RE: Sex kahani अधूरी हसरतें
अब देखता ही रहेगा या इसे भी उतार कर मुझे पूरी नंगी करेगा,,,,,
( अपनी मां किस तरह की बातें सुनकर शुभम का दिल उत्तेजना के मारे और जोर से धड़कने लगा अपनी मां की तरफ से खुला निमंत्रण पाकर शुभम ने अपने कांपते हाथों से पेंटिं के दोनों छोर को पकड़ लिया,,,, पेंटी को पकड़ते ही नीर्मला की हालत खराब होने लगी वह गहरी गहरी सांसे लेने लगी। उसकी नंगी छातियां अंदर बाहर हो रही सांसो के गति के साथ ही हिलोरे मार रही थी।,,, निर्मला बड़ी बेसब्र हुए जा रही थी, उसे इंतजार था कि कब उसका बेटा उसकी पेंटिं को उतार कर उसे संपूर्ण रूप से नंगी करेगा,,,, शुभम भी बेहद उत्सुक नजर आ रहा था क्योंकि आज मैं पहली बार अपनी मां की बुर को एकदम गौर से और बड़ी बारीकी से उसका निरीक्षण करते हुए देखेगा,,, यह बात तो बिल्कुल अजीब थी लेकिन एकदम सही थी क्योंकि अभी तक भले ही शुभम ने अपनी मां की बुर में बहुत बार लंड डालकर उसे चोद चुका था,,, लेकिन अभी तक उसने अपनी मां की बुर को ठीक तरह से देखा नहीं था उसकी भौगोलिक रचना से संपूर्ण अवगत नहीं था। उसने अब तक उसे एक बेहद खूबसूरत छंद के रुप में ही जाना था जिसके अंदर वह अपने लंड को डाल कर चोदता था,,,। आज उसे मौका मिला था उसे अच्छी तरह से देखने का और समझने का इसलिए वह अपने कांपते हाथों की उंगलियों में पेंटिं की इलास्टिक को फंसाकर धीरे-धीरे नीचे की तरफ सरकाने लगा लेकिन पेंटिंग बस थोड़ी सी ही नीचे की तरफ हर किसी की कहीं रुक गई क्योंकि निर्मला ने इस बार अपनी गांड उचका कर पेंटिं निकालने में उसका साथ नहीं दी,,, तो शुभम अपनी मां की तरह देखकर अपने मन की लाचारी दर्शाने लगा,,,, उसकी मां भी अपने बेटे की लाचारी है अच्छी तरह से समझ रही थी क्योंकि वह जानती थी कि उसके सहकार के बिना उसकी पैंटी निकलने वाली नहीं है। इसलिए वह फिर से अपनी कातिल अदा दिखाते हुए अपनी मतवाली भरावदार गांड को बिस्तर से थोड़ा ऊपर की तरफ कुछ कहा थी ताकि उसका बेटा आराम से उसकी पैंटी को निकाल सके, जैसे ही निर्मला ने अपनी गांड को ऊचकाई वैसे ही तुरंत शुभम अपनी मां की पैंटी को नीचे की तरफ सरकाने लगा जैसे-जैसे पैंटी नीचे की तरफ सरक रही थी,,, वैसे वैसे बेशकीमती खा जाने का रास्ता साफ होता जा रहा था,,, शुभम के मन में बहुत ज्यादा उत्सुकता भरी हुई थी उसका दिल जोरों से धड़क रहा था साथ ही निर्मला भी बड़े ही बेसब्र हो कर अपने बेटे की हरकत को देख रही थी वह देखना चाहती थी कि उसकी नंगी बुर को देखकर उसके हाव भाव में कैसा परिवर्तन आता है।