RE: Desi Porn Kahani काँच की हवेली
अपडेट 25
रवि उसकी आग उगलती आँखें और गुस्से से भरी सूरत देखकर समझ गया कि निक्की ने उसे कंचन के साथ देख लिया है.
इस तरह अपनी चोरी पकड़े जाने से उसकी सिट्टी-पिटी गुम हो गयी थी. लेकिन उसने अपनी घबराहट निक्की पर ज़ाहिर नही होने दिया. उसने लापरवाही से निक्की को देखते हुए कहा - "निक्की जी, आप यहाँ, इस वक़्त?"
"मुझे आप मत कहो." निक्की गुस्से से चीखी. - "जब मैं तुम्हे पसंद ही नही तो फिर ये झूठे सम्मान किस लिए?"
उसके गुस्से को देखकर रवि हैरान रह गया. उसने सोचा भी नही था कि निक्की उसपर इस तरह भड़क सकती है. लेकिन वो उसके गुस्से की परवाह किए बिना बोला - "मैं कुच्छ समझा नही."
"नही समझे?" निक्की व्यंग से मुस्कुराइ. फिर उसी कुटिलता के साथ बोली - "अगर तन्हाई में छुप्कर पाप करना ही था तो मुझे ठुकराकर मेरा अपमान किस लिए किया था?"
"क्या बकवास कर रही हो तुम?" रवि की सहनशक्ति जवाब दे गयी. वह अपने स्थान से खड़े खड़े चीखा.
निक्की की बातों का मतलब समझते ही उसे तेज़ गुस्सा आया था. उसे इस बात का गुस्सा नही था कि निक्की ने उसे चरित्रहीन कहा था, उसे गुस्सा इस बात का था कि निक्की ने उस मासूम, दिल की भोली, बेकसूर कंचन के दामन पर कीचड़ उछाल्ने की कोशिश की थी. जो उसकी दोस्त भी थी.
"अगर ये बकवास है तो तुम दोनो यहाँ अकेले में क्या कर रहे थे?" निक्की ने चुभती नज़रों से उसे घूरा.
"मैं तुम्हारे किसी भी सवाल का जवाब देने के लिए विवश नही हूँ." रवि ने उसे दो टुक जवाब दिया और बाइक की तरफ मूड गया.
"ये क्यों नही कहते, तुम्हारे पास सफाई देने के लिए शब्द ही नही बचे हैं." निक्की ने उसे मुड़ते देख खीजकर कहा.
उसकी बातों से चिढ़कर रवि पलटा. पर गुस्से की अधिकता में कुच्छ कह नही पाया. बस दाँत पीस कर रह गया. द्वेष भावना से पीड़ित नारी को कोई समझाए भी तो कैसे. उनके अक़ल पर ऐसा पत्थेर पड़ा होता है कि लाख कोशिश कर लो पर वो पत्थेर नही हटा-ती. उसने चुप रहने में ही अपनी भलाई समझी.
रवि एक व्यंग भरी मुस्कुराहट निक्की पर छोड़ता हुआ वापस अपनी बाइक की ओर बढ़ गया.
निक्की रवि के इस उपेक्षित (नेग्लिजेंट्ली) व्यवहार को सह ना सकी. वह गुस्से से जीप से उतरी और लपक कर उस तक पहुँची. - "मैं पूछती हूँ.....ऐसा क्या है कंचन में जो मुझमें नही? क्या मैं सुंदर नही? क्या मैं जवान नही? देखो मुझे और बताओ. क्या कमी है मुझमें?" ये कहते हुए निक्की ने उसके सामने अपनी छातियाँ तान दी.
उसके ऐसा करने से सफेद टीशर्ट में कसे उसके बूब्स अपने पूरे आकार का प्रदर्शन कर उठे.
ना चाहते हुए भी रवि की निगाहें उसके पर्वत की तरह उठे बूब्स पर चली गयी. उसके उभरे हुए बूब्स को अपनी आँखों के इतने समीप महसूस कर रवि का पूरा शरीर सिहर उठा. पर दूसरे ही पल उसने अपनी नज़रों को बूब्स से हटा लिया.
"तुम में सबसे बड़ी कमी यह है कि तुम वासना से पीड़ित लड़की हो." रवि ने निक्की की आँखों में तैरती वासनात्मक लहरों को देखते हुए कहा - "तुम अपनी तुलना कंचन से कर भी कैसे सकती हो?"
