RE: Desi Porn Kahani काँच की हवेली
सरजू हान्फता हुआ हवेली में दाखिल हुआ और सीधा मालकिन के कमरे की तरफ बढ़ गया. मालकिन के कमरे के दरवाज़े तक पहुँच कर वह रुका. वहाँ हवेली के दूसरे नौकर भी खड़े भय से काँप रहे थे. उनमे से किसी में भी इतनी हिम्मत नही थी कि वो अंदर जाकर देखे कि क्या हो रहा है. सरजू कुच्छ देर खड़ा रहकर अपनी उखड़ चली सांसो को काबू करता रहा फिर धड़कते दिल से अंदर झाँका. अंदर का दृश्य देखकर उसकी सिट्टी-पिट्टी गुम हो गयी. मालकिन किसी हिंसक शेरनी की भाँति लाल लाल आँखों से ठाकुर साहब को घुरे जा रही थी. ठाकुर साहब एक और खड़े थर थर काँप रहे थे. मालकिन दाएँ बाएँ नज़र दौड़ाती और जो भी वस्तु उनके हाथ लगती उठाकर ठाकुर साहब पर फेंक मारती.
"राधा....होश में आओ राधा." मालिक भय से काँपते हुए धीरे से मालकिन की ओर बढ़े. "हमे पहचानो राधा...हम तुम्हारे पति जगत सिंग हैं."
"झूठ....." राधा देवी चीखी -"तू खूनी है.....अगर तू मेरे पास आया तो मैं तेरी जान ले लूँगी. मैं जानती हूँ तू मेरी बेटी को मारना चाहता है पर उससे पहले मैं तुम्हे मार डालूंगी." ये बोलकर वो फिर से कुच्छ ढूँढने लगी...जिससे कि वो ठाकुर साहब को फेंक कर मार सके. जब कुच्छ नही मिला तो वो डरते हुए पिछे हटी. उसके हाथो में कपड़े की बनाई हुई गुड़िया थी जिसे वो अपनी बेटी समझकर छाती से चिपका रखी थी. ठाकुर साहब को अपनी और बढ़ते देखकर उसकी आँखों में भय नाच उठा. राधा गुड़िया को अपनी सारी के आँचल में छिपाने लगी. और फिर किसी वस्तु की तलाश में इधर उधर नज़र दौड़ाने लगी. अचानक उसकी आँखें चमक उठी, उसे पानी का एक गिलास ज़मीन पर गिरा पड़ा दिखाई दिया. वह फुर्ती से गिलास उठाई और बिजली की गति से ठाकुर साहब को दे मारा. राधा देवी ने इतनी फुर्ती से गिलास फेंका था कि ठाकुर साहब अपना बचाव ना कर सके. गिलास उनके माथे से आ टकराया. वो चीखते हुए पिछे हटे. उनके माथे से खून की धार बह निकली. दरवाज़े के बाहर खड़ा सरजू लपक कर उन तक पहुँचा और ठाकुर साहब को खींच कर बाहर ले आया. दूसरे नौकरों ने जल्दी से अपनी मालकिन के कमरे का दरवाज़ा बाहर से बंद कर दिया.
सरजू ठाकुर साहब को हॉल में ले आया और उनके माथे से बहते खून को सॉफ करने लगा. दूसरे नौकर भी दवाई और पट्टियाँ लेकर ठाकुर साहब के पास खड़े हो गये. तभी दरवाज़े से दीवान जी दाखिल हुए. वो सीधे ठाकुर साहब के पास आकर बैठ गये. ठाकुर साहब की दशा देखी तो उनके होंठो से कराह निकल गयी.
"आप मालकिन के कमरे में गये ही क्यों थे सरकार?" दीवान जी उनके माथे पर लगे घाव को देखते हुए बोले.
"राधा को देखे एक महीना हो गया था दीवान जी. बड़ी इच्छा हो रही थी उसकी सूरत देखने की...मुझसे रहा नही गया." ठाकुर साहब दर्द से छटपटा कर बोले. उनका दर्द माथे पर लगी चोट की वजह से नही था. उनका दर्द उनके दिल में लगे उस चोट से था जिसे उन्होने खुद लगाया था. वो अपनी बर्बादी के खुद ही ज़िम्मेदार थे. आज उनकी पत्नी की जो हालत थी उसके ज़िम्मेदार वे खुद थे. ये बात ठाकुर साहब के अतिरिक्त दीवान जी भी जानते थे. और वो ये भी जानते थे कि ठाकुर साहब अपनी पत्नी राधा देवी से कितनी मोहब्बत करते हैं. इसलिए ठाकुर साहब के दुख का उन्हे जितना एहसास था शायद किसी और को न था. दीवान जी ठाकुर साहब की बातो से चुप हो गये. उनके पास कहने के लिए शब्द ही नही थे, बस सहानुभूति भरी नज़रों से उन्हे देखते रहे.
"दीवान जी...आपने बंबई के किसी काबिल डॉक्टर के बारे में बताया था उसका क्या हुआ? वो कब तक आएगा?" उन्होने अपने घाव की परवाह ना करते हुए दीवान जी से पूछा.
"आज ही उसका संदेश आया था. वो थोड़े दिनो में आ जाएगा." दीवान जी ने उन्हे आश्वासन दिया.
"पता नही इस डॉक्टर से भी कुच्छ हो पाएगा या नही. जो भी आता है सब पैसे खाने के लिए आते हैं. आजकल डॉक्टरी पेशे में भी ईमानदारी नही रही." ठाकुर साहब मायूसी में बोले.
"इसके तो काफ़ी चर्चे सुने हैं मैने. लोग कहते हैं इसने बहुत कम उमर में बहुत ज्ञान हासिल किया है. अनेको जटिल केस सुलझाए है. मालकिन जैसी कयि मरीजों को ठीक कर चुका है. मेरा दिल कहता है मालिक, अबकी मालकिन अच्छी हो जाएँगी. आप उपरवाले पर भरोसा रखें."
दीवान जी की बातों से ठाकुर साहब ने एक लंबी साँस छ्चोड़ी फिर बोले - "अब तो किसी चीज़ पर भरोसा नही रहा दीवान जी. अब तो ऐसा लगने लगा है हमारी राधा कभी ठीक नही होगी. हम जीवन भर ऐसे ही तड़प्ते रहेंगे. अब तो जीने की भी आश् नही रही....पता नही मेरे मरने के बाद राधा का क्या होगा?"
"बिस्वास से बड़ी कोई चीज़ नही मालिक. आप बिस्वास रखें मालकिन एक दिन ज़रूर ठीक होंगी. और मरने की बात तो सोचिए ही नही....आप यह क्यों भूल जाते हैं आपकी एक बेटी भी है."
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