RE: Desi Porn Kahani काँच की हवेली
अपडेट 35
वो तेज़ी से पिछे हटीं.
कंचन का झाड़ू सनसानता हुआ उनके चेहरे को हवा देता निकल गया. और सीधा दरवाज़े के खुले पट से जा टकराया.
कमला जी गिरते गिरते बची. उन्होने संभलते हुए आश्चर्य से कंचन को देखा.
उस अजनबी औरत को देखकर कंचन की बोलती बंद हो गयी. ये सोचकर कि अभी वो इस औरत को झाड़ू मार देती खुद से शर्मिंदा हो गयी. उसके तत्काल समझ में नही आया कि वो इस औरत से क्या कहे.
"ये क्या मूर्खता है लड़की." कमला जी कंचन के गंदे हुलिए और उसके गँवारो जैसी हरकत पर गुस्से से चीखी. - "क्या तुम्हारे यहाँ घर आए मेहमान का ऐसे स्वागत करते हैं?"
"म....माफी चाहती हूँ मा जी. मुझसे भूल हो गयी. मैं आपको देख नही पाई थी." कंचन शर्मिंदा होते हुए बोली.
"क्या तुम्हारा ही नाम कंचन है?" कमला जी ने अगला सवाल किया. और फिर से कंचन को उपर से नीचे तक घूरा.
"ज.......जी हां." कंचन थूक निगलकर बोली. कमला जी के मूह से अपना नाम सुनकर उसकी आँखें हैरत और घबराहट से चौड़ी हो गयी थी.
"तुम्हारे बाबा और बुआ हैं घर पर? मुझे रवि ने यहाँ भेजा है. मैं उसकी मा हूँ." कमला जी ने अपना परिचय दिया.
"क....क्या....? आ.....आप......साहेब की मा जी हैं?" कंचन का चेहरा खुशी से खिल उठा. पर ये खुशी क्षण भर के लिए थी. अगले ही पल इस विचार के आते ही की उसने अभी भी इनपर झाड़ू से हमला किया था. उसके चेहरे से सारी खुशी गायब हो गयी..
इस एक पल में सैंकड़ों बुरे विचार उसके कोमल मन में आकर चले गये. ये जान लेने के पश्चात कि जिस औरत को अभी वो झाड़ू मारने वाली थी वो रवि की मा है.....कंचन के हाथ पावं फूल गये थे.
उसने झट से अपने दोनो हाथों को उन्हे प्रणाम करने हेतु जोड़ दिए. उसके ऐसा करने से उसके हाथ में थमा झाड़ू एक बार फिर से कमला जी के आगे लहरा गया. कंचन फिर से बौखला गयी, उसने झाड़ू को एक ओर फेंका और अपनी छाती से बँधे दुपट्टे को खोलकर घूँघट ओढ़ ली.
कमला जी खड़ी-खड़ी कंचन की हरकतों को देख रही थी.
कंचन ने घूँघट काढने के बाद काँपते स्वर में बोली - "आ.....आप अंदर आइए ना माजी. आप बाहर क्यों खड़ी हैं?"
कमला जी आँगन में दाखिल हुई. एक नज़र उन्होने पूरे आँगन पर घुमाया फिर अपनी नज़रें कचे मिट्टी से बने खपरैल के घर पर टीका दी.
कंचन उनके पिछे ही खड़ी थी. वह बुरी तरह से घबराई हुई थी. उसकी समझ में नही आ रहा था कि वो क्या कहे क्या करे. उसकी जगह कोई और होता तो अब तक कमला जी के बैठने के लिए चारपाई या कोई कुर्सी ले आता. पर कंचन को इतनी अक़ल ना थी. और जो थी भी तो इस वक़्त काम नही कर रही थी. वह सहमी सी खड़ी सोचती रही.
"अपने बाबा और बुआ को मेरे आने की सूचना दो." कमला जी ने कंचन को तुच्छ नज़रों से देखते हुए कहा.
"जी.....अभी बुलाई." कंचन तेज़ी से बोली, फिर अंदर को भागी.
"बुआ...." बरामदे में पहुँचते ही कंचन ने उँची आवाज़ में शांता को पुकारा. उसकी आवाज़ में तेज़ कंपन थी.
"क्या हुआ कंचन?" बुआ कपड़ों की गठरी हाथ में लिए बाहर निकली.
"बुआ साहब की मा जी आई हैं. वो तुमसे और बाबा से मिलना चाहती हैं." कंचन घबराते हुए बोली.
"कौन साहेब? किसकी बात कर रही तू?" शांता आश्चर्य से कंचन को देखते हुए बोली.