"मैं वासना से पीड़ित हूँ तो तुम क्या हो? तुम भी तो कुच्छ देर पहले किसी की गर्म बाहों में पड़े हुए थे." निक्की जलकर बोली - "तुम मेरे सामने साधु बनते हो और मेरी पीठ पिछे अइय्यासियाँ करते हो. क्या मैं नही जानती?"
"बंद करो अपनी ये बकवास." रवि गुस्से से चीखा. - "मुझपर ना सही पर थोड़ा बिसवास कंचन पर तो रखो."
"वो तो भोली है तुम्हारी बातों में आ गयी होगी. लेकिन इतना याद रखो....तुमने मुझे ठुकराकर किसी और को अपनाया तो मैं तुम्हे चैन से रहने नही दूँगी." निक्की अपने दाँत चबाते हुए बोली.
रवि के प्रति उसकी तड़प अब केवल शारीरिक सुख भर का नही रह गया था. अब वो रवि को अपने पति के रूप में हासिल करना चाहती थी. लेकिन आज रवि का झुकाव खुद की बजाए कंचन की ओर देखकर वह गुस्से से भर उठ थी.
वो खुद को कंचन के मुक़ाबले हर दृष्टि से बेहतर समझती थी. कंचन ना तो उसकी जितनी पढ़ी लिखी थी, ना ही उसकी जितनी धनी थी, ना उसका घर उसके घर से बड़ा था, ना वो निक्की से अच्छे कपड़े पहनती थी, ना तो निक्की से बेहतर बात करने का ढंग जानती थी. रवि उसका मेहमान था उसके घर रहता था उसका ख़ाता था. फिर भी वो उसके बजाए कंचन से प्यार करता था. निक्की का अहंकारी नारी स्वाभाव इसी बात से दुखी था.
वो कंचन को अपना दुश्मन नही समझ रही थी, लेकिन वो इस बात को सह नही पा रही थी कि जो कंचन सदा उसकी मोहताज रही, जिस कंचन को उसने झोपडे से उठाकर हवेली में स्थान दिया. जिसके साथ उसने अपनी थाली बाटी, जिसके लिए उसने हर फ़र्क को मिटाया, आज वही कंचन उस पर भारी पड़ रही थी. उसका अभिमानी मन इसी बात से आहत था.
रवि ने उससे अधिक उलझना ठीक नही समझा. वो पलटा और अपनी बाइक पर जा बैठा.
"कहाँ जा रहे हो?" निक्की उसकी कलाई पकड़कर गुर्राई.
"तुम्हे रात यही गुजारनी हो तो शौक से गुजारो. मैं अपने रास्ते चला." वह बोला और बाइक की चाभी घुमाया.
"तुम ऐसे नही जा सकते." निक्की फुफ्कारी.
"तो....?" रवि ने आश्चर्य से घूरा.
"तुम्हे मुझे भी होठों पर वैसा ही किस करना होगा जैसा तुमने कंचन को किया था." ये कहते हुए निक्की ने अपने होंठों को उसके होंठों के करीब ले गयी.
"हरगिज़ नही." रवि ने इनकार में अपनी गर्दन हिलाई.
"रवि." निक्की किसी नागिन की तरह फुफ्कारी. - "मैं अपनी कसम खाकर कहती हूँ. अगर तुमने मुझे किस ना किया तो मैं अभी इसी वक़्त अपनी जीप सहित इस पहाड़ी से नीचे कूद जाउन्गि."
"मज़ाक बंद करो और घर चलो." रवि ने विचलित होकर कहा. उसे निक्की के चेहरे की सख्ती अंदर तक हिला गयी थी.
"तुम्हे लग रहा है मैं मज़ाक कर रही हूँ." निक्की दाँत पीसती हुई बोली. उसकी आँखों के शोले भड़क उठे - "तो ठीक है, अगर तुम मेरी बातों की सच्चाई परखना ही चाहते हो तो एक क़दम यहाँ से आगे बढ़कर दिखाओ. मैं अगर इस पहाड़ी से ना कूदी तो मैं ठाकुर जगत सिंग की बेटी नही." वो चट्टान की तरह ठोस शब्दों में बोली - "लेकिन याद रखो रवि. तुम्हे अपनी इस भूल पर ज़िंदगी भर अफ़सोस होगा. क्योंकि मैं मज़ाक नही करती."
