RE: Sexbaba Hindi Kahani अमरबेल एक प्रेमकहानी
दद्दू निहायत ही कमीना इंसान था. उसे हर वक्त अपने लड़कों के व्याह की पड़ी रहती थी.लडकों के व्याह में ज्यादा से ज्यादा दहेज लेने की उसकी मनसा उसे कमीनेपन से आगे ले गयी थी. बोला, "तुम्हे पता है इस लड़की की वजस से हमारे घरों में कोई अपनी लडकी देने को तैयार नही होगा?"
दद्दू खानदान के लोगों को पहले से ही सिखा पढ़ा कर लाया था. साथ में संतू और राजू भी कम नही थे. ये भी चाहते थे कि कोमल को ऐसा दंड मिले जो घर की वाकी की संतानें याद करके कोई भी गलत कदम उठाने की नसोचे.राजू और संतू दोनों भाई गाँव की कूटनीति में भी अपना दखल रखते थे. आज इन सब ने भगत को अपनी राजनीति का शिकार बना लिया था. जिससे भगत का बचना नामुमकिन था.
भगत कुछ कहते उससे पहले राजू बोल पड़ा, “और इस लडकी का तुम करोगे क्या ये भी सोचा है कि नही? इससे शादी करने से तो कोई रहा. साथ में घर की वाकी लडकियाँ भी इसे देख देख विगड जायेगी. फिर क्या करोगे तुम?"
भगत चारो तरफ से घिरते जा रहे थे. उन्हें ऐसा लगता था कि सारा घराना उनके ही पीछे पड़ा है. किसी को उनका सुख चैन और उनकी शांति से कोई लेना देना नहीं है. यही इनकी खुद की लडकी होती तो क्या करते?
भगत के बड़े भाई तिलक निर्णय करते हुए बोले, “में तो बस एक बात चाहता हूँ. इस लडकी को जान से मार डालो. ताकि बाकी की लडकियों को सबक मिल सके. मैंने तो इस भगत से इन लड़कियों को कॉलेज भेजने की भी मनाही की थी लेकिन ये माना ही नही. और आज उसी का फल इसे मिला है. आज से वाकी की लडकियों का भी स्कूल कॉलेज बंद कर दिया जाना चाहिए. इसके आलावा और कोई चारा नही है. कोमल की मौत की सोच भगत की हड्डी हड्डी कांप गयी.
राजू, संतू, पप्पी, दद्दू और तिलक की राय से कोमल को जान से मारा देना ही खानदान पर लगे दाग को मिटा सकता था. अब सब कुछ भगत के हाथ में नहीं था. कोमल के कारण पूरे खानदान की नाक कट गयी थी. अब सजा भी पूरे खानदान द्वारा ही दी जानी थी.
भगत मजबूर थे. चारो तरफ से तरह तरह की बातें सुन उनकी जान निकली जाती थी. राजू ने फिर भगत से पूछा, “बोलो भगत चचा क्या सोचा तुमने? इज्जत सिर्फ हमारी ही नही तुम्हारी भी दांव पर लगी है. घर में लडके लडकियाँ सिर्फ हमारे ही नही तुम्हारे भी हैं. इस कोमल को मार दिखा दो सारे समाज को कि हम इस अपमान को सहन नहीं कर सकते."
राजू की इस कही बात का दद्दू और तिलक ने भी समर्थन किया.
भगत उन सब से बोले, "मुझे इस बात को सोचने के लिए थोडा वक्त चाहिए. मेरी आत्मा मुझे ऐसा करने की इजाजत नहीं देती. जिस बेटी को हाथों में खिलाया आज उसे ही अपने उन्हीं हाथों से मार देना मेरे लिए इतना सरल नही है. मेरी जगह तुम होते तो तुम्हें भी ऐसा ही लगता
तिलक गुर्राकर भगत से बोले, “तूतीर्थ नहाने जा रहा है जो इतना सोचेगा. अभी इसी वक्त फैसला कर. हम लोगों के पास इतना समय नही जो बार बार तेरी पंचायत करते फिरें.
