Desi Porn Kahani काँच की हवेली
05-02-2020, 01:16 PM,
#49
RE: Desi Porn Kahani काँच की हवेली
शाम के 4 बजे हैं.

कंचन इस वक़्त गाओं के मंदिर की सीढ़ियाँ चढ़ रही है. उसके हाथ में पूजा की थाली है. सफेद सलवार कमीज़ में वो किसी अप्सरा की तरह सुंदर लग रही है. और अपने कपड़ों की ही भाँति सॉफ और स्वच्छ दिखाई दे रही है.

आज उसका मन किया कि वो मंदिर जाकर पूजा करे. और अपने प्यार की सलामती की प्रार्थना करे.

वो मंदिर पहुँची. अंदर आरती की, प्रार्थना किया फिर पूजारी जी से आशीर्वाद लेकर बाहर निकली.

जैसे ही वो मंदिर की सीढ़ियाँ उतरने को हुई. उसे रवि की मा सीढ़ियाँ चढ़ती दिखाई दी. उनपर नज़र पड़ते ही कंचन घबरा गयी. उसके समझ में नही आया अब वो क्या करे. वह सोचने लगी - कहीं ऐसा ना हो माजी मुझे देखकर उस दिन का बदला ले. और मुझे जली कटी सुनाने लग जायें.

कंचन उनसे छुप्ने के लिए जगह ढूँढने लगी. तभी कमला जी की नज़र कंचन से टकराई. कंचन ने उन्हे अपनी ओर देखते पाया तो भय से काँप उठी. हाथ ऐसे काँपने लगे जैसे थाली अभी उसके हाथों से छूट कर गिर पड़ेगी.

वह जड़वत खड़ी उन्हे अपने नज़दीक आते देखती रही.

कमला जी उसके करीब आईं. कंचन को उपर से नीचे तक घूरा.

कंचन की सिटी-पिटी गुम हो गयी. उसने भय से अपनी नज़रें झुका ली.

"क्या माँगने आई थी?" कमला जी ने कंचन की हालत पर गौर करके व्यंग से बोली.

"ज......जी.....मैं...." उसकी जीभ लड़खड़ाई. उसने सहमी सी निगाह से कमला जी को देखा.

"तुम इतनी घबरा क्यों रही हो? मैं कोई शेर नही हूँ जो तुम्हे खा जाउन्गि."

कमला जी की बात सुनकर कंचन की हालत और भी पतली हो गयी. वो इस वक़्त सच-मुच खुद को खुले जंगल में किसी शेरनी के बीच महसूस कर रही थी. भय के कारण उसकी सूरत रोनी सी हो गयी थी.

"मुझे तुमसे कुच्छ बातें करनी है. आओ कुच्छ देर मेरे साथ वहाँ बैठो." कमला जी उसे सीढ़ियों के किनारे बने चबूतरे की और इशारा करती हुई बोली तथा खुद चबूतरे की तरफ बढ़ गयी.

कंचन किसी यंत्रचलित मशीन की तरह उनके पिछे चलती हुई उनके पास खड़ी हो गयी.

"बैठ जाओ." कमला जी ने कंचन को खड़ा देख बैठने का इशारा किया.

कंचन झिझक और डर के साथ चबूतरे पर बैठ गयी.

"कंचन कितना प्रेम करती हो रवि से?" कमला जी कंचन के भय से पीले पड़े चेहरे को देखती हुई बोली.

कंचन कमला जी के पुच्छे गये प्रश्न से बौखला गयी. उसे तत्काल कोई उत्तर देते ना बना. वह कहती भी तो क्या? क्या प्यार कोई वस्तु है जिसकी तोल-मोल की जाए. जो प्यार का हिसाब रखते हैं वो मेरी नज़र में व्यापारी हो सकते हैं.....प्रेमी नही. और कंचन का प्यार तो भक्ति की तरह था जिसकी ना तो कोई सीमा थी ना ही आकर. वह चुप रही. उसके पास कमला जी के प्रश्ना का कोई उत्तर नही था.

"बताओ....चुप क्यों हो गयी?" कमला जी कंचन को खामोश देख फिर से पुछि. - "क्या तुम्हे नही पता कि तुम रवि से कितना प्रेम करती हो?"

