RE: Desi Porn Kahani काँच की हवेली
ठाकुर साहब कंचन और चिंटू के साथ हवेली में दाखिल हुए.
ठाकुर साहब के साथ - साथ कंचन और चिंटू भी खुश थे. कंचन के लिए ये किसी सपने से कम नही था. कुच्छ देर पहले सुगना से जुदा होते वक़्त जो मन पीड़ा से भर गया था, हवेली में उसके पावं पड़ते ही इस एहसास से कि अब वो इस हवेली की मालकिन हो गयी है, खुशी से झूम उठा था. बचपन से अब तक कयि बार वो इस हवेली में आ चुकी थी, पर आज उसकी छाती फूली हुई थी. किसी का भय नही, किसी चीज़ का डर नही. आज वो बेखौफ़ होकर हवेली में साँसे ले रही थी. उसके समीप खड़ा चिंटू मूह फाडे एक एक चीज़ को देख रहा था. उसके लिए तो ये बिल्कुल नया अनुभव था, आज उसे पहली बार हवेली आने का मौक़ा मिला था.
ठाकुर साहब सोफे पर बैठ चुके थे, किंतु कंचन अभी भी खड़ी थी. कंचन को आया देख हवेली के सारे नौकर हॉल में एकट्ठा हो गये थे.
ठाकुर साहब सोफे पर बैठे एक मुख कंचन को देखे जा रहे थे. तभी हवेली का एक नौकर ट्रे में दूध का गिलास लेकर आया. दूध में कयि तरह के ड्राइ फ्रूट मिला हुआ था. कंचन और चिंटू ने गतगत दूध का गिलास खाली कर दिया.
सहसा.....कंचन को याद आया कि इस हवेली के किसी कमरे में उसकी मा बंद है. कंचन के मन में अपनी मा को देखने की उससे मिलने की इच्छा जाग उठी.
वह ठाकुर साहब से बोली - "पिताजी.....क्या मैं मा से मिल सकती हूँ?"
उसकी बात सुनकर ठाकुर साहब पीड़ा से भर गये. उनके समझ में नही आया कि वो कंचन को क्या जवाब दें. - "नही....बेटी ! तुम अभी अपनी मा से ना ही मिलो तो अच्छा है, उसकी मानसिक स्थिति अभी ठीक नही हुई है, कुच्छ दिन और रुक जाओ, जब रवि बाबू इज़ाज़त देंगे तभी तुम अपनी मा से मिल लेना. अभी तो वो तुम्हे पहचानेगी भी नही, उसकी नज़र में निक्की उसकी बेटी है." ये कहने के साथ साथ ही ठाकुर साहब को अचानक निक्की का ध्यान हुआ.
सुगना के हवेली में आने के बाद ठाकुर साहब ऐसे उलझ गये थे कि उनका पल भर के लिए भी निक्की की तरफ ध्यान नही गया. किंतु अब उनका ध्यान रह-रहकर निक्की की तरफ जा रहा था, वे सोच रहे थे - "अब तक तो निक्की को सारी सच्चाई का इल्म हो गया होगा. ना जाने क्या बीत रही होगी उसके दिल पर?"
"मंगलू....." उन्होने पास खड़े नौकर से कहा - "ज़रा निक्की बेटा को बुला लाओ." फिर कुच्छ सोचते हुए उठ खड़े हुए - "रूको, हम खुद जाकर देखते हैं."
ठाकुर साहब अभी दो कदम ही चले थे कि मंगलू ने उन्हे टोका - "मालिक....निक्की मेम्साब तो हवेली में नही हैं."
"हवेली में नही है.....तो कहाँ गयी वो?" ठाकुर साहब चौंकते हुए बोले. - "कहीं दीवान जी के घर तो नही चली गयी? शायद दुखी होकर वो वहीं गयी होगी...... जाओ उसे बुला लाओ. कहना हम अभी मिलना चाहते हैं."
मंगलू तेज़ी से बाहर निकला. किंतु जिस तेज़ी से वो गया था उसी तेज़ी से लौट आया.
"निक्की मेम्साब वहाँ भी नही हैं....मालिक, वो तो......कल्लू के घर में हैं." मंगलू ने झिझकते हुए ठाकुर साहब से कहा.
"कल्लू के घर में.....?" ठाकुर साहब ने सवालिया नज़रों से मंगलू को देखा.
"मालिक....निक्की मेम्साब ने कल्लू के साथ शादी कर ली है. दीवान जी इस बात से नाराज़ हुए बैठे हैं और उनकी पत्नी रो रही हैं." मंगलू एक ही साँस में सारा किस्सा ठाकुर साहब के सामने बयान कर दिया.
"क.....क्या?" ठाकुर साहब....आश्चर्य से मंगलू को देखते हुए बोले.
मंगलू ने अपनी गर्दन झुका ली.
"ड्राइवर से कहो जीप निकले, हम अभी निक्की से मिलने जाएँगे." ठाकुर साहब क्रोध में बोले.
"जी मालिक." मंगलू बोला और बाहर भागा.
