RE: Desi Porn Kahani काँच की हवेली
अपडेट 19
काफ़ी देर तक दोनो लता बेल की तरह एक दूसरे से लिपटे एक दूसरे के दिल की धड़कनो को सुनते रहे. कंचन तो जैसे इस वक़्त सारे संसार को भुला बैठी थी. उसे इस वक़्त जो सुख रवि की बाहों में होने से मिल रहा त्ता, वो उसने इससे पहले कभी महसूस नही किया था.
कुच्छ देर यूँही लिपटे रहने के बाद रवि ने धीरे से उसे पुकारा - "कंचन."
रवि ने बड़े प्यार से उसे पुकारा था. उसकी आवाज़ जब कंचन के कानो से टकराई तो उसने अपनी बंद पलकें खोली और रवि के चेहरे पर अपनी दृष्टि जमा दी. - "बोलो साहेब."
रवि ने उसके चेहरे को दोनो हाथों में भर लिया और गौर से देखने लगा. कंचन के गालों में बहे आँसू के गीले निशान अब भी मौजूद थे. उसने एक हाथ से उसके गालो में बहे आँसुओ को पोछा. फिर कंचन से बोला - "मुझे माफ़ कर दो. मैने तुम्हे अंजाने में बहुत कष्ट दिया है ना. मैं यहाँ काफ़ी देर से तुम्हारे पिछे खड़ा तुम्हारी बड़बड़ाहट और तुम्हारा रोना सुन रहा था. मुझे नही पता था कि तुम मुझसे इतना प्यार करती हो"
"सीसी....क्या?" "कंचन चौक्ते हुए बोली - "आप मेरे पिछे मेरी बाते सुन रहे थे. जाइए मैं आपसे बात नही करती." कंचन ने अपने मूह फूला लिया.
"ग़लती हो गयी, अब मुस्कुरा दो." रवि उसका चेरा अपनी ओर करके बोला.
कंचन उसकी बात पर धीरे से मुस्कुराइ.
"अब सदा ऐसे ही मुस्कुराती रहना. मैं अब इन आँखों में फिर से आँसू नही देखना चाहता." रवि मुस्कुराकर उसकी आँखों में झाँकते हुए बोला.
"साहेब मुझे कभी छोड़ के तो नही जाओगे ना." कंचन गंभीर होकर बोली - "आप नही जानते साहेब, मैं आपके लिए कितना तदपि हूँ. रात-रात भर जागी हूँ, आठो पहर रोती रही हूँ."
"आहह.....ये तुमने क्या कह दिया कंचन." रवि तड़प कर बोला - "मैं संगदिल नही हूँ कंचन. मैं तुम्हे छोड़ कर कहीं नही जाउन्गा. मुझे तुम्हारी ज़रूरत है. बरसो से मैं भी इस सच्चे प्यार की तलाश में भटक रहा था. आज तुम्हारे रूप में मिला है तो भला कैसे छोड़ सकता हूँ. तुमसे ज़्यादा प्यार करने वाली तुमसे अधिक सुंदर मुझे और कहाँ मिलेगी. मैं आज ही मा को ये खबर दे देता हूँ की मैने उनके लिए बहू पसंद कर लिया है. वो जल्दी से आकर अपनी बहू को देख ले. आपकी बहू दुल्हन बनने के लिए बहुत उतावली हो रही"
रवि की बातों में अचानक आई शरारत से कंचन शरमा गयी. वो शरमाते हुए अपना मूह घुमा कर बोली - "धत्त...! मैं क्यों उतावली होंगी. मैं तो जन्म-जन्मान्तर तक अपने साहेब का इंतेज़ार कर सकती हूँ."
"ये तुम मुझे साहेब कहकर क्यों बुलाती हो." रवि ने आश्चर्य से पुछा. - "तुम्हारे मूह से साहेब सुनकर ऐसा लगता है जैसे मैं कोई मोटा ख़ूसट बुढ्ढा धनवान हूँ और तुम मेरी दासी."
"दासी ही तो हूँ." कंचन मुस्कुराइ - "सदा आपके चर्नो में रहने वाली दासी."