रवि सर से पावं तक काँप गया. उसने ध्यान से निक्की को देखा. निक्की इस वक़्त बेहद गुस्से में थी. उसकी आँखों में गुस्से के साथ साथ एक गहरे दर्द की परत भी चढ़ि हुई थी. रवि मनोचिकित्सक (साइकॉलजिस्ट) था उसे समझते देर नही लगी कि निक्की को अगर उसने और आहत किया तो ये सचमुच में अपनी जान दे देगी.
प्यार में अपमानित स्त्री, काम-अग्नि में जलता देह कुच्छ भी कर सकता है. वो एक बार पहले भी निक्की का नाज़ुक मौक़े पर तिरस्कार कर चुका था. रवि नही चाहता था कि उसकी एक भूल से कोई बड़ी आफ़त उसके गले पड़े. उसकी ग़लती से निक्की को कुच्छ हुआ तो वो ठाकुर साहब को क्या जवाब देगा? क्या बीतेगी ठाकुर साहब पर जब उन्हे ये मालूम होगा कि जिस इंसान को वो डॉक्टर जानकार अपनी पत्नी का इलाज़ कराने लाए थे उसने खूनी बनकर उन्ही की बेटी का खून कर दिया.
रवि इस एहसास से पुनः काँप उठा. उसने विवशता से अपने होंठ चबाने शुरू कर दिए. उसे अपने बचाव का कोई भी मार्ग दिखाई नही दे रहा था.
उसने निक्की को देखा वो अभी भी उसके सर पर सवार थी. वो अपनी जलती हुई आँखों से उसे घुरे जा रही थी.
"ठीक है." रवि बुझा बुझा सा बोला - "लेकिन इसके बाद तुम कोई भी बहस नही करोगी और सीधा हवेली लौट जाओगी?"
"मुझे मंज़ूर है." निक्की अपने होंठों पर विजयी मुस्कुराहट लाते हुए बोली.
रवि ने जवाब में अपने होंठ उसकी ओर बढ़ा दिए. निक्की ने उसके गर्दन को पिछे से पकड़ा और अपने होंठों को उसके होंठों से मिला दिया. फिर किसी पके हुए आम की तरह उसके होंठों को चूसने लगी. रवि के पूरे शरीर में तेज़ सनसनाहट भरती चली गयी. निक्की के शरीर की गर्मी उसके मूह के रास्ते उसके शरीर में उतरने लगी. उसकी आँखें नशे में बंद होने लगी. उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे वो किसी और ही दुनिया में पहुँच गया हो.
निक्की होंठ चूसने के मामले में महारत रखती थी. वो उसी प्रकार धीरे धीरे उसके होंठों को चुस्ती रही. फिर पूर्ण तृप्ति के बाद वो रवि से अलग हुई.
निक्की के अलग होते ही रवि ने नशे में बंद होती अपनी भारी पलकें खोलकर उसे देखा. उसके चेहरे में जीत की खुशी थी तो वहीं उसके होंठ अपनी कामयाबी पर गर्व से मुस्कुरा उठे थे.
रवि की गर्दन शर्म से झुक गयी. वह कुच्छ देर यूँही उसके चेहरे को देखता रहा. निक्की उसे देखकर मुस्कुराती रही. रवि ने उसकी ओर से अपनी गर्दन घूमाकर बाइक को एक जोरदार किक मारी. अभी वो आगे बढ़ना ही चाहता था कि निक्की की आवाज़ उसके कानो से टकराई. - "ठहरो."
"अब क्या हुआ?" रवि ने सवालिया नज़रों से उसे घूरा.
"तुमने ये तो बताया ही नही कि किसका स्वाद-सुगंध अच्छा था? इस शहरी गुलाब का या उस पहाड़ी फूल का?" निक्की के होठों पर मुस्कुराहट थी.
रवि उसकी ओर देखकर व्यंग से मुस्कुराया. फिर बोला - "शहर के गमलों में खिलने वाले किसी भी फूल में वो सुगंध कहाँ? जो पहाड़ी के आँचल पर खिले फूलों में होती है?"
उसकी इस कटाक्ष (इनसिन्युयेशन) से निक्की का पूरा शरीर अपमान से सुलग उठा. लेकिन इससे पहले कि वो रवि को कोई जवाब देती. रवि एक झटके से आगे बढ़ चुका था. निक्की गुस्से से उसे जाते हुए देखती रही.
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