RE: Desi Porn Kahani काँच की हवेली
अपडेट 36
निक्की अपने बिस्तर पर गुम्सुम लेटी हुई थी. उसकी आँखें शुन्य में टिकी हुई थी. ऐसा नही कि वो चिंतित थी. वो केवल ख्यालो में खोई हुई थी. आज उसके ख्यालों में पिच्छले 3 दिनो से बसा रहने वाला ग़रीब कल्लू नही था. बल्कि खूबसूरत व्यक्तित्व का स्वामी रवि था.
जब से रवि की मा आई थी, निक्की का मन बार बार रवि की और जा रहा था. वो रवि के बारे में अधिक सोचना नही चाहती थी. पर दिल पर किसका ज़ोर चला है. वह तो एक ऐसा बेलगाम घोड़ा है जो अपनी मर्ज़ी से जिस और चाहे सरपट भागता है और अपनी मर्ज़ी से लौट आता है.
निक्की का दिल भी एक बार फिर बेलगाम होकर रवि की तरफ भागा जा रहा था. कल्लू के दुख से रु-बरु होने के बाद रवि के प्रति उसके जो अरमान सो गये थे. अब कमला जी के आते ही फिर से जाग उठे थे. अब उसका मन फिर से उसे हासिल करने को मचल उठा था.
निक्की काँच की बनी भीतरी छत (सीलिंग) को घूरते हुए इन्ही विचारों में खोई हुई थी कि तभी दरवाज़े पर किसी ने दस्तक दी.
"कौन है?" निक्की बिस्तर पर उठकर बैठते हुए बोली.
बाहर जो शख़्श था वो निक्की के सवाल का जवाब देने के बजाए धीरे से दरवाज़ा खोलकर अंदर आया. निक्की उसे देखते ही संभलकर बैठ गयी. ये दीवान जी थे. कमला जी और रवि से मिलने के बाद वो सीधा निक्की के पास आए थे.
दीवान जी निक्की के बराबर बिस्तर पर जाकर बैठ गये. फिर अपना दायां हाथ उसके सर पर प्यार से फेरते हुए बोले - "कैसी हो निक्की बेटा?"
"अच्छी हूँ अंकल." निक्की ने फीकी मुस्कुराहट के साथ कहा.
"तुम चिंता ना करो बेटा, जब ता ये बूढ़ा जी रहा है तब तक तुम्हारे अधिकारों पर कोई दूसरा डाका नही डाल सकता."
"क्या बात है अंकल? आप कुच्छ परेशान लग रहे हैं." निक्की दीवान जी की उतरी हुई सूरत को देखकर बोली.
"निक्की बेटा, मैं आपके पास आने से पहले रवि और उनकी माता जी के साथ बैठा हुआ था."
रवि का नाम सुनते ही निक्की ने अपनी नज़रें नीचे कर ली. रवि के ज़िक्र से उसका चेहरा फिर से उदास हो गया.
"क्या कहा उन्होने?" निक्की दीवान जी के चेहरे को देखते हुए बोली.
"कुच्छ खास बातें नही हुई, मैं बस उनसे दुआ सलाम करके निकल आया. पर तुम चिंता ना करो.....मैं सब ठीक कर दूँगा." दीवान जी उसे तसल्ली देते हुए बोले.
जवाब में निक्की ने खामोशी से अपनी गर्दन झुका दी.
"अच्छा अब मैं चलता हूँ." दीवान जी उठते हुए बोले - "मैं बस तुम्हे देखने और ये कहने आया था कि तुम बेफिक़र रहो. रवि को तुमसे कोई अलग नही कर सकता."
निक्की इस बार भी कुच्छ ना बोली. बस दीवान जी के उठते ही वो भी उठ खड़ी हुई.
दीवान जी मुड़े और दरवाज़े से बाहर निकल गये.
दीवान जी के जाते ही निक्की वापस बिस्तर पर फैल गयी और पुनः उन्ही विचारों में खो गयी.
*****
कंचन झरने के किनारे उसी पत्थेर पर बैठी हुई थी. जहाँ अक्सर बैठकर रवि का इंतेज़ार किया करती थी.
उसके मन में एक उदासी सी छाई हुई थी. आज सुबह की घटना का असर अब भी उसके मस्तिष्क पर शेष था. जब से कमला जी उसके घर आई थी, तब से वो मुस्कुराना भूल गयी थी. आज सुबह कमला जी के जाने के बाद वो काफ़ी देर तक सिसकती रही थी. उसके दिल में एक अंजना सा भय समा गया था. उसे ऐसा अनुभव हो रहा था जैसे अब वो कभी रवि से नही मिल सकेगी. इस एहसास से कि अब उसे रवि के बिना ही जीना पड़ सकता है उसके आँसू नही थम रहे थे.
