RE: Desi Porn Kahani काँच की हवेली
नीक्की के कदम कल्लू के घर के बाहर जाकर रुके. उसका घर क्या था बस एक टूटा फूटा झोपड़ा जिसकी दीवारें मिट्टी की बनी हुई थी और छप्पर उजड़ा हुआ था....जिसके उपर प्लास्टिक के टुकड़े जगह जगह पर पेबंद की तरह चिपकाए गये थे.
निक्की कुच्छ देर तक कल्लू के झोपडे को देखती रही फिर आगे बढ़ी और दरवाज़े तक पहुँची. दरवाज़ा खुला था. निक्की ने अंदर झाँका. उसे कल्लू एक मरियल सी चारपाई पर लेटा हुआ दिखाई दिया. वह खेत से आने के बाद चारपाई पर लेटा अपनी थकान मिटा रहा था. वो किसी गहरी सोच में डूबा हुआ लग रहा था. अचानक ही उसे दरवाज़े पर किसी के खड़े होने का एहसास हुआ. उसने अपनी गर्दन घूमाकर दरवाज़े की तरफ देखा. उसे दरवाज़े पर निक्की खड़ी दिखाई दी. निक्की पर नज़र पड़ते ही वह झट से उठ बैठा.
"निक्की जी, आप?" उसके मूह से स्वतः ही निकला.
"क्या मैं अंदर आ सकती हूँ." निक्की ने कल्लू से पुछा.
"कौन है कल्लू? किससे बात कर रहा है तू?" कल्लू निक्की से कुच्छ बोल पाता उससे पहले ही उसकी मा की आवाज़ आई. उसकी मा का नाम झूमकि था. झूमकि चारपाई पर लेटी हुई थी जब कल्लू और निक्की की आवाज़ उसके कानो से टकराई.
"मा, ठाकुर साहब की बेटी निक्की जी आई हैं" कल्लू जब तक अपनी मा को उत्तर देता निक्की अंदर दाखिल हो चुकी थी.
ठाकुर साहब की बेटी उसके घर आई है ये जानकार झूमकि आश्चर्य से भर उठी. वो धीरे से चलती हुई उसके पास आई और प्यार से उसके सर पर हाथ फेरने लगी. निक्की एक सुखद एहसास से भर उठी. कुच्छ देर पहले जो घुटन उसके अंदर थी वो झूमकि के स्नेह से पल भर में दूर हो गयी. वह जिस सुकून की तलाश में घर से निकली थी, वही सुकून उसे झूमकि के स्नेह से मिल रहा था.
झूमकि अपनी बूढ़ी आँखों से एक टक निक्की को देखती जा रही थी. वह सोच रही थी जिस घर में कभी तीज त्योहार में भी लोग मिलने नही आते थे आज उस घर में ठाकुर साहब की बेटी कैसे आ गयी?. उसे वो पल याद आ गया जब कल्लू बारिश से भीगने के बाद घर आया था. उस रात उसे थोड़ी बुखार भी आई थी. वह बेहोशी की हालत में बार बार कंचन का नाम लेकर बड़बड़ाता रहा था. झूमकि उसके मूह से कंचन का नाम सुनते ही सब समझ गयी थी कि कल्लू कंचन से प्यार करने लगा है. उस रात वो कल्लू के भाग्य पर खुद भी रोती रही थी. किंतु उसने उस रात एक निर्णय भी लिया था. वाह तय कर चुकी थी कि एक दो दिन में वो सुगना से मिलकर कल्लू और कंचन के रिश्ते की बात करेगी.
ठीक तीसरे दिन कल्लू के खेत जाने के उपरांत दोपेहर से पहले वो सुगना के घर के लिए निकली. सुगना से उसकी पहचान कुच्छ ज़्यादा नही थी. बस एक गाओं में होने की वजह से जितनी होनी चाहिए उतनी ही थी. कोई विशेष संबंध नही था. गाओं के रिश्ते से सुगना उसका देवेर लगता था.
राह चलते हुए उसके मन में ढेरो शंकाए थी. उसे उम्मीद तो नही थी कि सुगना अपनी फूल सी बेटी का हाथ उसके कल्लू के हाथ में देगा. पर मा तो मा होती है. बेटे के लिए वो एक बार सुगना के आगे झोली फैलाने को भी तैयार हो गयी थी. मन में एक आस थी-शायद सुगना को उसपर तरस आ जाए और इस रिश्ते के लिए हां कह दे.
कुच्छ ही देर में झूमकि आशा-निराशा के झूले में झूलती हुई सुगना की चौखट तक पहुँची. अभी वो अंदर जाने की सोच ही रही थी कि उसे आँगन के खुले दरवाज़े से अंदर का द्रिश्य दिखाई दे गया. बरामदे में सुगना के पूरे परिवार के साथ कोई शहरी औरत बैठी थी. उसका साहस नही हुआ कि वो अंदर जाए. वह नही चाहती थी कि पराई स्त्री के सामने उसे लज्जित होना पड़े. किसी के दिल का हाल कौन जाने...क्या पता सुगना कुच्छ ऐसा बोल दे जो उसे उस औरत के सामने अपमानित कर दे. वह बाहर ही खड़ी उस औरत के बाहर निकलने की प्रतीक्षा करने लगी.
कुच्छ देर खड़ी रहने के बाद वह कान लगाकर अंदर से आती आवाज़ को सुनने का प्रयास करने लगी. सुगना और शांता की आवाज़ तो उसके कानो तक नही आ रही थी. पर कमला जी की उँची आवाज़ उसके कानो तक सॉफ सॉफ आ रही थी. उनके मूह से कंचन और रवि की बात सुनकर वो समझ गयी कि ये स्त्री हवेली में ठकुराइन की इलाज़ करने आए डॉक्टर बाबू की मा है. और इस वक़्त वो अपने बेटे के रिश्ते की बात कर रही है.
