RE: Sex kahani अधूरी हसरतें
शुभम के लंड से,, गरम गाढ़े पानी की पिचकारी बड़ी तेजी से निकली और निर्मला की कटोरी नुमा बुर को भरने लगी,,,
निर्मला अपने बेटे के लंड से निकली पिचकारी को अपनी बुर की अंदरूनी दीवारों में साफ तौर पर महसूस कर पा रही थी।
अपने बेटे की पिचकारी अपनी बुर के अंदर महसूस कर के निर्मला उत्तेजना के मारे गदगद हुए जा रही थी। निर्मला इसी दौरान तीसरी बार झड़ी थी दो बार तो वहां बुरी चटाई में ही अपना पानी छोड़ चुकी थी। निर्मला लंबी लंबी सांसे भरते हुए रह रह कर पानी का फुहारा छोड़ रहे थे और उसके ऊपर नीचे हो रही बड़ी बड़ी छातियों के साथ साथ शुभम भी ऊपर नीचे हो रहा था। शुभम पूरी तरह से अपनी मां के बदन पर ढह चुका था उसका चेहरा उसकी बड़ी बड़ी छातियों के बीच,,, दाबा पड़ा था,,, दोनों इतना ज्यादा पानी छोड़े थे कि दोनों का नमकीन गाढ़ा पानी मिश्रित होकर निर्मला की बुर के बाहर बह रहा था,,, और निर्मला की मांसल चिकनीं जांघो को भिगो रहा था। थोड़ी ही देर में दोनों की सांसे पहले की तरह सामान्य हो गई निर्मला हल्के हल्के अपनी हथेली को अपने बेटे की नंगी पीठ पर फिरा रही थी। दोनों ने पहली बार कुछ ज्यादा ही अद्भुत और उन्मादक तरीके से अपने चरम सुख को प्राप्त किया था। निर्मला का ंगल़ा अभी भी सुखा हुआ था जिसे वह अपने थुक से गिला कर रही थी।,,, कुछ देर तक दोनों यूं ही एक दूसरे के बदन को अपनी बाहों में लेकर पड़े रहे,,, शुभम का लंड अभी भी ऊसकी मां की बुर में समाया हुआ था जो कि अब धीरे-धीरे सिकुड़ने की वजह से अपने आप ही बाहर आ रहा था। निर्मला ने इससे पहले कभी भी चुदाई का इतना उन्मादक आनंद की प्राप्ति नहीं की थी।
थोड़ी देर बाद शुभम अपनी मां के भजन के ऊपर से उठ कर अलग हुआ और उसके करीब ही पीठ के बल लेट गया उसकी सांसे बहुत ही गहरी चल रही थी,,,, दोनों एक दूसरे को देखने लगे निर्मला मादक मुस्कुराहट लिए अपने बेटे की आंखों में देख रही थी शुभम भी बड़े प्यार से अपनी मां की तरफ देख रहा था उसे लग रहा था कि कार्यक्रम समाप्त हो चुका है क्योंकि समय भी कुछ ज्यादा हो चुका था घड़ी में तकरीबन 3:00 बज रहे थे,,,, उसका लंड पूरी तरह से सिकुड़ कर उसके पेट पर लेट कर आराम कर रहा था,,,, । लेकिन शुभम का यह सोचना बिल्कुल गलत था क्योंकि निर्मला के मन में अभी बहुत कुछ चल रहा था एक प्यासी औरत की प्यास इतने से ही बुझ जाएे तो औरत इस हद तक कभी भी नही पहुंचतीं,,, वह अपने बेटे की तरफ मुस्कुरा कर देख रही थी शुभम को उसका मुस्कुराना बेहद उन्मादक लग रहा था,,, निर्मला मुस्कुराते हुए अपने बेटे से बोली,,,,
सुभम तु सच में जादूगर है तूने जो मेरे ऊपर ऐसा जादू किया है कि मैं तेरी दीवानी हो गई हूं,,,, जिस तरह का मजा तूने मुझे याद किया है इस तरह के मजे के बारे में तो मैंने कभी जिंदगी में कल्पना भी नहीं की थी,,, सच शुभम जिस तरह से तुने मुझे आज रगड़कर चोदा है तूने आज मुझे मेरी सुहागरात याद दिला दिया,,, और सच बताऊं तो पहली बार जब तेरे पापा के साथ में सुहागरात मनाई थी तब भी मुझे इस तरह का आनंद नहीं मिला था जिस तरह का आनंद की अनुभूति तूने मुझे कराया है।( शुभम अपनी मां के मुंह से अपनी तारीफ सुनकर बेहद खुश हो रहा था। एक मर्द के लिए और क्या चाहिए कि जब एक औरत खुद उसकी मर्दानगी की तारीफ करें,,,, हर मर्द यही तो चाहता है कि उसकी चुदाई की तारीफ औरतं अपने ही मुंह से करें,,,,,
