Antarvasna Sex चमत्कारी
04-09-2020, 03:48 PM,
RE: Antarvasna Sex चमत्कारी
अपडेट-95

इधर धरती लोक मे अग्नि, ख़तरा और चित्रा के साथ उर्मिला से मिलने जा रही थी….रास्ते मे चित्रा ने अग्नि को वो जगह दिखाई जहाँ पर आदी के उपर हमला हुआ था.

अग्नि दौड़ते हुए अधीर हो कर उस जगह आ गयी और जहाँ आदी खड़ा था उस जगह की मिट्टी को प्रणाम कर के अपने माथे और माँग मे
लगा लिया….ख़तरा और चित्रा, अग्नि की ऐसी पति भक्ति देख कर नत मस्तक हो गये.

कुछ समय वहाँ रुकने के बाद वो जैसे ही चलने को हुए तो उनकी नज़ारे किसी को देख कर बुरी तरह से चौंक गयी.

तीनो (चौंक कर)—श्रीईईईई……..‼

अब आगे…….

ख़तरा (खुशी से)—श्री मालकिन भी जिंदा हैं…मालकिन हमे मिल गयी.

चित्रा—लेकिन यहाँ क्यो आई ये…?

अग्नि—शायद आदि की तलाश मे.... ? लेकिन आज श्री के चेहरे पर इतना तेज़ कैसा है…? एक अलग ही चमक दिखी उसमे मुझे….श्री के
चेहरे पर ठीक वैसा ही सौंदर्य झलक रहा है जैसा कि कनक ऋषि ने राजनंदिनी का बताया था.

चित्रा—ये बात तो ज़रूर हैरान करने वाली है….श्री तो वैसे बहुत सुंदर पहले से ही है किंतु आज उसकी सुंदरता चाँद को भी फीका कर रही है.

ख़तरा—चलो उनको भी मालिक के जिंदा होने की खुश खूबरी देते हैं…सब श्री मालकिन को जिंदा देख कर बहुत खुश होंगे.

चित्रा—ह्म..चलो

सब तेज़ी से श्री की तरफ जाने लगे जो उधर ही आ रही थी…लेकिन ये क्या श्री तो उनके बगल से ऐसे निकल गयी जैसे कि उसने इन्न लोगो को देखा ही ना हो या फिर जान बुझ कर ना पहचाना हो.

अग्नि (शॉक्ड)—श्री ने हमे पहचाना क्यो नही….?

चित्रा—वही सोच कर तो मैं भी हैरान हूँ.

अग्नि (ज़ोर से)—श्री…रुक जाओ

ख़तरा—रुक जाइए मालकिन…..

चित्रा—श्री रुक जाऊओ……आदी जिंदा हाईईईई

जहाँ श्री ख़तरा और अग्नि की बातो को अनसुना कर के आगे चली जा रही थी वही चित्रा की बात सुनते ही उसके कदम जहाँ के तहाँ रुक गये…वो चौंक के पलट कर तीनो को देखने लगी…असल मे जिसे वो श्री समझ रहे थे वो श्री नही बल्कि राजनंदिनी थी.

ख़तरा—मालकिन आप नही जानती कि आपको जीवित देख कर मुझे कितना हर्ष हो रहा है….आप अचानक उस खाई मे गिरने के बाद कहाँ गायब हो गयी थी…?

चित्रा—हां..श्री आपको परेशान होने की ज़रूरत नही है…..आदी जिंदा है….कनक ऋषि ने सब बता दिया है आदी के बारे मे.

राजनंदिनी (मंन मे)—यहाँ तो और कोई भी नही है मेरे अलावा….तो फिर ये लोग मुझे श्री के नाम से क्यो पुकार रहे हैं….? मैं तो इन्न लोगो
को नही जानती….पर ये लोग आदी को कैसे जानते हैं…?

अग्नि—ऐसे हैरानी से क्या देख रही हो श्री... ? मैं अग्नि हूँ..क्या मुझे भूल गयी... ?

राजनंदिनी (मन मे)—अग्नि के बारे मे तो राजगुरु ने बताया था...तो क्या ये वही अग्नि है... ? और क्या सच मे मेरा ऋषि जिंदा है.... ?

इतना सोचते ही उसकी आँखो मे नमी उतर आई...आख़िर उसने कितने ही वर्षो से जिसके आने की प्रतीक्षा मे राहो मे आँखे बिच्छाए बैठी थी शायद वो शुभ घड़ी जल्दी ही आने वाली है.

राजनंदिनी (भावुक हो कर)—कहाँ है वो..... ? मुझे उसके पास ले चलो..

अग्नि—वो इस समय ब्रहमरीषि विश्वामित्र के पास किसी अज्ञांत जगह पर शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं.

