RE: Desi Porn Kahani काँच की हवेली
अपडेट 24
रवि पिछ्ले 25 मिनिट से झरने के निकट पत्थरों पर बैठा कंचन का इंतेज़ार कर रहा था.
कल वो इसी जगह मिलने की बात कहकर गयी थी. पर रवि को इंतेज़ार करते लगभग आधा घंटा बीत जाने के बाद भी वो अभी तक नही आई थी.
रवि उल्लू की तरह गिरते झरने को टकटकी लगाए घुरे जा रहा था. उसके मानस्पटल पर कभी रोमीयो, कभी फरहाद तो कभी मजनू और रांझा की अनदेखी ताश्वीरें घूम रही थी. इसलिए नही की वो अपनी तुलना उन महान प्रेमियों से कर रहा था, बल्कि इसलिए की आज सही मायने में उनके दर्द का एहसास उसे हुआ था.
आज उसने जाना था कि जुदाई क्या होती हा?, तन्हाई में बैठकर अपने सनम का इंतेज़ार करना क्या होता है? आज वो ये जान गया था कि क्यों प्यार करने वाले अपने कपड़े फाड़ लेते हैं?. क्यों पागलों की तरह गलियों में घूमते हैं? क्यों तन्हाई में बैठकर पत्थरों पर सर पटकते हैं?
क्योंकि आज उसे भी प्यार हो गया था. आज उसे भी किसी का इंतेज़ार करना पड़ रहा था.
उसने आज से पहले किताबों में, फिल्मों में और दोस्तों से इन महान प्रेमियों के बारे में बहुत कुच्छ देखा सुना और पढ़ा था. लेकिन कभी उनके सच्चे प्यार की तड़प को महसूस नही कर सका था. उसे महसूस होता भी तो कैसे? बिना जले जैसे जलन का ग्यान नही होता. वैसे ही बिना प्यार किए प्यार की तड़प का एहसाह नही होता. इस बात पर किसी शायर ने कहा है.
"वही महसूस करते हैं खलिश दर्द ए मोहब्बत की.
जो अपने से बढ़कर किसी को प्यार करते हैं."
आज उसे भी उस दर्द से दो चार होना पड़ गया था. वो पत्थरों पर बैठा कभी अपने बाल नोच रहा था तो कभी झुँझलाकर पिछे देखता जा रहा था.
इस बार भी वो झंझलाहट से भरकर अपनी गर्दन जैसे ही पिछे घुमाया उसकी आँखें खुशी से चमक उठी. उसे कंचन गिरती पड़ती पत्थरों से बचती बचाती अपनी औउर आती दिखाई दी. वो खुशी से पत्थरों पर खड़ा हो गया और कंचन को देखने लगा.
कंचन नीले रंग की सलवार कमीज़ पहनी हुई थी. उन कपड़ों में बहुत सुंदर लग रही थी. दुपट्टा गले से लिपटकर पिछे झूल रहा था. टाइट कुरती में उसके पर्वत शिखर अपनी आकर में साफ़ दिखाई पड़ रहे थे.
कंचन हाफ्ति हुई रवि के पास आकर खड़ी हो गयी. फिर रवि को देखकर धीरे से मुस्कुराइ.
"क्या टाइम हो रहा है?" रवि ने अपनी कलाई में बँधी घड़ी कंचन को दिखाते हुए पूछा. - "पिछ्ले आधे घंटे से पागलों की तरह यहाँ बैठा तुम्हारा इंतेज़ार कर रहा हूँ. तुम्हे तो मेरी कोई फिक़र ही नही है. क्या यही प्यार है तुम्हारा." रवि के शब्दों में ना चाहते हुए भी क्रोध समा गया था.
कंचन रवि के मूह से निकले कठोर शब्दों से सहम गयी. उसने सोचा भी नही था कि यहाँ आते ही उसे अपने साजन से ऐसी झिड़की सुनने को मिलेगी. जब वो घर से निकली थी तब दिल में हज़ारों उमंगे थी, रास्ते भर चहकति हुई, मन में हज़ार अरमान सजाती हुई आई थी. पर यहाँ आते ही उसके मन में अरमानो के जितने भी फूल खिले थे वो सब एक झटके में मुरझा गये. वो धीमे स्वर में रवि से बोली -"ग़लती हो गयी साहेब. मुझे माफ़ कर दो. बुआ ने किसी काम से रोक लिया था." ये कहते हुए कंचन की गर्दन शर्मिंदगी से नीचे झुक गयी.
कंचन का उतरा हुआ चेहरा देखकर रवि को अपनी भूल का एहसाह हुआ. उसका सारा गुस्सा एक पल में गायब हो गया. उसका मन ये सोचकर ग्लानि से भर गया कि बिना कारण जाने उसने कंचन को डाँट पिला दी.
वह धीरे से कंचन के पास आया.
कंचन अब भी गर्दन झुकाए खड़ी थी.
