Sex kahani अधूरी हसरतें
03-31-2020, 03:48 PM,
RE: Sex kahani अधूरी हसरतें
आहहहहहह,,,, शुभम बस ऐसे ही चूस,,,, नीचोड़ डाल सारे रस को,,, मेरी चूचियों को जोर जोर से दबा कर पी, निकाल डाल सारा दूध इसमें से,,,आहहहह,,, शुभम बेटा बस ऐसे ही हां ऐसे ही,,,,,ओहहहहहह मां,,,,,, क्या गजब का चुसता है रे तू, मैं तो कभी सपने में भी नहीं सोच सकती थी कि इतनी बेरहमी से भी इसे चूसा और दबाया जाता है। तु तो मुझे एकदम से मस्त कर दे रहा है,,,,,

( निर्मला एकदम से चुदवासी होकर मन में जो आ रहा था बड़बड़ाए जा रही थी,,,। और उसकी खुली बातों का शुभम पर भी बहुत गहरा असर पड़ रहा था वह तो अपनी मां की ऐसी बातें सुनकर एकदम से मस्त हो गया था उसे यकीन नहीं हो रहा था कि उसकी मां इस तरह से भी बातें कर सकती है निर्मला पूरी तरह से चुदाई के रंग में रंग चुकी थी। शुभम अपनी मां की बातें सुनकर और जोर-जोर से चूचियों को दबाता हुआ पूरा का पूरा मुंह में भरकर पी रहा था अपनी उत्तेजना को काबू में ना रख सकने की वजह से वह चूचियों पर अपने दांत भी गड़ा दे रहा था,,, जिसकी वजह से चुचीयों पर दांत के निशान पड़ गए थे। अपने बेटे द्वारा इस तरह से चुचियों पर दांत गड़ा देना,,, उसे बहुत आनंदित और कामोत्तेजित कर दे रहा था। उसका पूरा बदन कसमसा जा रहा था और उत्तेजना के मारे वह अपनी पूरी छातियो को ऊपर की तरफ उठा दे रही थी,,, और शुभम जी बिहार उत्तेजित अवस्था में जैसे ही उसकी मां अपनी छातियों को ऊपर की तरफ उठाई वह अपने दोनों हाथों से और ज्यादा दबाव देते हुए चुचियों को दबाकर ऊपर की तरफ उठाने लगा जिससे निर्मला का बदन पूरा धनुष की तरह हो गया,,,,, अपनी मां की तरह की एक दम से उत्तेजन आत्मा की स्थिति को देखकर शुभम से रहा नहीं गया रहा तुरंत अपने दोनों हाथ को उसकी पीठ की तरफ ले जा कर के उसे कस के अपनी बांहों में भींजते हुए चूची को पीने लगा,,,, वह इतनी जोर से अपनी मां को अपनी बांहों में भीेचे हुए था कि निर्मला को ऐसा लगने लगा कि उसकी हड्डियां तक चटका देगा,,,, उसके मुंह से किस कार्य के साथ साथ हल्की कराहने की आवाज़ भी निकलने लगी,,,

आहहहहहह,,,, शुभम हड्डियां तोड़ देगा क्या,,?

मम्मी तुम ही तो बोली थी कि तेरे पापा इस तरह से मुझे अपनी बाहों में भरे थे कि हड्डिया तक चटका दिए थे।,,,
( शुभम चूची को मुंह में भरे हुएे ही बोला,,,,)

ओहहह,,, शुभम सच में तू एकदम तेरे पापा की ही तरह कर रहा है बल्कि मैं तो यह कहूंगी कि तेरे पापा ने भी इस तरह से मुझे प्यार नहीं किया था जिस तरह से तू कर रहा है। बस ऐसे ही करता रहे।