"खबरदार....!" रवि गरजा. -"जो फिर कभी तुमने अपने आपको मेरा दासी कहा. तुम मेरी होने वाली बीवी हो, तुम्हारा स्थान मेरे चर्नो में नही मेरे दिल में है. समझी." रवि कंचन को अपनी छाती से लगाते हुए बोला.
कंचन भावुकता में उसकी छाती में सिमट सी गयी. फिर उसकी छाती से लगी हुई बोली - "मा जी मुझे स्वीकार करेगी ना. कहीं ऐसा तो नही कि वो मुझे ग़रीब जानकार हमारे रिश्ते को इनकार कर दें."
"हरगिज़ नही." रवि उसके कपोल चूमते हुए बोला - "मेरी मा मेरी सबसे अच्छी दोस्त हैं, मेरी पसंद ही उनकी पसंद होगी."
कुच्छ देर यूँही एक दूसरे से लिपटे दोनो बाते और वादे करते रहे. फिर कुच्छ देर बाद कंचन बोली -"अच्छा साहेब अब मुझे इज़ाज़त दो, घर में बुआ और बाबा मेरी राह देख रहे होंगे." कंचन गहराते अंधेरे को देखकर चिन्तीत होकर बोली.
वो आज सुबह से ही इधर उधर भागती रही थी. तब उसके मन में रवि बसा था. परंतु अब जबकि रवि ने उसे अपना लिया था. तो उसका ध्यान अपने घर वालों की ओर गया.
"ठीक है." रवि उसे अपने से अलग करते हुए बोला - "फिर कब मिलोगि."
"कल शाम को यहीं इसी जगह 5 बजे." कंचन मुस्कुरकर बोली और रवि से दुपट्टा लेकर अपने गले में डाल ली.
"अरे....मेरा दूसरा जूता कहाँ गया." रवि चौंकते हुए बोला. वो जब फिसला था तब उसके पावं से एक जूता निकल गया था. किंतु खाई से उठने के बाद दोनो एक दूसरे में ऐसे खो गये थे कि ना तो रवि को अपने जूते का ध्यान रहा और ना ही कंचन को सांझ ढलने का.
"यहीं कहीं होनी चाहिए." कंचन बोली और जूते की तलाश में इधर उधर नज़रें दौड़ने लगी.
सूर्यास्त हो चुका था पर अंधेरा इतना भी गहरा नही था की ज़मीन पर पड़ी कोई वस्तु दिखाई ना दे.
कंचन जूते को ढूँढती हुई खाई के करीब पहुँची. उसे रवि का जूता एक पत्थेर की औट में दिखाई दे गया. उसने रवि से नज़रें बचाकर फुर्ती से उस जूते को उठाकर अपने दुपट्टे में छुपा लिया. -"साहेब, अब आपका जूता नही मिलेगा. अब रहने दो ज़्यादा मत ढुंढ़ो. दूसरे जूते खरीद लेना. मैं घर जा रही हूँ मुझे देरी हो रही है."
"अरे....रूको, कुच्छ देर देख लेते हैं. शायद मिल जाए." रवि कंचन की ओर पलटकर बोला. सहसा वह चौंका उसे ऐसा लगा जैसे कंचन कुच्छ छुपाने की कोशिश कर रही है. - "तुम्हारे हाथों में क्या है? तुम क्या छूपा रही हो?"
रवि को अपनी ओर बढ़ते देख कंचन तेज़ी से उपर भागी. कुच्छ दूर जाकर रुकी फिर रवि को उसका जूता दिखाती हुई बोली - "साहेब, आपका जूता मेरे पास है. पर मैं नही दूँगी. अपने लिए दूसरे जूते खरीद लेना." ये कहकर कंचन हंसते हुए अपने घर के रास्ते भागती चली गयी.
"अरे.....रूको तो, मेरा जूता देती जाओ." रवि ने पिछे से आवाज़ दिया. पर कंचन नही रुकी. भागती हुई उसकी नज़रों से ओझल हो गयी.