औरत के द्वारा किसी भी मर्द की मर्दानगी को अपने ही शब्दों में पुरस्कृत करना,,, मर्द के लिए दुनिया का सबसे बड़ा पुरस्कार होता है और निर्मला भी अपने बेटे की मर्दानगी को अपने ही शब्दों में पुरस्कृत कर रही थी,,, जिससे शुभम की छाती और भी ज्यादा चौड़ी हो रही थी,,,, वह बहुत खुश था रात ज्यादा हो जाने की वजह से,,,, वह सोच रहा था कि अब उसकी मां सोने की तैयारी करेगी लेकिन निर्मला उसकी तरफ करवट लेते हुए बोली,,,,
बेटा तूने तो मेरा पसीना ही निकाल दिया,,,,( उसका इतना कहना था कि उसकी नजर शुभम की बिगड़े हुए लंड पर पड़ी तो वह मुस्कुराने लगी,,, वह हाथ आगे बढ़ा कर अपने बेटे के ढीले लंड को पकड़ते हुए बोली,,,)
देख शुभम,,मेरा ये शेर अपना शिकार करके लगता है थक गया, है,,,, देख कैसे आराम कर रहा है,,, इसे लगता है फिर से जगाना पड़ेगा,,,,( इतना कहते हुए वह अपने बेटे के ढीले लंड को मुट्ठी में भर ली,, जो कि ढीला होने के बावजूद भी किसी भी औरत का पानी निकाल दे इतनी स्थिति में तो था ही,,।निर्मला शुभम के ढीले लंड को मुट्ठी में भरकर हिलाने लगी जो कि नरम नरम अंगुलियों और हथेली का स्पर्श पाते ही एक बार फिर से उसमे जैसे जान आ गई हो,, और उसके नसों में रक्त का प्रवाह फिर से गतिमान होने लगा,,, ढीले लंड में हो रही हरकत को देखकर उसकी मां बोली,,,
अरे इसमें तो फिर से जान आ गई देख तो सही कैसे मुंह उठाने को लपक रहा है।,,,
(शुभम जी अपनी मां की हरकत की वजह से लंड में आए तनाव को बारीकी से देखने लगा,,, वह समझ गया कि उसकी मां इतनी आसानी से उसे छोड़ने वाली नहीं थी और ना ही वह खुद छुटना चाहता था।,,, वह तो खुद ही बेताब था अपनी मां की बुर में लंड डालकर सारी रात ऐसे ही पड़े रहने के लिए
कुछ ही देर में निर्मला की गरम हथेलियों का जादू उसके लंड पर पूरी तरह से छा गया, उसका ढीला लंड एक बार फिर से अपनी औकात में आ गया,,, जिसको देखकर निर्मला की बुर में फिर से पानी की बूंदे इकट्ठा होने लगी,,
आाहहहहह शुभम तेरा लंड तो फिर से तैयार हो गया है और कितनी जल्दी तैयार हो गया इसको देखकर तो मुझे यकीन ही नहीं हो पा रहा है,,,।
क्यों मम्मी,,,?
तेरे पापा का लंड मेरी बुर के अंदर पानी छोड़ता था तो ढीला होने के बाद घंटे लग जाते थे उसे दोबारा खड़े होने में कभी-कभी तो, उनके लाख कोशिश के बावजूद भी खड़ा नहीं हो पाता था,,,, और एक यह तेरा लंड है कि अभी अभी पानी छोड़ कर गिरा हुआ ही था कि मेरे हाथ लगाते ही दोबारा खड़ा होकर मोर्चा संभालने लगा,,, तेरे मे और तेरे लंड में बहुत दम है,,,।
थैंक्यू मम्मी,,,, (अपनी मां के मुंह से अपनी तारीफ सुनकर शुभम खुश होते हुए बोला)
इसमें थैंक यू कहने की कोई जरूरत नहीं है बेटा बल्कि थैंक्यू तो मुझे तुझे कहना चाहिए था क्योंकि तेरी वजह से ही मुझे आज इतनी ढेर सारी खुशियां वापस मिली है। वरना मैं तुझे चुदाई की कला और उसके सुख को बिल्कुल भी भूल चुकी थी,,,( लंड को मुठीयाते हुए बोली,,,।)
एक बात कहूं मम्मी (निर्मला की हरकत की वजह से उसके बदन में एक बार फिर से सुरसुराहट होना शुरू हो गया था)
बोल तुझे अब कुछ भी मुझ से बोलने के लिए मेरी इजाजत लेना जरूरी नहीं है तेरे मन में जो आए वह सब बोल दिया कर,,,
मम्मी मुझे तुम्हारे मुंह से यह लंड,, बुर,,, चुदाई यह सब बहुत अच्छा लगता है।
ऐसा क्यों लगता है तुझे,,?( लंड को मुट्ठी में कसते हुए)
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