RE: Desi Porn Kahani काँच की हवेली
ठाकुर साहब गीली आँखों से निक्की को देखने लगे. वो किसी छ्होटी डारी सहमी बची की तरह बिलख उठी थी. उसकी आँखों से लगातार आँसू बह रहे थे.
ठाकुर साहब आयेज बढ़े और निक्की को अपने कलेज़े से लगा लिए. निक्की उनकी छाती पर मूह छिपा कर फफक पड़ी.
वहाँ मौजूद हर-एक इंसान की आँखें नम हो गयी.
निक्की की रुलाई जब तक पूरी तरह से नही रुक गयी.....ठाकुर साहब उसे अपनी छाती से चिपकाए खड़े रहे. कुच्छ देर बाद निक्की ने अपना सर उनकी छाती से अलग किया. ठाकुर साहब उसके आँसू पोछ्ने लगे.
कंचन उसके करीब गयी तो निक्की ठाकुर साहब से अलग होकर कंचन से लिपट गयी. - "दीदी, तुम भी मुझे माफ़ कर दो, जाने अंजाने में मैने भी तुम्हारा दिल दुखाया है."
"क....क्या" कंचन गुस्से से अलग होती हुई बोली. -"क्या कहा तूने? देखा पिताजी आपने? इसने मुझे क्या कहा......अब मैं इसकी दीदी बन गयी." कंचन नाक फुला कर ठाकुर साहब से शिकायत करती हुई बोली
कंचन की बात से ठाकुर साहब ज़ोरों से हंस पड़े. उनके साथ-साथ वहाँ मौजूद सभी के होंठ खिलखिला पड़े.
"अच्छा बाबा, माफ़ कर दे, आइन्दा दीदी नही कहूँगी." निक्की कंचन के हाथ पकड़ती हुई बोली. उसकी बातों में शर्मिंदगी के भाव थे.
"निक्की......पर ये क्या बेटी, तूने शादी कर ली. किसी को बताया तक नही. तुम्हारी शादी के लिए हमने कितने अरमान दिल में बसाए थे. वो सब धरे के धरे रह गये. ऐसा क्यों किया तुमने बेटी" ठाकुर साहब मायूस होकर बोले.
निक्की का सर आत्म्बोध से झुक गया. फिर क्षमायाचना हेतु ठाकुर साहब को देखती हुई बोली - "मुझे माफ़ कर दीजिए पापा. हवेली से निकलने के बाद मैं बहुत निराश हो चुकी थी. ये सब कुच्छ एक दम से हो गया. प्लीज़....मुझे माफ़ कर दीजिए."
ठाकुर साहब प्यार से उसके सर पर हाथ फेरते हुए बोले - "तुम्हारी खुशी ही हमारी खुशी है निक्की. तूने कल्लू को पसंद किया है तो हमें भी कल्लू पसंद है. अब हम ये चाहते हैं कि तुम सब हमारे साथ हवेली चलो और वहीं रहो."
"नही पापा. अब मैं इस घर को नही छोड़ सकती. लेकिन मैं एक बेटी की तरह हवेली आती रहूंगी. आप सब से मिलती रहूंगी." निक्की ठाकुर साहब को इनकार करती हुई बोली - "मुझे आशीर्वाद दीजिए पापा कि मैं अपना नया जीवन अपने पति के घर में सुख से जी सकूँ." निक्की ये कहते हुए ठाकुर साहब के चरणो में झुक गयी.
"मेरा आशीर्वाद सदा तुम्हारे साथ है बेटी." ठाकुर साहब निक्का के सर पर हाथ रखते हुए बोले. - "सदा खुश रहो. तुम्हारा जीवन फूलों की तरह सदा महकता रहे."
निक्की के बाद कल्लू ने भी ठाकुर साहब के पैर छुकर आशीर्वाद लिया. जो आशीर्वाद दीवान जी से ना मिल सका. वो ठाकुर साहब से उन्हे मिल चुका था.
ठाकुर साहब कंचन और चिंटू के साथ हवेली लौट गये.
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नेक्स्ट डे
सुबह उठते ही कमला जी नहा धोकर मदिर के लिए निकल पड़ी. वो मंदिर पैदल ही जाया करती थी. हवेली से मंदिर का रास्ता 30 मिनिट का था.
आज वो बहुत खुश थी. खुश होती भी तो क्यों ना? उन्हे मनचाही मुराद जो मिल गयी थी. उन्होने एक ही सपना देखा था, रवि को पढ़ा लिखा कर काबिल इंसान बनाना और किसी उँचे-बड़े घर में उसका विवाह रचाना.