"बुआ, मैं हवेली के डॉक्टर साहेब की बात कर रही हूँ. उनकी मा जी आईं हैं." कंचन रुन्वान्सि होकर बोली.
"लेकिन वो हमारे घर क्यों आईं हैं?" बुआ ने अगला सवाल किया - "और तू इतनी घबराई हुई क्यों है?"
"बुआ मा जी मुझे देखने आईं हैं. साहेब मुझे जानते हैं, वो मुझसे शादी करना चाहते हैं. इसीलिए उन्होने मा जी को यहाँ भेजा है." कंचन धड़कते दिल से बोली.
"क्या...?" बुआ ने आश्चर्य से कंचन को देखा -"पर तूने पहले क्यों नही बताया हमें?
कंचन की नज़रें शर्म से झुक गयी.
"ठीक है....तुम अंदर जाओ. मैं उन्हे देखती हूँ." शांता कंचन के भावों का अनुमान लगाकर बोली.
कंचन सहमति में सर हिलाई और तेज़ी से अंदर चली गइई.
शांता अंदर से एक धूलि हुई चादर उठा लाई और बरामदे में खड़ी चारपाई को गिरा कर उसपर बिच्छा दी फिर कमला जी के पास गयी.
"नमस्ते जी." शांता कमला जी के पास जाते हुए बोली. उसके शब्दों में आदर के पुट थे. उनमें मिशरी से भी अधिक मिठास थी. और होती भी क्यों ना बात कंचन की ज़िंदगी की थी.
कमला जी शांता की तरफ पलटी. एक नज़र उन्होने शांता के पहनावे पर डाला फिर जवाब में उन्होने भी हाथ जोड़ दिए - "नमस्ते."
"आप अंदर आइए बेहन जी." उसने कमला जी से कहा और उनको लेकर अंदर बरामदे तक आई. फिर उन्हे चारपाई पर बैठने का आग्रह किया.
कमला जी सकुचाती हुई चारपाई पर बैठ गयी.
शांता अंदर जाकर पानी और थोड़ा नाश्ता लेकर आ गयी. कुच्छ ही देर में सुगना भी बदन पर कुर्ता डाल कर बाहर आ गया.
कंचन अंदर ही दुब्कि पड़ी थी. और दरवाज़े से कान लगाए बाहर होने वाली बातों को सुनने का प्रयास कर रही थी. उसका दिल रह रह कर ज़ोरों से धड़क उठता था. मन में तरह-तरह के सैंकड़ों विचार आ रहे थे. उसका नन्हा मन अनेकों शंकाओ के झूले में झूल रहा था. उसे लग रहा था वो अब गिरी- तब गिरी.
बार बार मन में एक ही बात सोचे जा रही थी. -"क्यों मैं चिंटू को मारने दौड़ी, भाई ही तो था मेरा, जो मैं उसे माफ़ कर देती तो कितना अच्छा होता. ना मैं उसे मारने को जाती ना माजी के सामने मुझे शर्मिंदा होना पड़ता. अब ना जाने मा जी मेरे बारे में क्या सोच रही होंगी? अब तो मा जी मुझे अपनी बहू कभी स्वीकार नही करेंगी. मुझसे कितनी बड़ी भूल हो गयी."
कंचन मन ही मन ईश्वर से प्रार्थना करने लगी - 'हे प्रभु इस बार मुझे बचा लो, कोई चमत्कार कर दो, मा जी के दिल में मेरे लिए प्यार भर दो, कसम खाती हूँ आज के बाद अपने छोटे भाई पर कभी नाराज़ नही होउंगी, कभी उसे नही मारूँगी. उसकी हर ज़िद्द सहूंगी. ज़रा भी गुस्सा नही करूँगी. बस इस बार बचा लो मेरे प्रभु'
अचानक ही उसके कानो से कमला जी की आवाज़ टकराई. वो कह रही थी - "सुगना जी मेरा एक ही बेटा है, बड़े कष्ट से पाला है उसे. हज़ार दुख उठाए हैं मैने उसके लिए. मैं उसकी खुशी चाहती हूँ, और इसीलिए आपके द्वार तक आई हूँ."
"ये तो हमारे लिए बड़े सौभाग्य की बात है बेहन जी की आप मुझ ग़रीब के घर आईं. वरना हमारे ऐसे नसीब कहाँ की अपनी बेटी का रिश्ता आप जैसे लोगों के घरों में कर सकें." सुगना ने कमला जी की बातों का उत्तर दिया. वो कमला जी के नज़दीक ही स्टूल पर बैठा हुआ था. शांता उसके बगल में खड़ी थी.
