RE: एक अनोखा बंधन - पुनः प्रारम्भ
तृतीय अध्याय : प्रथम मिलन
भाग - 1
शादी निपटने के बाद हम दिल्ली लौट आये, पिताजी ने काम संभाला और मैंने थोड़ी मस्ती और पढ़ाई करनी शुरू की| साल दर साल हम गर्मियों की छुट्टियों में गाँव जाया करते, मैं बड़ा होने लगा था तो अब वहाँ की बोली-भाषा समझने लगा था और कुछ-कुछ बोलने भी लगा था| इस तरह तीन साल निकल गए और फिर वो समय आया जब भाभी का गौना हुआ| मुझे लगा था की बहुत बड़ा समारोह होगा जिसमें बहुत सारे लोग आएंगे, पार्टी होगी पर हुआ ऐसा कुछ भी नहीं| खेर गौना बड़ा ही शांत तौर पर हुआ और नई भाभी के आते ही सारी औरतें उन्हें घेर कर बैठ गईं| मैं अब 7 साल का हो गया था और मेरे कुछ दोस्त गाँव में बन गए थे जिनके साथ मैं खेलता था| कुछ देर बाद बड़की अम्मा ने मुझे और गट्टू दोनों को बुलाया और नई भाभी से मिलवाया|
मैं और गट्टू दोनों ही बड़े घर पहुँचे, गट्टू तो पूरे आत्मविश्वास से खड़ा था और मैं शर्म से लाल हो गया था| सफ़ेद कुरता पजामा पहने हुए मैं अपने हाथ पीछे बांधे खड़ा था, मेरी नजरें सबसे पहले भाभी पर पड़ी जो लाल साडी पहने, डेढ़ हाथ का घूँघट काढ़े आँगन के बीचों बीच बैठी थीं| उस एक पल के लिए मेरे मन में नजाने क्यों मेरे पेट में तितलियाँ उड़ने लगी थीं| पूरा घर औरतों से भरा हुआ था और मुझे बहुत ज्यादा ही शर्म आ रही थी इसलिए भाभी को घूँघट में देखने के बाद मेरी नजरें झुक गई| बड़की अम्मा ने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे सब औरतों के बीच से होते हुए भाभी के सामने खड़ा कर दिया| गट्टू मेरी बाईं तरफ खड़ा था और उत्सुकता भरी आँखों से उन्हें देख रहा था| मेरी नजरें बस जमीन में गाड़ी हुई थीं, मानो यहाँ दुल्हन भाभी नहीं मैं हूँ!
अम्मा ने पहले गट्टू का परिचय भाभी से कराया, बड़की अम्मा के कहने पर उसने भाभी के पाँव छुए और फिर बाहर चला गया| अब बारी थी मेरी; " दुल्हिन! ई तोहार सबसे छोट देवर है!" इतना कह कर बड़की अम्मा ने मुझे उनकी बगल में बिठा दिया और मैं शर्म से सर झुकाये बैठ गया| भाभी ने मुड़ कर मेरी तरफ देखा और अपने दाहिने हाथ को मेरे गाल पर फेरा| ये भाभी और मेरा पहला स्पर्श था, उनका तो मुझे नहीं पता पर मेरे शरीर में जर्रूर कुछ अजीब सा हुआ था जिसे उस समय व्यक्त कर पाना मेरे लिए सम्भव नहीं था| वहाँ बैठी सभी औरतें हँसने लगी और कहने लगीं की कितना शर्मिला लड़का है, इतनी देर से बैठा पर इसने आँख उठा कर किसी को देखा तक नहीं! बड़की अम्मा ने सबसे मेरी बड़ी तारीफ करते हुए कहा की ये यहाँ के बच्चों की तरह नहीं है, बड़ा ही संस्कारी लड़का है जो किसी से लड़ाई-झगड़ा या गाली-गलौज नहीं करता! मेरी तारीफ सुन जहाँ माँ को बड़ा गर्व हो रहा था वहीं मेरे गाल और भी लाल हो रहे थे| जब कुछ औरतें इधर-उधर हुईं तो मैं माँ के पास चला गया, माँ को लगा की मैं दूध पीने आया हूँ तो उन्होंने मुझे कमरे में दूध पिलाना शुरू कर दिया| वहाँ मौजूद जिस किसी ने भी ये देखा वो हैरान था क्योंकि गाँव में बच्चे माँ का दूध ज्यादा दूध नहीं पीते थे| बुआ ने फिर से माँ को टोका तो बड़की अम्मा बीच में बोल पड़ीं; "दीदी रहय दिओ! बच्चा है, धीरे-धीरे सीख जाई!" और बुआ को अपने साथ ले गईं, मैं मन ही मन सोच रहा था की दूध मैं अपनी माँ का पी रहा