राजनंदिनी (व्याकुल)—आप का बहुत बहुत शुक्रिया...मैं उन्हे खोज लूँगी

अग्नि—तुम उन्हे कहाँ तलाश करोगी श्री…हमे उनकी प्रतीक्षा करनी चाहिए…जल्दी ही वो लौटेंगे.

राजनंदिनी (अधिरता पूर्वक)—अब मुझसे और इंतज़ार नही होता...सदियो से तो तो प्रतीक्षा ही करती आ रही हूँ.

तीनो (चौंक कर)—सदियो से..... ?

अग्नि—कहीं आप…….राजनंदिनी……..?

राजनंदिनी (चौंक कर)—तुम्हे मेरा नाम कैसे मालूम……?

अग्नि—कनक ऋषि ने मुझे आप के बारे मे सब बता दिया है….आज मैं धन्य हो गयी….आज मुझे आप जैसी प्रेम की प्रतिमूर्ति के दर्शन प्राप्त हो ही गये…मेरा जीवन सफल हो गया….आप का प्रेम धन्य है दीदी…..क्या मैं आपको दीदी बुला सकती हूँ….? मुझे अपने चरणो मे थोड़ी सी जगह दे दो…जिंदगी भर दासी बन के आप दोनो की सेवा करूँगी.

राजनंदिनी—ये तुम क्या कह रही हो अग्नि…मैं तो खुद उनके प्रेम की दासी हूँ…भला एक दासी किसी और को दासी कैसे बना सकती है…तुम मुझे ज़रूर दीदी कह सकती हो अग्नि.

राजनंदिनी ने आगे बढ़ कर अग्नि को अपने गले से लगा लिया…दोनो ही इस समय बेहद भावुक हो गयी थी…उन दोनो को देख कर चित्रा और ख़तरा की आँखे भी ऐसा निश्चल प्यार देख कर दबदबा उठी.

ख़तरा—मालकिन मैं मालिक का सेवक ख़तरा जिन्न हूँ.

अग्नि (शॉक्ड)—क्याअ जिन्न….?

ख़तरा—हाँ…छोटी मालकिन…..मैं एक जिन्न हूँ…और चित्रा एक चुड़ैल….ये हमारा वास्तविक रूप नही है….

अग्नि (शॉक)—छू…..चुड़ैल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल

ख़तरा—जी छोटी मालकिन..चित्रा एक चुड़ैल है…..एयाया….मार डाला

चित्रा (गुस्से से)—खबरदार जो मुझे फिर से चुड़ैल बोला तो.

ख़तरा—मुझे क्यो पटक दिया तूने...अब चुड़ैल को चुड़ैल नही बोलू तो क्या बोलू.... ?

चित्रा (गुस्से से)—मुझे भी छोटी मालकिन बोला कर..समझा

ख़तरा (शॉक्ड)—क्याआ.... ? क्या तू और मालकिन....कहीं तेरा दिमाग़ तो खराब नही है... ? तू एक चुड़ैल है...चुड़ैल

चित्रा (गुस्से मे)—अब मैं तुझे नही छोड़ूँगी..रुक..अभी बताती हूँ तुझे.

चित्रा फिर से ख़तरा से लड़ने लगी...राजनंदिनी ने दोनो को अलग कर के चित्रा को किसी तरह शांत किया....फिर चित्रा ने अपने बारे मे सब बताया जिसे सुन कर सब को दुख लगा.

राजनंदिनी—तुम भी मुझे अपनी दीदी कह सकती हो चित्रा.

चित्रा (खुश)—सच

राजनंदिनी—ह्म ...सच मे तुम्हारे साथ बहुत बुरा हुआ है चित्रा….

अग्नि—अब घर चलते हैं दीदी…माँ जी की तबीयत बहुत खराब है…जब से वो गये हैं तभी से वो कोमा मे हैं.

ख़तरा—हाँ मालकिन….मालिक ने माँ जी की ज़िम्मेदारी मुझे दी थी लेकिन मैं उनकी सुरक्षा नही कर पाया…

राजनंदिनी—ठीक है चलो.

सब राजनंदिनी के साथ उर्मिला को देखने के लिए निकल गये…..उधर नन्गु पंगु दमदमी और झींगा लाला से अपनी पहचान च्छुपाने के लिए
नकली दाढ़ी मूँछ लगा कर श्री की तलाश करने लगे.

हर जगह तलाश करने के बाद भी जब श्री का कोई पता नही चला तो उन्होने दूसरे सिटी मे जा कर ढूढ़ने की सोच कर ट्रेन मे सवार हो गये दूसरी सिटी जाने के लिए….

बदक़िस्मती से उसी डिब्बे मे झींगा लाला भी राजनंदिनी की तलाश करते हुए आ टपका और नॅंगू पंगु के सामने वाली सीट मे बैठ गया.

