RE: Sex kahani अधूरी हसरतें
रुचि का संपूर्ण बदन अद्भुत सुख को महसूस करके कसमसा रहा था। शुभम जो कि पक्का औरत बाज हो चुका था वह रुचि की साड़ी की गांठ को अपने हाथों से
पेटीकोट के अंदर से बाहर की तरफ निकाल रहा था,,, सूरन की आंखों की चमक देखकर इतना साफ नजर आ रहा था कि उसे भी रुचि की बुर देखने में कुछ ज्यादा ही दिलचस्पी थी। उसकी उत्सुकता बढ़ती जा रही थी तभी तो उसकी हर हरकत के साथ ही उसके मुंह से सीईईईई,,,,,, सीईईीई की मादक सिसकारी नीकल रही थी। और शुभम के मुख से निकलने वाली ऐसी उत्तेजक आवाज को सुनकर रुची के काम भावना और भी ज्यादा तीव्र होती जा रही थी। और कुछ ही सेकंड में पलक झपकते ही शुभम ने रुचि के बदन से उसकी साड़ी को अलग करके घास के ढेर में फेंक दिया और इस वक्त रुचि के खूबसूरत मखमली बदन पर केवल पेटीकोट ही नजर आ रही थी,,,, रूचि शुभम की तरफ से ऐसी नजरों से देख रही थी और उसकी आंखों में मदहोशी की खुमारी भरी हुई थी वह आंखों से ही उसकी पेटीकोट को उतारने का प्रलोभन दे रही थी। क्योंकि,,, उन दोनों के बीच मात्र पेटिकोट का पतला पर्दा ही रह गया था। रुचि भी जल्द से जल्द शुभम की आंखों के सामने एकदम नंगी होने के लिए मचल रही थी तभी तो शुभम भी उसके उतावलेपन को समझते हुए अपना हाथ आगे बढ़ा कर पेटीकोट की रेसमी डोरी को थाम लिया, शुभम पूरी तरह से कामोत्तेजना के ज्वऱ में तप रहा था,,, पेटिकोट की डोरी को थामे हुए अपनी तीन ऊंगलियों को पेटीकोट के उस हिस्से में डाल दिया जहां पर पेटीकोट का वह हिस्सा जो हल्का सा फटा हुआ नज़र आता है जबकि वह फटा हुआ नहीं बल्कि उसी तरह के डिजाइन का बना होता है शुभम अपनी तीनों उंगलियों को उस में प्रवेश करा कर,, रुचि के मखमली बदन का एहसास अपने बदन में उतारने लगा,,, रूचि जो कि यही सोच रही थी कि वह शुभम पेटीकोट की डोरी को पकड़कर उसे खींचकर खोल देगा लेकिन उसके इस तरह से पेटिकोट के छेद में से उस के नंगे बदन पर ऊंगलिया फिराने की वजह से उसका तन बदन थरथराने लगा उसके चिकने नंगे पेट पर उत्तेजना की थरथराहट साफ महसूस हो रही थी। उसके थरथराते हुए पेट को देखकर उत्तेजना के मारे सुभम का लंड ठुनकि मारने लगा। शुभम उसी मदहोशी के साथ अपनी उंगलियों को पेटीकोट के उसी छेंद से चारों तरफ घुमाने लगा,,, शुभम की ऊंगलिया पेट के नीचे वाले भाग पर चारों तरफ घूम रही थी। और जल्द ही उसे इस बात का एहसास हो गया कि रुचि ने पेटीकोट के अंदर पेंटी नहीं पहनी है और इस बात को लेकर शुभम और भी ज्यादा कामोत्तेजित हाे गया।,,, अब रुचि को पूरी तरह से नंगी देखने की उसकी भी उत्सुकता कुछ ज्यादा ही जोर मारने लगी,, दूसरी तरफ रुचि शुभम की हरकतों से एकदम पानी पानी हुए जा रही थी रह-रहकर घुटि-घुटि सी सिसकारी उसके मुख से निकल जा रही थी जितनी ज्यादा उत्तेजना का एहसास शुभम करा रहा था।।ईस तरह की ऊत्तेजना का एहसास रुचि को कभी भी ना तो हुआ था और ना ही किसी ने कराया था। इतने मात्र से ही रोजी शुभम की दीवानी हुई जा रही थी अभी तो शुभम का असली खेल बाकी था। शुभम धीरे से पेटिकोट के छेद में से ऊंगलियों को बाहर निकाल लिया,,, और रुची की तरफ देखने लगा,,, इस बार रुची की नजरें जैसे ही सुभम की नज़रों से टकराई शर्म के मारे वह अपनी नजरों को फेर ली, शुभम को रुचिका इस तरह से शर्माना बहुत अच्छा लगा,,,, शुभम और रुचि की नजरों के बीच,,,, एक और चीज नजर आ रही थी जो कि बेहद आकर्षक ढंग से अपना परिचय करा रही थी,,,ओर।वह थी रुची की बड़ी बड़ी गोल चुचीयां जो की उसकी गहरी चल रही सांसो कि लय के साथ ऊपर नीचे हो रही थी,,। और यही चूचियों का उठना बैठना शुभम की उत्तेजना बढ़ा रहा था,,, । रुचि आज पूरी तरह से सुभम के हवाले थी,, इसलिए शुभम भी बेहद सब्र से काम ले रहा था,,,। चूचियों को पकड़कर पीने का लालच उसके मन को फिर से झकझोरने लगा,,, उसके मन में आ रहा था कि एक बार फिर से रुचि की बड़ी-बड़ी चूचियों को थाम कर जी भर के पिए,,, लेकिन इस समय उसके हाथों में रुचि के बेशकीमती खजाने के परदे की डोरी थी,, जिसे खींचते ही बेशकीमती खजाने पर से पर्दा हट जाता