2 दिन पहले वो रवि और निक्की के विवाह के सपने पाले हुए थी. किंतु उनके दिल में एक फास थी. और वो फास थी रवि और कंचन की मोहब्बत....! वो निक्की से रवि का विवाह करना चाहती तो थी......किंतु अपने ही हाथों अपने बेटे के अरमानों का खून भी नही करना चाहती थी. किंतु आज परिस्थिति बदल चुकी थी. आज सब कुच्छ उनके मान मुताबिक हो रहा था. आज वो ठाकुर साहब जैसे धनवान व्यक्ति से रिश्ता भी कर रही थी और उसके लिए रवि का दिल भी नही दुखाना पद रहा था. ईश्वर ने सब कुछ उनके अनुरूप ही कर दिया था. इसलिए आज सुबह उठते ही वो नहा-धोकर मंदिर के लिए निकल पड़ी थी.
पूजा कर लेने के पश्चात कमला जी हवेली के लिए लौट पड़ी.
कुच्छ ही देर में उनके कदम हवेली के सीमा के भीतर थे. वो बड़े इतमीनान से हवेली की तरफ बढ़ी जा रही थी कि तभी उनके कानों से दीवान जी की आवाज़ टकराई -"बेहन जी ज़रा रुकिये......"
कमला जी आवाज़ की दिशा में मूडी. दीवान जी अपने घर के बाहर खड़े अपने हाथ उठाकर कमलाजी को रुकने का इशारा कर रहे थे.
कमला जी आश्चर्य से दीवान जी को देखने लगी, वो तेज़ी से कमला जी की तरफ भागे चले आ रहे थे.
"नमस्ते बेहन जी." दीवान जी पास आते हुए बोले - "आप से एक ज़रूरी बात करनी थी. आप थोड़ी देर के लिए हमारे घर आएँगी."
"मैं क्षमा चाहती हूँ दीवान जी. इस वक़्त आपके घर आना संभव नही हो सकेगा." कमला जी शर्मिंदा होती हुई बोली - "आप अच्छी तरह से जानते हैं.....ठाकुर साहब को ये अच्छा नही लगेगा. आख़िर मैं उनकी मेहमान हूँ."
"तो....क्या आप हमारी मेहमान नही हैं?" दीवान जी रुष्ट स्वर में बोले - "आख़िर हम संबंधी बनने वाले हैं कमला जी, आपको हमारे घर आने से इनकार क्यों हो रही है?"
कमला जी चौंक कर दीवान जी को देखने लगी. उनके मूह से सम्बंधी बनने वाली बात सुनकर उन्हे हैरानी हुई थी - "मैं समझी नही दीवान जी......आप किस संबंध की बात कर रहे हैं?"
"ऐसा ना कहिए कमला जी." दीवान जी विचलित होकर बोले - "अभी कल ही तो आपने हवेली में बैठकर मेरी निक्की को अपनी बहू बनाने की बात कही थी. इसके गवाह खुद ठाकुर साहब भी हैं. आप इस तरह अपनी ज़ुबान से मत मुकरिये."
"दीवान जी, आपने शायद ठीक से मेरी बात नही सुनी थी." कमला जी रूखे स्वर में बोली - "मैने ये नही कहा था कि मैं निक्की को ही अपनी बहू बनाउन्गि. मैने कहा था.....ठाकुर साहब की बेटी ही मेरे घर की बहू बनेगी. और आप ये जानते ही हैं कि ठाकुर साहब की बेटी निक्की नही....कंचन है."
"बेहन जी.....शब्दों का अर्थ बदल कर अपने वादे से मत फिरीए. आपके शब्द जो भी रहे हों, पर आपका इरादा निक्की को ही अपनी बहू बनाने का था." दीवान जी बिदककर बोले. उनके चेहरे पर नाराज़गी फैल गयी थी.
"आप जो भी समझना चाहें......समझिए ! पर मेरे घर की बहू कंचन ही बनेगी." कमला जी दीवान जी को दो टुक जवाब देकर आगे बढ़ने को हुई.
"रुकिये......कमला जी." दीवान जी कड़क स्वर में बोले - "जाने से पहले......एक सत्य मेरे मूह से भी सुनते जाइए. शायद उसके बाद आपका इरादा बदल जाए."
"कैसा सत्य.....?" कमला जी की सवालिया निगाहें दीवान जी के चेहरे पर चिपक गयी.
"एक सत्य जिसका सम्बन्ध आपके पति से है." दीवान जी अपने होंठो पर विषैली मुस्कान भरते हुए बोले.
"आ......आप मेरे पति को कैसे जानते हैं?" कमला जी हकलाते हुए बोली - "कहाँ हैं वो? मुझे बताइए दीवान जी.....मैं आपके आगे हाथ जोड़ती हूँ."
कमला जी की बदहवासी देखकर दीवान जी के होंठों की मुस्कुराहट गहरी हो गयी.
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