RE: Desi Porn Kahani काँच की हवेली
अपडेट 10
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चिंटू अपनी दीदी को खोया देख सोच में पड़ गया. कंचन विचारों में थी, कभी उसके होठ मुस्कुरा उठते, तो कभी सख़्त हो जाते. नन्हे चिंटू की समझ में कुच्छ भी नही आ रहा था. - "क्या हुआ दीदी, तुम चुप क्यों हो गयी?"
चिंटू की बातों से कंचन जागी, उसने चिंटू को देखा जो हैरानी से उसकी ओर ताक रहा था. - "बोलो दीदी, तुम क्यों मुस्कुरा रही थी?" चिंटू ने फिर से पुछा.
"तुम्हे क्या बताऊ चिंटू? मुझे तो खुद नही पता मुझे क्या हुआ है? क्या होता जा रहा है? क्यों मुझे हर चीज़ अच्छी लगने लगी है. वही तुम हो वही ये घर है वही आँगन है, फिर क्यों मुझे हर चीज़ नयी नयी सी लग रही है? काश कोई मेरे इन सवालों का जवाब बता दे." कंचन खोई खोई सी बोली, उसकी आवाज़ कहीं दूर से आती प्रतीत हुई.
चिंटू ने पलके झपकाई. उसकी समझ में अब भी कुच्छ ना आया - "मैं जाके मामा को बताऊ?" वो कंचन की गोद से उठता हुआ बोला.
कंचन सकपकाई. उसने झट से चिंटू का हाथ खींचा और उसे लिए बिस्तर पर फैल गयी. उसे बाहों में भर कर उसके गालो पर ताबड़तोड़ चुंबन धरती चली गयी. -"दीदी छ्चोड़ो मुझे." चिंटू छूटने के लिए मचला, पर कंचन की गिरफ़्त मजबूत थी -"मेरा गाल गीला करोगी तो मैं फिर कभी तुम्हारे पास नही आउन्गा."
"तो किसके गाल गीला करूँ...बता?" कंचन उसे लगातार चूमती हुई बोली.
"जाके उस शहरी बाबू के गाल गीले करो, जिसने तुम्हारे कपड़े ले लिए थे." चिंटू फिर से मचला.
"पर दिए तो तूने ही थे." कंचन उसे गुदगुदाते हुए बोली.
कुच्छ देर चिंटू को लाल पीला करने के बाद कंचन ने उसे छोड़ा. चिंटू उसके हाथ से निकलते ही बाहर भागा. कंचन बिस्तर पर गिरकर रवि के बारे में सोचने लगी. रवि के कहे अंतिम शब्द फिर से उसके कानो में गूँज उठे -"अगर तुम किसी के दिल में अपने लिए प्यार ना भर सको तो कोशिश करना की कोई तुमसे नफ़रत भी ना करे."
"साहेब, मैं आपके दिल में अपने लिए प्यार भर कर रहूंगी." वह बड़बड़ाई. -"एक दिन आएगा साहेब, जब आप इसी कंचन को अपनी बाहों में भर कर झुमोगे. मुझे प्यार करोगे. मैं आपके दिल में अपने लिए इतना प्यार भर दूँगी कि सात जन्म तक आप उस प्यार को निकाल नही पाओगे." कंचन के होंठ मुस्कुराए. वह तकिये में सर छुपाकर सपनो की दुनिया में खोती चली गयी.
