RE: Desi Porn Kahani काँच की हवेली
3रायपुर के रेलवे स्टेशन पर निक्की पिच्छले 20 मिनिट से खड़ी थी. उसका गुस्से से बुरा हाल था. दीवान जी ने ड्राइवर को निक्की को लेने भेजा था पर उसका कोई पता नही था. निक्की गुस्से से भरी प्लॅटफॉर्म पर चहल कदमी कर रही थी.
इस वक़्त निक्की पिंक कलर की फ्रॉक पहने हुए थी. उसकी आँखों में धूप का चस्मा चढ़ा हुआ था और सर पर सन हॅट्स था. फ्रॉक इतनी छोटी थी कि आधी जंघे नुमाया हो रही थी. प्लॅटफॉर्म पर आते जाते लोग ललचाई नज़रों से उसकी खूबसूरत जाँघो और उभरी हुई छाती को घूरते जा रहे थे. अचानक ही किसी बाइक के आक्सेलेटर की तेज आवाज़ उसके कानो से टकराई. आवाज़ इतनी तेज थी कि निक्की का गुस्सा सातवे आसमान पर पहुँच गया. निक्की की दृष्टि घूमी. सामने ही एक खूबसूरत नौजवान अपनी बाइक पर बैठा बाइक के कान मरोड़ने में व्यस्त था. वो जब तक आक्स्लेटर लेता बाइक स्टार्ट रहती आक्स्लेटर छोड़ते ही बाइक भूय भूय करके बंद हो जाती. वो फिर से किक मारता...आक्स्लेटर लेता और बाइक स्टार्ट करने में लग जाता. वह पसीने से तर बतर हो चुका था. निक्क 5 मिनिट तक उसकी भानी भानी सुनती रही. अंत में उसका सब्र जवाब दे गया. वा गुस्से से उसकी ओर देखकर बोली - "आए मिसटर, अपनी इस खटारा को बंद करो या कहीं दूर ले जाकर स्टार्ट करो. इसकी बेसुरी आवाज़ से मेरे कान के पर्दे फट रहे हैं."
वह युवक बाइक ना स्टार्ट होने से वैसे ही परेशान था उसपर ऐसी झिड़की, उसकी बाइक का ऐसा अपमान...वह सह ना सका. गुस्से में पलटा पर जैसे ही उसकी नज़र निक्की पर पड़ी वह चौंक पड़ा. अपने सामने एक खूबसूरत हसीना को देखकर उसका गुस्सा क्षण भर के लिए गायब हुआ. फिर बोला - "आप मेरी बाइक को खटारा कह रही हैं? आपको अंदाज़ा नही है मैं इस बाइक पर बैठ कितनी रेस जीत चुका हूँ."
"रेस...? और वो भी इस बाइक से? ये चलती भी है, मुझे तो इसके स्टार्ट होने पर भी संदेह हो रहा है." वह व्यंग से मुस्कुराइ.
युवक को तेज गुस्सा आया पर मन मसोस कर रह गया. उसने बाइक को अज़ीब नज़रों से घूरा फिर एक ज़ोर दार किक मारा. इस बार भी बाइक स्टार्ट नही हुई. वह बार बार प्रयास करता रहा और आक्स्लेटर की आवाज़ से निक्की को परेशान करता रहा. कुच्छ ही देर में निक्की का ड्राइवर जीप लेकर पहुँचा. ड्राइवर जीप से उतर कर निक्की के पास आया.
"इतनी देर क्यों हुई आने में?" निक्की ड्राइवर को देखते ही बरसी.
"ग़लती हो गयी छोटी मालकिन...वो क्या है कि.....असल....में..." ड्राइवर हकलाया.
"शट अप." निक्की गुस्से में चीखी.
ड्राइवर सहम गया. उसकी नज़रें ज़मीन चाटने लगी.
"सामान उठाने के लिए कोई दूसरा आएगा? " निक्की उसे खड़ा देख फिर से भड़की. ड्राइवर तेज़ी से हरकत में आया और सामान उठाकर जीप में रखने लगा.
निक्की की नज़रें उस बाइक वाले युवक की ओर घूमी. वो इधर ही देख रहा था. उसे अपनी ओर देखते पाकर निक्की एक बार फिर व्यंग से मुस्कुराइ और अपनी जीप की ओर बढ़ गयी. अचानक ही वो हुआ जिसकी कल्पना निक्की ने नही की थी. उसकी बाइक स्टार्ट हो गयी. निक्की ने उस युवक को देखा. अब मुस्कुराने की बारी उस युवक की थी. वह बाइक पर बैठा और निक्की को देखते हुए एक अदा से सर को झटका दिया और सीटी बजाता हुआ बाइक को भगाता चला गया. निक्की जल-भुन कर रह गयी.
ड्राइवर सामान रख चुका था. निक्की लपक कर स्टियरिंग वाली सीट पर आई. चाभी को घुमाया गियर बदली और फुल स्पीड से जीप को छोड़ दिया.
"छोटी मालकिन....!" ड्राइवर चीखते हुए जीप के पिछे दौड़ा.
