RE: Desi Porn Kahani काँच की हवेली
कंचन की हालत पतली थी. ऐसी हालत में अपने सामने किसी अजनबी मर्द को पाकर उसका दिल धाड़ धाड़ बज रहा था. सीना तेज़ी से उपर नीचे हो रहा था. उसे अपने बदन पर रवि के चुभती नज़रों का एहसास हुआ तो उसने अपने हाथों को कैंची का आकर देकर अपनी छाती को ढकने का प्रयास करने लगी. वो लाज की गठरी बनी सहमी से खड़ी रही. फिर साहस करके बोली - "आप यहाँ इस वक़्त....आपको इस तरह किसी लड़की को घूरते लज्जा नही आती?"
उत्तर में रवि मुस्कुराया. फिर व्यंग भरे शब्दों में बोला - "ये तो वही बात हो गयी. कृष्ण करे तो लीला. हम करे तो रासलीला."
"मैं समझी नही." कंचन रूखे स्वर में बोली.
रवि ने अपने हाथ आगे किए और उसके कपड़े दिखाए. कंचन रवि के हाथो में अपने कपड़े देखकर पहले तो चौंकी फिर आँखें चढ़ाकर बोली -"ओह्ह...तो आपने मेरे कपड़े चुराए थे. मुझे नही पता था आप शहरी लोग लड़कियों के कपड़े चुराने के भी आदि होते हैं. लेकिन ये बड़ी नीचता का काम है. लाइए मेरे कपड़े मुझे दीजिए."
रवि व्यंग से मुस्कुराया. -"मुझे भी नही पता था कि गाओं के सीधे साधे से दिखने वाले लोग, अपने घर आए मेहमान का स्वागत उसके कपड़े जलाकर करते हैं. क्या ये नीचता नही है."सहसा उसकी आवाज़ में कठोरता उभरी - "अब क्यों ना मैं अपने उस अपमान का बदला तुमसे लूँ. क्यों ना तुम्हारे बदन से ये आख़िरी कपड़ा भी नोच डालूं."
कंचन सकपकाई. उसकी आँखों से मारे डर के आँसू बह निकले. वो सहमी सी आवाज़ में बोली - "मैने आपके कपड़े नही जलाए थे साहेब. वो तो...वो तो...." कंचन कहते कहते रुकी. वह खुद तो लज्जित हो चुकी थी अब निक्की को शर्मसार करना ठीक नही समझा.
"वो तो क्या? कह दो कि वो काम किसी और ने किए थे. जो लड़की मेरे रूम में मेरे जले हुए कपड़े रख के गयी थी वो तुम नही कोई और थी."
"साहेब....मैं सच कहती हूँ, मैने आपके कपड़े नही जलाए."
"तुम्हारा कोई भी झूठ तुम्हारे किए पर परदा नही डाल सकता. तुम्हारे इस गोरे शरीर के अंदर का जो काला दिल है उसे मैं देख चुका हूँ."
कंचन रुआन्सि हो उठी, रवि के ताने उसके दिल को भेदते जा रहे थे. उसने सहायता हेतु चारो तरफ नज़र दौड़ाई पर उसे ऐसा कोई भी दिखाई नही दिया. जिससे वो मदद माँग सके. उसने उस पल निक्की को जी भर कोसा. काश कि वो उसकी बातों में ना आई होती. उसने एक बार फिर रवि के तरफ गर्दन उठाई और बोली - "साहेब, मेरे कपड़े दे दो. मेरे घर में सब परेशान होंगे." उसकी आवाज़ में करुणा थी और आँखें आँसुओं से डबडबा गयी थी. वो अब बस रोने ही वाली थी.
क्रमशः....................................
|