Desi Porn Kahani काँच की हवेली
05-02-2020, 01:10 PM,
#34
RE: Desi Porn Kahani काँच की हवेली
रवि ने एक हाथ से कंचन का कंधा थाम लिया और दूसरे हाथ से उसके बालों को सहलाता रहा. उसे अपनी किशोरवस्था के वो पल याद आने लगे जब उसके दोस्त उसका मज़ाक उड़ाया करते थे. वह अपने अकेले पन से कितना घबराया घबराया रहता था. तब उसने कभी नही सोचा था कि कोई लड़की उससे भी प्यार कर सकती है. कोई उसकी भी दीवानी हो सकती है. लेकिन आज किस्मत ने कंचन से उसको मिलाकर उसकी सारी शिकायतों को दूर कर दिया था. कभी कभी उसे लगता था वो कोई गहरी नींद सो रहा है, अभी आँख खुलेगी और सब कुच्छ ख़त्म हो जाने वाला है.

उसे कंचन पर बेहद प्यार आ रहा था. वह खुद को उसके प्यार का ऋणी समझ रहा था. उसने कंचन को देखा. वह अभी भी आँखें बंद किए हुए उसके कंधे पर सर रखे पड़ी थी.

उसने प्यार से उसके सर को चूम लिया.

चुंबन के एहसास से कंचन का ध्यान भी भंग हुआ. शायद वो भी किसी विचारों में लीन थी. वह धीरे से बोली - "साहेब, मा जी कब आएँगी?"

"आज ही मैं उन्हे फोन करके सब कुच्छ बता देता हूँ. और उन्हे यहाँ आने के लिए आग्रह करता हूँ." रवि उसके गालों को सहलाते हुए बोला - "उनके आते ही हम जल्द से जल्द विवाह सुत्र में बँध जाएँगे."

"मा जी. मुझ जैसी गाओं की लड़की को अपनी बहू तो स्वीकार करेंगी ना?" कंचन ने फिर से चिन्तीत होकर कहा.

"तुम मा की चिंता क्यो कर रही हो? वो पुराने ज़माने की संस्कारों वाली औरत हैं. उन्हे ज़्यादा तड़क भड़क पढ़ी लिखी हाइ प्रोफाइल लड़की नही चाहिए. उन्हे तुम्हारी जैसे सुशील शर्मीली संस्कारों वाली बहू चाहिए. उन्हे अपनी बहू में सिर्फ़ 2 गून चाहिए. पहला वो लड़की घर के लोगों की इज़्ज़त करे, दूसरा घर का काम करे, ठीक से घर का ख्याल रखे और अपने हाथों से खाना बनाकर उन्हे खिलाए. मा हमेशा अपने हाथों से खाना बनाकर खाती आई हैं. उन्हे अपनी बहू के हाथ से खाना खाने का बहुत शौक है. बस . अब इतना तो तुम्हे आता ही होगा?" ये कहकर उसने कंचन को देखा.

कंचन ने हां में सर हिला दी. पर अंदर ही अंदर उसे रोना आ रहा था. उसने अपनी सारी उमर चिंटू के साथ खेलने कूदने में बीताई थी. कभी कभार ही घर का कोई काम करती थी. और रही बात खाना बनाने की तो उसे सिर्फ़ चाय के अतिरिक्त कुच्छ भी ना आता था. रवि की बातें सुनकर वह चिंता से भर उठी थी. दिल कर रहा था अभी भाग कर घर जाए और बुआ से खाना बनाना सीखे.

"अरे हां.....!" अचानक रवि चौंक कर कहा - "खाने से मुझे याद आया. गाओं की लड़कियाँ जब अपने साजन से मिलने आती है तो साथ में उनके खाने के लिए हलवा, पूरी.....नही पूरी नही, खिचड़ी......नही खिचड़ी भी नही.........हां याद आया खीर.......खीर लेकर आती हैं. तुम लेकर नही आई?"

कंचन की मुसीबत और बढ़ गयी एक तो वो पहले इस चिंता से परेशान थी कि उसे खाना बनाना नही आता, अब रवि के लिए रोज़ खीर बनाकर कैसे लाएगी?

