RE: Desi Porn Kahani काँच की हवेली
"नही बतायेगा तो मारूँगी," कंचन ने आँखें दिखाई - "बता ना क्यों दिए थे मेरे कपड़े?"
"उसने मुझे पैसे दिए और बोला क़ि वो जो कहेगा अगर मैं करूँगा तो वो मुझे और पैसे देगा." चिंटू ने कंचन को नदी का पूरा वृतांत सुना दिया.
"पैसे कहाँ है?" कंचन ने सब सुनने के बाद पुछा.
चिंटू ने अपने जेब से पैसे निकालकर कंचन को दिखाया फिर बोला -"दीदी मुझे लगा आप मुझे मरोगी. आज के बाद मैं फिर कभी ऐसा नही करूँगा...सच्ची.!"
कंचन मुस्कुराइ और उसे अपनी छाती से भींचती हुई मन में बोली - "तू नही जानता, तेरी वजह से आज मुझे क्या मिला है." अगले ही पल उसके मन में सवाल उभरा. "लेकिन ऐसा क्या मिला है मुझे जो मैं इतनी खुश हो रही हूँ? साहेब ने तो मुझसे कोई अच्छी बात भी नही की, उन्होने तो मेरा अपमान ही किया है. फिर क्यों मेरा मन मयूर बना हुआ है?"
"नही साहेब ने मेरा अपमान नही किया, उन्होने जो भी कहा मेरे भले के लिए कहा, वे तो अच्छे इंसान हैं, आज अगर वो चाहते तो मेरे साथ क्या नही कर सकते थे. लेकिन उन्होने कुच्छ नही किया. वे सच में अच्छे इंसान हैं."
"चलो मान लिया वे अच्छे इंसान हैं. लेकिन मैं क्यों उनके बारे में सोच रही हूँ. मुझे क्या अधिकार है उनके बारे में सोचने का. कहीं ऐसा तो नही कि मैं उनसे प्यार करने लगी हूँ."
"अगर मैं करती भी हूँ तो क्या बुरा है, प्यार करना कोई बुरा तो नही. प्यार तो एक ना एक दिन सभी को होता है, मुझे भी हो जाने दो."
कंचन का दिल धड़का. उसके सीने में मीठी मीठी कसक सी हुई. वह अपनी छाती को मसल्ने लगी. "ये क्या हो रहा है मुझे, मैं क्यों उनके बारे में इतना सोच रही हूँ. कुच्छ तो हुआ है मुझे, क्या सच में मुझे प्यार हो गया है?
कंचन के मन में प्रेम का अंकुर फुट चुका था. और उसकी वृधि बड़ी तेज़ी से हो रही थी. रवि से नदी में मुलाक़ात उसपर बहुत भारी पड़ी थी. उसे ना तो उगलते बन रहा था ना निगलते. वह पल प्रतिपल रवि के ख्यालो में डूबती जा रही थी. वो चाहकर भी उस विचार से पिछा नही छुड़ा पा रही थी.
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