Sex kahani अधूरी हसरतें
03-31-2020, 04:02 PM,
RE: Sex kahani अधूरी हसरतें
सपेरेंट साड़ी में निर्मला बेहद खूबसूरत लग रही थी ऊसकी खूबसूरती की परिभाषा मैं दुनिया की किसी भी तुलनात्मक वस्तु को आंकना निर्मला की खूबसूरती पर प्रश्न उठाने के बराबर था।,,, निर्मला के कमरे में दाखिल होता हुआ शुभम अपनी मां को देखा तो देखता ही रह गया । निर्मला स्वर्ग से उतरी हुई कोई अप्सरा लग रही थी,,, कमरे में दाखिल होते ही शुभम की नजर निर्मला के भरदार नितंबों पर पड़ी जो कि इस समय साड़ी कुछ ज्यादा उसके पति होने की वजह से गांड का उभार कुछ ज्यादा ही उत्तेजनात्मक असर दिखा रहा था।,, नंगी चिकनी पीठ के बीच की लकीर कुछ ज्यादा ही गहरी नजर आ रही थी जोकि नीचे कमर तक अपने कामुकता का असर दिखा रही थी,,, कमरे में दाखिल होता हुआ वह अपनी मां से बोला,,,

मम्मी तुम तैयार हुई कि नहीं,,,

अरे देखना बेटा मेरे ब्लाउज की डोरी मुझसे बांधी नहीं जा रही है जरा तू मेरी मदद कर देना,,
( शुभम तो पहले से ही लालायित हो रहा था अपनी मां के करीब जाने के लिए इसलिए निर्मला की बात सुनते ही वह झट से अपनी मां के बेहद करीब पहुंच गया,,, निर्मला के बदन से लेडीज परफ्यूम की हल्की हल्की लेकिन बेहद ही मादक खुशबू आ रही थी,,, जिसकी वजह से शुभम पर उत्तेजना का असर होने लगा पेट पर कसी हुई पीले रंग की ब्रा की रेसिपी पति को अपनी उंगलियों में फंसाकर हल्के से नीचे की तरफ खींचा जिसकी वजह से मांसल बदन पर पीले रंग की पट्टी फिसलते हुए दो अंगूल नीचे आ कर रुक गई,,, ब्रा की पट्टी कशी होने की वजह से निर्मला के खूबसूरत बदन पर लीटी पड़ जा रही थी,,, जिसकी वजह से निर्मला की खूबसूरती में चार चांद लग जा रहा था ।शुभम अपने दोनों हाथ आगे बढ़ा कर ब्लाउज की डोरी को थाम लिया और ऊसे कस कर बांध दिया इस तरह की मदद लेकर निर्मला को भी बेहद खुशी हो रही थी शुभम से रहा नहीं गया और वहां अपनी मां की नंगी पीठ को चूम लिया और बोला,,,,


तुम बहुत खूबसूरत हो मम्मी,,,

थैंक यू शुभम तू बहुत अच्छा है कि मेरी खूबसूरती की तारीफ तो करता है तेरे पापा से तो यह लब्ज सुनने को मैं तरस गई हूं,,,।


कोई बात नहीं करनी पापा नहीं करते तो क्या हुआ मैं तो तुम्हारी खूबसूरती की तारीफ करता हूं,,,


