Desi Porn Kahani काँच की हवेली
05-02-2020, 01:13 PM,
#42
RE: Desi Porn Kahani काँच की हवेली
अपडेट 31

पत्थर की शरण में आते ही रवि और कंचन अपने अपने कपड़ों से पानी झाड़ने लगे. दोनो बिल्कुल पास पास खड़े थे. सहसा रवि की नज़र कंचन की ओर उठी. उसपर नज़र पड़ते ही उसका शरीर हौले से काँप उठा. कंचन के गीले कपड़ों के अंदर से झाँकते उसके उरोज सॉफ दिखाई पड़ रहे थे.

कंचन का ध्यान उस ओर नही था, वो गर्दन को झुकाए अपने बालों से पानी झाड़ने में व्यस्त थी. बालों से पानी निकालने के लिए वो बार-बार अपने सर को झटक रही थी. उसके ऐसा करने से उसके उन्नत उरोज लहरा उठते थे. रवि विस्मित सा उसके सौंदर्य पर्वतों को देखता रहा. उसके बदन में तेज़ सनसनाहट सी होने लगी. उसने कंचन पर से नज़रें हटाकर बारिश की गिरते बूँदों पर टीका दी. फिर वहीं पत्थेर से टेक लगाकर ज़मीन पर बैठ गया.

कंचन भी थोड़ी देर में उसके पास आकर उससे सटकार बैठ गयी. कंचन काफ़ी ठंड का अनुभव कर रही थी. वह बार बार ठंड से झुरजुरी ले रही थी.

रवि ने उसे ध्यान से देखा वो इस वक़्त बहुत खूबसूरत लग रही थी. उसके चेहरे पर एक दो गीले बाल चिपके हुए थे जिससे उसके चेहरे की सुंदरता और भी बढ़ गयी थी. वह अपलक कंचन को देखता रहा.

"ऐसे क्या देख रहो हो साहेब?" कंचन रवि को अपनी और देखते पाकर शरमाते हुए उससे पूछी.

"कंचन." रवि उसके खूबसूरत चेहरे को निहारता हुआ बोला. - "क्या तुम्हे किसी ने बताया है कि तुम कितनी सुंदर हो?"

कंचन रवि के इस सवाल से शरमा गयी. वैसे तो उसकी सुंदरता की प्रसंसा सभी ही करते थे. पर रवि के मूह से अपनी खूबसूरती की तारीफ़ सुनकर कंचन का दिल झूम उठा. वह रवि के मूह से और अधिक प्रसंसा सुनना चाहती थी. - "साहेब आप बहुत अच्छे हो, आप बहुत अच्छी बातें करते हो. आपके मूह से अपने बारे में सुनना मुझे बहुत अच्छा लगता है. दिल करता है आप बस बोलते जायें और मैं बैठी सुनती रहूं."

"तुम बहुत अच्छी हो कंचन." रवि उसके चेहरे पर बिखरे बालों को हटाते हुए कहा. फिर एक लंबी साँस छोड़ते हुए आगे बोला - "कभी कभी सोचता हूँ कंचन, अगर तुम मुझे ना मिलती तो मेरा क्या होता? कहाँ जाता मैं? कैसा होता मेरा जीवन? तुमने जो प्यार का नज़राना मुझे दिया है, मैं उसे कभी नही भुला सकता. तुम्हारा उपकार है मुझपर....कि तुमने मुझे अपने क़ाबिल समझा."

"ये क्या कह रहे हो साहेब? मैं इस लायक नही कि आप पर उपकार कर सकूँ. धन्य तो मैं हुई जो मुझे आप जैसा साथी मिला."

"तुम नही जानती कंचन, तुम्हे पाकर मैने क्या पाया है. मेरी सुनी ज़िंदगी तुम्हारे आने से आबाद हुई है कंचन. तुमसे पहले मेरी ज़िंदगी वीरान रेगिस्तान जैसी थी." रवि भावुकता से भर कर बोला.

"साहेब......!" कंचन रवि के कंधे पर अपना सर रखते हुए बोली - "मैं प्यार, मोहब्बत, नज़राना इनके बारे में ज़्यादा नही जानती, बस इतना जानती हूँ कि आप ही मेरी दुनिया हो, आपके बगैर मैं नही जी सकती. मुझसे कभी कोई भूल हो जाए तो जो जी चाहे सज़ा दे देना, पर कभी मुझसे रूठ मत जाना. नही तो मैं मर जाउन्गा."

रवि ने कंचन को अपनी बाहों में समेट लिया. कंचन भी बिना लोक लाज के उसकी बाहों में सिमट गयी. रवि की बाहों में आकर कंचन खुद को हर तरह से सुरक्षित महसूस करती थी. उसके मजबूत बाहों के घेरे में आकर उसे किसी चीज़ का भय नही रहता था. वो हर भय से मुक्त हो जाया करती थी.