कंचन विवशता में अपने होंठ चबाने लगी. उसे लगा मा जी उस दिन झाड़ू वाली बात से खफा हैं और कदाचित् इसीलिए वो मुझे पसंद नही करती. उसने उस दिन की ग़लती की क्षमा माँगनी चाही - "म....मा जी मैं उस दिन के लिए आपसे माफी मांगती हूँ. उस दिन मुझसे भूल हो गयी थी. पर सच कहती हूँ वो भूल मुझसे अंजाने में हुई थी."

"मैं तो उस दिन की बात ही नही कर रही हूँ, मैं तो बस ये पुच्छ रही हूँ कि तुम रवि से कितना प्रेम करती हो, और उसके लिए क्या क्या कर सकती हो?] कमला जी उसी लहज़े में बोली.

"मैं उनसे बहुत प्रेम करती हूँ. और साहेब भी मुझसे उतना ही प्रेम करते हैं. माजी मैं फिर कभी कोई ग़लती नही करूँगी....इस बार मुझे माफ़ कर दीजिए." कंचन भीगी पलकों के साथ हाथ जोड़ते हुए कमला जी से बोली.

"अगर तुम सच में रवि से प्रेम करती हो और उसे खुश देखना चाहती हो तो मेरा कहा मनोगी?"

"आप कहिए तो सही, मैं साहेब और आपकी खुशी के लिए कुच्छ भी कर सकती हूँ." कंचन बिना कुच्छ सोचे कमला जी को खुश करने के लिए हामी भर दी. उसे लगा शायद कमला जी उसे एक मौक़ा देना चाहती हैं.

"तो फिर सुनो ! अगर तुम सच में रवि से प्रेम करती हो और उसकी खुशी चाहती हो तो तुम्हे रवि की ज़िंदगी से दूर जाना होगा. सुना है त्याग करने से प्यरा और भी पवित्र हो जाता है." कमला जी शुष्क स्वर में बोली.

कंचन को लगा जैसे कमला जी ने उसके सीने में अंदर तक कोई छुरा घोंप दिया हो. वा तड़प कर रह गयी. उसने दम तोड़ती नज़रों से कमला जी के तरफ देखा. उसके होंठ कुच्छ कहने के लिए काँपे.....पर मूह से बोल ना फूटे. सीने में अतः पीड़ा का अनुभव हुआ. उसका मन चाहा अभी यही दहाड़े मार-मार कर रोए. और मा जी से कहे कि वो उनके साथ ऐसा ज़ुल्म क्यों कर रही हैं, ऐसा कौन सा गुनाह कर दिया है उसने जिसकी इतनी बड़ी सज़ा वो उसे देना चाह रही हैं.

"मा जी मैं साहेब के बगैर नही जी सकूँगी, मुझे उनसे दूर मत कीजिए. साहेब भी मुझसे बहुत प्रेम करते हैं." कंचन उनके आगे हाथ जोड़े विनती की.

"उसकी आँखों में तो तुम्हारी सुंदरता का लेप चढ़ा हुआ है, इसलिए वो सही और ग़लत के फ़र्क को नही देख पा रहा है. किंतु मैं उसकी मा हूँ, मैं जानती हूँ उसके लिए क्या सही है और क्या ग़लत है." कमला जी कंचन की हालत की परवाह किए बिना कहती रहीं - "मैं तुमसे केवल इतना कहना चाहती हूँ कि आगे से तुम कभी रवि से नही मिलोगि. या मिल भी गयी तो उससे प्रेम नही जताओगि. अगर तुम ऐसा कर सकी तो मैं समझूंगी कि तुम रवि से सच्चा प्यार करती हो. नही तो मैं समझूंगी कि तुम्हारा प्यार एक दिखावा है.....सिर्फ़ उँचे घर में रिश्ता करने के लिए प्यार का ढोंग कर रही हो."

"म......मा जी." कंचन कराह कर बोली.