"मैने अमीरी-ग़रीबी को कभी महत्व नही दिया है. सच पूछिए तो हम लोग भी कोई बड़े धनी नही हैं, फाकों की ज़िंदगी भी देखी है मैने. हां अब हालत पहले से सुधर गये हैं. मैं तो हमेशा यही सोचती आई हूँ कि रवि की शादी ऐसे घर में करूँ जहाँ शभ्य और संस्कारी लोग रहते हों. फिर चाहें वो हल चलाने वाले किसी किसान का घर हो या महलों में रहने वाले राजा का. मेरे लिए दोनो समान हैं." कमला जी सपाट लहज़े में बोली.
"आप धन्य हैं बेहन जी, ईश्वर ने आपको बहुत अच्छा दिल और उँचे विचार दिए है." सुगना ने अपने शब्दों में आदर और शीतलता भरते हुए कहा. वो नही चाहता था कि उसके किसी भी बात से कमला जी कोई ठेस पहुँचे. वह आगे बोला - "मेरी कंचन के तो भाग्य खुल गये जो वो आपके घर की बहू बनने जा रही है. आप जैसा कुटुम्ब हमें मिला, ईश्वर से हमें और कुच्छ नही चाहिए."
"मैं इस संबंध में 2 दिन बाद उत्तर दूँगी. मैने कल एक पंडित जी को बुलवाया है, उनसे मिलने के बाद ही आपको बता सकूँगी. फिलहाल तो मैं आप लोगों से मिलने आई थी. और अब जाने के अनुमति चाहती हूँ." कमला जी चारपाई से उठते हुए बोली.
"जी जैसी आपकी इच्छा. पर कुच्छ भोजन...पानी करके जाती तो हमारा मान बढ़ जाता...!" सुगना ने झिझकते हुए कमला जी से आग्रह किया.
"क्षमा चाहती हूँ आप लोगों से. खाने के लिए मैं किसी और दिन आपके घर आ जाउन्गि. आज के दिन मैं ठाकुर साहब से ये कह के आई हूँ कि दोपेहर का भोजन मैं हवेली में ही करूँगी." कमला जी बोली और सुगना तथा शांता को नमस्ते कहकर बाहर जाने लगी.
शांता और सुगना उन्हे बाहर तक छोड़ने आए. बाहर हवेली का ड्राइवर जीप लिए खड़ा था. कमला जी ने जीप में बैठने से पहले अंतिम बार सुगना और शांता को नमस्ते किया फिर जीप में बैठकर हवेली को मूड गयी.
कुच्छ ही देर में कमला जी हवेली में दाखिल हुई. उन्हे हॉल में निक्की बैठी दिखाई दी.
कमला जी को देखकर निक्की झट से सोफे से उठ खड़ी हुई. और फिर अपने होंठो पर मुस्कान भरते हुए उन्हे नमस्ते किया.
कमला जी धीरे से चलती हुई निक्की के पास गयी. और प्यार से उनके सर पर हाथ फेरा. उनके इस स्नेह से निक्की की आँखें भर आई.
कमला जी बिना कुच्छ बोले मूडी और अपने कमरे की ओर बढ़ गयी. निक्की भीगी पलकों से उन्हे जाते हुए देखती रही.
*****
"क्या हुआ मा? तुम्हे कंचन कैसी लगी? कुच्छ बताओ भी. जब से कंचन से मिलकर आई हो चुप बैठी हो, कुच्छ बोलो ना मा.?" रवि ने व्याकुलता के साथ अपनी मा से पुछा.
रवि इस वक़्त कमला जी के कमरे में उनके बराबर सोफे पर बैठा हुआ था. कमला जी उदास और खामोश थी. रवि ने काई बार उनसे कंचन के बारे में पुछा पा उन्होने कोई जवाब नही दिया. थक हार कर रवि भी चुप बैठ गया.
"मुझे कंचन पसंद नही." कुच्छ देर खामोश रहने के बाद कमला जी ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा.
"क....क्या?" रवि ने चौक कर मा को देखा - "लेकिन क्यों मा? आख़िर उसमे बुराई क्या है?" रवि ने आश्चर्य से कहा.
"ये कहो कि उसमे अच्छाई ही क्या है?" कमला जी गुस्से से खड़ी होते हुए बोली - "किसी चीज़ का सालीक़ा नही है उसके अंदर, गँवारो जैसी कपड़े पहनती है, मूर्खों जैसी हरकतें हैं उसकी, ना बात चीत का तरीका जानती है ना बड़ों का लिहाज़, तुम कैसे उस लड़की को हमारे घर की बहू बनाने के लिए तैयार बैठे हो?"