कंचन अपनी आँखों को बंद किए उसके गर्म बाहों में पड़ी रही. उन दोनो के लिए वो पल जैसे थम सा गया था. वे खामोश थे किंतु उनकी धड़कने आपस में बातें कर रही थी. दोनो आँखें बंद किए एक दूसरे से लिपटे पड़े रहे. उन्हे किसी चीज़ का होश नही था. ना उन्हे समय का ज्ञान था. ना ही मौसम का.

लगभग 1 घंटा बीत चुका था. बारिश का शोर भी थम चुका था. अंधेरा उजाले को निगलता जा रहा था.

कुच्छ देर बाद रवि की आँख खुली. उसने बाहर नज़र दौड़ाया. मौसम सॉफ देखकर उसने धीरे से कंचन को पुकारा. - "कंचन उठो, देखो बाहर बारिश थम चुकी है. और सांझ भी ढल चुकी है. तुम घर नही जाओगी?"

रवि की आवाज़ से कंचन सचेत हुई. वा रवि से अलग होते हुए बाहर नज़र दौड़ाई. - "हाय राम ! कितनी देर हो गयी. बुआ तो मेरी जान ले लेगी." ये कहते हुए कंचन अपने खीर के डब्बे को हाथ में लेकर खड़ी हो गयी. फिर रवि को देखकर बोली. - "साहेब अब मुझे जाना होगा. नही तो सच में बाबा और बुआ बहुत परेशान होंगे."

"ठीक है. आओ चलें." रवि बोला और कंचन का हाथ पकड़कर बाहर निकल गया.

सड़क तक आने के बाद कंचन रवि से विदा लेकर घर के रास्ते बढ़ गयी. रवि भी बाइक पर बैठकर हवेली की ओर बढ़ गया.

*****

कल्लू तेज़ी से अपने घर की ओर बढ़ा चला जा रहा था. उसका दिल छल्नि छल्नी हो चुका था. वो इस वक़्त खुद को बहुत अकेला महसूस कर रहा था. इतना अकेलापन उसे आज से पहले कभी महसूस नही हुआ था. क्योंकि तब उसके साथ उसके अरमान होते थे, उसके सपने होते थे. किंतु आज वो सब कुच्छ उससे छिन गया था. अब ना तो उसके पास वो अरमान रहे थे और ना ही वो सपने.

वो ये बात शुरू से ही जानता था कि कंचन और उसका कोई मेल नही है. वो उसकी कभी नही हो सकती.....पर फिर भी उसके दिल में एक आस थी, जो उसके जीने का सहारा थी. वो कंचन को अपना मान कर तरह तरह की कल्पनायें किया करता था. रोज़ नये ख्वाब बुना करता था. अपने उन्ही ख्वाबों और कल्पनाओ के सहारे अपना दिन बीताया करता था. लेकिन अब कल्लू फिर से वैसी कल्पनायें नही कर सकता था. क्योंकि अब वो ये जान चुका था कि कंचन के दिल की धड़कनो को सुनने का अधिकार किसी और को है. उसके सुंदर शरीर को घेरे में लेने वाली मजबूत बाहें किसी और की हैं. उसके फूल से भी कोमल होंठों को चूम सके वे होंठ किसी और के हैं.

अपनी इन्ही विचारों में कराहता सिसकता कब वो अपने टूटे फुट झोपडे तक पहुँचा उसे पता ही ना चला. वह दरवाज़ा तेलकर अंदर दाखिल हुआ.

उसकी मा एक टूटी फूटी चारपाई पर लेटी हुई थी . घर में जहाँ तहाँ बारिश का पानी जमा पड़ा था. उसके खपरैल की छत से अभी भी बारिश का जमा पानी बूँद बूँद बनकर टपक रहा था.

कल्लू के आने की आहट से उसकी मा जाग कर चारपाई पर उठ बैठी. कल्लू भारी कदमो से चलता हुआ अपनी मा के पास पहुँचा. फिर वहीं मा के पैरों के पास गीली ज़मीन पर बैठते हुए अपना सर मा के घुटनो पर रख दिया. उसकी मा अपनी बूढ़ी और कमज़ोर उंगलियों को उसके बालों पर फेरने लगी.

जैसे दाई की नज़र से पेट नही छिपता वैसे ही मा के सामने उसके बच्चे की उदासी नही छिपती. कल्लू की मा एक नज़र में जान गयी कि आज कल्लू परेशान है. वैसे तो वो कल्लू की पीड़ा से परिचित थी. पर उसके दिल में कंचन के लिए जो तड़प थी उससे अंजान थी.

"क्या हुआ कल्लू? तू इतना उदास क्यों है?" उसके सर के गीले बालों को सहलाते हुए उसकी मा ने पुछा.

"मैं उदास नही हूँ मा. आज मैं बहुत थक गया हूँ. आज तुम्हारी गोदी में सर रखकर सोने का बड़ा मन कर रहा है. मुझे अपनी गोदी में लो ना मा." कल्लू ने लाख चाहा पर उसकी आवाज़ में करुणा आ ही गयी.