*****
इस वक़्त रात के 12 बजने को हैं. निक्की अपने बिस्तर पर लेटी हुई है. पर उसकी आँखों से नींद गायब है. उसके ख्यालो में भी रवि बसा हुआ है. आप लोग शायद ये सोच रहे होंगे कि वो भी कंचन ही की तरह रवि से प्यार करने लगी है. लेकिन ऐसा नही है, उसके विचारों का आधार कुच्छ और है, निक्की को तो प्यार मोहब्बत से नफ़रत है, वो प्यार व्यार को बेवकूफ़ लोगो का विचार भर समझती है. उसका मानना है कि प्यार में इंसान की अक़ल कम हो जाती है. प्यार सिर्फ़ तनाव देता है और कुच्छ नही. प्यार करने के बाद इंसान अपनी आज़ादी खो देता है. इंसान दूसरे का दास बनकर रह जाता है. निक्की के दिल में सिर्फ़ दो लोगों के लिए प्यार था. एक उसके पिता ठाकुर जगत सिंग, दूजा - कंचन उसकी सहेली. इनके अतिरिक्त उसने किसी को भी अपने दिल में उतरने नही दिया. हां मा के लिए उसका दिल अभी भी खाली है. उसके विचारों में रवि के आने का कारण था कि वो अपने उस जीवन को याद कर रही थी जो उसने शहर में बीताए थे. उसे वहाँ हर चीज़ की आज़ादी थी कोई रोकने वाला नही कोई टोकने वाला नही. चाहें किसी के साथ घुमो, देर रात तक बाहर रहो, दोस्तो के साथ कुच्छ भी करो, कोई बंदिश नही थी. लेकिन यहाँ ठीक उसके उलटा था. यहाँ निक्की को वो सब आज़ादी नही मिलने वाली थी. उसने कॉलेज में बहुत मज़े किए थे. अनगिनत लड़कों के साथ शारीरिक संबंध बनाए थे. वो उन लड़कियों में से थी जो कपड़े कम, बिस्तर ज़्यादा बदलती हैं. उसके लिए पुरुषो से दोस्ती केवल शारीरिक संतुष्टि होती थी और कुच्छ नही. वह अपने शहरी जीवन में सेक्स की इतनी आदि हो चुकी थी कि, वो किसी के साथ भी सेक्स करने से नही हिचकिचाती थी. लेकिन उसने कभी भी अपने उपर किसी को हावी नही होने दिया. उसने कभी दूसरी नशीली चीज़ों को हाथ नही लगाया. शराब सिग्गरेट की वो कभी आदि नही हुई.
उसे शहर से आए 4 दिन हो चुके थे. पिच्छले 6 दिनो से वो शारीरिक सुख से वंचित थी. यहाँ आने के तीसरे दिन तक तो उसका मन उस ओर नही गया. लेकिन अब वो उसकी कमी महसूस करने लगी थी. आज बिस्तर में लेटे लेटे उसे वो पल याद आ रहे थे जो उसने आनंद के झूले में बीताए थे. उन पॅलो को याद करके उसका शरीर तप उठा था. शरीर में वासना की लहर तैर रही थी. उसे इस वक़्त सिर्फ़ एक ही चेहरा दिखाई दे रहा था जो उसकी काम वासना को शांत कर सकता था. और वो था रवि. लेकिन वो एक दुविधा में भी थी, वैसे तो वह काई लोगों से सेक्स कर चुकी थी, पर रवि उसे कुच्छ अलग किस्म का इंसान लगा था. उसे भय था कि कहीं रवि उसके प्रस्ताव को ठुकरा ना दें. लेकिन लाख चाहने पर भी वो अपने अंदर उठती काम वासना को नही दबा पा रही थी. मन पर शरीर का भूख हावी होती जा रही थी. वह उठी और आईने के सामने खड़ी हो गयी. उसके बदन पर इस वक़्त बेहद पारदर्शी नाइटी थी. वह आईने में खुद को देखने लगी. - "क्या मेरा ये हुश्न रवि को पिघला सकेगा?" उसने अपने तने हुए बूब्स को देखा. वो सर उठाए किसी भी चुनौती के लिए तैयार खड़े थे. निक्की अपने दोनो हाथों को दोनो बूब्स के उपर रखकर धीरे से सहलाई. ठीक ऐसे जैसे उन्हे शाबाशी दे रही हो. हाथ का स्पर्श पाकर उसके बूब्स और भी कड़क हो उठे. निक्की मुस्कुराइ. साथ ही उसका दाहिना हाथ नीचे फिसला और सीधे कमर तक पहुँच गया. कमर से होते हुए उसका हाथ उसकी पैंटी तक पहुँचा. उसने उंगली को पैंटी के एलास्टिक पर फसाया फिर धीरे से पैंटी को नीचे खिसकाती चली गयी. पैंटी जाँघो तक पहुँच गयी तो उसने अपने हाथ हटा लिए. उसके बाद आईने में अपनी नग्न सुंदरता को देखने लगी. कुच्छ देर अपनी ही आँखों से अपनी क़यामत ढाती सुंदरता का रस्पान करने के बाद निक्की ने पैंटी उपर कर ली. फिर पलट कर बिस्तर तक आई. कुछ देर बिस्तर पर बैठ कर सोचती रही कि उसे रवि के पास जाना चाहिए या नही. अंत में उसने रवि के पास जाने का निश्चय किया. निक्की नेसिरहाने में रखी चादर उठाई और अपने बदन से लपेट ली. फिर उसने घड़ी पर नज़र डाली 12:30 होने को थे. वह धीरे से कमरे से बाहर निकली. गॅलरी में आकर उसने नज़र दौड़ाई. गॅलरी सुनसान थी. वो अपने कमरे का दरवाज़ा भिड़ाया और दबे कदमों से रवि के रूम की तरफ बढ़ गयी. उसे पूरी उम्मीद थी कि रवि इस वक़्त जाग रहा होगा. उसने अपने बढ़ते कदम रवि के कमरे के बाहर रोके. फिर धीरे से दरवाज़े पर दस्तक दी. कुच्छ देर बाद अंदर से रवि की आवाज़ आई - "कौन है?"
