RE: Sexbaba Hindi Kahani अमरबेल एक प्रेमकहानी
कोमल मर गयी थी. कोमल आज पहली बार इतनी शांत और कुरूप दिखाई दे रही थी लेकिन चेहरे पर हजारों कहानियाँ लिखी हुई थी. जो राज की मोहब्बत से लेकर घराने की नाइंसाफी तक का इतिहास सुना रही थीं. कोमल तो चली गयी थी लेकिन अपनी आँखों में अपने हत्यारों का चेहरा छोड़ गयी थी. शायद उसे उम्मीद रही हो कि कोई अपना आकर इन चेहरों को देख मुझे इंसाफ दिलाएगा. लेकिन ऐसा होता कब था जो आज होता? परन्तु आगे होने की उम्मीद कोमल के दिल में रही होगी.
माँ गोदन्ती और बाप भगत बेहोश हो चुके थे. भाई बहन रो रहे थे. वे ही क्या इस समय हर चीज रो रही थी. वो कमरा रो रहा था जिसमे कोमल मारी गयी थी. ये समय रो रहा था. घर की दरोदीवार रो रही थी. इस आवो हवा का हर जर्रा जर्रा रो रहा था. वो जमीन रो रही थी जिसपर कोमल मरी पड़ी थी.
ये रात का वक्त रो रहा था. दिलों को दिलों से जोड़ने वाला हर तार रो रहा था. समय का पहिया रो रहा था जिसने कोमल को ख़ुशी और गम दिया. उस घर का चप्पा चप्पा रो रहा था. वो तुलसी मैया भी रो रही थी जिसकी पूजा कर कोमल ने अपने प्यार को अमर करने का आशीर्वाद लिया था. शायद कोमल के शरीर से जुदा हुई उसकी पवित्र आत्मा भी रो रही थी. क्योंकि कोमल मरगयी थी. साथ में कोख में आई एक नन्ही जान भी.
कोमल का चुप होना. कमरे से कोई आवाज न आना. किसी का कोमल को न दुत्कारना आसपास दीवारों से कान लगाये खड़े लोगों को ये बता गया था कि अब वो लडकी नही रही. जिसकी वजह से इस घराने की नाक कटी जा रही थी. अब कोई आदमी नहीं कहेगा कि आपके घराने पर कोई बदनामी का दाग लगा हैं क्योंकि कोमल को मार इस घराने के लोगों ने आज सारे दागों को मिटा अपने आप को पाक साफ कर लिया था.
आज गाँव की सबसे खुशमिजाज लडकी मर गयी थी. मोहब्बत की एक और मूरत मर गयी थी लेकिन किसी को कोई फर्क नही पड़ा. राजू ने दद्दू की तरफ भयभीत आँखों से देख पूंछा, “अब क्या करे दद्दू दादा? ये तो मर गयी."
दद्दू का दिल पत्थर का था. बोला, “करना क्या जला डालो और नही तो तिलक चचा से पूंछ लो."
तिलक शांत भाव से बोले, “जलाना ही ठीक है लेकिन ये काम अभी रात में ही करना होगा. सुबह के समय ठीक नहीं होगा. चारो तरफ लोग होते हैं. थोड़ी सी भी खबर लगी तो जेल में सडना पड़ेगा. अब फटाफट इसे अपने खेतों तक ले जाने का प्रबंध करो."
दडू ने फौरन राजू से कहा, “तुम एक काम करो. एक टाट का बोरा लो और उसमे इस छोरी को बंद कर बाँध लो जिससे कोई देख भी ले तो शक न होगा. फिर इसे मोटर साईकिल पर डालकर भगत के खेतों पर ले चलो, वहीं इसे जला देंगे. अपने लड़कों को बुलाकर थोड़े बहुत कंडे और लकड़ी वहां पर पहुंचवा दो. ये सब काम फटाफट करो. चाहो तो भगत चचा को भी खबर कर दो. उनका मन हो तो चले चले. लडकी को जलते भी देख लेंगे."
भगत लडकी को जलते हुए क्या देखते? वो तो खुद अपनी बेटी के गम की आग में जल चुके थे. बेटी को मरा जानते ही बेहोश हो गये थे. अब कोई कहता तो भी वो न जा सकते थे. शायद होश में होते तो जरुर अपनी बेटी की चिता को जलते हुए देखना चाहते. उस बेटी की चिता जिसका गौना अपने हाथ से करने का सपना भगत ने देखा था. भगत को बेहोश देख फिर किसी ने उनसे न कहा कि चलकर बेटी को जलते हुए देख लो.
राजू ने जल्दी जल्दी कोमल की लाश को टाट के बोरे में बंद किया. लड़कों को बुलाकर खेतों पर कंडे लकड़ी ले जाने के लिए बोल दिया. फिर राजू और तिलक कोमल वाले बोरे को मोटर साईकिल पर रखकर खेतों पर चल दिए. खेत भी गाँव से थोड़ी ही दूर पर थे.
कोमल की बोरे में बंद लाश उस गाँव के बाहर खड़े इमली के पेड़ के पास से गुजरी. इमली का पेड़ शायद मन में रोता था. उसे पता चला गया था कि कोमल अब कभी नही आएगी. अब कभी उसके कोमल हाथ किसी इमली पर नहीं पड़ेंगे. अब कोई आदमी इमली के पेड़ के पास उतने उत्साह से नहीं आएगा जितना कोमल के सामने आता था.
कोमल तो गाँव से किसी और तरह विदा होके जानी थी फिर चाहे वो शादी होकर जाती या मर कर. क्योंकि शादी होकर जाती तो डोली में जाती. साथ में सोलह सृगार किये होते. यदि मरकर भी जाती तो कम से कम अर्थी में तो जाती. पूरा गाँव उसे दोनों ही तरीके से जाने पर भावुक हो विदा करता.
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