और रुची के वग बेशकीमती खजाना शुभम को नजर आने लगता जिस खजाने को देखने के लिए और उसे अपनी हथेली में पकड़कर दबोचने के लिए शुभम ईस समय व्याकुल हुए जा रहा था। और इसी वजह से उसने स्तन मर्दन और स्तन चूसन की लालच को एक तरफ करके बुर दबोचन के लालच की तरफ बढ़ने लगा,,,, कसमसाहट भऱी रुचि क्या खूबसूरत बदन थरथरा रहा था,,,,, उत्तेजना के मारे से शुभम का गला सूख रहा था उसके हाथों में पेटिकोट की रेशमी डोरी थी जिसे वह धीरे-धीरे खींचने लगा था,,, रूचि की नजरें शुभम की उंगलियों में फसी हुई पेटीकोट की डोरी पर ही थी उसे मालूम था कि अगले ही पल वह पूरी तरह से नंगी हो जाएगी इस वजह से उसकी सांसो की गति तेज हो गई थी,,, उसके मन में इस बात से शर्म और उत्तेजना दोनों का मिला जुला असर हो रहा था कि वह अपने से छोटे लगभग उसके बेटे समान ही भांजे के सामने उसके ही हाथों से नंगी होने जा रही थी और अपने से ही छोटे उम्र के लड़के के साथ,,, संभोगरत होने की कल्पना से ही उसके तन-बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ रही थी शुभम धीरे-धीरे पेटिकोट की डोरी को खींच रहा था,,, वह चाहता तो एक झटके से ही पेटिकोट की डोरी खोल कर पेटिकोट को नीचे कदमों में गिरा देता लेकिन आहीस्ता आहीस्ता वह जानबूझकर ऐसा कर रहा था क्योंकि धीरे धीरे उत्तेजना बढ़ाने में उसे मजा भी आ रहा था और रुचि की हालत देखने लायक होती जा रही थी क्योंकि निरंतर उसकी सांसो की गति में वृद्धि होती जा रही थी। अगले ही पल शुभम ने पेटीकोट की डोरी को पूरी तरह से खींच कर खोल दिया पेटीकोट पूरी तरह से ढीली हो चुकी थी,,, वह किसी भी वक्त कमर से सरक कर उसके कदमों में गिर सकती थी बस शुभम को पेटिकोट की डोरी अपनी नाजुक उंगलियों से छोड़ने की डेरी थी।,,, कुछ सेकंड के लिए वह खुली हुई डोरी को अपनी उंगलियों में फसाए हुए रुचि की तरफ देखने लगा,,, जो कि इस समय पूरी तरह से मदहोशी में लिप्त हो चुकी थी। शुभम अगले ही पल पेटिकोट की डोरी को अपने हाथों से छोड़ दिया और,,, रूचि के बेश कीमती खजाने पर से पेटीकोट नुमा पर्दा सरकता हुआ रुची के कदमों में जा गिरा,,, अगले ही पल आम के बगीचे में बनी झोपड़ी के अंदर शुभम की आंखों के सामने उसकी छोटी मामी रूचि संपूर्णता पूरी तरह से नंगी खड़ी थी और अपनी छोटी मामी को संपूर्ण रुप से नंगी देखकर उत्तेजना के मारे शुभम का दिल उछलने लगा था। अपलक वह रुचि को देखता ही रह गया उसका गोरा बदन शुभम के ततनबदन में ऊष्मा प्रदान कर रहा था। रूचि को ईस समय बेहद लज्जा का आभास हो रहा है। इस समय वहं शुभम से ठीक से नजरें भी नहीं मिला पा रही थी,,,,। संगमरमर सा बदन झोपड़ी के अंदर अपनी आभा बिखेर रहा था। शुभम रुचि के चेहरे से धीरे-धीरे नजरों को नीचे की तरफ लाकर अपनी नजरों से ही रुचि के खूबसूरत मधुर रस को पी रहा था।रुची के बदन पर कही भी चर्बी का थर जमा हुआ नहीं था। उसके संपूर्ण बदन में चर्बी का माप समतोल आकार में ही था। चिकनी पेट के नीचे त्रिकोण आकार में बना हुआ बदन का आकार बेहद खूबसूरत लग रहा था जिसके बीचो-बीच बुर की पतली दरार नजर आ रहे थीे और उस के बीचो-बीच निकली हुई गुलाब की गुलाबी पंखुड़ियां,,,, बुर की खूबसूरती में चार चांद लगा रहे थे। सबसे ज्यादा उत्तेजना प्रदान करने वाली बात यह थी कि रुचि ने पेटीकोट के अंदर कुछ भी नहीं पहनी थी।,,,, शुभम वासना भरी आंखों से रुचि के रूप यौवन का दर्शन कर रहा था और रुची थी की शर्म के मारे अपनी नजरें दूसरी तरफ फैर ली थी,,, शुभम प्यासा था और रुची की तनरुपी गगरी मधुर रस से भरी हुई थी,, और जिसे पीकर शुभम अपनी प्यास बुझाना चाहता था।,, रुचि के मधरुपी मधुर रस को पीने के लिए उसके तनरुपी गगरी के छेंद में बिना होंठ लगाएं उसके मधुर रस का स्वाद नहीं चखा जा सकता था,,,, अगर मधुर रस का स्वाद चखना है तो ऊसे रुचि के गुलाबी छेद में मुंह लगाना ही था और इस बात से ऊसको बिल्कुल भी इनकार भी नहीं था,,,वह तो ऐसे भीं तड़प रहा ऊसकी बुर पर मुंह लगाकर ऊसके मधुर रस को पीने के लिेए।
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