ठाकुर साहब बेचैनी से टहलने लगे. उनके मुख-मंडल पर चिंता की लकीरें खिच गयी थी.
कंचन भी निक्की के इस अनायास उठाए गये कदम से हत-प्रत थी. वो जानती थी कल्लू अच्छा लड़का है, पर वो किसी भी कीमत पर निक्की के योग्य नही था. - "कहीं निक्की ने इस बात से तो नाराज़ होकर कल्लू से शादी नही की, कि मैं उसकी जगह आ गयी?" कंचन के मन में सवाल उभरा. उसका दिल ज़ोरों से धड़क उठा.
जीप तैयार हो चुकी थी. ठाकुर साहब जैसे ही बाहर को निकले कंचन ने पिछे से उन्हे पुकारा - "पिता जी.....मैं भी आपके साथ निक्की के पास जाना चाहती हूँ, मुझे लगता है निक्की कहीं मुझसे नाराज़ ना हो."
"भला तुमसे.....उसकी क्या नाराज़गी हो सकती है बेटी? खैर तुम चलना चाहती हो तो चलो." ठाकुर साहब बोले और बाहर मुख्य द्वार की तरफ बढ़ गये.
कंचन चिंटू का हाथ पकड़कर ठाकुर साहब के पिछे हो ली. थोड़ी ही देर में जीप हवेली से बाहर निकल चुकी थी.
*****
एक बार फिर से जीप के रुकने की आवाज़ से कल्लू, निक्की और झूमकि का ध्यान बाहर की ओर गया. वे तीनो दरवाज़े से बाहर निकले.
जीप से ठाकुर साहब के साथ कंचन और चिंटू उतरते हुए दिखाई दिए.
ठाकुर साहब पर नज़र पड़ते ही तीनो के होश उड़ गये. उनकी गुस्से से भरी सूरत देखकर कल्लू और झूमकि के शरीर में भय की मीठी लहर दौड़ गयी.
ठाकुर साहब तेज़ी से झोपडे तक आए. झूमकि और कल्लू के हाथ स्वतः ही उन्हे नमस्ते कहने को जुड़ गये.
ठाकुर साहब गुस्से में थे, फिर भी हाथ जोड़ उनके नमस्ते का उत्तर दिए. फिर निक्की को देखने लगे.
निक्की सर झुकाए खड़ी थी. उसकी माँग में भरा हुआ सिंदूर और गले में मंगलसूत्र उसकी विवाहिता होने का प्रमाण दे रहा था. ठाकुर साहब कुच्छ देर निक्की की दशा को देखते रहे.
निक्की की नज़रें नीचे थी पर फिर भी उसे ठाकुर साहब की चुभती नज़रों का एहसास हो रहा था. उसने अपनी गर्दन उठाई और झिलमिलाती आँखों से ठाकुर साहब को देखा.
"मुझे माफ़ कर दीजिए अंकल....." निक्की हाथ जोड़ते हुए बोली.
"क......क्या.....?" ठाकुर साहब दो कदम पिछे हटते हुए बोले - "क्या.....क्या कहा तुमने........अंकल.....?"
निक्की उन्हे देखती हुई विवशता में अपने होठ काटने लगी.
"निक्की......हमें दीवान जी के छल से उतना दुख नही हुआ था जितना कि आज तुम्हारे मूह से "अंकल" शब्द सुनकर हुआ है." ठाकुर साहब तड़प कर बोले - "तूने हमारे 20 साल के प्यार का अच्छा सिला दिया है निक्की. हमने तो आज तक कभी कंचन को तुमसे अलग नही समझा फिर तुम्हे कंचन से अलग कैसे समझ सकते हैं, जबकि तुम हमारी गोद में खेली हो"
ठाकुर साहब का दिल निक्की की बात से लहू-लुहान हो गया.. उन्हे निक्की से ऐसी बेरूख़ी की उम्मीद नही थी. उन्होने कभी नही सोचा था कि जिस निक्की को उन्होने अपनी छाती से लगाकर रखा जिसकी मुस्कुराहटो को देखकर वो अब तक जीते रहे थे वोही निक्की उससे मूह फेर लेगी, एक पल में उनसे इस तरह संबंध तोड़ लेगी. निक्की के इस बर्ताव से उनकी आत्मा सिसक उठी थी.
ठाकुर साहब की बात से निक्की का दिल भर आया. वा तो इस एहसास से मरी जा रही थी कि दीवान जी की ग़लतियों की वजह से अब वो कभी ठाकुर साहब से नज़र नही मिला सकेगी. कभी उनका प्यार, उनका स्नेह नही पा सकेगी. किंतु ठाकुर साहब की बात सुनकर उसकी सारी शंका निर्मूल साबित हुई. उसका मन भावुकता से भर गया. उसके होंठ उन्हे पापा कहने के लिए फड़क उठे, उसकी बाहें उनसे लिपटने के लिए मचल उठी. वह आगे बढ़ी - "प....पापा. मुझे माफ़ कर दीजिए. मुझसे भूल हो गयी, मैं आपसे बहुत प्यार करती हूँ पापा. प्लीज़ मुझे अपने गले से लगा लीजिए."
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