RE: Desi Porn Kahani काँच की हवेली
"मुझे थोड़ा बुखार है जी." कल्लू शॉल को संभालते हुए बोला - "ईसलिए शॉल ओढ़े रखा हूँ."
"तो आओ मेरी जीप में बैठ जाओ, मैं भी कंचन के घर ही जा रही हूँ." निक्की बोली और उसे सीट पर बैठने का इशारा किया.
"मैं ऐसे ही चला जाउन्गा निक्की जी. आप कष्ट ना करो"
"अरे...जब मैं उधर ही जा रही हूँ तो मेरे साथ चलने में क्या परेशानी है." निक्की भड़की. उसे कोई इनकार करे तो उसका गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच जाता था. वो आगे बोली - "चुपचाप मेरे साथ गाड़ी में बैठो."
कल्लू इस बार इंकार नही कर सका. आगे बढ़कर जीप में उसके बराबर बैठ गया. आज उसने जीवन में पहली बार किसी चार पहिए वाली गाड़ी पर बैठा था.
निक्की ने उसके जीप में बैठते ही जीप को आगे बढ़ा दी.
कुच्छ ही देर बाद जीप कंचन के घर के सामने जाकर रुकी. पहले निक्की उतरी और आँगन के दरवाज़े को धकेल कर अंदर दाखिल हो गयी. कल्लू भी उसके पिछे पिछे आँगन में आया.
आँगन में शांता बुआ रोटी पका रही थी. पास की चारपाई पर सुगना बैठा हुक्का पी रहा था.
निक्की को देखते ही बुआ हैरत से भरकर सुगना से बोली - "भैया देखो तो सही कोई लड़की आई है."
शांता की बात सुनते ही सुगना ने दरवाज़े की तरफ गर्दन घुमाया. निक्की मुस्कुराती हुई उसकी ओर चली आ रही थी. उसपर नज़र पड़ते ही सुगना बोला - "अरे शांता ये तो निक्की है, क्या तुम इसे नही पहचान पाई?"
शांता ने आश्चर्य से सुगना को देखा. फिर अपनी निगाहें निक्की पर जमा दी. वो कुच्छ बोलती उससे पहले निक्की उनके करीब आकर बोली - "नमस्ते काका. नमस्ते बुआ." उसने हाथ जोड़कर दोनो को बारी बारी से नमस्ते किया. फिर झुक कर सुगना के पावं च्छू लिए.
"कितनी बड़ी हो गयी है तू निक्की." बुआ आश्चर्य से बोली - "कितनी छोटी थी जब तू यहाँ आई थी."
निक्की बुआ की बातों से मुस्कुरा उठी. - "कंचन कहाँ है बुआ?"
"दीदी यहाँ है." चिंटू की आवाज़ से निक्की की गर्दन घूमी, बरामदे में उसे चिंटू और कंचन खड़े दिखाई दिए. वे दोनो निक्की की आवाज़ सुनकर बाहर निकले थे.
निक्की को देखते ही कंचन उसकी ओर लपकी. फिर उसका हाथ पकड़कर बोली - "आज मेरे घर का रास्ता कैसे भूल गयी?"
"आ गयी, अकेले मेरा जी नही लग रहा था. सोचा तुमसे मिल आऊ" निक्की ने उत्तर दिया.
"दीदी मेरे लिए क्या लाई हो शहर से?" चिंटू निक्की की कुरती खींचता हुआ बोला.
निक्की उसे बताने लगी. निक्की के आने से सब के सब उसी के संग रंग गये थे. पास ही थोड़ा हट के बुखार से थर थर कांपता कल्लू खड़ा था पर उसकी ओर किसी का ध्यान नही जा रहा था.
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