"अज़ीब लड़की है." रवि बड़बड़ाया. -"उस दिन मेरे कपड़े जला दिए और आज मेरा जूता ले भागी. भला इसे मेरे कपड़ों और जूतों से क्या दुश्मनी हो सकती है." रवि अपना सर खुजाते हुए सोचा. पर जवाब में ढाक के तीन पात.
वो एक पावं से चलता हुआ किसी तरह अपनी बाइक तक पहुँचा और फिर बाइक स्टार्ट कर हवेली की तरफ बढ़ गया.
*****
रात के 8 बजे हैं, निक्की इस वक़्त अपने रूम में सोफे पर पसरी हुई है. मन बिल्कुल अशांत है. जब से वो शहर में रहने लगी थी तब से वो हमेशा दोस्तों के बीच रहने की आदि हो गयी थी. शोर शराबा हल्ला गुल्ला, पार्टी, म्यूज़िक, डॅन्स फिर दोस्तों के साथ रात भर मज़े चाहें वो लड़का हो या लड़की, उसे कोई फ़र्क नही पड़ता था कि उसके कपड़े उतारने वाली लड़की है या लड़का, या वो जिसके कपड़े उतार रही है, वो लड़का है या लड़की. वो बस मज़ा चाहती थी, उसके लिए वो कोई भी कीमत चुका सकती थी.
लेकिन आज वो अकेली बिल्कुल अकेली हो गयी है, ना वो लोग हैं ना वो हुल्लड़ ना वो पार्टियाँ ना रात भर के मज़े. वो उस परीन्दे की तरह हो गयी थी जो हमेशा आकाश में अपनी रफ़्तार से उड़ता रहता है, अपनी मर्ज़ी से मंजिले तय करता रहता है. लेकिन जब वो पिंजरे में क़ैद हो जाता है तो सिर्फ़ फड़फड़ाकर रह जाता है. निक्की क़ैदी तो नही थी पर उसकी फड़फड़ाहट पिंजरे में बंद पक्षी की तरह ही थी.जब तक कंचन उसके साथ होती वो सब कुच्छ भूल जाती, लेकिन उसके जाते ही वो फिर से अकेली हो जाती. ठाकुर साहब भी उसके साथ सिर्फ़ खाने में ही मिलते थे या फिर दिन के वक़्त हॉल में कुच्छ देर साथ बैठ लिए, कुच्छ बाते कर लिए फिर अपने कमरे में बंद हो जाते.
निक्की का इस माहौल में दम घुटनो लगा था. उसने रवि से इसीलिए नज़दीकियाँ बढ़ानी चाही थी, पर उसने उसका निरादर करके उसे और भी बुरी तरह से तोड़ दिया था. वो अपने उस अपमान का बदला लेना चाहती थी. और हमेशा इसी प्रयास में रहती थी कि कब रवि की कोई कमज़ोरी उसके हाथ लगे और वो अपना शिकंजा उसपर कसे, फिर अपनी मर्ज़ी से उसे नचाए. पर अभी तक उसे निराशा ही हाथ लगी थी.
अचानक वो उठी और कपड़े चेंज करने लगी, शरीर पर मौजूद कपड़े को तन से अलग कर उसकी जगह सलवार कुर्ता पहन कर वो हॉल में आई. उसने सरजू से ये कहकर कि वो बस्ती जा रही है, कुच्छ देर में लौटेगी. फिर बाहर निकल गयी.
बाहर निकल कर अपनी जीप में बैठी और जीप को बस्ती की ओर भगाती चली गयी. जीप की रोशनी से अंधेरे को चीरती हुई वो कुच्छ ही देर में बस्ती के आरंभ के छोर तक पहुँच गयी. अभी वो लेफ्ट टर्न लेकर गोलाई घूम ही रही थी कि उसे अपनी दाईं और एक साया दिखाई दिया. उसने तेज़ी से ब्रेक मारा.
"छर्र्ररर...." की आवाज़ के साथ जीप एक झटके में रुकी.
जीप को रुकते देख साया भी अपने स्थान पर खड़ा हो गया. निक्की उस साए को ध्यान से देखने लगी. अंधेरे में उस काले साए को वो पहचान तो नही पाई पर उसके कद काठी का वो अनुमान लगा चुकी थी.
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