RE: Sexbaba Hindi Kahani अमरबेल एक प्रेमकहानी
कोमल को होश आया. उसने पापा के पास से दूध ला चखकर देखा. दूध बहुत नमकीन था क्योंकि कोमल ने चीनी की जगह नमक डाल दिया था. वो अपने दिमाग में सिर्फ राज को लिए बैठी थी इसलिए ये भूल गयी कि दूध में नमक डाला या चीनी. और करती भी क्या दोनों का रंग सफ़ेद ही तो होता है. आँखे तो राज के स्वाद में थी फिर चीनी और नमक में कौन अंतर करे?
कोमल की माँ ने जब ये सुना तो बोली, "ये छोरी तो पागल हो गयी है पता नही इसका दिमाग कहाँ रहता है? क्या अपने सास ससुर को भी ऐसे ही चीनी की जगह नमक खिलाया करेगी?"
अब माँ को कौन बताये कि कोमल की आँखों पर राज के इश्क की पट्टी बंधी है और दिमाग पर उसकी यादों का ताला. बेचारी माँ क्या समझे ये इश्क विश्क के चक्कर? उसे तो चौका चूल्हे से लेकर गोबर थापने से ही फुर्सत नही.और माँ ही क्या सारा घर कोमल के इस कारनामे से बेखबर था. किसी से इश्क होना क्या कोई तेल साबुन का इश्तिहार है जिसके पोस्टर सडकों पर लगाये जाएँ? ये तो हद पार होने पर अपने आप मालुम पड जाता है.
इश्क होने का पता करना वैसा ही है जैसे किसी बच्चे को बड़े होते न जान पाना.जैसे ये जानना कि मर्दो की दाढ़ी और सर के बाल कब बढ़ते है? या पेड़ कब बड़े होते हैं? जैसे गर्भ में शिशु के जीवन कब आता है? जैसे नाखून कब बढ़ते हैं? कहने का मतलब किसी ने किसी का इश्क शुरू होते न जान पाया है. सच में ये है भी बड़ी अदभुत अनुभूति. जिसका न आदि है न अंत. तभी तो भगवान भी मोहब्बत में खुद का मौजूद होना बताते हैं. कोमल भी तो यही कर रही थी.
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