"मैं हूँ निक्की....दरवाज़ा खोलो." निक्की धीरे से बोली.
कुच्छ देर बाद रवि ने दरवाज़ा खोला और हैरानी से निक्की को देखा - "तुम...मेरा मतलब आप.... इस वक़्त?"
"अंदर आने के लिए नही कहेंगे." निक्की मुस्कुराते हुए बोली.
"आइए." रवि दरवाज़े से एक ओर हट-ते हुए बोला.
निक्की कमरे के अंदर दाखिल हुई और सोफे पर जाकर बैठ गयी. रवि उसके सामने जाकर खड़ा हो गया और सवालिया नज़रों से निक्की की ओर देखने लगा. उसने अपने दिमाग़ की सारी खिड़कियाँ खोल दी और ये सोचने में लगा कि आख़िर निक्की इतनी रात गये उसके कमरे में ऐसा रूप धर कर क्यों आई है?. लेकिन लाख दिमागी घोड़े दौड़ाने के बाद भी उसके समझ में कुच्छ ना आया उसने निक्की को देखा. निक्की उसे ही देख रही थी, रवि को अपनी ओर आश्चर्य से देखते पाकर निक्की मुस्कुराते हुए बोली - "दरवाज़ा बंद कर लीजिए."
"आप ने गर्मी की रात में चादर क्यों ओढ़ रखी हैं?" रवि निक्की की बात को अनसुना करते हुए उससे पुछा.
"असल में मैने अंदर पारदर्शी नाइटी पहन रखी है. और उन कपड़ों में मेरा आपके पास आना शायद आपको अच्छा नही लगता. इसलिए मैं ये चादर ओढकर रखी है." ये कहकर निक्की मुस्कुराइ और रवि को देखने लगी.
"ऐसी क्या बात थी कि आपको ऐसी हालत में इस वक़्त आना पड़ा?" रवि ने आश्चर्य से पुछा. उसका चेहरा शांत था. हालाँकि निक्की के मूह से ये सुनकर की उसने पारदर्शी कपड़े पहन रखे हैं, वह अचंभीत था. उसके अंदर का युवा दिल ज़ोरों से धड़का था. पर उसने निक्की के सामने अपने भाव प्रकट नही होने दिए.
"कुच्छ खास नही, बस मुझे नींद नही आ रही थी तो सोचा थोड़ी देर आपसे बाते कर लूँ." निक्की धीरे से मुस्कुराकर बोली -"मुझे पता था कि आप भी जाग रहे होंगे."
"मैं जाग रहा हूँ ये आप कैसे जानती थी?" रवी ने सवाल किया.
"मेरा इस घर में जन्म हुआ है, बचपन भी यहीं बीता है, सभी लोग मुझे जानते हैं, मैं सबको पहचानती हूँ, फिर भी मेरा मन यहाँ नही लग रहा है. खुद को अकेली सी महसूस करती हूँ. दिन तो कैसे भी कट जाता है, पर रात मुश्किल हो जाती है, पूरी रात जागते में गुजरती है." वह कुच्छ देर के लिए रुकी, फिर मुस्कुराते हुए बोली -"जब मेरी ऐसी हालत है तो फिर आप तो यहाँ पर अजनबी हैं. आपको भला कैसे नींद आ सकती है."
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