RE: Sexbaba Hindi Kahani अमरबेल एक प्रेमकहानी
घर में अंदर पहुंचे तो देखा कि गोदन्ती सभी बच्चों के साथ एक जगह बैठी हुई है. तिलक गोदन्ती के जेठ लगते थे. इस कारण वो धुंघट खींच कर खड़ी हो गयी. इन घराने की इज्जत के रखवालों को इतने पर भी शर्म न आई कि जिस औरत की बेटी को वे लोग मारने
जा रहे हैं वो सब जानते हुए भी उनकी इज्जत में घुघट किये खड़ी है. जबकि और कोई माँ होती तो इन लोगों का खून पी जाती तब अपनी बेटी से हाथ लगाने देती.
तिलक इस वक्त कोमल के सिरहाने की तरफ खड़े हुए थे और संतू तिलक के पीछे. तिलक ने कोमल को आवाज दी, "ओरी कोमल. सो रही है क्या?"
कोमल अपने बाप के बड़े भाई यानि अपने ताऊ तिलक की आवाज को भली भांति पहचानती थी. वो उठकर बैठ गयी और बोली, "नही ताऊ. सो नही रही."
तिलक की इस प्यार भरी पूंछताछ में उस शिकारी की जैसी चाल थी जो दाना डाल कर अपने मासूम शिकार को फंसाने की कोशिश करता है. जैसे ही शिकार दाना खाने आता है शिकारी उस मासूम शिकार का बध कर डालता है. परंतु बेचारा भोला शिकार कहाँ जानता पाता है कि किसी अपने की तरह दाना डालने वाला आदमी इतना क्रूर शिकारी निकलेगा? यही कोमल के साथ तिलक कर रहा था. ये बो तिलक था जिसने कोमल को अपने हाथों से खिलाया था.
अपने इसी मुंह से उसे बेटी कहकर बुलाया था. जिसे कोमल ने अपने होश सम्हालने से लेकर अब तक अपने हाथों से रोज खाना दिया था. सुबह की चाय और शाम को दूध दिया था. जिससे उसका अपना ताऊ ठीक ठाक रहे. लेकिन वो क्रूर ताऊ आज अपने घराने की खोखली इज्जत के लिए उसी मासूम लडकी की बलि चढ़ाने जा रहा था. वो भी धोखे से.
तिलक प्यार से बोले, "बेटा कोई परेशानी है क्या तुझे?"
कोमल के मन में परेशानी ही परेशानी थी. क्या क्या बताती लेकिन उस बाबली को लगा आज ताऊ बहुत अच्छे से पूछ रहा है तो जरुर मेरे लिए कुछ कर पाए. बोली, “ताऊ तुम्हे क्या बताऊं? तुम तो मेरी परेशानी जानते ही हो. फिर मुझे पूछते ही क्यों हो?"
तिलक ने संतू की तरफ देखा. दोनों में आखों से बातें हुई, "देख लो इस छोरी के दिमाग में अभी तक वो लड़का अटका हुआ है."
तिलक कोमल के सर पर हाथ रखते हुए बोले, “में समझता हूँ मेरी बच्ची. लेकिन बच्चा सांप मांगे तो उसे सांप तो नहीं दे सकते न. किन्तु मैंने तेरे लिए कुछ सोचा है तू मेरे साथ संतू के घर चल. वहीं बैठकर बताऊंगा.
कोमल के दिमाग में संतू के घर जाने वाली बात कुछ हलचल पैदा कर गयी. वो अपने ताऊ तिलक से जिद करती हुई बोली, "नही ताऊ तुम यहीं बताओ, अपना घर क्या उनके घर से ज्यादा सुरक्षित है? वहां भी सब लोग होगे. कम से कम यहाँ अपने लोग तो है."
लेकिन तिलक के दिमाग में तो कुछ और ही चल रहा था. वो तो इस मासूम हिरनी को शेर की मांद तक ले जाना चाहता था. तभी तो आसानी से मार सकते थे इस चंचल कोमल को. तिलक फिर से बोले, "अरे तू चल तो सही. ऐसा कुछ नही है. सब अपने ही है. चल चल उठ जल्दी से.
लेकिन कोमल एक स्त्री होने के नाते अपने ऊपर मंडरा रही मुसीबत को शायद भांप रही थी. इसलिए अडिग हो बोली, "नही ताऊ बताना हो तो यहीं बताओ वहां नही जाउंगी. ऐसी क्या बात है जो अपने घर में नही बताई जा सकती?"