पूरी बात जान लेने के बाद उसका दिल बैठ गया. झूमकि जिस मूह गयी थी उसी मूह लौट आई. उस दिन उसे अपने कल्लू के भाग्य पर बहुत रोना आया था. उसने कल्लू की शादी की उम्मीद ही छोड़ दी थी.
किंतु आज निक्की को अपने घर देख उसका मन फिर से वोही कल्पनाए करने लगा था. हालाँकि वो ज़मीन और आसमान के अंतर को समझ रही थी. पर दिल के हाथों ऐसा सोचने पर मजबूर थी.
"बेटी, सच सच बता. तू मेरे घर किस लिए आई है? आज तक इस घर में लोग तीज त्योहार में भी मुश्किल से ही आते हैं. फिर तू तो इतने बड़े बाप की बेटी है." झूमकि जिगयासावस पुछि.
"मा जी सबसे पहले तो मैं ये बता दू कि मैं ठाकुर साहब की बेटी नही. मेरे पिता दीवान जी हैं. उन्होने ही मुझे, जब मैं पैदा हुई थी..... ठाकुर साहब की बेटी से बदल दिया था. किंतु अब ये भेद खुल चुका है कि मेरे असली पिता दीवान जी हैं."
कल्लू और झूमकि के मूह, खुले के खुले रह गये.
"अगर तुम दीवान जी की बेटी हो तो ठाकुर साहब की असली बेटी कौन है?" झूमकि ने अगला सवाल किया.
"कंचन !" निक्की के मूह से धीरे से निकला.
"क्या....?" कल्लू चौंकते हुए बोला.
"हां कल्लू, कंचन ही ठाकुर साहब की असली बेटी है जिसे सुगना बाबा ने पाला है." ये कहने के बाद, निक्की क्षण भर कल्लू को देखती रही. और उसके मनोभाव को पढ़ने की कोशिश करती रही.
इस सत्य को जान लेने के बाद जहाँ कल्लू को इस बात की खुशी थी कि कंचन ठाकुर साहब की बेटी है वहीं उसके दिल में जो रही सही उम्मीद थी कंचन को पाने की, वो भी टूट चुकी थी. अब तो कंचन के बारे में वो कल्पना भी नही कर सकता था. उसका सर पीड़ा भाव से नीचे झुक गया.
"बेटी, ये जानकार बड़ा दुख हुआ कि तुम्हारे साथ ऐसा हुआ. जिस घर को जिस इंसान को बचपन से अपना घर अपना पिता मान कर चली, आज वो पराया हो गया. तुम्हारे मन को तो बहुत ठेस पहुँचा होगा." झूमकि निक्की के दुख का अनुभव कर भावुक हो उठी.
मा की बात से कल्लू का ध्यान भी निक्की के दुख की और गया. सच में....उसने तो निक्की के दुख का अनुभव ही नही किया था. - "निक्की जी, मुझे इस बात का खेद है. आपके साथ जो कुच्छ भी हुआ, अच्छा नही हुआ."
"छोड़ो इन बातों को." निक्की सर झटक कर बोली - "मैं यहाँ किसी और काम से आई हूँ. अगर आप लोग हां कहे तो?"
"हम भला आपके किस काम आ सकते हैं निक्की जी?" कल्लू सवालिया नज़रों से निक्की को देखा.
"मा जी." निक्की झूमकि के तरफ मुड़ती हुई बोली. - "मैं आपके बेटे से शादी करना चाहती हूँ. क्या आप इसकी इज़ाज़त दोगि?"
निक्की की बात सुनकर झूमकि की पथराई हुई बूढ़ी आँखें हैरत से फैल गयी. उसे लगा जैसे वो कोई सपना देख रही है. उसे अपनी कानो सुनी पर अभी भी बिस्वाश नही हो रहा था.
"ये आप क्या कह रही हैं निक्की जी. कहाँ हम कहाँ आप? धरती - आकाश का मिलन कभी नही होता निक्की जी." कल्लू झूमकि के बोलने से पहले बोल उठा.
"मैं भी वहीं हूँ कल्लू जहाँ तुम हो." निक्की कल्लू के तरफ पलटकर बोली - "ध्यान से देखो......मैं भी उसी धरती पर खड़ी हूँ जिस पर तुम खड़े हो. हमारे बीच धरती आकाश का नही बस एक कदम का फासला है. मैं अपने घर से चलकर यहाँ तक आई हूँ, अब एक कदम तुम भी आगे बढ़ जाओ."
"प......पर....!" कल्लू के शब्द उसके अंदर ही घुटकर रह गये. फिर कुच्छ सोचते हुए बोला - "लेकिन निक्की जी, आपके पिता इस रिश्ते के लिए कभी हां नही कहेंगे. दीवान जी ने ना जाने आपके लिए कैसे कैसे सपने देखे होंगे. भला मेरे घर में आपको क्या मिलेगा?"
"मुझे बड़ा घर, गाड़ी, दौलत नही चाहिए कल्लू. मुझे अब इन चीज़ों से नफ़रत हो गयी है. मैं तो बस एक ऐसा साथी चाहती हूँ जो मुझसे सच्चा प्यार करे. मैं प्यार की भूखी हूँ कल्लू......मुझे हर किसी ने ठुकराया है, प्लीज़ तुम इनकार मत करो. मुझे अपना लो. तुम जैसे रखोगे मैं रह लूँगी." निक्की भारी गले से बोली. वह बेहद दुखी थी.
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