"कंचन मैं तुमसे कोई दुश्मनी नही निकाल रही हूँ.......एक सच है जिससे तुम्हारा परिचय करा रही हूँ. तुम उस समाज के लायक नही हो जिसमें रवि को जीना है. रवि से शादी करके तुम तो प्राहास का कारण बनोगी ही साथ में रवि भी बनेगा. 2 दिन में ही उसके अंदर का प्रेम छ्छू-मंतर हो जाएगा और वो तुमसे घृणा करने लगेगा. हां तुम्हारे स्थान पर निक्की होगी तो रवि को कभी शर्मिंदा नही होने देगी. वो उसी समाज में रहती है. उसे पता है उस समाज में कैसे जिया जाता है. फिर तुम ये क्यों नही सोचती, जिस ठाकुर साहब ने तुम्हे बेटी जैसा प्यार दिया क्या तुम उनकी खुशियाँ छीन कर ठीक करोगी?." ये कहकर कमला जी रुकी और कंचन के उत्तर की प्रतीक्षा करने लगी.

"निक्की और साहेब का विवाह?" कंचन कमला जी को देखती हुई आश्चर्य से बड़बड़ाई. - "मैं कुच्छ समझी नही मा जी?"

"क्या तुम नही जानती निक्की रवि से प्रेम करती है?" कमला जी ने सवालिया नज़रों से कंचन की ओर देखा. - "हम सब इस रिश्ते से खुश हैं. सब की मर्ज़ी यही है कि रवि की शादी निक्की से हो. सिर्फ़ तुम्ही हो जो इस रिश्ते में बाधा बन रही हो. रवि की ज़िद्द है की वो तुमसे ही शादी करेगा. जाने तूने उसे कौन सी घुट्टी पिला दी है."

कंचन स्तब्ध थी !

"मैने तो सुना है तुम निक्की की दोस्त हो?" कमला जी आगे बोली - "क्या तुम्हे अपने दोस्त की खुशियाँ छीनते अच्छा लगेगा?"

कंचन के सामने एक के बाद एक विस्फोट होते जा रहे थे. कमला जी के इस रहस्योदघाटन से वो दंग रह गयी थी की निक्की रवि से प्रेम करती है और ठाकुर साहब उन दोनो का विवाह करना चाहते हैं.

कमला जी ने कंचन के चेहरे का परीक्षण किया. उसके चेहरे की रंगत उड़ी हुई थी. वो किसी गहरी सोच में डूबती जा रही थी. कमला जी ने उसे ढील देना उचित नही समझा उन्होने अपना फँदा और कसा. वह आगे बोली - "ज़रा सोचो कंचन, ठाकुर साहब 20 साल से एक लंबी पीड़ा भरी ज़िंदगी जी रहे हैं. बेटी की शादी की बात सुनकर उनके चेहरे पर बरसों बाद मुस्कुराहट लौटी है.....जब उन्हे ये पता चलेगा कि तुम्हारी वजह से निक्की की शादी टूट गयी है तो क्या गुज़रेगी उनपर? कैसा आघात पहुँचेगा उनके दिल पर जब निक्की अपनी ज़िंदगी से निराश होकर अपनी जान दे देगी? क्या वो जी सकेंगे? नही कंचन.......ठाकुर साहब ये पीड़ा सहन नही कर सकेंगे. उनकी छाती फट जाएगी. इतना जान लो कंचन अब हवेली में जो भी अच्छा बुरा होगा उसकी ज़िम्मेदार तुम होगी. सिर्फ़ तुम......!"

"बस कीजिए मा जी. अब और कुच्छ मत कहिए." कंचन तड़प कर बोली - "अगर आप लोगों को लगता है कि मेरे हट जाने से आप सब खुश रह सकेंगे तो जाइए......मैं आज के बाद कभी साहेब से नही मिलूंगी. आज के बाद मैं उनके लिए मर गयी. अब कंचन कभी आप लोगों के रास्ते नही आएगी." कंचन ये कहते हुए फफक पड़ी. वा दोनो हाथों से अपना चेहरा छुपाकर रोने लगी.

कमला जी को उसका रोना अंदर तक हिला गया. पर उन्होने अपने अंदर की नारी को बाहर नही आने दिया. वह कुच्छ देर उसे रोते हुए देखती रही फिर धीरे से उसके कंधों को पकड़ कर बोली - "कंचन.....मुझे माफ़ कर दो. मेरी वजह से तुम्हारा दिल दुखा. पर मैने वही कहा जो सच है. अब तुम अपने घर जाओ......और मेरी तरफ से कोई मैल मत रखना."

कंचन कुच्छ ना बोली. अपने आँसू पोछती हुई उठ खड़ी हुई और काँपते पैरों के साथ सीढ़ियाँ उतरने लगी.
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