तभी तो मुझे फिर से जीने की उमंग मिल रही है चल अच्छा बहुत देर हो गई हमें मार्केट भी चलना है,,,
( इतना कहकर निर्मला और सुभम दोनों गाड़ी में बैठकर मार्केट की तरफ निकल गए,,,, निर्मला गाड़ी चलाते समय मन ही मन बहुत खुश हो रही थी क्योंकि शुभम उसकी अब हर तरह से मदद करने लगा था एक पति और एक प्रेमी को जिस तरह से व्यवहार करना चाहिए था उसी तरह का व्यवहार वह उसके साथ कर रहा था जिसको लेकर निर्मला के मन में ढेर सारी भावनाएं जन्म ले रही थी। बार-बार उसके मन में यह भावना जन्म ले रही थी कि काश शुभम उसका प्रेमी होता या उसका पति होता तो उसकी जिंदगी कितने आराम से और कितनी खुशी खुशी कट जाती वह उसे कितना प्यार देता,,,
निर्मला यह सब सोच कर बड़ी दुविधा में पड़ी हुई थी,,। निर्मला मन ही मन सोच रही थी कि शुभम उसे हमेशा एक पत्नी या प्रेमिका की तरह ट्रीट करें,,, उसके साथ उसका व्यवहार जिस तरह से एक प्रेमी या पति का होता है उसी तरह से वह उसके साथ व्यवहार करें,,, समाज की नजरों में घर के बाहर भले ही वह दोनों मां बेटे हों लेकीन घर की चारदीवारी के अंदर दोनों एक पति पत्नी और प्रेमी प्रेमिका की तरह ही पैसा रहे थे क्योंकि दोनों के बीच के मां बेटे की दीवार न जाने कब से गिरकर धराशाई हो चुकीे थी,,, वह मन ही मन अपने बेटे को अपना प्रेमी या पति बनाने की ठान चुकी थी और आज मार्केट आने का उसका मकसद यही था क्योंकि दूसरे दिन वैलेंटाइन डे था और इस वैलेंटाइन डे के दिन वह अपने बेटे के सामने वह अपने प्यार का इजहार करना चाहती थी लेकिन यह सब शुभम के लिए एकदम सरप्राइस था इसलिए उसने उसे कुछ भी नहीं बताई थी। निर्मला अच्छी तरह से जानती थी कि उसके प्रपोज को शुभम अच्छे से एक्सेप्ट कर लेगा बल्की वह तो निर्मला के इस प्रस्ताव से बेहद प्रसन्न हो जाएगा। यह सब सोचकर निर्मला बेहद उत्सुक हो चुकी थी और यह ख्यालात कि अपने ही बेटे को अपना प्रेमी बनाएगी इस बात को लेकर उसके बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ गई जिसकी वजह से उसकी रसीली बुर से मदन रस का रिसाव होने लगा,,,,
थोड़ी ही देर में दोनों मार्केट पहुंच चुके थे,,,,, एक जगह पर गाड़ी पार्क करके दोनों शॉपिंग मॉल में दाखिल हो गए,,,,
अंदर दाखिल होते ही उसने इस बात का एहसास हुआ कि उसने तो पर गाड़ी मे हीं भूल गई है इसलिए शुभम को वहीं रुकने को बोल कर वह वापस पार्किंग की तरफ आने लगी,,,
, निर्मला पार्किंग में आकर गाड़ी से अपना पर्स निकाल कर फिर से मॉल की तरफ जाने लगी,,, दूर बैठा रेस्टोरेंट की खिड़की से विनीत यह सब देख रहा था निर्मला पर नजर पड़ते हैं गुजरे हुए पल की यादें उसकी आंखों के सामने तैरने लगे उसका मुंह निर्मला की खूबसूरती देखकर खुला का खुला रह गया पलभर में ही उसे अलका याद आ गई ऐसे ही वह मार्केट में अलका से मिला था,,,,। जिसकी खूबसूरती मे वह पूरी तरह से डूब चुका था,, लेकिन आज उसकी नजरों ने जो देखा था उसे अपनी आंखों पर यकीन नहीं हो रहा था।
वह जिस औरत को देख रहा था उसकी खूबसूरती के आगे अलका की खूबसूरती कुछ भी नहीं थी,,,, बल्कि विनीत की नजरें जिसे देखकर आश्चर्यचकित हो गई थी वह खुद खूबसूरती की मिसाल और सुंदरता की परिभाषा थी,,। उससे रहा नहीं गया और वह रेस्टोरेंट से बाहर आ गया उसकी नजरें लगातार निर्मला के बदन के चारों तरफ घूम रही थी,,, वह निर्मला की खूबसूरती देखकर उसके बदन का जायजा अपनी नजरों से ही लेने लगा पीले रंग की ट्रांसपेरेंट साड़ी ब्लाउज में से झांकती उसकी बड़ी बड़ी चूचियां,,, किसी बेहद उत्तम किस्म के खरबूजे की तरह कड़क लग रही थी उसके लाल लाल होंठ ऐसे लग रहे थे मानो,,, पूरे बदन का रक्त उसके होठों में ही उतर आया हो,,, मॉल से निकलकर पार्किंग में जाते समय विनीत ने निर्मला के भरावदार गांड का अपनी नजरों से जायजा लिया था जिसे देखते ही उसके लंड नें एक गर्म आह भरी थी।,,,, निर्मला को देखते ही दिन अच्छी तरह से समझ गया था कि भले ही अलका खूबसूरती में सबसे आगे हो लेकिन अगर निर्मला की खूबसूरती से उसकी तुलना किया जाए तो वहां निर्मला की खूबसूरती के आगे पानी भर्ती नजर आएगी,,,, निर्मला इस बात से बेखबर की कोई लड़का उसे नजर भर कर बड़े ही प्यासी नजरों से देख रहा है वह एकदम अपनी ही मस्ती में पार्किंग से बाहर आ रही थी,,, कि तभी उसे हल्का सा ठोकर लगा और वह गिरते गिरते बची लेकिन उसके हाथों से उसका पर्स छूट कर नीचे गिर गया,,,, मौके की तलाश में खड़ा विनीत जल्दी से लगभग दौड़ते हुए उसके करीब गया और उसका पर्स ना उठा कर उसे संभालते हुए उठाने लगा,,, उसे सहारा देकर उठाते हुए विनीत ने उसकी बांहों को थाम लिया था जिसका नरम नरम एहसास उसके बदन में किसी करंट की भांति लग रहा था,,,, ऐसा गुरदास बदन और ऐसा मखमली एहसास विनीत ने कभी भी अपने बदन में महसूस तक नहीं किया था। निर्मला को उठाते समय उसकी नजरें ब्लाउज में से बाहर झांक रही ऊसकी बड़ी बड़ी चूचीयो पर टीकी हुई थी जिसे देखकर उसका मन कर रहा था कि अपनी हथेली में भरकर उसे दबा दें और उस पर मुंह लगाकर उसका सारा रस निचोड़ कर पी जाए,,,, लेकिन तभी निर्मला विनीत का सहारा पाकर खड़ी हो गई,,, और खुद को गिरने से बचाने के लिए विनीत को धन्यवाद देते हुए बोली,,,,।