( निर्मला पूरी तरह से काम वासना में लिप्त हो चुकी थी,,, वह अपने बेटे से एकदम अश्लील शब्दों में बातें कर रही थी जो कि, शुभम की उत्तेजना को ज्यादा बढ़ा दे रही थी। पूरा कमरा चुदासमय हो चुका था पूरे कमरे में निर्मला की सिस्कारियां गूंज रही थी,,,। जिस बिस्तर पर उसे अपने पति के साथ होना था उस बिस्तर पर वह अपने बेटे के ही साथ रंगरेलियां मना रही थी। दोनों को किसी बात का डर रहेगा और ना ही उन्हें कोई रोकने वाला और ना ही कोई रोकने वाला था इसलिए तो दोनों आज बिस्तर पर खुलकर मजा ले रहे थे। निर्मला अर्धनग्न अवस्था में बिस्तर पर मचल रही थी शुभम के बदन पर अभी भी सारे कपड़े थे लंड इतना टाइट हो चुका था कि मैंने कभी भी फट जाएगा,,,, शुभम जी जान से अपनी मां की चुचियों को पी रहा था करीब एक-आध घंटा तक चुचियो का रस निचोड़ने के बाद वह अपने हाथ को निर्मला की जांघों के बीच घुमाने लगा,,, और अगले ही पल वह अपनी हथेली को अपनी मां की बुर पर पैंटी के ऊपर से ही घुमा रहा था,,,, बुर पर पैंट के ऊपर से ही हाथ का स्पर्श होते ही निर्मला का बदन कसमसाने लगा,,, उसकी दूर से लगातार मदन रस का स्राव हो रहा था जिसकी वजह से पैंटी पूरी तरह से गीली हो चुकी थी। जिसका एहसास शुभम को जल्द ही हो गया क्योंकि उसकी उंगलियां चिपचिपा रही थी वह पैंटी के ऊपर से ही अपनी हथेली को अपनी मां की बुर पर रगड़ना शुरु कर दिया। निर्मला के मुंह से आ रही शिसकारियों की आवाज और ज्यादा तेज होने लगी,,,, निर्मला की बुर मचल रही थी शुभम की जीभ का स्पर्श पाने के लिए,,, निर्मला को इस बात का एहसास हो गया कि जिस तरह का जादू उसने उसकी चूचियों पर किया है उसी तरह का जादू उसकी बुर भी चाह रही है।। अबे तो सुभम की भी इच्छा हो गई थी कि वह अपनी मां की रसीली बुर को बड़े इत्मीनान से देखें,,, इसलिए वह बड़ी बड़ी चूचीयो पर से अपना मुंह हटाया, उसकी सांसे बड़ी तेज गति से चल रही थी। वह अपनी मां की प्यासी आंखों में कुछ देर तक देखता रहा,,, हालांकि उसकी हथेलि अभी भी पेंटी के ऊपर से हो बुर को टटोलने में लगी हुई थी। निर्मला चाहती थी कि उसका बेटा अब सारा ध्यान उसकी बुर पर ही केंद्रित करें और ऐसा हुआ भी। वह दोनों हाथों से पेटीकोट की दूरी खोलने लगा वह अपनी उंगलियों में पेटीकोट की रोशनी डोरी को पकड़ कर उसे खोल रहा था। अंगुलियों का स्पर्श उसके चिकने पेट पर हो रहा था जिसकी वजह से उसका पूरा बदन कसमसा रहा था और उसकी सांसे तेज चल रही थी उसकी उत्तेजना दबाए नहीं दब रही थी। जिसकी वजह से डोरी खोलते समय बार-बार निर्मला के नितंब ऊपर की तरफ ऊठ जा रहे थे,, जिसे देखकर शुभम की भी हालत खराब हो रही थी,, अगले ही पल पेटिकोट की डोरी को खोल दिया जिंदगी में पहली बार वह पेटीकोट की डोरी खोल रहा था,, और इसी वजह से उसके बदन में सुरसुराहट बढ़ती जा रही थी।,, अपने बेटे की इस हरकत और उसकी इस अदा पर तो उसकी बुर में चीटियां रेंग रही थी। वह धड़कते दिल के साथ अपने बेटे की हर हरकत को बड़े गौर से देख रही थी उत्तेजना के मारे उसका चेहरा लाल टमाटर की तरह तमतमा रहा था। शुभम की भी हालत खराब हो रही थी क्योंकि अब जो नजारा उसकी आंखों के सामने आने वाला था वह बेहद ही हसीन बेहद अतुल्य और बेहद अद्भुत था। उसे मालूम था कि उसकी मां का बेहद खूबसूरत और बेशकीमती खजाना पेटीकोट और पेंटिं के परदे के पीछे छिपा हुआ है,,। पेटिकोट की डोरी खुल चुकी थी और शुभम आश्चर्य और उत्तेजना ललित होकर कभी खुली हुई पेटीकोट को देखता तो कभी अपनी मां के चेहरे को देखने लगता जो कि वह भी उत्सुकता के साथ उसको ही देखे जा रहीे थी। दोनों की सांसें इतनी तेज चल रही थी कि कमरे के धुप्प सन्नाटे में सिर्फ दोनों की गहरी सांसो की ही आवाज सुनाई दे रही थी,,,। आगे क्या करना है यह सोचकर ही शुभम की सांसे बहुत तेज चल रही थी, ऊसके दिल की धड़कन बढ़ने लगी थी। उसे अजीब सी घबराहट महसूस हो रही थी। पेंटिं का वह हिस्सा जिस जगह पर निर्मला की बूर थी वह पूरी तरह से मदन रस में भीग कर गीली हो चुकी थी। उत्तेजना के मारे शुभम का गला सूखता जा रहा था,,,, 2 घंटे यूं ही बीत चुके थे,,, शुभम ने इन दो घंटों में अपनी मां की खूबसूरत बदन का पूरी तरह से जायजा भी नहीं ले पाया था।,,, अब आगे क्या करना है इतना तो वह अच्छी तरह से जानता था और इसी इंतजार में उसकी मां भी प्यासी नजरों से उसी को ही देख रही थी,,,, शुभम अपने हाथ को आगे बढ़ाकर पेटीकोट के दोनों छोर को अपने हाथों से पकड़ लिया,,,, शुभम अब ऊसकी पेटीकोट को नीचे सरकाने वाला है यह जानकर निर्मला का पूरा बदन कसमसाने लगा,,,,