उसकी मा समझ गयी. आज फिर किसी ने उसके जिगर के टुकड़े का दिल दुखाया है. आज फिर किसी ने इसकी ग़रीबी का मज़ाक उड़ाया है. वह झुककर उसके माथे को चूमते हुए बोली. - "मेरे लाल.....मैं जानती हूँ आज फिर किसी ने तुम्हे सताया है. आजा मेरी गोद में अपना सर रख ले."

कल्लू उठा और चारपाई पर लेट गया. फिर अपना सर अपने मा की गोद में रखकर अपनी आखों को बंद कर लिया. आँखें बंद करते ही कंचन और रवि का प्रेम भरा मिलाप उसके आगे नाच उठा.. उसके सीने में एक दर्द सा उठा और उसकी आँखें डॅब्डबॉ आई. उसका गला ऐसे सुख गया जैसे महीनो से प्यासा हो. उसने लाख चाहा रोकले पर आँखों से आँसू छलक ही पड़े. उसकी आँखों से बहते हुए आँसू उसकी मा के दामन को भिगोने लगे.

बेटे की आँख से बहते आँसू देख उसकी ममता भी रो पड़ी. पर सिवाए उसे दिलासा देने के वह और कुच्छ भी ना कर सकी.

कुच्छ देर तक मा की गोद में सर रखे आँसू बहाने के बाद कल्लू के दिल का गुबार थोड़ा कम हुआ. वह उसी तरह अपनी मा के गोद में सर को रखे सो गया.

*****
नेक्स्ट डे.

दिन के 11 बजे होंगे. निक्की अपनी जीप में बैठकर हवेली से निकली. उसकी दिशा सरपंच के खेत थे. उसके दिलो दिमाग़ पर कल से एक ही व्यक्ति छाया हुआ था. वो था कल्लू.

कल शाम को जब उसका सामना कल्लू से हुआ था तब उसकी आँखों में एक ऐसी दर्द की परच्छाई देखी थी जो रह रह कर उसे बेचैन किए जा रही थी. जब भी आँखें बंद करती उसे कल्लू का उदास चेहरा और पीड़ा भरी आँखें दिखाई देते.

कल से वो ना तो रवि के बारे में सोच पाई थी और ना ही कंचन के बारे में. वैसे भी दीवान जी ने उसे उनके बारे में कोई भी निर्णय लेने से मना किया था. वो तो बस दीवान जी के लौटने की राह देख रही थी. किंतु आज उसे कल्लू से मिलने की इच्छा हो रही थी. उसे कल्लू के दुख का कुच्छ कुछु अनुमान हो गया था. और अब उसके देख को अपने दुख से मिलान कर रही थी.

कुच्छ ही देर में उसकी जीप कच्चे उबड़ खाबड़ रास्तों से होते हुए उस जगह पहुँची जहाँ पर सरपंच के खेत थे.

कल्लू उसे दूर से ही दिखाई दे गया. वो नंगे बदन चिलचिलाती धूप में गीले खेत की मिट्टी काटने में व्यस्त था. आस पास के खेतों में एक भी आदमी दिखाई नही दे रहा था. सरपंच जी कल्लू से कोई ना कोई काम हमेशा लेते रहते थे. कल्लू भी कभी मना नही करता था. उन्ही के खेतों में काम करके उसके घर का चूल्हा जलता था. सरपंच जी से बहुत कम पैसे मिलते थे. पर उसके अलावा कल्लू के पास और कोई चारा भी नही था. कोई दूसरा उसे काम दे नही सकता था. गाओं के दूसरे लोग अपने खेतों में खुद ही काम किया करते थे. ले देकर एक मुखिया जी ही थे जिनके पास कुच्छ करने को मिल जाता था. कोई दूसरा काम वो कर नही सकता था, क्योंकि वो नीर मूर्ख अग्यानि था. मा को छोड़ कर गाओं से बाहर काम पर जाने की भी उसकी हिम्मत नही होती थी. यही कारण था कि दिन दोपेहर रात....जब कभी मुखिया जी किसी काम को कहते वो बिना कोई सवाल किए उस काम में लग जाता. इस वक़्त भी वो उन्ही के आदेश से काम पर लगा हुआ था. वह पसीने से तार-बतर था. पसीने से भीगा उसका काला बदन सूर्य की रोशनी से चामक रहा था.

निक्की जीप से उतरी और खेत की आधे टेढ़े मेढ़ो पर चलते हुए कल्लू तक पहुँची. कल्लू अपने काम में ऐसे खोया हुआ था कि उसे निक्की के आने का पता तक ना चला.

निक्की उसे फावड़ा चलाते हुए देखती रही. कल्लू के हाथ जब फावड़ा लेकर उपर उठाते तो उसके बदन की सारी नशे फेडक उठती.भुजायें फूलकर चौड़ी हो जाती. उसे बचपन से ही मेहनत करते हुए लोगों को देखना अच्छा लगता था. लेकिन इस वक़्त उसे बेहद आश्चर्य हो रहा था कि उसके आए हुए 10 मिनिट हो चुके थे पर कल्लू ने पलटकर उसे देखा तक नही था.
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RE: Desi Porn Kahani काँच की हवेली - by hotaks - 05-02-2020, 01:13 PM

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