RE: Desi Porn Kahani काँच की हवेली
ठाकुर साहब निक्की को लेकर हवेली के अंदर दाखिल हुए. घर के सभी नौकर उसे देखने के लिए उसके आदेश पालन के लिए उसके दाएँ बाएँ आकर खड़े हो गये.
ठाकुर साहब निक्की के साथ हॉल में बैठे. दीवान जी भी पास ही बैठ गये.
"तुम्हे आज अपने पास पाकर हमे बहुत खुशी हो रही है बेटी." ठाकुर साहब भावुकता में बोले.
"मुझे भी आपसे मिलने की बड़ी इच्छा होती थी पापा. अब मैं आपको छोड़ कर कहीं नही जाउन्गि." निक्की उनके कंधे पर सर रखते हुए बोली.
"हां बेटी, अब तुम्हे कहीं जाने की ज़रूरत नही है. अब तुम हमेशा हमारे साथ रहोगी."
ठाकुर साहब की बात अभी पूरी ही हुई थी कि हवेली के दरवाज़े से किसी अजनबी का प्रवेश हुआ. उसके हाथ में एक सूटकेस था. बाल बिखरे हुए थे और चेहरे पर लंबे सफ़र की थकान झलक रही थी.
निक्की की नज़र जैसे ही उस युवक पर पड़ी वह चौंक उठी. ये वही युवक था जिससे वो रेलवे स्टेशन पर उलझी थी. दीवान जी उसे देखते ही उठ खड़े हुए. युवक ने भीतर आते ही हाथ जोड़कर नमस्ते किया.
"आइए आइए डॉक्टर बाबू. आप ही का इंतेज़ार हो रहा था." दीवान जी उस युवक से हाथ मिलाते हुए बोले. फिर ठाकुर साहब की तरफ पलटे - "मालिक, ये रवि बाबू है. मैने इन्ही के बारे में आपको बताया था. बहुत शफ़ा है इनके हाथो में."
ठाकुर साहब ने जैसे ही जाना की ये डॉक्टर हैं अपने स्थान से उठ खड़े हुए. फिर उससे हाथ मिलते हुए बोले - "आपको कोई तकलीफ़ तो नही हुई यहाँ पहुँचने में?"
"कुच्छ खास नही ठाकुर साहब....." वह निक्की पर सरसरी निगाह डालता हुआ बोला.
"आप थक गये होंगे. जाकर पहले आराम कीजिए. हम शाम में मिलेंगे." ठाकुर साहब रवि से बोले.
"जी शुक्रिया...!" रवि बोला.
"आइए मैं आपको आपके रूम तक लिए चलता हूँ." दीवान जी रवि से बोले.
रवि ठाकुर साहब को फिर से नमस्ते कहकर दीवान जी के साथ अपने रूम की ओर बढ़ गया. उसका कमरा उपर के फ्लोर पर था. सीढ़िया चढ़ते ही लेफ्ट की ओर एक गॅलरी थी. उस ओर चार कमरे बने हुए थे. रवि के ठहरने के लिए पहला वाला रूम दिया गया था.
रवि दीवान जी के साथ अपने रूम में दाखिल हुआ. रूम की सजावट और काँच की नक्काशी देखकर रवि दंग रह गया. यूँ तो उसने जब से हवेली के भीतर कदम रखा था खुद को स्वर्ग्लोक में पहुँचा महसूस कर रहा था. हवेली की सुंदरता ने उसका मन मोह लिया था.
"आपको कभी भी किसी चीज़ की ज़रूरत हो बेझिझक कह दीजिएगा." अचानक दीवान जी की बातों से वह चौंका. उसने सहमति में सर हिलाया. दीवान जी कुच्छ और औपचारिक बाते करने के बाद वहाँ से निकले.
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हॉल में अभी भी निक्की अपने पिता ठाकुर जगत सिंग के साथ बैठी बाते कर रही थी. नौकर दाएँ बाएँ खड़े चाव से निक्की की बाते सुन रहे थे. निक्की की बातों से ठाकुर साहब के होठों से बार बार ठहाके छूट रहे थे.
"बस....बस....बस निक्की बेटा, बाकी के किस्से बाद में सुनाना. अभी जाकर आराम करो. तुम लंबे सफ़र से आई हो थक गयी होगी." ठाकुर साहब निक्की से बोले.
"ओके पापा, लेकिन किसी को बस्ती में भेजकर कंचन को बुलावा भेज दीजिए. उससे मिलने की बहुत इच्छा हो रही है." निक्की बोली और अपने कमरे की तरफ बढ़ गयी. उसका कमरा सीढ़िया चढ़कर दाईं ओर की गॅलरी में था. वह रूम में पहुँची. निक्की वास्तव में बहुत थकान महसूस कर रही थी उसने एक बाथ लेना ज़रूरी समझा. निक्की बाथरूम में घुस गयी. उसने अपने कपड़े उतारे और खुद को शावर के नीचे छोड़ दिया. शवर से गिरता ठंडा पानी जब उसके बदन से टकराया तो उसकी सारी थकान दूर हो गयी. वो काफ़ी देर तक खुद को रगड़ रगड़ कर शवर का आनंद लेती रही. फिर वह बाहर निकली और कपड़े पहन कर कंचन का इंतेज़ार करने लगी. कंचन उसकी बचपन की सहेली थी. निक्की का कंचन के सिवा कोई दोस्त नही थी. वैसे तो निक्की बचपन से ही बहुत घमंडी और ज़िद्दी थी. पर झोपडे में रहने वाली कंचन उसे जान से प्यारी थी. दोनो के स्वाभाव में ज़मीन आसमान का अंतर था. लेकिन दोनो में एक चीज़ की समानता थी. दोनो ही मा की ममता से वंचित थी शायद यही इनकी गहरी दोस्ती का राज़ था. कंचन को हवेली में किसी भी क्षण आने जाने की आज़ादी थी. कोई उसे टोक ले तो निक्की प्युरे हवेली को सर पर उठा लेती थी. ठाकुर साहब भी भूले से कभी कंचन का दिल नही दुखाते थे. इतने बरस कंचन से दूर रहने के बाद भी निक्की उसे भूली नही थी. निक्की शहर से कंचन के लिए ढेरो कपड़े लाई थी, निक्की उन कपड़ों के पॅकेट को निकाल कर कंचन का इंतेज़ार करने लगी.
