RE: Desi Porn Kahani काँच की हवेली
अपडेट 9
रवि ने उसके चेहरे को ध्यान से देखा. उसका चेहरा शर्म और भय से पीला पड़ गया था. उसकी खूबसूरत आँखों में आँसू की मोटी मोटी बूंदे चमक उठी थी. उसके होंठ कांप कंपा रहे थे. वो लाचारी से अपने सूखे होठों पर जीभ फ़ीरा रही थी. उसे उसकी हालत पर दया आ गयी. उसने अपने हाथ में पकड़ा कपड़ा उसकी ओर फेंका और बोला - "ये लो अपने कपड़े, पहनो और घर जाओ. मैं उन लोगों में से नही हूँ जो किसी की विवशता का फ़ायदा उठाने में अपनी शान समझते हों. लेकिन घर जाने के बाद अगर फ़ुर्सत मिले तो अपने मन के अंदर झाँकना और सोचना कि मैने तुम्हारे साथ जो किया वो क्यों किया. अब तो शायद तुम्हे ये समझ में आ गया होगा कि किसी के मन को ठेस पहुँचाने से सामने वाले के दिल पर क्या गुजरती है." रवि जाने के लिए मुड़ा, फिर रुका और पलटकर कंचन से बोला -"एक बात और.....अगर तुम किसी के दिल में अपने लिए प्यार ना भर सको तो कोशिश करना कि कोई तुमसे नफ़रत भी ना करे." ये कहकर रवि मुड़ा और अपनी बाइक की तरफ बढ़ गया.
कंचन उसे जाते हुए देखती रही. उसकी आँखों में अभी भी आँसू भरे हुए थे. उसके कानो में रवि के कहे अंतिम शब्द गूँज रहे थे.
"मुझे माफ़ कर दो साहेब." वह बड़बड़ाई - "मैं जानती हूँ मेरी वजह से आपका दिल टूटा है, भूलवश मैने आपके स्वाभिमान को ठेस पहुँचाई है. पर मुझसे नफ़रत मत करना साहेब....मैं बुरी लड़की नही हूँ....मैं बुरी लड़की नही हूँ साहेब."
कंचन भारी कदमो से झाड़ियों की ओर बढ़ी और अपने कपड़े पहनने लगी. कपड़े पहन लेने के बाद वो अपने घर के रास्ते चल पड़ी. पूरे रास्ते वो रवि के बारे में सोचती रही. कुच्छ देर बाद वो अपने घर पहुँची. कंचन ने जैसे ही अपने घर के आँगन में कदम रखा बुआ ने पुछा - "कंचन इतनी देर कैसे हो गयी आने में? कितनी बार तुझे समझाया. सांझ ढले बाहर मत रहा करो. तुम्हे अपनी कोई फिक़र रहती है कि नही?"
कंचन ने बुआ पर द्रष्टी डाली, बुआ इस वक़्त आँगन के चूल्हे में रोटियाँ बना रही थी. चूल्हे से थोड़ी दूर चारपाई पर उसका बाप सुगना बैठा हुआ था. कंचन उसे बाबा कहती थी. - "आज देर हो गयी बुआ, आगे से नही होगी." कंचन बुआ से बोली और अपने कमरे की ओर बढ़ गयी. उसके मिट्टी और खप्रेल के घर में केवल दो कमरे थे. एक कमरे में कंचन सोती थी, दूसरे में उसकी बुआ शांता, सुगना की चारपाई बरामदे में लगती थी. चिंटू के लिए अलग से चारपाई नही बिछती थी. उसकी मर्ज़ी जिसके साथ होती उसके साथ सो जाता. पर ज़्यादातर वो कंचन के साथ ही सोता था. कंचन अपने रूम के अंदर पहुँची. अंदर चिंटू पढ़ाई कर रहा था. कंचन को देखते ही वह घबराया. और किताब समेटकर बाहर जाने लगा.
"कहाँ जा रहा है?" कंचन ने उसे टोका.
"क....कहीं नही, बाहर मा....मामा के पास." वह हकलाया.
"मा के पास या मामा के पास?" कंचन ने घूरा - "और तू इतना हकला क्यों रहा है?"
चिंटू सकपकाया. उसके माथे पर पसीना छलक आया. चेहरा डर से पीला पड़ गया, उसने बोलने के लिए मूह खोला पर आवाज़ बाहर ना निकली.
कंचन के माथे पर बाल पड़ गये. वा उसे ध्यान से देखने लगी. "कुच्छ तो बात है?" कंचन मन में बोली - "इसकी घबराहट अकारण नही है."
चिंटू कंचन को ख्यालो में डूबा देख दबे कदमो से वहाँ से निकल लिया. कंचन सोचती रही. सहसा उसकी आँखें चमकी. जब वो नदी में स्नान कर रही थी तब उसने चिंटू की आवाज़ सुनी थी. पर देख नही पाई थी. -"कहीं ऐसा तो नही इसी ने मेरे कपड़े चुराकर साहेब को दिए हों." वह बड़बड़ाई - "ऐसा ही हुआ होगा. वरना साहेब को क्या मालूम मेरे कपड़े कौन से हैं?"
बात उसके समझ में आ चुकी थी. कंचन दाँत पीसती कमरे से बाहर निकली. चिंटू उसके बाबा की गोद में बैठा बाते कर रहा था. कंचन को गुस्से में अपनी ओर आते देख उसके होश उड़ गये. पर इससे पहले कि वो कुच्छ कर पाता, कंचन उसके सर पर सवार थी. कंचन ने उसका हाथ पकड़ा और खींचते हुए कमरे के अंदर ले गयी. कमरे में पहुँचकर कंचन ने चिंटू को चारपाई पर बिठाया और अंदर से दरवाज़े की कुण्डी लगाने लगी. चिंटू ये देखकर भय से काँप उठा. उसे समझते देर नही लगी कि आज उसकी पिटाई निश्चिंत है. उसने उस पल को कोसा जब पैसे के लालच में आकर उसने शहरी बाबू की बात मानी थी.
कंचन दरवाज़े की कुण्डी लगाकर उसके पास आकर खड़ी हो गयी. -"क्यूँ रे...तू मुझसे भागता क्यों फिर रहा है?"
"दीदी, क्या तुम सच-मुच मुझे मरोगी?" चिंटू ने डरते डरते पुछा.
कंचन ने चिंटू के पीले चेहरे को देखा तो उसका सारा क्रोध गायब हो गया. वह मुस्कुराइ, फिर उसके साथ चारपाई में बैठकर उसके गालो को चूमकर बोली -" नही रे, मैं भला तुम्हे मार सकती हूँ, पर तूने ही मेरे कपड़े साहेब को दिए थे ना? सच सच बता, नही तो अबकी ज़रूर मारूँगी"
चिंटू मुस्कुराया. उसने कंचन को देखा और शरमाते हुए बोला - "हां !"
"क्यों दिए थे?" कंचन फिर से उसके गालो को चूमते हुए बोली.
"नही बताउन्गा, तुम मारोगी." चिंटू हंसा.
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