उसने अपने हाथ से उसकी ठोडी को छुआ और उसका चेहरा उपर उठा लिया. कंचन की आँखें गीली हो चली थी. उसकी पलकों के बीच मोती जैसी दो बूंदे चमक उठी थी. उसकी आँखों में आँसू देखकर रवि खुद से झल्लाया. दिल में आया अपनी इस ग़लती पर अपना सर पत्थरों पर मार दे. उससे ऐसी नादानी हुई कैसे? वह उसकी आँखों से आँसू पोछ्ता हुआ बोला - "मुझे माफ़ कर दो कंचन, मैं आइन्दा तुमपर कभी गुस्सा नही करूँगा. प्रॉमिस. तुम चाहो तो मैं अपनी इस ग़लती के लिए कान पकड़कर उठक बैठक लगा सकता हूँ. पर प्लीज़ मुझे माफ़ कर दो और एक बार प्यार से मुस्कुरा दो."
रवि की इन बातों से कंचन सच में मुस्कुरा उठी. उसके अंदर की सारी पीड़ा क्षन्भर में दूर हो गयी. वह अपनी झिलमिलाती आँखों से रवि का चेहरा ताकने लगी. फिर याचनपूर्ण लहजे में बोली - "साहेब, मुझे कोई भी कष्ट दे देना, पर मुझसे कभी अलग मत होना. मैं आपके बगैर जी नही सकूँगी."
"तो क्या मैं जी सकूँगा तुम्हारे बगैर?" रवि ने ये कहते हुए उसके माथे को चूम लिया. - "आओ....वहाँ बैठते हैं."
रवि ने अपने बाईं और खड़े एक विशाल पेड़ की ओर इशारा किया फिर उसका हाथ पकड़कर उस और बढ़ता चला गया. पेड़ के नीचे एक बड़ा सा समतल पत्थर बिच्छा हुआ था. पत्थर इतना बड़ा था कि 3 आदमी आराम से सो सकते थे. पत्थेर से दो कदम आगे गहरी खाई थी. रवि पेड़ की जड़ से पीठ टिका कर बैठ गया. कंचन उससे थोड़ी आगे होकर बैठी और वहाँ से दूर तक फैली फूलों की घाटी को देखने लगी.
वैसे तो कंचन पहले भी इस खूबसूरती को देख चुकी थी. पर आज उसके देखने में अंतर था. आज उसे इन हसीन वादियों में प्यार का रंग घुला हुआ दिखाई पड़ रहा था. वह जिधर भी नज़र घुमाती सभी पेड़, पत्ते, पौधे, फूल उसे हँसते खिलखिलाते नज़र आ रहे थे.
सूरज क्षितिज की ओर बढ़ रहा था. वातावरण में लालिमा फैलती जा रही थी. सांझ की लालिमा से यह घाटी और भी सुंदर होती जा रही थी.
कंचन सब कुच्छ बिसार कर खोई हुई थी. उसे यह भी होश नही था कि उसके पिछे बैठा रवि उसे कब से एक टक देखे जा रहा है.
रवि भी उसके सुंदर मुखड़े को देखते हुए सब कुच्छ भुला बैठा था. तभी कंचन उसकी ओर पलटी.
रवि को यूँ अपनी ओर देखते पाकर उसकी आँखों में शर्म उभर आई. वो धीरे से शरमा कर बोली - "क्या देख रहे हो साहेब?"
"वही जो तुम देख रही हो." रवि ने उसके चेहरे पर अपनी निगाह जमाए हुए कहा.
"मैं तो इस घाटी की सुंदरता देख रही थी." कंचन मुस्कुराइ - "लेकिन आप तो....!" उसने बात अधूरी छोड़ दी और अपनी नज़रें नीची कर ली..
"तो मैने ग़लत क्या बोला है. मैं भी तो सुंदरता ही देख रहा था."
"धत्त....!" कंचन शरमाई.
"सच कहता हूँ कंचन. तुम्हारी जैसी सुंदर लड़की सारे संसार में ना होगी." रवि उसकी सुंदरता में खोता हुआ बोला.
"आप 1 नंबर के झूठे हैं." कंचन अपनी खूबसूरत आँखें रवि के चेहरे पर टिकाकर बोली - "मैं जानती हूँ मैं ज़्यादा सुंदर नही हूँ. मैं तो निक्की जितनी भी सुंदर नही हूँ. और शहर में तो मुझसे भी सुंदर - सुंदर लड़कियाँ रहती होंगी. कभी कभी मैं सोचती हूँ आप शहर जाकर मुझे भूल तो नही जाएँगे."
"आहह....ये तुमने क्या कह दिया कंचन? तुम्हे ऐसा क्यों लगता है कि मैं तुम्हे छोड़ दूँगा?" रवि खिसक कर उसके समीप जाता हुआ बोला - "क्या तुम्हे मुझपर भरोसा नही है? यदि ऐसा है तो फिर मैं तब तक शहर नही जाउन्गा. जब तक तुम्हे अपनी पत्नी ना बना लूँ. अब तुमसे शादी करने के बाद तुम्हे अपने साथ लेकर ही शहर जाउन्गा."
"लेकिन मा जी?" क्या उनके बगैर शादी करेंगे आप?
"मा को भी यहीं बुला लेता हूँ." रवि उसके गालो को थाम कर बोला.
रवि की बातों से कंचन का चेहरा खिल गया. उसने अपना सर रवि के कंधे पर रख कर अपनी आँखें बंद कर ली.
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