Desi Porn Kahani काँच की हवेली
05-02-2020, 01:14 PM,
#44
RE: Desi Porn Kahani काँच की हवेली
अपडेट 33

निक्की को गये हुए 10 मिनिट बीत चुके थे पर कल्लू अभी भी उसी स्थान पर खड़ा गहरी सोच में डूबा हुआ था. उसके मस्तिष्क में कुच्छ देर पहले की घटना का चलचित्र चल रहा था. उसे अब भी अपनी आँखों देखी पर बिस्वास नही हो रहा था. उसे लग रहा था जैसे कुछ देर पहले जो कुच्छ यहाँ हुआ वो एक सपना था. निक्की का यहाँ आना. उसके साथ अप्नत्व से भरी बातें करना, और फिर अमीरी ग़रीबी, और गोरे काले की भेद को मिटाकर उसके होंठों को चूमना. ये सब उसे सपना सा जान पड़ रहा था.

हां सच में उसके लिए ये सपना ही था. जो आदमी बचपन से लोगों की स्नेह और प्यार के लिए तरसता रहा हो. जिसे लोगों ने सदा जग हसाई का साधन समझा हो. बार- बार जिसका तिरस्कार किया गया हो. जिसके रंग रूप का कदम कदम पर मज़ाक बनाया गया हो. वो भला इसे हक़ीक़त मान भी कैसे सकता था. उसके लिए तो ये सपना ही हो सकता था.

कल्लू ये सोचकर हैरान था कि आज तक गाओं में कंचन को छोड़ कर किसी दूसरी लड़की ने उसके साथ ढंग से बात तक नही की थी. उस जैसे अभागे इंसान पर आज निक्की ने इतना प्यार लूटाया क्यों? उसके जिस काले और भद्दे सूरत को देखकर गाओं की सभी लड़कियाँ मूह फेर लिया करती थी आज निक्की ने उसे चूमा क्यों?

कल्लू के पास इसका उत्तर नही था. पर इस विचार ने उसकी आँखों में फिर से आँसू भर दिए थे कि वो हर किसी के लिए नफ़रत का पात्र नही है. वो भी इंसान है, उसे भी अधिकार है की वो किसी को चाहे, किसी को प्यार करे, किसी के सपने देखे. हर वो खुशी हाशील करे जो दूसरे करते हैं.

कल्लू गीली आँखों से उसी रास्ते की ओर देख रहा था जिस और निक्की गयी थी. आज उसका मन निक्की के प्रति श्रधा भाव से भर गया था. उसके लिए वो किसी देवी से कम नही थी. जिसके अंदर ना तो दौलत की अकड़ थी और ना ही खूबसूरती का घमंड.

कुच्छ देर तक यूँही रास्ता निहारने के बाद कल्लू. फिर से खेत पर पसीना बहाने चला गया.

*****

निक्की जब से कल्लू से मिलकर आई थी तब से उसकी के बारे में सोच रही थी. उसकी ज़िंदगी के बारे में जानकार उसे बड़ा दुख हुआ था. वह सोच रही थी - 'कैसे कोई इंसान इतना दुख झेलकर भी ज़िंदा रह सकता है. बचपन से ही वो अकेलेपन का शिकार रहा है. अकेलापन का दर्द क्या होता है ये मैं खूब जानती हूँ. मैं तो सिर्फ़ मम्मी पापा से दूर होकर उदास रहती थी. जीवन नीरस सा लगता था. पर कल्लू तो सारी ज़िंदगी अकेला जीया है. कोई साथी नही कोई दोस्त नही. कैसा दुखदायी रहा होगा उसका जीवन? लोग उसे हीन भावना से क्यों देखते हैं? बदसूरत है तो क्या हुआ? क्या वो इंसान नही है? मैं दूसरों की तरह कभी उसका दिल नही दुखाउन्गि. लेकिन आज मुझे हो क्या गया था? मैं उसकी बातें सुनकर अज़ीब सा महसूस करने लगी थी. ऐसा लगता था कोई मेरे शरीर में घुसकर मेरे मन के तारों को छेड़ रहा हो. जाने मुझे क्या हो गया था. वो कैसी पीड़ा थी जो मेरे दिल में उठी थी. वो किस तरह की भावना थी जिसके बहाव में बहकर मैं उसके होंठों को किस कर बैठी थी. मुझे ये भी ध्यान नही रहा कि वो कितना गंदा और मैला कुचेला है.

"बीबी जी" अचानक दरवाज़े पर मंगलू की आवाज़ गूँजी.

निक्की ने चौंक कर दरवाज़े की तरफ देखा. वहाँ पर उसे मंगलू खड़ा दिखाई दिया. - "क्या है मंगलू?" निक्की ने पुछा.

"बीबीजी....खाना यहीं लगा दूं या बैठक में आएँगी." मंगलू धीमे स्वर में पुछा.

"यहीं ले आओ." निक्की मंगलू से बोली और उठकर बिस्तर पर बैठ गयी.

