RE: Desi Porn Kahani काँच की हवेली
बिरजू ने जैसे ही मुखिया के घर के दरवाज़े के बाहर कदम रखा....उसे मुखिया धनपत राई आते दिखाई दिए. उनके साथ उनकी बेटी अनिता थी.
अनिता इसी साल 20 की हुई थी. तीखे नयन नक्श थे. लंबा कद और गठिला गोरा बदन था उसका. बाल काले और कमर तक झूलते हुए थे. वह अपने बालो में जुड़ा करने की आदि नही थी. हमेशा खुले रखती थी. उसके बूब्स पूरे उभार लिए हुए और ठोस थे. उन्हे देखकर कोई भी इंसान आहें भर सकता था. पेट समतल और कमर पतली थी. लेकिन उसके नितंब बेहद आकर्षक और उभरे हुए थे. वो हमेशा कुर्ता पाजामा ही पहनती थी. नितंबो के बीच की दरार इतनी गहरी थी कि अक्सर उसकी कुरती उन्ही दरारों में फसि रहती थी. कमर ऐसे बलखाती थी कि देखने वालों के मूह से अनायास ही गर्म आहें फुट पड़ती थी. कुल मिलकर ये कहा जाए कि उसमे जवानी छन्कर आई थी. बिरजू की भूखी निगाहें अक्सर उसकी जवानी को छुप छुप कर पिया करती थी. पर बिरजू के लिए अनिता वैसी ही थी जैसे अंडे देने वाली मुर्गी. वो जानता था कि अगर उसने इस मुर्गी को खाया तो आगे से उसे अंडे खाने के लाले पड़ जाएँगे. उसने ढेर सारे अंडे खाने के ग़र्ज़ से इस मुर्गी को बख़्श रखा था.
बिरजू पर नज़र पड़ते ही मुखियाँ के माथे पर बल पड़ गये. कुच्छ देर पहले बेटी के साथ होने से जो खुशी उनके चेहरे पर फैली हुई थी वो क्षण भर में गायब हो गयी. उन्होने घृणा से अपना मूह फेर लिया. पर बिरजू के लिए तो मुखिया का घृणा भी आशीर्वाद ही था. जैसे ही मुखिया जी पास आए उसने नमस्ते कहने के लिए हाथ जोड़ दिए. - "नमस्ते मुखिया जी." वो मक्कारी हँसी हंसा.
"तू....इधर क्या करने आया है?" मुखिया जी सब जानते हुए भी कि बिरजू क्यों आया है, अपनी बेटी की उपस्थिति का ध्यान कर गुस्से में भड़के.
उनका भड़कना दिखावा था. लेकिन उनका गुस्सा सच था. वो सच में बिरजू के साए से भी नफ़रत करते थे.
"सब कुच्छ जानते ही हैं मुखिया जी फिर भी पुच्छ रहे हैं." बिरजू ने अपने दाँत दिखाए - "बरसो से एक ही काम करने आता हूँ, और किस लिए आउन्गा." उसने अपनी बात पूरी करते हुए अनिता को उपर से नीचे तक घूरा.
अनिता ने बिरजू के इस तरह देखने पर ध्यान नही दिया. पर मुखिया जी से उसकी गंदी निगाहें छुपि ना रह सकी. अपने सामने अपनी बेटी को घूरते पाकर मुखिया जी की आँखों में बिरजू के लिए खून उतर आया. मन में आया अभी इसी वक़्त वो बिरजी की आँखें निकाल ले. पर वो केवल सोच सकते थे और सोचकर ही रह गये.
बिरजू मुखिया जी के गुस्से का अनुमान लगाकर एक धूर्त मुस्कान छोड़ता वहाँ से निकल गया.
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रवि इस वक़्त हवेली में अपने कमरे में बिस्तर पर पसरा हुआ था. उसके ज़हन में भोली कंचन का चेहरा घूम रहा था. आज घाटियों में कंचन से संयोगवश हुई मुलाक़ात....एक सुंदर हादसे में बदल चुकी थी. वो ना चाहते हुए भी कंचन के बारे में सोचता जा रहा था. लाख कोशिशों के बावज़ूद भी वो कंचन की भीगे आँखें और उतरा हुआ चेहरा नही भुला पा रहा था. वह सोच रहा था - क्यों ये लड़की आज उदास थी, और मुझे ऐसा क्यों लग रहा है कि उसके दुख का मैं ही ज़िम्मेदार हूँ, लेकिन मैने तो उसके साथ कुच्छ नही किया, क्या नदी वाली बात उसे इतनी बुरी लगी. अगर वो इतनी ही कोमल है तो मेरे कपड़े जलाए ही क्यों? पर ये भी तो हो सकता है कि उसने किसी के दबाव में आकर मेरे कपड़े जलाएँ हो. लेकिन किसके....?" उसके मंन ने सरगोशी की, तभी उसके ज़हन में एक और चेहरा उभरा - निक्की, शायद निक्की ने उसे ऐसा करने पर मजबूर किया हो या फिर निक्की ने ही उसके कपड़े जलाए हों और कंचन के हाथो मुझ तक भिजवाई हो. निसंदेह ऐसा ही हुआ होगा. बेचारी कंचन.....शायद ये भी नही जानती होगी कि जो कपड़े वो मेरे पास लेकर आ रही है वो जले हुए हैं. मैं कितना बड़ा मूर्ख हूँ.....बिना सच जाने एक उस भोली कंचन का दिल दुखा दिया. शायद यही कारण है कि वो उदास थी. ऊफ्फ ये मैने क्या किया. मैने उसके बारे में कितना ग़लत सोचता था. और अब वो ना जाने मेरे बारे में क्या सोचती होगी. कितनी नफ़रत करती होगी मुझसे. लेकिन आज जब वो झरने के पास मिली तब तो उसकी आँखों में मेरे लिए नफ़रत नही थी, बल्कि उसकी आँखें एक उम्मीद एक आस लिए हुए थी....जैसे वो मुझसे कुच्छ चाहती हो. लेकिन क्या? वो मुझसे क्या चाहती है? कहीं ऐसा तो नही की वो मुझसे प्यार करने लगी है, लेकिन नही वो मुझसे प्यार करेगी? मैने उसका इतना अनादर किया उसे नदी में अपमान करना चाहा......ऐसे में तो वो मुझसे नफ़रत कर सकती है... प्यार नही. वो इतनी मूर्ख नही कि अपने दिल को दुखाने वाले से दिल लगाए.
रवि काफ़ी देर तक कंचन के बारे में सोचता रहा और फिर सोचते सोचते नींद की गहराइयों में खो गया. इस दरम्यान कंचन आई भी और चली भी गयी. लेकिन वो ना जान सका कि वो पगली उसके प्यार में भटकती उसे ढूँढती फिर रही है.
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