शांता बुआ काफ़ी देर तक उसे समझाती रही थी.
सुगना का दिल भी अपनी जान से प्यारी बेटी को रोता देख उदास हो गया था. उसके ईए संसार में कंचन से कीमती कुच्छ भी ना था. वा तो कंचन की खुशी के लिए अपने शरीर के माँस तक को बेच सकता था. परंतु कंचन के इस पीड़ा का इलाज़ उसके पास भी नही था. लेकिन उसने ये ज़रूर तय कर लिया था कि चाहें उसे कमला जी के पावं पर क्यों ना गिरना पड़े, वो गिरेगा, पर अपनी बेटी की खुशियों को आग लगने नही देगा.
उसने कंचन से रवि के बारे में कुच्छ भी पुच्छना आवश्यक नही समझा. कंचन का उदास चेहरा और उसकी आँखों से बहते मोती सरीखे आँसू इस बात के साक्षी थे कि वो रवि से कितना प्यार करती थी.
सुगना और शांता ने कंचन को समझा बुझाकर चुप तो करा दिया था पर उसकी उदासी दूर नही कर पाए थे.
कंचन सारा दिन उदास रही थी. चिंटू की शरारातें भी उसके होंठों की हँसी को वापस नही ला पाई थे
कंचन को इंतेज़ार करते हुए 30 मिनिट से भी ज़्यादा वक़्त हो चला था. वह बार-बार अपनी नज़र उठाकर रास्ते की ओर देखती....किंतु रवि को ना आता देख उसकी उदासी बढ़ जाती.
'कहीं ऐसा ना हो की साहेब मुझसे मिलना ही ना चाहते हों? कहीं माजी ने साहेब से ये ना कह दिए हों कि मैने उन्हे झाड़ू से मारा है - जो माजी ने सच-मच में यही बात साहेब से कही होंगी तो फिर साहेब मुझे कभी माफ़ नही करेंगे. वे तो मुझसे नाता ही तोड़ लेंगे.' लेकिन ईश्वर जानता है कि मैं झाड़ू माजी के लिए नही उठाई थी, वो तो मैं चिंटू को मारना चाहती थी. तभी माजी सामने आ गयीं,
और फिर मेरा झाड़ू माजी को लगा भी नही था. क्या इतनी सी बात के लिए साहेब मुझे छोड़ देंगे. उन्होने तो मुझे जीवन भर साथ देने का वादा किया है. क्या वो अपना वादा भूल जाएँगे? क्या सच में मैं उनसे अब कभी नही मिल सकूँगी? जो सच में साहेब मुझे छोड़ गये तो मेरा क्या होगा.?' कंचन के शंका पूर्ण विचार उसका पीछा नही छोड़ रहे थे.
कंचन यूँही गुमशुम, उदास सी बैठी रही. इस वक़्त वा खुद को बहुत अकेला और कमज़ोर महसूस कर रही थी. शरीर हौले हौले ऐसे काँप रहा था जैसे हवा का एक मामूली सा झौंका उसे उड़ा ले जाएगा.
"कंचन !" सहसा उसके कानो से रवि का स्वर टकराया.
कंचन रवि की आवाज़ से चौक-कर पलटी. फिर रवि पर नज़र पड़ते ही वह झटके से खड़ी हुई. पर हमेशा की तरह दौड़कर उसकी छाती से नही लगी. आज उसके कदम जहाँ के तहाँ चिपके रह गये. वह उसी जगह से खड़े खड़े रवि की टक-टॅकी लगाए देखने लगी. उसकी आँखों में गीलापन था. कंचन अपनी भीगी पलकों से रवि को ठीक वैसे ही देख रही थी जैसे कोई मरने वाला ज़िंदगी की और हसरत से देखता है.
रवि को अपने पास देखकर उसका मन भावुकता से भर उठा था. देखते ही देखते उसके अंदर की पीड़ा आँसू बनकर बाहर निकली और उसके गुलाबी गालों में फैल गयी.
"कंचन क्या हुआ?" रवि एक दम से उसके पास जाते हुए बोला
"साहेब.....मुझे माफ़ कर दो, मेरी वजह से माजी का अपमान हुआ और वो मुझसे नाराज़ होकर मेरे घर से लौट गयी. पर साहेब......मैं सच कहती हूँ मैने कुच्छ भी जानकार नही किया. मुझसे ये ग़लती अंजाने में हुई थी. आप जो भी मन करे मुझे इसकी सज़ा दे दो पर मुझसे मूह मत फेरो. मैं आपके बगैर नही जी........." इसके आगे के शब्द उसके गले के भीतर ही घुट कर रह गये. रवि ने फुर्ती से अपना हाथ उसके मूह पर रख दिया था.