उसके समझ में नही आ रहा था कि वो रवि को क्या जवाब दे. अगर वो ये कहती है कि कल खीर बनाकर लाएगी तो उसे रोज़ ही खीर लाना पड़ेगा. और अगर ये कहती है कि उसे खीर बनाना नही आता तो कहीं रवि नाराज़ ना हो जाए.

"क्या सोच रही हो?" रवि ने उसे टोका. "तुम्हे खीर तो बनाना आता है ना? मुझे बचपन से ही खीर बहुत पसंद है."

"हां आता है साहेब, मैं कल आपके लिए खीर बनाकर लाउन्गि." कंचन बोल तो दी. पर बोलने के बाद गहरी चिंता में पड़ गयी. - "साहेब, अब मैं घर जाउ? बुआ ने जल्दी घर आने को कहा था."

रवि ने कंचन को देखा. उसके चेहरे पर परेशानी के भाव थे, पर वो उसका सही कारण नही जान सका. उसने मुस्कुरा कर कहा - "ओके. लेकिन कल जल्दी आना और खीर लाना मत भूलना."

"जी." कंचन ने हामी में सर हिलाया. फिर जाने के लिए उठ खड़ी हुई.

रवि भी जूते पहनकर खड़ा हो गया. फिर साथ साथ दोनो उपर आने लगे. अचानक रवि ने कंचन से कहा - "अरे ये तो ग़लत बात हो गयी, हमारी प्रेम की पहली मुलाक़्क़त पूरा होने को है और हमने एक दूसरे को कोई निशानी तक नही दी."

"निशानी?" कंचन चौंक कर पलटी. उसने सवालिया नज़रों से रवि को देखा.

"मैने किताबों में पढ़ा है, प्रेम की पहली मुलाक़ात में प्रेमी एक दूसरे की किस करके प्रेम की निशानी देते हैं, चुंबन के बिना प्रेम अधूरा माना जाता है. लेकिन हमने तो किस किया ही नही"

कंचन रवि की बात से शरमा गयी. और नीचे देखने लगी.

"क्या हुआ?" रवि उसके चेहरे को दोनो हाथों से भर कर उपर उठाते हुए पुछा. - "अगर तुम्हारी इच्छा ना हो तो कोई ज़बरदस्ती नही."

कंचन को लगा अगर आज उसने इनकार किया तो कहीं ऐसा ना हो उसके प्रति रवि का प्रेम कम हो जाए. - "मैने मना कब किया है साहेब." ये कहकर उसने शर्म से अपनी आँखें बंद कर ली.

रवि ने उसके चेहरे को देखा, जहाँ शरम के साथ समर्पण का भी बहुत गहरा छाप चढ़ा हुआ था. उसने अपना चेहरा झुकाया और कंचन के काँपते होंठो पर अपने होंठों को रख दिए.

कंचन का पूरा शरीर काँप गया. वह रवि की बाहों में सिमट सी गयी.

रवि ने एक लंबा चुंबन लेने के बाद उसके होंठों से अपने होंठ अलग किए. फिर कंचन की आँखों में झाँका. उसकी आँखों में शर्म और उतेज्ना से लाल हो गयी थी.

"अब मिलन पूरा हुआ." रवि मुस्कुरकर कहा. "अब तुम घर जा सकती हो."

कंचन कुच्छ देर भारी पलकों से रवि को देखती रही फिर एकदम से मूडी और अपने रास्ते भागती चली गयी.

रवि उस और मूड गया जिधर उसकी बाइक थी. वह जैसे ही अपनी बाइक के पास आया. उसके पैरो तले से ज़मीन निकल गयी.

निक्की अपनी जीप में बैठी उसका इंतजार कर रही थी. जिस जगह रवि और कंचन खड़े होकर किस कर रहे थे. वो जगह जीप से ज़्यादा दूर नही थी. वहाँ से थोड़ा नीचे उतरते ही निक्की उन्हे साफ देख सकती थी.

रवि बाइक तक आया. फिर निक्की को देखा. उसकी आँखें शोला उगल रही थी. चेहरा गुस्से से फट पड़ने को तैयार था.
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RE: Desi Porn Kahani काँच की हवेली - by hotaks - 05-02-2020, 01:10 PM

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