,, शुभम की आंखों की चमक बता रही थी कि वह अंदर ही अंदर बेहद उत्तेजित और प्रसन्न नजर आ रहा है। धीरे-धीरे करके शुभम ने अपनी मां की पैंटी को जांघो तक सरका दिया,,,, अपनी मां की जांघों के बीच का वह अद्भुत अविस्मरणीय कामुक नजारे को देखकर वह अपना सुध-बुध खो बैठा,, वह आंख फाड़े बस ऊस नजारे को ही देखे जा रहा था,,,, किसी कुछ भी सूझ नहीं रहा था ऐसा लग रहा था कि जैसे उसका दिमाग एकदम सन्न् हो गया है। एक हाथ से जागो में अपनी पैंटी को नीचे की तरफ ले जाने लगा और जैसे ही उसकी पैंटी जांघो के नीचे घुटनों तक आई निर्मला खुद ही अपने पैर का सहारा लेकर,,,, अपनी पैंटी को अपनी लंबी गोरी चिकनी टांगों से बाहर निकाल दी अब निर्मला पूरी तरह से नंगी बिस्तर पर लेटी हुई थी,,, निर्मला के सामने भी इस तरह की स्थिति पहली बार ही आई थी कि वह अपने बेटे के सामने संपूर्ण तौर पर एकदम नंगी उसकी आंखों के सामने लेटी हुई थी लेकिन फिर भी निर्मला को जरा सी भी शर्म का एहसास नहीं हो रहा था,,,, वह अपने मन से और तन से पूरी तरह से शरमाया को त्याग चुकी थी। उसे तो बस मजा लेना था बल्कि शुभम की हालत खराब हुए जा रही थी। क्योंकि आज वह भी पहली बार इतने करीब से अपनी मां को पूरी तरह से नग्न अवस्था में देख रहा था उसकी नजरें ऊपर से लेकर के नीचे पैरों तक बराबर घूम रही थी मक्खन जैसा चिकना बदन खूबसूरत ट्यूबलाइट की चमकती रोशनी में और भी ज्यादा दमक रही थी। शुभम की नजर खास करके जांघों के बीच ही टिकी हुई थी आज वह पहली बार अपनी मां की बुर की बनावट को देख रहा था और वैसे भी निर्मला की बुर थी भी बेहद खूबसूरत,,, इस उम्र में भी निर्मला की बुर की बनावट एकदम कुंवारी लड़कियों की तरह ही थी। क्योंकि उसके पति ने भी उसको पूरी तरह से नहीं भोगा था,,,, तुम बड़े गौर से अपनी मां की बुर की तरफ देख रहा था पर हल्के हल्के रोयेंदार मखमली बाल उगे हुए थे जो कि उसकी खूबसूरती में चार चांद लगा रहा था। बुर एकदम कचोरी की तरह फूली हुई थी उसमें से मदन रस का रिसाव बराबर हो रहा था। निर्मला की बुर क्या थी बस एक हल्की सी लकीर ही नजर आ रही थी और उसके बीच में हल्का हल्का गुलाबी पत्तियां दिखाई दे रही थी ऐसा लग रहा था कि मानो कोई गुलाब का फूल अभी अभी ही खीेलना शुरु हुआ है। बुर की खूबसूरती और उसकी चमक दमक देखकर सुभम की तो आंखें आश्चर्य से चौंधिया सी गई थी,,,
उत्तेजना के मारे उसकी सांसे फुल रही थी। उसका अब सब्र करना बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं हो रहा था और भला सब्र हो भी कैसे जब एक भूखे इंसान के सामने स्वादिष्ट व्यंजनों से भरी थाली पड़ी हो तो भला वह अपने आप को कैसे रोक पायेगा वह तो उस पर टूट ही पड़ेगा यही हाल शुभम का भी हो रहा था उससे रहा नहीं गया और वह उत्सुकतावश अपने हाथ को आगे बढ़ाकर अपनी उंगलियों से अपनी मां की फूली हुई बुर को स्पर्श करने हेतु छु लिया,,, और जैसे ही निर्मला को इस बात का एहसास हुआ कि उसके बेटे ने अपनी उंगली से ऊसकी बुक़ को स्पर्श किया है तुरंत उसके बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ गई,,,, वह पूरी तरह से गंनगना गई और उसके मुख से गर्म सिसकारी निकल पड़ी,,,
सिससससईईईईई,,,,,,,
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