RE: Desi Porn Kahani काँच की हवेली
कल्लू फटी फटी आँखों से निक्की को देख रहा था. जीवन भर वो किसी के प्यार के लिए तरसता रहा था. ये ठीक था की वो कंचन से प्यार करता था. पर कंचन ने कभी उसे इस प्यार की नज़र से नही देखा. किंतु आज निक्की के दिल में खुद के लिए प्यार देखकर उसकी खुशी की सीमा ना रही थी. उसने कभी भी सोचा नही था कि उसके लिए भी कभी कोई लड़की तड़पेगी. कोई उसके आगे भी प्यार की भीख माँगेगी. किंतु ऐसा था. आज निक्की उसके सामने अपने प्यार का इज़हार कर रही थी. कल्लू इस खुशी को बर्दास्त नही कर पा रहा था. उसकी आँखें छल्छला आई. उसके होंठ कुच्छ कहने के लिए खुले पर सिर्फ़ काँप कर रह गये.
"बेटी.....इससे क्या पुच्छ रही है. मैं तुम्हे अपनी बहू स्वीकार करती हूँ. तुझे ईश्वर ने सिर्फ़ मेरे बेटे के लिए ही बनाया है. तू ठहर.....!" झूमकि बोली. और कोने में पड़े एक पुराने संदूक के तरफ बढ़ गयी फिर संदूक में कुच्छ ढूँढने लगी. वह जब लौटी तो उसके हाथ में मंगलसूत्र था.
"ये ले इसे कल्लू के हाथ में दे. ये मेरा मंगलसूत्र है. इसके पिता ने मुझे पहनाया था. मैं बरसो से इसी दिन के लिए संभाल कर रखी थी." झूमकि ने निक्की के हाथ में मंगलसूत्र थमाते हुए कहा.
निक्की झूमकि के हाथ से मंगलसूत्र लेकर कल्लू के आगे बढ़ा दी. - "मुझे अपनी पत्नी होने का दर्ज़ा दे दो कल्लू. मैं तुम्हारा उपकार जीवन भर नही भूलूंगी."
"कल्लू सोच मत.....विधाता ने तुम्हे ये मौक़ा दिया है. इस मौक़े को ठुकरा मत. इसके गले में मगलसूत्र पहना दे बेटा." झूमकि ने कल्लू से कहा.
कल्लू का हाथ आगे बढ़ा और निक्की के हाथ से मंगलसूत्र ले लिया. फिर उसने निक्की को लेकर घर के एक कोने में बने छोटे से मंदिर के पास गया. वहाँ से चुटकी भर सिंदूर लिया और निक्की की माँग भर दिया. तत्पश्चात....उसने निक्की के गले में मंगलसूत्र भी पहना दिया.
झूमकि की आँखें खुशी से गीली हो गयी. वह निक्की की बालाएँ लेने लगी.
निक्की और कल्लू ने झुक कर झूमकि का आशीर्वाद ले लिया.
तभी !
बाहर जीप के रुकने की आवाज़ आई. कल्लू बाहर निकला तो दीवान जी जीप से उतरते दिखाई दिए.
निक्की और झूमकि भी बाहर निकल आए थे. दीवान जी को आते देख झूमकि थोड़ी चिंतित हो गयी थी. किंतु निक्की शांत थी.
"नमस्ते दीवान जी." जैसे ही दीवान जी नज़दीक आए कल्लू हाथ जोड़कर बोला.
किंतु, दीवान जी ने जैसे उसकी बात सुनी ही ना हो. वो सीधे निक्की के पास आए और बोले - "निक्की....तू यहाँ क्या कर रही है बेटी. मैं तुम्हे कहाँ कहाँ ढूंढता फिर रहा हूँ. तूने अपनी मा को भी नही बताया कि तू बस्ती आ रही है. चल घर चल.....तेरी मा परेशान है."
"अब मेरा घर यही है पिताजी. मैं कल्लू से शादी कर चुकी हूँ. अब मेरा घर और मेरा परिवार सब बदल चुका है." निक्की शांत किंतु मजबूत स्वर में बोली.
"क्या बकवास कर रही है तू?" दीवान जी पागलों की तरह चीखे. तभी उनकी नज़र निक्की की माँग पर सजे सिंदूर और गले में पड़े मंगलसूत्र पर पड़ी. - "ये तूने क्या कर दिया बेटी. क्या तुझे मुझपर भरोसा नही था. मेरे रहते तूने अपनी ज़िंदगी नर्क बना ली. ये मुझे किस जुर्म की सज़ा दे रही है तू?"
"जुर्म तो आपने अनगिनत किए हैं पापा. पर सच पुछिये तो मैं इस रिश्ते से खुश हूँ. अब आप आए हैं तो आशीर्वाद देकर जाइए."