थोड़ी देर में मंगलू उसका लंच रखकर चला गया. उसे बहुत जोरों की भूख लगी थी. उसने कल्लू से संबंधित सारी बातों को दिमाग़ से झटका और फिर खाने में व्यस्त हो गयी.


*****

शांता के कदम सुंदरी के घर की तरफ उठते जा रहे थे. आज शांता का मन उससे कुच्छ बातें करने का हो रहा था. कुच्छ ही देर में उसके कदम शांता के दरवाजे पर जाकर रुके. अमूमन गाओं के लोग घर के दरवाज़े खुले ही रखते हैं पर सुंदरी अपने घर का दरवाज़ा हमेशा बंद ही रखती थी.

शांता ने दरवाज़े की कुण्डी बजाई. थोड़ी देर की प्रतीक्षा के बाद दरवाज़ा खुला. दरवाज़ा सुंदरी ने ही खोला था.

"आओ बहिन, आज हमारे घर का रास्ता कैसे नाप ली.?" सुंदरी उसे देखते ही मुस्कुराकर बोली.

"अकेली घर पर जी नही लग रहा था भाभी. सोची थोडा तुमसे मिल आउ. अंदर आने की आग्या हो तो पावं धरू?" शांता ने दरवाज़े से खड़े खड़े कहा.

"अरे कैसी बात कर रही हो बहिन? अंदर आओ......तुम्हे आग्या की क्या ज़रूरत है? ये तो तुम्हारा ही घर है." सुंदरी ये कहते हुए शांता का हाथ पकड़ कर अंदर ले गयी.

शांता उसके साथ चलते हुए बैठक तक आई फिर एक और पड़े सोफे पर बैठ गयी. इस घर में वो पहले भी आ चुकी थी. पर उस वक़्त जब सुंदरी दुल्हन बनकर इस घर में आई थी. उसके बाद से उसका इस घर में दोबारा आना नही हुआ.

मुखिया जी ने घर में साजो सजावट के सारे सामान रख छोड़े थे. किसी चीज़ की कमी नही थी इस घर में. शांता घर की वैभवता को कुच्छ देर निहारती रही.

"क्या लोगि बहिन?" सुंदरी ने उसे टोका.

शांता मुस्कुराकर उसकी ओर देखते हुए बोली - "कुच्छ नही भाभी. व्यर्थ में परेशानी ना उठाओ. मैं तो बस तुमसे मिलने आई थी."

"तो फिर अपना कष्ट बताओ बहिन. उसका भी इलाज़ करा दूँगी." सुंदरी रहस्यमयी मुस्कुराहट छोड़ते हुए बोली.

"मुझे कोई कष्ट नही भाभी. तुम लोगों के होते मुझे कोई कष्ट हो सकता है भला." शांता फीकी मुस्कान लिए बोली.

"ना बताना हो तो ना सही." सुंदरी मूह बनाकर बोली - "पर मैं तुम्हे भी जानती हूँ और तुम्हारे कष्ट को भी."

शांता कुच्छ ना बोली. सिर्फ़ एक लंबी साँस लेकर रह गयी. कष्ट तो उसे सच में था. वो यूँही मिलने नही आई थी. उसे उसका अकेलापन सुंदरी के पास खींच लाया था. वो किसी का सान्निध्य चाहती थी. चाहें वो सुंदरी हो या बिरजू. लेकिन कहते हुए डरती थी. वो बेशर्मी के साथ अपनी पीड़ा सुंदरी के सामने नही रख सकती थी. उसमे इतनी निर्लजता नही थी.

"क्या सोचने लगी बहिन?" सुंदरी ने उसे खोया हुआ देख पूछा - "कुच्छ बोलो बतियाओ. जो दिल में लेकर आई हो कह दो बहिन. शायद मैं कोई मदद कर सकु" सुंदरी उसके जाँघो पर हाथ धरते हुए बोली.

शांता सोचती रही !

"किसी और का साथ चाहिए तो वो भी कर सकती हूँ. वो भी अभी." सुंदरी उसके जांघों पर हाथ फेरते हुए बोली.

शांता ने आश्चर्य से उसे देखा. सुंदरी के होंठ शरारत से मुस्कुरा रहे थे.

सुंदरी की बातें और उसकी हरकतें दोनो ही शांता के शरीर को गरमाने में लगे थे.

"सच कह रही हूँ. बिरजू यहीं है. अंदर कमरे में." सुंदरी उसके कान में फुस्फुसाइ. शांता के पूरे शरीर में चिंगारी दौड़ गयी. इस एहसास से कि बिरजू अंदर कमरे में है, ये सोचकर की उसके आने से पहले सुंदरी बिरजू के साथ बंद कमरे संभोग कर रही थी......उसकी देह सुलग उठी. साँसे गर्म होकर तेज़ तेज़ चलने लगी. शरीर भट्टी की तरह तपने लगा और उसके कानो से गर्म धुआँ सा निकलने लगा.

"चल....." सुंदरी उसकी मनोदशा का अनुमान कर उसका हाथ पकड़कर उठाते हुई बोली - "किसी को कुच्छ पता नही चलेगा की अंदर क्या हो रहा है. तू जब तक चाहे अपने अरमान पूरे करती रह. मैं बाहर पहरा देती हूँ."