"कुच्छ ना कहो कंचन....!" रवि उसे कंधे से पकड़ अपने करीब लाते हुए कहा. फिर उसे उसी प्रकार पकड़े हुए खाई के और करीब ले गया.
"ये देख रही हो कंचन?" रवि ने अपनी उंगली का इशारा गिरते झरने की ओर करते हुए कहा. - "ये ठीक तुम्हारी तरह है. और मैं उस झील की भाँति हूँ. जिसकी गोद में ये झरना गिर रहा है. जैसे इस झरने के बिना उस झील का कोई वज़ूद नही वैसे ही तुम्हारे बिना मेरा भी कोई वज़ूद नही. मैं जानता हूँ कि तुम किस बात से उदास हो, तुम शायद ये सोच रही होगी की मैं कहीं मा के दबाव में आकर तुमसे अपने संबंध ना तोड़ लूँ., नही कंचन........आज मैं इस प्रकृति में मौजूद हर चीज़ को, ये नदियाँ, पर्वत, झील, झरने, दूर तक फैली हुई ये वादियाँ इन सब को साक्षी मानकर कहता हूँ कि मैं तुम्हारा साथ कभी नही छोड़ूँगा. चाहें उसके लिए कोई भी कीमत चुकानी पड़े. पर तुम्हारा साथ कोई अन्याय नही करूँगा"
"साहेब...!" कंचन फफक-कर बोली और रवि से लिपट गयी. रवि ने उसे अपनी छाती में छुपा लिया.
कंचन रवि की मजबूत बाहों के घेरे में अपनी सारी पीड़ा भूल गयी थी. वह जब भी रवि के बाहों में होती थी उसे किसी चीज़ का भय नही रहता था. वह बिल्कुल उसी प्रकार निश्चिंत हो जाया करती थी. जैसे कोई दूधमुहा बच्चा अपनी मा की गोद में जाकर निश्चिंत हो जाता है.
कुच्छ देर यूँही लिपटे रहने के बाद रवि ने उसे पुकारा. - "कंचन....जब मा तुम्हारे घर आई थी तब हुआ क्या था? मा जब हवेली लौटी तो काफ़ी उखड़ी हुई थी."
रवि की बात सुनकर कंचन ने अपना चेहरा उपर उठाया. फिर रवि को देखते हुए बोली - "माजी क्या कह रही थी साहेब? वो तो मुझपर बहुत बिगड़ रही होंगी"
"नही.....ऐसा नही है. पर नाराज़ ज़रूर थी. वैसे हुआ क्या था?"
कंचन पहले घबराई फिर झिझकते हुए सुबह की घटना ज्यों का त्यों रवि को सुनाने लगी.
उसकी पूरी बात सुन लेने के बाद रवि हंसते हुए कंचन से कहा - "तो तुम मा को झाड़ू से मारने वाली थी. फिर तो मा का गुस्सा जायज़ है."
"साहेब मैं माजी से माफी माँगना चाहती हूँ. वो मुझे माफ़ तो कर देंगी ना?" कंचन घराहट भरे स्वर में बोली.
"हां क्यों नही." रवि ने प्यार से कंचन के गाल थपथपाते हुए कहा - "मा नाराज़ ज़रूर है पर मैं जानता हूँ वो करेगी वही जो मैं चाहूँगा. क्योंकि उन्होने मुझे बचपन से ही बहुत प्यार किया है. लेकिन उन्हे मनाने में थोड़ा समय लगेगा. और जब तक मैं मा को मना ना लूँ हम पहले की तरह नही मिल सकते. ऐसे माहौल में मिलना ठीक नही रहेगा."
"लेकिन......मैं आपसे मिले बिना नही रह सकूँगी साहेब." कंचन जुदाई की बात से घबरा उठी.
"कुच्छ दिन के लिए हमें दूरी बनानी ही होगी कंचन." रवि ने उसे समझाया. - "मैं नही चाहता कि हमारी अधिरता हमारे लिए कोई नयी परेशानी लेकर आए."
"ठीक है साहेब." कंचन मायूस होकर बोली - "जो आप ठीक समझे."
"उदास ना हो कंचन.....सब ठीक हो जाएगा." रवि कंचन को गले लगाते हुए कहा.
कंचन उसके गले लगकर सूबक उठी. रवि उसे दुलारता रहा.
|