"हरगिज़ नही." दीवान जी नथुने फुला कर बोले - "मैं तुम्हारी बर्बादी पर तुम्हे आशीर्वाद दूँ. ये मुझसे हरगिज़ नही होगा. मैं इस रिस्ते को ही नही मानता."
दीवान जी की बात से निक्की के साथ साथ कल्लू और झूमकि भी सकते में आ गये.
"कल्लू......!" दीवान जी आगे बोले. - "तू जितने पैसे चाहे मुझसे ले ले पर निक्की को इस रिश्ते से आज़ाद कर दे."
"ये आप क्या कह रहे हैं दीवान जी?" कल्लू नागवारि से बोला. उसे दीवान जी की बात अच्छी नही लगी थी. - "मैने निक्की जी को शादी के लिए मजबूर नही किया. इन्होने खुद मेरे आगे शादी की इच्छा ज़ाहिर की थी."
"कुच्छ भी हो पर मैं इस शादी को नही मानता. तुम मेरी बेटी को छोड़ दो मैं तुम्हे इतने पैसे दूँगा कि तुम्हारी पूरी ज़िंदगी आराम से गुज़र जाएगी."
"बस कीजिए पिताजी. मेरे पति का और अपमान मत कीजिए. अगर आशीर्वाद नही दे सकते तो आप यहाँ से चले जाइए और हमें सुकून से रहने दीजिए."
"निक्की ये तू कह रही है?" दीवान जी आश्चर्य से निक्की को देखते हुए बोले.
जवाब में निक्की ने अपना चेहरा घुमा लिया.
"ठीक है, मैं जा रहा हूँ. पर एक दिन तुझे अपने फ़ैसले पर अफ़सोस होगा और तब तू लौटकर मेरे ही पास आएगी." दीवान जी बोले और गुस्से से जीप की तरफ बढ़ गये.
उनके बैठते ही जीप मूडी और फ़र्राटे भरते हुए निकल गयी.
दीवान जी अपने घर पहुँचे. उन्हे देखते ही रुक्मणी जी बोली - "निक्की कहाँ है जी? आप तो उसे ढूँढने गये थे."
"वो उस भीखमंगे कल्लू से शादी कर चुकी है." दीवान जी दाँत पीस कर बोले. - "कहती है....अब वही झोपड़ा उसका घर है और वही लोग उसका परिवार. अब हमसे उसका कोई नाता नही."
"ये आप क्या कह रहे हैं जी. शुभ शुभ बोलिए." रुक्मणी पति की बात से घबराकर बोली.
"ये सब उस नमकहराम सुगना की वजह से हुआ है. मैं उसे छोड़ूँगा नही. वो मेरी बेटी की ज़िंदगी बर्बाद करके अपनी बेटी के लिए खुशियाँ खरीदना चाहता है. पर मैं ऐसा होने नही दूँगा." दीवान जी दाँत पीसते हुए बोले और कुच्छ सोचने लगे. अचानक ही उनके होंठो पर एक ज़हरीली मुस्कान थिरक उठी. फिर धीरे धीरे उनके होंठों की मुस्कुराहट गहरी और गहरी होती चली गयी और फिर देखते ही देखते उनके मूह से ठहाके छूटने लगे. वो पागलों की तरह ज़ोर ज़ोर से हँसने लगे.
पास खड़ी रुक्मणी ने उन्हे इस तरह अट्टहास लगाते देखा तो वो दंग रह गयी, वो दीवान जी को ऐसे देखने लगी. जैसे वो पागल हो गये हों.
"ये क्या हो गया है आपको? आप ऐसे क्यों हंस रहे हैं?" रुक्मणी भय से कांपति हुई बोली.
"रुक्मणी मैं कंचन के भविष्य पर हंस रहा हूँ. वो सुगना सोचता है उसने जंग जीत ली है, मूर्ख है वो. वह सोचता होगा, अब वो आसानी से रवि और कंचन की शादी करा सकेगा. नही हरगिज़ नही." अचानक से दीवान जी की बातों में पत्थर की सख्ती आ गयी. - "वो अपनी कंचन की शादी रवि से कभी नही करा सकेगा. उसकी वजह से मेरी बेटी की ज़िंदगी बर्बाद हुई है. अब मैं कंचन को ऐसा चोट दूँगा जिसका दर्द सुगना की छाती में होगा. उसे कंचन से बहुत प्यार है, उसकी साँसे बस्ती है उसमें. मैं उसी कंचन को ज़िंदगी भर के लिए ना भरने वाला नासूर दूँगा." दीवान जी दाँत चबाते हुए बोले.
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