"नही भाभी....मैं ये नही कर सकूँगी." शांता ने घबराकर अपनी कलाई छुड़ानी चाही पर असफल रही. उसका दिल ज़ोरों से धड़क रहा था. शांता लाचारी से सुंदरी को देखते हुए बोली - "मैं सच कहती हूँ मुझसे ये नही होगा. मैं लाख दुखी सही पर अपने माथे पर कुलटा होने का टीका नही लगा सकती."

शांता कह तो गयी. पर उसकी बातों में वो स्थिरता नही थी जो एक पतिव्रता नारी में होती है. उसका शरीर पुरुष संसर्ग के लिए तड़प रहा था. वह चाह रही थी कि अभी दौड़कर अंदर जाए और बिरजू से अपने तड़प्ते मन की प्यास बुझा लें. भूल जाए कि लोग क्या कहेंगे क्या सोचेंगे. बस आज वो किसी की हो जाए. जो आग कुच्छ दिनो से उसके शरीर को धीरे धीरे जला रही थी, उस आग को बिरजू के शरीर से लिपटकर बुझा ले.

सुंदरी को शांता की मनोदशा का पूरा ग्यान हो गया था. वो ये समझ चुकी थी शांता का इनकार दिखावा है. उसने शांता को और समझाना उचित नही जाना. वह उसे खिचते हुए कमरे के अंदर ले गयी.

अंदर बिरजू बिस्तर पर लेटा हुआ था. शांता को अंदर आते देख उसकी कामुक आँखें खुशी से चमक उठी. वहीं शांता का दिल जोरों से धड़क उठा. उसका पूरा शरीर घबराहट और उत्तेजना से बुरी तरह काँप रहा था.

"शांता अब लोक लाज छोड़ दे. अब तो मिलन की बेला है. देख कैसे तैयार बैठा है तेरा रसिया." सुंदरी बिरजू को देख एक कुटील मुस्कुराहट होंठों पर लाकर बोली. - "बिरजू ख्याल रखना इसका. बहुत दुखी है बेचारी. इसका सारा दुख आज दूर कर देना. कोई शिकायत नही मिलनी चाहिए."

सुंदरी ये कहकर बाहर चली गयी. जाते जाते दरवाज़ा भिड़ा गयी.

बिरजू शांता को देखकर नशे से भर उठा. वो किसी शराबी की तरह झूम कर उठा और शांता की तरफ बढ़ा.

बिरजू को अपनी ओर बढ़ते देख शांता का दिल जोरों से धड़का. पावं थर-थर काँपने लगे. उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे उसके टाँगों की शक्ति ख़त्म हो गयी हो और वो अभी लहराकार गिर पड़ेगी.

बिरजू आगे बढ़ा और शांता को कमर से थाम लिया. फिर उसे एक झटके में खुद से सटा लिया.. शांता के लिए अब पिछे हटना संभव नही रह गया था. उसकी युवा भावनाएँ उसके मस्तिष्क का साथ छोड़ चुकी थी. शांता अपने बदन को बिरजू के बदन से मिलाती चली गयी.

बिरजू ने शांता को अपने मजबूत बाहों से उठाया और बिस्तर पर गिरा दिया. फिर स्वयं पलंग पर चढ़कर शांता के उपर झुकता चला गया. अगले ही पल शांता के होंठ उसके होंठों की गिरफ़्त में थे. शांता की गर्म साँसे बिरजू के चेहरे से टकरा रही थी. और बिरजू दीवानवार उसके होंठों को चूस्ता जा रहा था. साथ ही अपने हाथों से उसके कमर और जाँघो को सहला रहा था.

शांता लगभग होश खो चुकी थी. यही दशा बिरजू की भी थी. वह शांता के होंठों को चूस्ते हुए उसकी गर्दन तक आया और अपने जलते हुए होंठों से उसकी गर्दन को चूमने लगा.

"क्या जिस्म पाया है तुमने कंचन, तुम नही जानती तुम्हारे इस शरीर ने मेरी काई रातों की नींद उड़ा रखी थी. आज मैं सारी थकान तुमपर उतारूँगा." ये कहते हुए बिरजू उसके ब्लाउस के बटन्स खोलने लगा.

शांता के दिमाग़ को एक तेज़ झटका लगा. उसने मदहोशी में भी जो शब्द सुने थे वो अब भी उसके कानो में गूँज रहे थे. बिरजू ने उसे कंचन कहकर संबोधित किया था.

जब इंसान किसी के बारे में हद से ज़्यादा सोचने लगता है तब वो किसी दूसरे के नाम की जगह में उसका नाम ले लेता है. बिरजू से भी यही भूल हो गयी थी. उसने शांता के नाम की जगह कंचन का नाम ले लिया था. जिसे सुनकर शांता के होश उड़ गये थे.
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RE: Desi Porn Kahani काँच की हवेली - by hotaks - 05-02-2020, 01:14 PM

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