नॅंगू (धीरे से)—अरे यार ये तो यहाँ भी आ गया…कहीं पहचान तो नही लिया इसने हमे…?

पंगु (कानाफुसी करते)—लगता है कि हमारी मौत पक्की है….ज़रूर इसने पहचान लिया होगा…पीछा ही नही छोड़ रहा है ये साला तांत्रिक…

तभी उस डिब्बे मे हरियाणा का एक चौधरी आया और अपनी मून्छो पर ताव देता हुआ एक सरदार जी के बगल मे बैठ गया...नन्गु और पंगु मे एक दूसरे की ओर देखते हुए आँखो ही आँखो मे कुछ इशारा किया...और धीरे धीरे ऐसे बात करने लगे कि जिससे झींगा लाला को सुनाई दे जाए.

नांगु—यार मैने सुना है कि मून्छो वाले आदमी के सामने उसको दिखा दिखा के ताव दो और किसी सरदार से ये पूछ लो कि बारह बज गये क्या तो हर मनोवंच्छित इच्च्छा पूरी हो जाती है.

ये सुनते ही झींगा लाला के कान खड़े हो गये...वो मंन ही मंन मे बेहद खुश हो गया कि राजनंदिनी को वो अब तलाश कर लेगा अगर ऐसा कर दिया तो.

बस फिर क्या था, मंन मे ये सुविचार आते ही उसने उस चौधरी को दिखाते हुए अपनी सफाचत मूँछो पर ताव देने लग गया....ये देख कर चौधरी को गुस्सा आ गया..वो अपनी जगह से उठा और झींगा लाला के गालो पर जड़ दिए कस के दो थप्पड़.

चौधरी—साले बिना खेती के ही हल चला रिया है तू...

झींगा लाला (गाल सहलाते हुए मंन मे)—इसने मुझे मारा क्यो... ? अब इससे नही पूछूँगा.....उस सरदार से पूछता हूँ...वो अच्छा आदमी लगता है.

झींगा लाला (सरदार से)—ओये...सरदार ....बारह बज गये क्या..... ?

उसके इतना पूछते ही सरदार जी ने आव देखा ना ताव झींगा लाला को तीन चार बार उठा उठा के पटक दिया....झींगा लाला दर्द से बिलबिलाने लगा.

सरदार—साले खोतया नू...तेरे को मैं मनमोहन सिंग लगता हूँ जो चुप रहूँगा.

झींगा लाला (मंन मे)—आआ….सालो ने मार डाला…..कहाँ हैं वो दोनो….उनके आइडिया की ऐसी की तैसी…..अभी उन्न दोनो को सबक
सिखाता हूँ.

झींगा लाला उन दोनो (नॅंगू और पंगु) को सबक सिखाने के लिए गुस्से मे मुड़ा तो चौंक गया क्यों कि झींगा लाला की पिटाई शुरू होते ही दोनो
मौका देख कर वहाँ से खिसक चुके थे.

वही दूसरी जगह आदी ने जैसे ही सुना की दमनाक ऋषि की लड़की का नाम राधा है तो वो चौंक गया...उसको दमनाक के गुस्सा होने का कारण पता लग गया था.

अदिई (शॉक्ड)—तुम्हारा नाम राधा हाईईइ….?

राधा (लाज़ से)—ह्म….आप ने पिता जी से ऐसे क्यो कहा मेरे बारे मे…?

आदी (मन मे)—यार ये तो बहुत बड़ी गड़बड़ हो गयी…..मैं तो राधा उनकी काउ (गाय) को बोलता हूँ और उसके दूध पीने की बात कर रहा था…पर ये तो कुछ और ही समझ रही है…..इन लड़कियो ने तो मेरा ही कल्याण कर रखा है......बड़ी मुश्किल से उन सबसे पीछा च्छुटा था,
ये एक और आ गयी.....पहले वो मुनीश ने जन कल्याण जन कल्याण कर कर के मेरा कल्याण कर दिया….अब पता नही गुरु विश्वामित्र
मुझसे कौन सा जन कल्याण करवाना चाहते हैं... ?

राधा आदी की तरफ देखती मुश्कूराती और फिर नज़रें झुका लेती.....तभी वहाँ एक शिष्य आ गया और बताया कि आदी को गुरु विश्वामित्र ने बुलाया है तुरंत.

शिष्य—आदी तुम्हे गुरुदेव ने तुरंत बुलाया है.

आदी—क्यो कोई खास काम है क्या.... ?

शिष्य—काम का तो पता नही लेकिन दमनाक ऋषि ज़रूर बहुत गुस्से मे लग रहे थे.

आदी—चल बेटा …हो गया तेरा जन कल्याण आज तो…‼
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RE: Antarvasna Sex चमत्कारी - by hotaks - 04-09-2020, 03:48 PM

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