लेकिन पप्पी ने तिलक को रोकते हुए कहा, "नही तिलक चचा थोडा सोचने का वक्त तो दे दी देना चाहिए. करना तो यही है फिर सोचने का वक्त देने में क्या बुराई?" फिर सब लोग थोडा सा वक्त भगत के लिए देने को राजी हो गये. भगत वहां से उठकर अंदर अपने घर में चले गये.
घर में चूल्हा जल रहा था. चूल्हे पर रखे भगोने का ढक्कन भाप से कभी उठ और कभी गिर रहा था. उस उठते गिरते ढक्कन को नजर गढ़ाए देख रही गोदन्ती उदास बैठी थी. इस वक्त उसके दिल की धडकन और भगोने के ढक्कन में ज्यादा फर्क नहीं था. भगत के निढाल कदमों की आवाज उसके कानों में पड़ी तो उसका चेहरा भगत की तरफ मुड गया.
उसने भगत का उतरा हुआ मुंह देख पूंछा, “क्या हुआ? क्या कोई बात हो गयी?"
भगत निढाल से उसी चूल्हे के सामने बैठ गये. बोले, “सब लोग कह रहे हैं कि...कोमल को मार दो तभी इस बदनामी का दाग धुलेगा."
गोदन्ती का पूरा बदन पीपल के पत्ते की तरह फडफडा कर काँप गया. सहमी हुई बोली, “कितने निर्दयी लोग है? अब नादान लडकी से कोई गलती हो गयी तो हो गयी. क्या उसके बदले उसकी जान ले लें?"
एक माँ बाप के लिए अपनी खुद की सन्तान को मार डालने का खयाल कितना बुरा होता होगा? ये तो शायद एक माँ या बाप ही जान सकते है. लेकिन इस जमाने का क्या जो सिर्फ अपने लिए जीता है? जो सिर्फ छोटी सी बात पर अपनी मर्यादा का हवाला दे आदमी को इस तरह मजबूर कर देता है. अदालत के कानून बदलना आसन है लेकिन समाज की सोच बदलना, उसके रिवाज बदलना बहुत ही मुश्किल.
भगत ने धीमी आवाज में गोदन्ती से पूंछा, “कोमल कहाँ है?"
गोदन्ती भिन्नाई हुई बोली, “और कहाँ होगी अभी तक वही चारपाई पडी है.
भगत उत्सुक हो बोले, "कुछ कहती नही?"
गोदन्ती आखें तरेर बोली, “वो जो कहती है वो तुम्हे बताऊ तो अभी उसे मार डालोगे. कहती है राज के विना जिन्दा नही रह सकती.
भगत गंभीर होते हुए बोले, “थोडा समझाती तो धीरे धीरे भूल जाती. शरीर वेशक बड़ा हो गया लेकिन अभी अक्ल बच्चे जैसी है इस लडकी की."
गोदन्ती चिढ़ते हुए बोली, "तुम्ही समझा लो अपनी लाडलियों को. मेरे वश की बात नही. ये तुम्हारी ही कृपा है जो ये इतना विगड गयी. कहते थे लड़की को पढ़ा लिखाकर कुछ बनाना चाहता हूँ.
पढ़कर जो बनी सो ऐसा हो गया. लाख मना करती थी कि लड़कियों को घर से बाहर मत भेजो लेकिन मानते ही न थे."
भगत विना कुछ कहे गोदन्ती के पास से उठ खड़े हुए और कोमल के पास जा पहुंचे. कोमल जीर्ण शरीर लिए चारपाई पर लेटी हुई थी. भगत ने उसके माथे पर अपना हाथ रखा. कोमल शायद अभी सोयीं हुई थी. भगत को लगा कि कोमल आज फिर से नन्ही बच्ची बन गयी है जिसे वो खुद बैठे सुला रहे हैं. भगत के बाप वाले दिल में कोमल के लिए अपार क्षमा थी.
उन्हें इस वक्त कोमल की स्थिति बहुत दयनीय लग रही थी. उन्हें वो दिन भी ध्यान आ रहा था जब उन्होंने इस लडकी को पढाई के लिए खाना छोड़ते हुए देखा था. एक आज का दिन था जब उसने पढाई को कुर्बान कर इतनी बड़ी भूल कर डाली थी.
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