RE: Desi Porn Kahani काँच की हवेली
अपडेट 28
रवि अपने कमरे में बैठा गहन विचारों में डूबा हुआ था. उसके समझ में नही आ रहा था कि......मा के आने के बाद वो ठाकुर साहब को क्या जवाब देगा. ठाकुर साहब की आशायें उसके साथ जुड़ी हुई थी. वो किस प्रकार उन्हे मना कर सकेगा. वे बेचारे पहले ही एक लंबे अरसे से पत्नी के दुख से पीड़ित हैं...उन्हे कितना कष्ट होगा जब वो निक्की के साथ विवाह से इनकार करेगा?.
"जो भी हो.....!" रवि . में बड़बड़ाया. - "मैं कंचन के साथ अन्याय नही कर सकता. निक्की अमीर बाप की बेटी है. उसके लिए आसानी से अच्छे रिश्ते मिल जाएँग. लेकिन कंचन...? वो झोपडे में रहने वाली एक ग़रीब किसान की बेटी है. पर यहाँ बात सिर्फ़ अमीरी ग़रीबी की भी नही है. कंचन मुझसे प्यार करती है. दिन रात एक ही सपना देखती है......मैं उसे अपनी दुल्हन बनाकर अपने घर ले जाउन्गा. निक्की के लिए तो मैं सिर्फ़ एक ज़िद हूँ. लेकिन कंचन के लिए उसकी ज़िंदगी.
दुनिया इधर की उधर हो जाए पर मैं कंचन का साथ नही छोड़ूँगा. हां...ठाकुर साहब का दिल ज़रूर दुखेगा. पर वे समझदार इंसान हैं मेरी भावनाओं को समझ जाएँगे. अब मुझे सिर्फ़ मा को मनाना है"
उसने तय कर लिया था कि वो कंचन के लिए ज़रूरत पड़ी तो मा का भी विरोध करेगा. वैसे उसे अपनी मा पर पूरा भरोसा था कि वो उसकी खुशियों के विरुद्ध नही जाएगी.
कंचन की याद आते ही उसके होंठो पर मुस्कुराहट फैल गयी. उसकी प्यारी सूरत का स्मरण होते ही उसकी सारी चिंताए दूर हो गयी. मस्तिष्क का सारा भार उतर गया. वो कंचन की यादों में खोता चला गया.
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दिन के 1 बजे थे. शांता अपनी धुन में नदी की ओर जाने वाली कच्ची और उबड़ खाबड़ पगडंदियों पर चली जा रही थी. वो इस वक़्त अपने भैया सुगना के लिए खाना पहुँचाने खेत गयी थी. उसे खाना खिलाने के बाद अब वो नदी की ओर जा रही थी.
शांता रोज़ इसी वक़्त सुगना के लिए खाना लेकर खेत जाती थी. पर आज उसने खेतों में थोड़ा काम भी कर लिया था. सिर्फ़ एक घंटे की मेहनत ने उसे पूरी तरह थका डाला था. वो पसीने से तर-बतर हो चुकी थी. ऐसी स्थिति में घर जाने से पहले उसने नदी में जाकर स्नान करना उच्छित समझा.
वो किसी गहरी सोच में गुम रास्ते में चली जा रही थी कि तभी उसके कानो से एक मर्दाना स्वर टकराया. वह आवाज़ की दिशा में मूडी. जैसे ही उसकी नज़र आवाज़ देने वाले पर पड़ी उसके दिल की धड़कने बढ़ गयी. जाने क्या बात थी कि उसे देखते ही शांता सिहरन से भर गयी थी.
"अच्छा तो तू है" शांता ने अपनी सांसो को काबू में करते हुए कहा - "पापी बिरजू, क्या ऐसे आवाज़ देते हैं किसी को? तूने तो मुझे डरा ही दिया था."
"ग़लती हो गयी बुआ. वैसे जा कहाँ रही हो?" बिरजू ने अपने काले दाँत दिखाते हुए हंसा.
"तुम्हे उससे क्या लेना देना? मैं कहीं भी जाउ.तू क्यूँ पुछ रहा है?" बुआ ने सवाल किया.
"इसलिए बुआ कि अगर हमारी मंज़िल एक है तो क्यों ना हम साथ साथ चलें." बिरजू ने दो अर्थी शब्दो में कहा.
"तुझ जैसे पापी के संग से मैं अकेली भली" शांता उसे अज़ीब सी नज़रों से देखते हुए बोली.
