RE: Desi Porn Kahani काँच की हवेली
राधा की आँखें सिकुड़ी. उन्होने आश्चर्य और भय के मिले जुले भाव से रवि को देखा. फिर उनके हाथ भी नमस्ते करने के अंदाज़ में जुड़ गये - "नमस्ते" वह सहमी सी बोली. उनकी आवाज़ में कंपन था - "कौन हैं आप? क्या आप मुझे जानते हैं?"
"हां." वा शांत स्वर में बोला - "मेरा नाम डॉक्टर. रवि भटनागर है. मुझे आपकी बेटी निक्की ने यहाँ भेजा है. आपसे अपनी शादी की बात करने के लिए."
"निक्की....कौन निक्की?" वह चौंकी. फिर अपनी गुड़िया को देखते हुए बोली - "मेरी बेटी का नाम निक्की नही....रानी है. और ये तो अभी बहुत छ्होटी है."
रवि धीरे से मुस्कुराया और दो कदम आगे बढ़ा. - "आपके हाथ में निक्की की गुड़िया है. निक्की तो बाहर खड़ी है. और वो बहुत बड़ी हो गयी है."
राधा देवी ने गर्दन उठाकर दरवाज़े से बाहर देखा. वहाँ कोई नज़र नही आया. उनकी दृष्टि रवि की ओर घूमी. रवि उनके चेहरे पर बदलते भाव को तेज़ी से पढ़ रहा था. उनकी आँखों में अब डर की जगह आश्चर्य और परेशानी ने ले ली थी. - "क्या आप निक्की से मिलना चाहेंगी?"
राधा देवी ने धीरे से हां में सर हिलाया. रवि मुस्कुराया और निक्की को आवाज़ दिया. - "निक्की....अंदर आ जाओ."
राधा देवी की नज़रें दरवाज़े की तरफ ठहर गयी. तभी निक्की दरवाज़े में नज़र आई. वो धीरे धीरे चलती हुई रवि के पास आकर खड़ी हो गयी. उसने बोझिल नज़रों से अपनी मा को देखा. दिल में एक हुक सी उठी, मन किया आगे बढ़कर वो उनसे लिपट जाए. लेकिन वो रवि के आदेश के बिना कुच्छ भी ऐसा वैसा नही करना चाहती थी जिससे कि बना बनाया काम बिगड़ जाए.
राधा भी बहुत ध्यान से निक्की को देख रही थी, उसके माथे पर सिलवटें पड़ गयी थी. वो निक्की को पहचानने की कोशिश कर रही थी. - "मुझे कुच्छ भी याद नही आ रहा है. मैने तुम्हे पहले कभी नही देखा. क्या तुम सच में मेरी बेटी निक्की हो?"
"मा !" निक्की की रुलाई फुट पड़ी. ममता की प्यासी निक्की खुद को रोक ना सकी वह आगे बढ़ी और राधा से लिपट गयी.
"अरे क्या हुआ इसे? ये क्यों रो रही है?" राधा घबराते हुए बोली.
"बहुत दिनो तक आपसे दूर रही थी ना, आज मिली है तो बहुत भावुक हो गयी है." रवि राधा देवी से बोला.
राधा निक्की को दिलासा देने लगी. वह अपने कमज़ोर हाथों को उसके पीठ पर फेरने लगी. दूसरे हाथ से निक्की के गालों में बहते आँसू पोच्छने लगी. - "मत रो बेटी, लेकिन तू मुझसे इतने दिन तक दूर क्यों रही. अगर मेरी इतनी ही याद आती थी तो पहले ही मिलने क्यों नही आई?"
"मैं शहर में पढ़ाई कर रही थी मा. इसलिए आपसे मिलने नही आ सकी." निक्की खुद को संयत करते हुए बोली.
"क्या तुम दोनो साथ ही में पढ़ते हो?" राधा निक्की का चेहरा उठाकर बोली.
"पढ़ते थे." रवि बोला - "अब हमारी पढ़ाई पूरी हो चुकी है. अब हम आपका आशीर्वाद लेकर शादी करना चाहते हैं. क्या आप निक्की का हाथ मेरे हाथ में देंगी?"
"हां...हां क्यों नही, आख़िर तुम दोनो एक दूसरे से प्यार करते हो. मैं तो तुम्हारे जैसा ही दूल्हा अपनी बेटी के लिए चाहती थी. लेकिन बेटा शादी की बात करने के लिए तुम्हारे घर से कोई बड़ा नही आया. क्या तुम्हारे घर में कोई नही है?" राधा देवी ने रवि से पुछा. वो अब पूरी तरह से नॉर्मल होकर बात कर रही थी. निक्की अभी भी उनसे चिपकी हुई थी.
रवि आगे बढ़ा. और राधा से बोला - "मेरी मा है मा जी, लेकिन उनकी तबीयत कुच्छ ठीक नही थी इसीलिए वो नही आ सकी. कुच्छ ही दिनो में मा भी आ जाएँगी."
"ठीक है कुच्छ दिन इंतेज़ार कर लूँगी. मैं भी जल्दी से निक्की का विवाह करके छुट्टी पाना चाहती हूँ."
"तो अब हमें इज़ाज़त दीजिए." रवि बोला - "हम फिर आपसे मिलने आएँगे. आप आराम कीजिए. हम लोग दूसरे कमरे में हैं. आपको कभी भी हमारी ज़रूरत हो बुला लीजिएगा."
"हां...हां जाओ आराम करो. तुम लोग भी दूर शहर से आए हो थक गये होगे." राधा बोली और निक्की के सर पर हाथ फेरने लगी.
रवि उन्हे फिर से नमस्ते बोलकर निक्की के साथ बाहर आ गया.
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