"मा तुम कंचन से ही मिलकर आ रही हो ना? या किसी और लड़की से?" रवि ने आश्चर्य से मा को देखा - "मुझे लगता है तुम किसी ग़लत घर में चली गयी होगी. तुम जो बता रही ऐसा एक भी दोष कंचन में नही है."
"मज़ाक बंद करो रवि...!" कमला जी गुस्से में बोली - "तुम्हारी आँखों में प्यार का नशा चढ़ा हुआ है. इसलिए तुम सही ग़लत के फ़र्क को भूल गये हो. मैं इस विषय में अब और कुच्छ कहना सुनना नही चाहती. बेहतर होगा कि तुम कंचन का ख्याल दिल से निकाल दो और निक्की से शादी के लिए हां कह दो."
"नही मा, कंचन कोई वस्तु नही जो आपको पसंद आए तो ही घर में लाउ. वो एक जीती जागती लड़की है, वो नादान है, भोली है, कम पढ़ी लिखी है, ग़रीब है पर बुरी नही, वो लाखों में एक है उसका दिल हीरे की तरह है, और सबसे बड़ी बात तो यह है की वो मुझसे बेपनाह प्यार करती है, ऐसी लड़की को मैं तन्हा कष्ट उठाने के लिए नही छोड़ सकता." रवि ढृढ संकल्प में बोला. उसके शब्दों में चट्टान सी सख्ती थी.
कमला जी रवि से कुच्छ कहती उससे पहले दरवाज़े पर किसी ने दस्तक दी.
रवि दरवाज़े की तरफ बढ़ा.
रवि ने दरवाज़ा खोला. बाहर दीवान जी खड़े थे.
"आप....! आइए अंदर आइए." रवि ने आश्चर्य प्रकट करते हुए कहा. - "कोई आवश्यक काम था तो आप मुझे बुला लेते."
"नही रवि बाबू....बस आप लोगों का हाल जानने आ गया." दीवान जी अंदर आते हुए बोले - "सब कुशल तो है यहाँ? आप लोगों को कोई दिक्कत हो तो मुझसे बिना किसी झिझक के कह दीजिएगा. हवेली का पुराना वफ़ादार हूँ. मैं आप लोगों की सेवा में तत्पर हाज़िर रहूँगा."
"आप जैसे सच्चे लोग संसार में बहुत कम ही देखने को मिलते हैं. ईश्वर की कृपा से हमें कोई परेशानी नही हां ज़रूरत पड़ी तो हम आपकी मदद ज़रूर लेना चाहेंगे." कमला जी दीवान को सम्मानित करती हुई बोली.
किंतु दीवान जी के कानो तक कमला जी की बात नही पहुँची, उनका ध्यान कही और था. अचानक ही उन्होने कुच्छ ऐसा देख लिया था कि उनके चेहरे का रंग उड़ गया था.
"ये ताश्वीर किनकी है?" दीवान जी ने बिस्तर के सिरहाने स्टूल पर रखे एक फोटो फ्रेम की और इशारा करते हुए पुछा.
"ये मेरे पति हैं" ये कहते हुए कमला जी गंभीर हो उठी.
जबकि दीवान जी ये सुनते ही बुरी तरह से चौंक पड़े. गनीमत थी कि रवि और कमला जी की नज़र फोटो की तरफ थी इसलिए उनका चौंकना दोनो ही नही देख पाए.
"पर आपके पति हैं कहाँ? पहले कभी इनका ज़िक्र नही सुना आप लोगों से." दीवान जी अपने मन की घबराहट छुपाते हुए बोले.
"अब पता नही कहाँ हैं आज कल......रवि जब 6 साल का था तभी उन्हे किसी काम के सिलसिले में घर से दूर जाना पड़ा. तब के गये आज तक नही लौटे हैं." कमला जी पीड़ा से कराह कर बोली. उनकी आँखों के कोरों पर आँसू की बूदे छलक आई. रवि ने आगे बढ़कर मा को दिलासा दिया.
"ओह्ह....माफ़ कीजिएगा. मैने अंजाने में आपके दुख को छेड़ दिया." दीवान जी शर्मिंदा होते हुए बोले. - "अच्छा अब मैं चलता हूँ. और हां आप लोगों को किसी भी चीज़ की दिक्कत हो तो ज़रूर कहिएगा."
"जी शुक्रिया." कमला जी ने उत्तर दिया.
"नमस्ते आग्या चाहता हूँ." दीवान जी बोले फिर एक नज़र रवि पर डालकर तेज़ी से बाहर निकल गये.
रवि उन्हे जाते हुए देखता रहा.
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