"मैने ऐसा क्या किया है बुआ जो तुम मुझे पापी कह रही हो?" बिरजू उसके निकट पहुँचता हुआ बोला. -"ना तो मैने तुम्हे कभी छेड़ा है....ना परेशान किया है, ना कभी तुमसे कुच्छ गंदा बोला है और ना ही कभी तुम्हारे शरीर को छुआ है. फिर क्यों मुझे पापी कहती हो?" बिरजू ने शांता के शरीर को उपर से नीचे तक घूरा.
शांता उसकी कामुक नज़रों की चुभन अपने बदन पर महसूस करके हौले से थर-थारा उठी. बिरजू की प्यासी नज़रों को अपने नाज़ुक अंगो पर थिरकते देख उसके बदन में तेज़ सनसनाहट भरती चली गयी. उसे वो पल याद आ गये जब वो बिरजू के एहसास मात्र से गीली हुई थी. कितना उन्मादी पल था वो. कैसी मस्ती में डूब गयी थी वो. आज फिर वैसा ही खुमार धीरे धीरे उसपर हावी होता जा रहा था. उसकी पलकें नशे से भारी होने लगी थी.
शांता ने अपनी भारी होती पलकें खोलकर बिरजू की ओर देखा. फिर बोली - "सबसे पहले तो तू मुझे बुआ मत कहा कर......! सिर्फ़ 3 साल छोटा है तू मुझसे."
"तो क्या कहूँ? शांता कहूँ...?" बिरजू ने शांता के बदलते हाव भाव को देखते हुए कहा.
वो एक पक्का शिकारी था. उसने शांता की आँखों में फैलती वासनात्मक लहरों को देख लिया था. उसके बदन में बढ़ती गर्मी को वो महसूस करने लगा था. उसे शांता के दिल में उठती चिंगारी को थोड़ी और हवा देने की ज़रूरत थी. फिर उस चिंगारी को शोला बनते देर नही लगना था. वो ये भी जान गया था कि शांता उसके बातों का विरोध भले ही करे.....पर हो-हल्ला नही करेगी.
"जो जी में आए कह.....पर बुआ मत कहा कर." शांता काँपते स्वर में बोली.
"तो ठीक है शांता.....अब बता दो....कहाँ जा रही हो?" बिरजू ने कामुक स्वर में कहा.
"तू आख़िर चाहता क्या है ये बता?" शांता उसकी आँखों में झाँकते हुए बोली.
"चाहता तो बहुत कुच्छ हूँ....पर जो भी तुम खुशी से दोगि मैं ले लूँगा.....शांता." वह ढिठई के साथ बोला. उसने शांता शब्द पर फिर से ज़ोर दिया.
शांता सर से पावं तक काँप गयी. उसे बिरजू के साहस पर आश्चर्य हुआ. पर जाने क्यों उसे बिरजू पर गुस्सा नही आया..उसने बिरजू की आँखों में झाँका, वहाँ उसे वासना के अतिरिक्त कुच्छ भी नज़र ना आया. वह कुच्छ ना बोली. बस स्तब्ध होकर बिरजू के चेहरे को देखती रही. उसका दिल ज़ोरों से धड़क रहा था. बिरजू की आँखों की तपिश वो अपने अंदर महसूस करने लगी थी.
तभी, अचानक वो हुआ जिसकी कल्पना शांता ने नही की थी. बिरजू ने उसे एक हाथ से गर्दन से पकड़ा और उसके होंठो पर अपने होंठ रख दिया.
शांता.....अवाक ! ये सब कुछ इतना जल्दी हुआ था कि उसे कुच्छ भी समझ में नही आया था. बिरजू उसके होंठों को कुचलना आरंभ कर चुका था.
शांता छटपटाई !
इससे पहले कि वो कुच्छ और कर पाती. बिरजू ने एक और कहर ढाया. अपना एक हाथ उसके बूब्स पर रखकर दबा दिया.
शांता का शरीर ही नही उसकी आत्मा तक काँप उठी. वासना की तेज़ लहर उसके शरीर में बिजली की गति से फैल गयी. पर उसका विरोध अब भी जारी था. शांता पूरी शक्ति लगाकर उससे छूटने का प्रयास कर रही थी.....किंतु बिरजू के मजबूत हाथों की पकड़ से खुद को आज़ाद नही कर पा रही थी.