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रवि पिच्छले 30 मिनिट से अपने रूम में बैठा उस नौकर की प्रतीक्षा कर रहा था जिसे उसने अपने कपड़े इस्त्री करने के लिए दिए थे. सड़क के हादसे में उसके कपड़ों की इस्त्री खराब हो गयी थी. अभी तक वो उन्ही कपड़ों में था जो हवेली में घुसते वक़्त पहन रखा था. वो कुर्सी पर बैठा उल्लुओ की तरह दरवाज़े की तरफ टकटकी लगाए घुरे जा रहा था.
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"ठक्क....ठक्क...!" अचानक दरवाज़े पर किसी ने दस्तक दी. निक्की उठी और दरवाज़े तक पहुँची. दरवाज़ा खुलते ही सामने एक खूबसूरत सी लड़की सलवार कमीज़ पहने खड़ी खड़ी मुस्कुरा रही थी. उसे देखते ही हिक्की के आँखों में चमक उभरी. वो कंचन थी. निक्की ने उसका हाथ पकड़ा और रूम के भीतर खींच लिया. फिर कस्के उससे लिपट गयी. दोनो का आलिंगन इतना गहरा था कि दोनो की चुचियाँ आपस में दब गयी. निक्की इस वक़्त ब्लू जीन्स और ग्रीन टीशर्ट में थी. कंचन ने उसे देखा तो देखती ही रह गयी. - "निक्की तुम कितनी बदल गयी हो. इन कपड़ों में तो तुम बहुत खूबसूरत लग रही हो."
"मेरी जान...तू चिंता क्यों करती है. मैं तुम्हारे लिए भी ऐसे ही कयि ड्रेसस लाई हूँ. उन कपड़ों को पहनते ही तुम भी मेरी तरह हॉट लगने लगोगी." निक्की उसे पलंग पर बिठाती हुई बोली.
"मैं और ऐसे कपड़े? ना बाबा ना....! मैं ऐसे कपड़े नही पहन सकती." कंचन घबराकर बोली - "इन कपड़ों को पहन कर तो मैं पूरे गाओं में बदनाम हो जाउन्गि. और हो सके तो तू भी जब तक यहाँ है ऐसे कपड़े पहनना छोड़ दे."
"कोई कुच्छ नही बोलेगा, तू पहनकर तो देख. और तू मेरी चिंता छोड़...मैं तो अब हमेशा यहीं रहूंगी और ऐसे ही कपड़े पहनुँगी." निक्की चहकति हुई बोली.
"ना तो तू सदा यहाँ रह पाएगी और ना ही हमेशा ऐसे कपड़े पहन सकेगी." कंचन मुस्कुरा कर बोली - "मेरी बन्नो आख़िर तू एक लड़की है, एक दिन तुम्हे व्याह करके अपने साजन के घर जाना ही होगा. और तब तुम्हे उसके पसंद के कपड़े पहनने पड़ेंगे."
कंचन की बात सुनकर अचानक ही निक्की के आगे रवि का चेहरा घूम गया. वह बोली - "तुम्हे पता है आज रास्ते में आते समय एक दिलचस्प हादसा हो गया.?"
"हादसा? कैसा हादसा?" कंचन के मूह से घबराहट भरे स्वर निकले.
"स्टेशन पर एक बेवकूफ़ मिल गया. उसके पास एक ख़टरा बाइक थी. उसने मुझे पूरे 20 मिनिट अपनी ख़टरा बाइक की आवाज़ से परेशान किया." वह मुस्कुराइ.
"फिर...?" कंचन उत्सुकता से बोली.
"फिर क्या...! मैने भी उसे उसकी औकात बता दी. और अब वो बेवकूफ़ हमारे घर का मेहमान बना बैठा है. पापा कहते हैं वो डॉक्टर है. लेकिन मुझे तो वो पहले दर्जे का अनाड़ी लगता है." निक्की मूह टेढ़ा करके बोली.
"अभी कहाँ है?." कंचन ने पूछा.
"होगा अपने कमरे में. चलो उसे मज़ा चखाते हैं. वो अपने आप को बड़ा होशियार समझता है." निक्की उसका हाथ पकड़ कर खींचती हुई बोली.
"नही....नही...निक्की, ठाकुर चाचा बुरा मान जाएँगे." कंचन अपना हाथ छुड़ाती हुई बोली. लेकिन निक्की उसे खींचती हुई दरवाज़े से बाहर ले आई.
गॅलरी में आते ही उन्हे मंगलू घर का नौकर सीढ़ियाँ चढ़ता दिखाई दिया. उसके हाथ में रवि के वो कपड़े थे जो उसने इस्त्री करने को दिए थे. वह सीढ़ियाँ चढ़कर बाईं और मूड गया. उसके कदम रवि के कमरे की तरफ थे.
"आए सुनो...!" निक्की ने उसे पुकारा.
नौकर रुका और पलटकर निक्की के करीब आया. "जी छोटी मालकिन?"
"ये कपड़े किसके हैं?"
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