हूँ और मिर्ची इन्हें लग रही है?! पर सब औरतों को बात करने के लिए एक नया विषय मिल गया था तो सबने अपने-अपने नुस्खे बताने शुरू कर दिए| कोई कहता की माँ अपने स्तन पर मिर्ची लगा ले तो कोई कहता की गोबर लगा लें| माँ ने कहा भी की ये एक ऐसी जिद्द है जो इसने अभी तक नहीं छोड़ी है, पिताजी ने कितनी बार डाँटा पर मैं नहीं माना और खूब रोने लगता तो हार कर उन्हें दूध पिलाना पड़ता है| भाभी आंगन में बैठी ये सब सुन रही थी और घूँघट के अंदर से मुस्कुराये जा रही थी| खेर भाभी के सामने अपनी बेइज्जती करवा कर मैं बाहर भाग आया और खेलने लगा| वो पूरा दिन मैं भाभी के आस-पास भी नहीं भटका, बस अपने मौसा, मामा या बुआ के बच्चों संग खेलता रहा| मौसा और मामा सब बड़की अम्मा की तरफ के थे पर मुझसे बिलकुल वैसे ही प्यार करते थे जैसा वो बड़की अम्मा के बच्चों से करते थे| इधर चन्दर भैया अपनी सुहागरात के लिए मरे जा रहे थे, दिन भर वो अपने दोस्तों के साथ खेतों में पेड़ के नीचे चारपाई डाल कर बैठे थे| वहाँ उनकी अपनी ही अलग महफ़िल सजी हुई थी जिससे मुझे दूर रखा गया था| गाँव में एक कमरे और आँगन के साथ हमारा पुराण घर था, जिसे अब चन्दर भैया का निजी घर बना दिया गया था| भाभी को वहीं बिठाया गया था और उनके पास आस-पड़ोस की भाभियाँ बैठी थीं| खेर रात हुई और खाना खाने के बाद चन्दर भैया उस घर में घुसे और दरवाजा बंद हुआ| बाकी सब तो प्रमुख आँगन में फैले पड़े थे और औरतें बड़े घर में सोइ थीं|
अगली सुबह हुई, मेरे लिए तो ये एक आम सुबह थी पर भाभी और मेरे रिश्ते की शुरुआत आज ही के दिन से हुई थी| मैं आज कुछ ज्यादा लेट उठा था, उठते ही मैं नहाया-धोया और प्रमुख आंगन में चारपाई पर बैठ गया| कुछ देर बाद भाभी ने खाना बनाया और सब आदमियों और बच्चों ने बैठ कर खाया, सब ने भाभी को पहली रसोई के लिए बहुत आशीर्वाद दिए! शाम होने तक सब अपने-अपने घर को जा चुके थे और अब घर में केवल माँ-पिताजी, बड़के दादा-बड़की अम्मा, चन्दर भैया, अशोक भैया, अजय भैया, अनिल भैया, गट्टू, मैं और भाभी ही रह गए थे| रात के भोजन के समय मैं रसोई के पास छप्पर के नीचे चुप चाप बैठा था| भाभी ने मेरी तरफ घूँघट किये हुए देखा और मुझे इशारे से अपने पास बुलाया| मैं मुस्कुराता हुआ उठा और भाभी के सामने जा कर शर्म से सर झुका बैठ गया| मुझे देखते ही भाभी की हँसी छूट गई और आज मुझे घूँघट के भीतर से भाभी के गुलाबी होंठ और मोती से सफ़ेद दांतों का दीदार हुआ| "तुम्हारा नाम क्या है?" भाभी ने धीरे से पुछा| उनकी मिश्री सी मीठी आवाज सुन मैं कुछ पल के लिए खामोश हो गया और फिर अनायास ही मुँह से निकला; "मानु"| भाभी को मेरा नाम बहुत पसंद आया जो उनकी मुस्कराहट से पता चल रहा था| "तुम शहर में पढ़ते हो?" भाभी ने पुछा तो मैंने बस हाँ में गर्दन हिलाई| "कौन सी क्लास में हो?" भाभी ने अपनी मधुर आवाज में पुछा और जवाब में मैंने; "फर्स्ट क्लास में" कहा| इतने में माँ आ गई और भाभी से बोली; "दुल्हिन देवर से बतुआत हो?" ये सुन भाभी बोलीं; "चाची ये कछु बोलते नहीं!" ये सुन माँ मुस्कुराने लगी और बोलीं; "तोह से सरमात है!" इसके आगे भाभी कुछ बोलती मैं उठ कर भाग गया| आज भाभी की बात सुन कर दिल में अजीब सी गुदगुदी हुई थी, ऐसी गुदगुदी मुझे पहले कभी नहीं हुई थी|
|