धन्यवाद बेटा तुम नहीं होते तो शायद मैं गिर गई होती,,,

कोई बात नहीं होती है तो मेरा फर्ज ं था मैं आपको गिरने नहीं देता,,,,( तभी उसकी नजर पर्स पर पड़ी और वह पर्स उठाकर उसे थमाते हुए ।) लीजीए आंटी जी आपका पर्श,,

थैंक्यू बेटा ( उसके हाथ से पर्स लेते हुए बोली)

( विनीत उसके साथ फ्लर्ट करना चाहता था वह उसे आजमाना चाहता था की कही बातों से वह उसे अपने बातों की जादू में फसा लेता कि वह उसके साथ अलका की तरह मजे ले सकें,,, इसलिए वह बोला,,,।)

तुम बहुत खूबसूरत हो आंटी मैंने तुमसे ज्यादा खूबसूरत अभी तक किसी औरत को नहीं देखा,,,।

थैंक्यू बेटा (इतना कहकर वह बोल की तरफ जाने लगी तो विनीत भी उसके पीछे-पीछे आते हुए बोला)

आप रहती कहां हो आंटी जी,,,
( उस लड़के की यह बात सुनकर निर्मला समझ गई कि उसका इरादा ठीक नहीं है इसलिए उसे डांटने के उद्देश्य से थोड़ा गुस्से में बोली,,,।)

तुमसे मतलब तुम होते कौन हो ऐसा पूछने वाले,,,,

कुछ नहीं आती मैं तो बस यूं ही पूछ रहा था।
( उसकी बात सुनकर भी नहीं समझ गया कि यह अलका की तरह डरपोक औरत नहीं है बल्कि शायद इधर उसकी दाल नहीं गलने वाली,,, काफी देर हो जाने की वजह से शुभम भी पार्किंग की तरफ ही आ रहा था।,, अपनी मां को इस तरह से उस लड़के से बात करता देखकर वह बोला,,।)

क्या हुआ मम्मी कितनी देर लगा दी,,, मैं कब से तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं। और यह कौन है?

कोई नहीं बेटा मेरा पैर फिसल गया तो इस लड़के ने संभाल लिया,,,,

मम्मी आपको चोट तो नहीं लगी,,,, ( शुभम चिंता व्यक्त करते हुए बोला)

नहीं बेटा सब ठीक है,,,।

थैंक यू दोस्त,,,

इसमें थैंक यू किस बात की यह तो मेरा फर्ज था,,,।

चलो मम्मी देर हो रही है,,,।
( इतना कहकर शुभम जाने लगा और निर्मला भी उस लड़के को गुस्से से देखते हुए मॉल में चली गई,,, निर्मला का गुस्सा और शुभम की कद काठी को देखकर,,, विनीत को राहुल याद आ गया जिसने उसका इतना बुरा हश्र किया था। वह मन में सोचने लगा कि यह लड़का तो राहुल से भी तगड़ा है कहीं इधर उलझ गया तो यह तो उसका और भी बुरा हाल कर देगा। वह बस निर्मला के खूबसूरत बदन को देखकर हाथ मसलता रह गया । इसी वजह से निर्मला इस मार्केट में कभी भी खरीदी नहीं करती थी, वह अच्छे मार्केट में जाती थी जो कि यहां से 4 किलोमीटर दूर था। यहां इसी तरह के लफंगे लोग मिला करते थे।

वह तो आज समय की कमी की वजह से वह इस मार्केट में आ गई। ( जो पाठकगण विनीत के बारे में नहीं जानते वह होता है जो वो हो जाने दो,,, कहानी पढ़कर उसके चरित्र के बारे में जान सकते हैं।)

निर्मला मॉल में प्रवेश कर चुकी थी,,, एक तरफ वैलेंटाइन डे के अवसर के लिए ढेर सारे गिफ्ट रखे हुए थे और साथ ही वैलेंटाइन स्पेशल कार्ड के लिए अलग काउंटर सजाया हुआ था। जहां पर लड़के लड़कियों की भीड़ कुछ ज्यादा ही थी।
वह शुभम को इस बात का अंदेशा भी नहीं होने देना चाहती थी कि वह क्या खरीदने आई है इसलिए उसे किसी बहाने से दूसरे काम पर पर उसके मनपसंद की चीज खरीदने को भेज दे और खुद जल्दी से,,, अपने लिए वैलेंटाइन कार्ड और भी सामान खरीद कर गिफ्ट पैक करवा ली,,,, निर्मला वैलेंटाइन कार्ड पर अपने दिल की बात लिख कर शुभम को देना चाहती थी,,,,

दोनों खरीदी कर चुके थे,,,,शाम ढल चुकी थी, अंधेरा हो रहा था। इसलिए निर्मला घर जल्दी वापस लौट आई।


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