निक्की तेज़ी से पहाड़ी रास्तों पर जीप भगाती चली जा रही थी. कुच्छ ही दूर आगे उसे वही बाइक वाला युवक दिखाई दिया. उसने जीप की रफ़्तार बढ़ाई और कुच्छ ही पल में उसके बराबर पहुँच गयी. फिर उसकी ओर देखती हुई बोली - "हेलो मिस्टर ख़तरा"
युवक ने निक्की की ओर देखा, अभी वह कुच्छ कहने की सोच ही रहा था कि निक्की एक झटके में फ़र्राटे की गति से जीप को ले भागी. युवक गुस्से में निक्की को देखता ही रह गया. उसकी आँखें सुलग उठी उसने आक्स्लेटर पर हाथ जमाया और बाइक को फुल स्पीड पर छोड़ दिया. अभी वह कुच्छ ही दूर चला था कि सड़क पर कुच्छ लड़किया पार करती दिखाई दी. उसने जल्दी से ब्रेक मारा. उसकी रफ़्तार बहुत अधिक थी , बाइक फिसला और सीधे एक पत्थेर से जा टकराया. युवक उच्छल कर दूर जा गिरा. बाइक से बँधा उसका सूटकेस खुल गया और सारे कपड़े सड़क पर इधर उधर बिखर गये. वह लंगड़ाता हुआ उठा. तभी उसके कानो से किसी लड़की के हँसने की आवाज़ टकराई. उसने पलट कर देखा. एक ग्रामीण बाला सलवार कुर्ता पहने खिलखिलाकर हंस रही थी. उसके पिछे उसकी सहेलियाँ भी खड़ी खड़ी मुस्कुरा रही थी. उन सभी लड़कियों के हाथ में पुस्तकें थी जिस से युवक को समझते देर नही लगी कि ये लड़कियाँ पास के गाओं की रहने वाली हैं और इस वक़्त कॉलेज से लौट रही हैं.
"ये देखो, काठ का उल्लू" आगे वाली लड़की हँसते हुए सहेलियों से बोली.
युवक की नज़र उसपर ठहर गयी. वो बला की खूबसूरत थी. गर्मी की वजह से उसके चेहरे पर पसीना छलक आया था. पसीने से तर उसका गोरा मुखड़ा सुर्य की रोशनी में ऐसे चमक रहा था जैसे पूर्णिमा की रात में चाँद. उसका दुपट्टा उसके गले से लिपटकर पिछे पीठ की ओर झूल रहा था. सामने उसकी भरी हुई चूचियाँ किसी पर्वत शिखर की तरह तनी हुई उसे घूरा रही थी. पेट समतल था, कमर पतली थी लेकिन कूल्हे चौड़े और भारी गोलाकार लिए हुए थे. उसका नशीला गठिला बदन कपड़ों में छुपाये नही छुप रहा था. युवक कुच्छ पल के लिए उसकी सुंदरता में खो सा गया. वह ये भी भूल गया कि इस लड़की ने कुच्छ देर पहले उसे काठ का उल्ला कहा था. उसे ये भी ध्यान नही था कि उसकी बाइक सड़क पर गिरी पड़ी है और उसके कपड़े हवाओं के ज़ोर से सड़क पर इधर उधर घिसट रहे थे.
लेकिन लड़कियों को उसकी दशा का अनुमान था. उसकी हालत पर एक बार फिर लड़कियाँ खिलखिला कर हंस पड़ी. उसकी चेतना लौटी. उसने अपनी भौंहे चढ़ाई और उस लड़की को घूरा जिसने उसे काठ का उल्लू कहा था. "क्या कहा तुमने? ज़रा फिर से कहना."
"काठ का उल्लू." वह लड़की पुनः बोली और फिर हंस पड़ी.
"मैं तुम्हे काठ का उल्लू नज़र आता हूँ" युवक ने बिफर्कर बोला.
"और नही तो क्या....अपनी सूरत देखो पक्के काठ के उल्लू लगते हो." उसके साथ उसकी सहेलियाँ भी खिलखिलाकर हँसने लगी.
युवक अपमान से भर उठा, उसने कुच्छ कहने के लिए मूह खोला पर होठ चबाकर रह गया. उसे अपनी दशा का ज्ञान हुआ, वह उन लड़कियों से उलझकर अपनी और फ़ज़ीहत नही करवाना चाह रहा था. वह मुड़ा और अपने कपड़े समेटने लगा. लड़कियाँ हँसती हुई आगे बढ़ गयी.
*****
निक्की जैसे ही हवेली पहुँची ठाकुर साहब को बाहर ही इंतेज़ार करते पाया. उनके साथ में दीवान जी भी थे. वह जीप से उतरी तो दीवान जी लपक कर निक्की तक पहुँचे "आओ बेटा. मालिक कब से तुम्हारा इंतेज़ार कर रहे हैं."
निक्की ने ठाकुर साहब को हाथ जोड़कर प्रणाम किया और फिर ठाकुर साहब से जाकर लिपट गयी. ठाकुर साहब ने उसे अपनी छाती से चिपका लिया. बरसों से सुलगते उनके दिल को आज ठंडक मिली थी. बेटी को छाती से लगाकर वे इस वक़्त अपने सारे दुखों को भुला बैठे थे. वह निक्की का माथा चूमते हुए बोले - "निक्की, तुम्हारा सफ़र कैसा रहा? कोई तकलीफ़ तो नही हुई यहाँ तक आने में?"
"ओह्ह पापा, मैं क्या बच्ची हूँ जो कोई भी मुझे तकलीफ़ दे देगा?" निक्की नथुने फुलाकर बोली.
उसकी बात से ठाकुर साहब और दीवान जी की ठहाके छूट पड़े.
"निक्की बेटा, तुम्हारे साथ ड्राइवर नही आया वो कहाँ रह गया?" दीवान जी निक्की को अकेला देखकर बोले.
"मैं उसे वही छोड़ आई. उसने मुझे पूरे 20 मिनिट वेट कराया. अब उसे कुच्छ तो पनिशमेंट मिलना चाहिए कि नही?" निक्की की बात से दीवान जी खिलखिलाकर हंस पड़े वहीं ठाकुर साहब बेटी की शरारत पर झेंप से गये.
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