RE: Sex kahani अधूरी हसरतें
अरे बताती हु थोड़ा रुको तो तुम तो एक साथ सब कुछ पूछ डाल रहे हो,,,, ( इतना कहते हुए कि शीतल दरवाजे की तरफ बढ़ी,,, और दरवाजे के दोनों पल्लो को हल्कें से बंद करते हुए बोली,,,,।) देखो शुभम मुझे यह तो नहीं समझ में आ रहा है कि यह बात तुमसे कहना चाहिए कि नहीं लेकिन जब तक तुमसे कह नहीं लूंगी तब तक शायद मेरे दिल को तसल्ली नहीं मिल पाएगी,,,,,
( जिस समय शीतल दरवाजे के दोनों पल्लो को बंद करने के लिए हल्के हल्के कदम बढ़ा रही थी उसी समय शुभम की नजरें शीतल के संपूर्ण बदन पर ऊपर से नीचे तक चक्कर काट रही थी,,, खास करके शुभम की नजरों का निशाना शीतल की मटकती हुई गांड पर टिकी हुई थी जो कि चलने की वजह से उसके नितंबों के दोनों फांतों के बीच अजीब सी थिऱकन हो रही थी,,, शीतल की गांड भी बेहद बड़ी और गोल गोल की जिसको नजर भर कर देखने मात्र से ही लंड से पानी निकलने की गुंजाइश बनी रहती है। यही हाल शुभम का भी हो रहा था वह एक टक शीतल की बड़ी बड़ी गांड को देख रहा था,,,, और जैसे ही शीतल दरवाजे को थोड़ा सा बंद करके गुमी हुई थी कि उसकी नजर शुभम की नजरों को पकड़ ली थी और वह अच्छी तरह से समझ गई थी कि शुभम उसकी बड़ी बड़ी गांड को भी देख रहा था और यह समझते ही उसके चेहरे पर मुस्कान फैल़ गई,,, शीतल को अपनी तरफ देखता हुआ पाकर शुभम हड़ बढ़ाते हुए बोला,,,।)
शशशश,,, शीतल मेम,, आप जो भी,, कहना चाहती हो बोल दो,,,
मैं बोल तो दूं लेकिन मुझे डर है,,,
डर,,, किस बात का डर,,,,
यही कि तूम मेरी बात मान कर मेरे दिल को तसल्ली दे पाओगे कि नहीं,,,,
मैडम आपके मन में जो भी है वह बोल दो मैं जरूर जैसा आप चाहती हो वैसा ही करूंगा,,,,,
( शुभम के मन में गुदगुदी हो रही थी क्योंकि वह जानता था कि शीतल कुछ इस तरह का ही बात करने वाली है,,,,, इसलिए उसके पैंट के आगे वाला भाग उठने लगा था,,, जिस पर शीतल की नजर पड़ते ही उसकी बुर में गुदगुदी होने लगी,, शुभम की बातें सुनकर उसे थोड़ी हिम्मत मिल रही थी,,, शीतल बात को आगे बढ़ाते हुए बोली,,, ।)
शुभम या तो तुम अच्छी तरह से जानते हो कि उस दिन स्कूटी पर अनजाने में ही मैंने तुम्हारा वो पकड़ ली थी,,,,
क्या मैडम मेरा मतलब है कि शीतल,,, ( शुभम सब कुछ जानते हुए भी तपाक से बोला,,,,)
तुम अच्छी तरह से जानते हो शुभम में किस बारे में बात कर रही हुं,,, इसलिए मैं तुमसे कोई भी बात घुमा फिराकर नहीं कहना चाहती जो बात है मैं तुमसे साफ-साफ कह देना चाहती हूं क्योंकि वैसे भी तुम को मैं पसंद करती हूं,,,,
( सीतल की यह बात सुनकर सुबह मन ही मन बहुत प्रसन्न हो रहा था,,,,।)
देखो शुभम उस दिन स्कूटी पर अनजाने में ही मैं पीछे की तरफ हाथ ले जाकर के,,, पैंट के ऊपर से ही तुम्हारे लंड को पकड़ लीे थी,,,
यह क्या कह रही हो मैडम मुझे उस बात के लिए बेहद शर्मिंदगी महसूस हो रही है,,,,। ( शुभम जानबूझ कर शर्मिंदा होने का नाटक करते हुए बोला।)
नहीं नहीं सुबह तुम्हें उस बात के लिए शर्मिंदा होने की कोई जरूरत नहीं है,,,,, बल्कि वह तो मेरा सौभाग्य था कि मेरे हाथों में तुम्हारा लंड आ गया,,,, ( शीतल इतना कहते हुए टेबल पर इस तरह से झुक गई कि,,,, उसकी बड़ी बड़ी गांड साड़ी में कैद होने के बावजूद भी बड़ी बारीकी से और बड़ी ही सफाई से शुभम को उसके आकार का पूरी तरह से पता चलते हुए दिखाई दे रहा था वह जिसको देखकर सुभम बेहद उत्तेजना का अनुभव कर रहा था,,, क्योंकि शीतल में जानबूझकर अपनी मदमस्त गांड को शुभम की तरफ की हुई थी,,,।)
सौभाग्य,,,,, कैसा सौभाग्य मैडम,,,,,
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