुभम का गला सूखने लगा था और शुभम के चेहरे पर बदलते हाव भाव को निर्मला अच्छी तरह से देख रही थी और समझ रही थी,,,,।)


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