उत्तेजना की अजीब सी सुरसुराहट उसके पूरे बदन पर अपना कब्जा जमाने लगी शुभम अपने दोनों हाथों से पेटीकोट के दोनों छोर को पकड़े हुए था लेकिन उत्तेजना और डर के मारे उसके हाथ कांप रहे थे। शुभम जैसे ही पेटीकोट को पकड़कर नीचे की तरफ खींचा ही था कि उसका पूरा सहकार देते हुए निर्मला अपनी बड़ी बड़ी गांड को ऊपर की तरफ उचका दी, ताकि शुभम उसकी पेटीकोट को आराम से निकाल सके,, निर्मला की यह अदा शुभम को बेहद कामुकता से भरपूर आनंददायक लगी,,, धीरे-धीरे करके बहुत पेटीकोट को उसके लंबे जितनी पेर में से निकाल कर बाहर फेंक दिया। पेटीकोट के बाहर निकलते हैं निर्मला खुद ही अपनी ब्लाउज के साथ साथ अपनी ब्रा को भी उतार फेंकी,,,, उसके बदन पर मात्र एक छोटी सी पेंटिं ही रह गई थी जोंकि, अपने अंदर बेशकीमती अनमोल खजाने को छुपाए हुए थी। निर्मला की बुर उत्तेजना से सराबोर हो चुकी थी और वह फूल कर एकदम गरम रोटी की तरह ऊपस आई थी,,, जो की पैंटी के ऊपर से भी साफ-साफ फूली हुई झलक रही थी। शुभम उत्तेजित अवस्था में बड़े ध्यान से अपनी मां की पेंटिं की तरफ देख रहा था। उसके देखने के अंदाज से ऐसा ही लग रहा था कि वह अपनी नजरों से ही भेंद कर अपनी मां की बुर तक पहुंच जाना चाहता है। निर्मला शुभम से बड़े ही मादक स्वर में बोली।,,,


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