RE: Desi Porn Kahani काँच की हवेली
कंचन बेतहासा भागती हुई उसी झरने के निकट पहुँची. उसने अपनी प्यासी निगाहें चारो तफ़ दौड़ाई. पर रवि कहीं भी दिखाई नही दिया. एक बार उसका मन चाहा कि वो "साहेब" कहकर ज़ोर ज़ोर से पुकारे, अगर रवि यही कहीं होगा तो ज़रूर उसकी आवाज़ सुनकर बाहर निकल आएगा. लेकिन अगले ही पल इस विचार से कि किसी और ने उसे इस तरह पुकारते देखा तो उसकी बड़ी बदनामी होगी उसके होठ सील गये. वो अपने प्रीतम का नाम पुकार ना सकी. वो इधर उधर घूमती उसे ढूँढती रही. जहाँ कहीं भी उसके होने की संभावना होती वहाँ ढूँढने लगती. ज़रा सी भी कहीं किसी पत्ते की सरसराहट होती या छिप्कलियो के चलने से कोई आवाज़ आती वो ऐसे खुशी से पलट-ती जैसे उसके साहेब उसके पिछे खड़े उसे देख रहे हों. काफ़ी देर तक भटकने के बाद भी जब रवि ना मिला तो वो वहीं एक पत्थेर पर बैठ गयी. इस वक़्त उसका मन रोने को कर रहा था, दिल चाह रहा था कि वो फुट फुट कर रोए. कैसी बुरी हालत हो गयी थी उसकी, जो लड़की हमेशा हँसती मुस्कुराती रहती थी, आज उसके होंठो से वो मुस्कुराहट गायब हो चुकी थी. वो अपने आप को कोस रही थी कि क्यों उसने ऐसे इंसान से दिल्लगी की जिसे उसकी तनिक भी परवाह नही. वो मन में बोली - "तू मूर्ख है कंचन, जो तू उस निर्दयी का इंतेज़ार कर रही है. भूल जा उसे और जो तू उसे ना भूली तो फिर जीवन भर तू ऐसे ही तड़पति रहेगी, आख़िर तू एक साधारण सी गाओं की लड़की है और वो शहर का पढ़ा लिखा बहुत बड़ा डॉक्टर है. तेरे जैसी लड़की के लिए उसके दिल में कोई स्थान हो भी तो कैसे. उसके लिए एक से एक पढ़ी लिखी शहरी लड़की पड़ी होगी, फिर वो तुमसे क्योन्कर प्यार करेगा. तू उसके लायक नही है कंचन, तू उतना ही बड़ा ख्वाब देख जो तेरी औकात है. धरती और आकाश का मिलन ना कभी हुआ है और ना होगा. उससे दिल लगाके तुझे दुख के सिवा कुच्छ ना मिलेगा. अब भी वक़्त है लौट जा अपने रास्ते."
"तो क्या सच में मुझे साहेब कभी नही मिलेंगे, क्या सच में मेरे सचे प्रेम का कोई महत्व नही, क्या सच में साहेब मुझे अपनी पत्नी स्वीकार नही करेंगे. क्या वास्तव में दौलत ही सब कुच्छ है, मैं जो इतना टूटकर उन्हे चाहती हूँ इसका कोई मोल नही है."
कंचन ये सोचते हुए फफक कर रो पड़ी. वह अपने चेहरे को अपने हथेलियों में ढके हुए सिसक पड़ी. उसका दिल इस एहसास से दुखी हो उठा था कि वो ग़रीब है, और इसी ग़रीबी की वजह से रवि उसे नही अपनाएगा. वो मूह छिपाए रोती रही. कुच्छ देर बाद जब उसकी रुलाई रुकी तो वो अपने मन में बोली - "ठीक है साहेब, मैं जा रही हूँ, आज के बाद मैं कभी आपकी राह नही देखूँगी, मैं कभी आपके लिए अपना दिल नही जलाउन्गि. मेरी आँखें अब कभी आपकी याद से नम नही होंगी. मैं अब कभी आपसे प्यार नही करूँगी."
कंचन अपने आँसू पोछती हुई उठी और घर जाने के लिए पलटी. तभी वो ऐसे चौंकी जैसे उसने दुनिया का सबसे बड़ा आश्चर्य देख लिया हो. उसकी आँखें हैरत से फैलती चली गयी. उसकी आँखें उसे जो कुच्छ दिखा रही थी उसपर उसे यकीन नही हो रहा था. उसके सामने रवि खड़ा था, और खड़े खड़े उसे एक टक्क देखे जा रहा था.
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