RE: Sexbaba Hindi Kahani अमरबेल एक प्रेमकहानी
भगत का मुंह देख किसी की हिम्मत न होती थी कि कोमल की मौत का समय तय कर दे लेकिन तभी तिलक बोल पड़े, “जो भी करना है तुरंत कर डालो. जितनी देर होगी उतना ज्यादा नुकसान उठाना पड़ेगा. जो करना है वो जल्दी निपटा डालो. देर होने पर सौ तरह के विचार दिमाग में आते हैं." तिलक की इस बात का राजू, संतू, पप्पी और निक्कमे दडू ने भी सर हिलाकर समर्थन किया.
भगत निढाल हो वहाँ पर बैठ गये, बाकी के लोगों में कोमल को ठिकाने लगाने की बाते शुरू हो गयी. तिलक ने राजू से कहा, “राजू कोमल को मारने के लिए तुम्हारा घरठीक रहेगा. भगत के कमरे से तो बाहर तक आवाजें आती हैं लेकिन तुम्हारे अंदर वाले कमरे से किसी को कुछ भी सुनाई न देगा." राजू पहले तो सकुचाया लेकिन फिर कुछ सोचते हुए बोला, "ठीक है जैसा आप ठीक समझो."
भगत अपने सर को झुकाए अपनी बेटी को मारे जाने की योजना सुन रहे थे. तिलक ने दडू से पूंछा, “अब ये बताओ उसको मारे किस तरीके से? कोई योजना हो तो बताओ?"
दद्दू बहुत ही निर्दयी किस्म का इंसान था. औरतों की इज्जत उसने आज तक नहीं की. वो
औरतों को आदमी के हाथों की गुलाम समझता था. गाँव की एक गरीब विधवा औरत को कुछ दिन पहले ही इसने छोटी सी गलती पर बहुत बुरी बुरी गालियाँ दी थीं. जबकि वो बेचारी इससे माफी मांगती रही. कारण था उसके एक भी लडकी नहीं थी. अब कोई उसके बारे में कहे तो कैसे कहे? दद्दू मुंह सिकोड़ कर बोला, “योजना क्या बनानी? क्या हम सब पर मिलकर एक तिन्हा सी लडकी नही मारी जायेगी? उसे भगत के घर से खींचकर राजू के कमरे तक ले जायेंगे फिर वही उसका गला दवा देंगे. इसमें कौन सा सोचने वाली बात है?"
दद्दू की कोमल को खीचकर ले जाने वाली बात पर भगत अंदर तक तडप गये. उन्होंने लाचार आँखों से ददू की तरफ देखा लेकिन क्या कहते? वे तो पहले ही अपनी मंजूरी दे चुके थे. अब तो जो भी करना था इन्ही दरिंदों को करना था जो समाज और खानदान की इज्जत के रखवाले थे. जिनको अपने लडके लडकियों की शादी होने की चिंता सता रही थी. जिसका निवारण विना कोमल को जान से मारे नही हो सकता था, कोई अन्य दिन होता और कोमल के लिए कोई इस तरह की बात बोल देता तो भगत कोमल के बाप होने के नाते उसका खून पी जाते लेकिन आज तो लोग उनका ही खून पीने को तैयार खड़े थे. बात सही भी थी. दुनिया का कौन बाप होगा जो बैठा बैठा चुपचाप अपनी बेटी के लिए ऐसे शब्द सुनता रहे?
संतू सामने बैठे तिलक से बोला, "तो फिर करना कब है ये सब?"
तिलक फौरन बोले, “आज रात को ही कर डालो. ज्यादा देर हमारी मुश्किलें ही बढ़ा रही है. भगत और इसके बाल बच्चे भी परेशान हैं."
भगत की आँखों में अँधेरा छाता जा रहा था. उन्हें इस बात पर यकीन नही हो रहा था कि कोमल आज ही उनकी आँखों से दूर हो जायेगी. फिर कभी देखने को नहीं मिलेगी.
तिलक ने सब लोगों को प्लान बताना शुरू किया, “राजू तुम अपने घर संतू के साथ कोमल के आने का इन्तजार करोगे. मैं, दद्दू और पप्पी कोमल को खींच कर तुम्हारे घर तक ले आयेगे. फिर वही उसे खत्म कर डालेंगे."
भगत और राजू के घर की दीवार एक दूसरे से सटी हुई थी. गेट में दो तीन कदमों का ही फासला था. तिलक फिर से बोले, "ठीक है. सब लोग शाम तक अपना अपना काम खत्म करलो. उसके बाद ये काम निपटाना है."
इतना सुन सब लोग उठ उठ कर चले गये. भगत भी किसी बूढ़े आदमी की तरह चलते हुए घर के अंदर जा पहुंचे. घर में भगत के बच्चे और बीबी सब के सब भगत की तरफ ही देख रहे थे मानो सब पूंछना चाहते हों कि अब कोमल को लेकर क्या फैसला हुआ? वो बच तो जायेगी न? अब कोई उसे मारने की बात तो नही कहता था? भगत इन सबकी प्रश्न भरी नजरों को ज्यादा देर नही सह सके, बच्चों से नाराज़ होते हुए बोले, “तुम यहाँ ऐसे क्यों बैठे हो? चलो अपने अपने काम पर लगो."
इतना कहने के बाद भगत अपनी बीबी गोदन्ती के पास बैठ गये और बोले, “मैंने उनकी बात मान ली. अब ये सब शाम के समय कोमल को...." इतना कह भगत फफक फफक कर रो पड़े.
गोदन्ती इसके बाद चुप कैसे बैठ पाती. उसकी भी हिल्की बंध गयी. दोनों रोये जा रहे थे. उनको छुपकर देख रहे उनके बच्चे भी छुप छुप कर रो पड़े. सारा घर रो रहा था. कोमल को ये सब तो मालूम न था लेकिन वो राज को याद कर करके रो रही थी.
कोमल का तो एक भी पल ऐसा नही था जिसमे वो अपने प्यार राज को याद न करती हो. उसका तो काम ही अब रोना था. कहा जाय तो लडकी का काम ही जिन्दगी भर रोना होता है. कोख में आते ही घरवाले कोसते हैं तो रोती है. घर की हर परिस्तिथि में रोती है. घर से विदा हो तब भी रोती है. ससुराल में लोग परेशान करें तब रोती हैं. ऐसा लगता है कि एक आम लडकी जिन्दगी भर रोती ही रहती है लेकिन पूरी तरह से ऐसा भी नही कह सकते. क्योंकि समाज में हर आदमी लडकियों के खिलाफ नहीं होता.
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