तिलक ने संतू की तरफ देखा. फिर से आँखों आँखों में बात हुई. लडकी इतनी आसानी से नही जायेगी. इसे खींचकर ही ले जाना पड़ेगा. तिलक का इशारा होना वाकी था फिर संतू कोमल को खींचकर ही ले जाता. कोमल के कमरे के बाहर खड़े उसके भाई बहिन और माँ तिलक की बातों को ध्यान से सुन रहे थे. उनके दिलों में असीमित तीव्रता का तूफ़ान चल रहा था. जाने कब क्या हो जाय? तिलक और संतू कोमल को किस वक्त मारने के लिए ले जाएँ. फिर कोमल मार दी जायेगी.
तिलक ने कोमल को अपनी इच्छा से जाते न देख संतू की तरफ खींच कर ले जाने का इशारा किया. कोमल ने संतू को आगे बढ़ते देखा तो घबरा गयी. आँखों में उस बकरी की तरह डर था जो शेर को अपने सामने देख डर जाती है. कोमल डरकर बाहर भागने को हुई लेकिन संतू ने झपटकर कोमल को दबोच लिया.
कोमल ने इस तरह अपने ही घर में अपने खानदान के एक भाई लगने वाले शख्स के इस तरह दबोचे जाने पर माँ को पुकारा, "माँ..मुझे...बचाओ...गूऊऊऊऊऊओ." तिलक का हाथ कोमल के मुह को बंद कर चुका था. मुसीबत में घिरी एक अबला लडकी हमेशा ही सबसे पहले अपनी माँ को याद करती है.जैसे कोमल कर रही थी.
माँ का दिल किसी कांच के टुकड़े से छेदा जा रहा था लेकिन आज चाहकर भी वो अपनी बेटी को बचा नही सकती थी. कैसा धर्मसंकट था एक माँ के सामने? कोमल का पूरा घर उस गेट की तरफ नजर लगाये बैठा था जिससे कि कोमल को तिलक और संतू बाहर लाने वाले थे. सबकी आँखों में किसी डरावने दृश्य को देखने का डर था. सबके दिल ममता भरे डर से डर रहे थे. और वो माँ? वो तो अपने दिल को ऐसे थामे थी जैसे वो सीने से कहीं निकल कर भाग जाएगा.
कोमल की माँ को दी गयी आवाज घर के बाहर तक गयी थी. भगत का बाप वाला दिल रोके न रुक सका. वो भी आकर बाकी लोगों के साथ आकर खड़े हो गये. उन्हें भी कोमल को देखने की इच्छा हो रही थी. इतने में संतू और तिलक कोमल को दबोचे कमरे से बाहर आ गये. संतू कोमल को अपने हाथों से जकड़ा था. तिलक कोमल के मुंह को दबाये था. कोमल के कपड़े अस्त व्यस्त थे. दुपट्टा जो गाँव में लड़की की इज्जत का प्रतीक होता है. वो तो शायद अंदर चारपाई पर ही रह गया था.
ये वो दुपट्टा होता है जिसे विना पहले अगर लडकी घर से निकल आये तो उसके घरवाले उस दिन उसका जीना हराम कर देते हैं. और आज ये पहला दिन था जब कोमल बाप के सामने विना दुपट्टे के दिखाई दी थी. अन्य दिन होता तो भगत कोमल को बहुत खरी खोटी सुनाते लेकिन आज तो वो मरने जा रही थी अब इससे बड़ा दंड और क्या होता? भगत की आँखें नीची हो गयी. शायद एक बाप यह सब न देख सकता था.
कोमल को इस हालत में देख भगत वही पर बैठ गये. तिलक चिल्लाकर बच्चो से बोले, "हटो सामने से यहाँ क्या मेला लगा है?" कोमल का मुंह दवा हुआ था लेकिन फटी हुई. डरी हुई. सहमी हुई आँखें माँ को ढूंढ रही थीं. मुंह से आवाज तो निकलती ही नही थी लेकिन कमरे से बाहर आते ही माँ दिखाई दे गयी. कोमल ने उन डरी हुई आँखों से माँ की तरफ देख 'गूगूऊउ' की आवाज में कुछ कहा. माँ की आँखें कोमल की आँखों से मिली. माँ अंदर तक सहम गयी. क्या कर सकती थी? वो तो समाज में इज्जत बनाने की खातिर उसको मारने की इजाजत दे चुकी थी. माँ ने कोमल की तरफ से मुंह फेर लिया. कोमल आज माँ की तरफ से ऐसा सौतेला व्यवहार देख खुद पर यकीन न कर पा रही थी. उसे लग रहा था जैसे वो सपना देख रही हो. लेकिन दो घर के आदमी उसे दबोचे ले जा रहे थे ये तो सपना नही हो सकता था न.
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