बिरजू ने उसके होंठ चूसना और बूब्स दबाना जारी रखा. बिरजू के कठोर हाथों का स्पर्श अब उसे गरमाने लगी थी. अब उसके होंठ भी बिरजू के होंठों से जुड़ने लगे थे. उसका विरोध अब दिखावा मात्र का रह गया था. बिरजू ने अपने दूसरे हाथ को गर्दन से हटाकर उसके नितंबो पर रख दिया और उसे अपनी कमर से सटा लिया. शांता उससे सॅट-ती चली गयी. बिरजू उसके नितंबो को मसल्ने और दबाने लगा.
बिरजू के होंठ अब उसके गर्दन और छाती के आस-पास घूमने लगे थे. शांता के मूह से आनंद मिश्रित सिसकारी फूटने लगी थी. बिरजू के हाथ उसके समस्त अंगो को टटोलने में लगे हुए थे. शांता की आँखें कब की बंद हो चुकी थी. शांता बिरजू के छेड़छाड़ से सूखे पत्ते की तरह उड़ती जा रही थी.
बिरजू ने अब देर करना उचित नही समझा. उसने अपने दोनो हाथों को शांता के नितंबो पर रखा और उसे उपर उठा लिया. उसे अपने हाथों में उठाए हुए वह झाड़ियों की तरफ बढ़ गया. बिरजू ने उसे लिए हुए ज़मीन पर लंबा होता चला गया. बिरजू ने उसे लिटते ही अपना एक हाथ उसकी जांघों पर रख दिया.
सहसा ! शांता की चेतना लौटी !
उसने बिरजू को एक तेज़ धक्का दिया और झट से खड़ी हो गयी.
बिरजू ने आश्चर्य से उसे देखा.
शांता अपनी उखड़ी साँसों को नियनतरित करने का प्रयास कर रही थी. उसकी आँखें नशे की खुमारी से लाल और भारी हो गयी थी.
"क्या हुआ शांता?" बिरजू ना खुशमाद भरे स्वर में पुछा.
"म......मैं ये नही कर सकती बिरजू." वह लड़खड़ाती आवाज़ में बोली.
"क्यों.....? क्या दिक्कत है?" बिरजू ने अधीर होकर पुछा.
"मैं इस वक़्त....दिन के उजाले....इस तरह खुले में ये नही कर सकती. मुझे माफ़ कर दो." शांता बोली और बिरजू के उत्तर की प्रतीक्षा किए बगैर तेज़ी से नदी की ओर भागती चली गयी.
बिरजू अपनी मुत्ठियाँ भिचता हुआ उसे जाता देखता रहा. वो चाहता तो उसके साथ ज़ोर ज़बरदस्ती कर सकता था. पर उसे शांता को प्यार से ही हासिल करना था.
शांता नदी पहुँची. उसने आनन फानन में अपने कपड़े उतारे और नदी में कूद गयी. वह छाती भर पानी में खड़ी होकर अपने जलते बदन को ठंडा करने का प्रयास करने लगी. वह पानी के नीचे सिर्फ़ पेटिकोट पहनी हुई थी.
शांता अपने बदन को सहलाते हुए अपने अंगो को छेड़ने लगी. उसका एक हाथ उसके बूब्स को कस रहा था तो दूसरा उसकी योनि द्वार में दस्तक दे रहा था.
शांता की बेचैनी बढ़ती ही जा रही थी. उसने अपने हाथ की उंगलियों से अपनी योनि को कुरेदना शुरू किया. बरसो से प्यासी उसकी योनि छुने मात्र से ही पिघल गयी.
शांता स्खलन चाहती थी. उसके शरीर में जो आग इस वक़्त लगी हुई थी...वो स्खलन के बिना शांत होने वाली नही थी. उसने देर ना करते हुए अपनी एक उंगली योनि के अंदर डाल दी. उंगली योनि में प्रवेश करते ही उसके मूह से आनंद भरी हल्की सी चीख निकल गयी.. साथ ही उसकी आँखें मस्ती में बंद होती चली गयी.
आँखें बंद होते ही उसके मानस्पटल पर बिरजू की तश्वीर उभरी. शांता के हाथ और तेज़ी से हरकत में आए. उसने अपनी दूसरी उंगली को भी योनि द्वार के अंदर थेल दिया. फिर उंगली की रफ़्तार बढ़ाई. उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे उसकी योनि पर बिरजू के हाथ मचल रहे हों. कुच्छ ही देर में उसका बदन थर-थाराया... फिर एक जोरदार चीख के साथ उसका यौवन रस योनि के रास्ते बहकर पानी में मिल गया. वह हाफ्ति हुई नदी की सतह से जा मिली.
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