RE: Desi Porn Kahani काँच की हवेली
"हरगिज़ नही." ठाकुर साहब तेज़ी से बोले - "कलकत्ता तो क्या....पूरे विश्व में ऐसी इमारत दूसरी नही बननी चाहिए."
"लेकिन इसमें हर्ज़ क्या है ठाकुर साहब?" मोहन बाबू आश्चर्य से ठाकुर साहब की तरफ देखते हुए बोले.
"वो इसलिए कि अगर ऐसी कोई दूसरी इमारत बनी तो इसका मोल कम हो जाएगा. और हमें ये मंज़ूर नही."
"लेकिन ये कैसे संभव है ठाकुर साहब? मैं एक कारीगर हूँ. मुझे जब भी कहीं किसी चीज़ के निर्माण का कार्य मिलेगा....मैं तो करूँगा ही. क्योंकि ये मेरा व्यवसाय है. मेरी कला है. मैं अपने हाथ नही रोक सकता." मोहन बाबू विरोध जताते हुए बोले.
"बात को समझने की कोशिश करो मोहन, ये हवेली हमारी और हमारी पत्नी राधा की यादगार है. हम इसकी दूसरी मिसाल हरगिज़ नही चाहते."
"ये हवेली आपका सपना होगा ठाकुर साहब, मेरा नही, मेरे सपने कुच्छ और हैं, मैं एक कारीगर हूँ और मुझे अवसर मिला तो मैं इससे भी उँचा उठकर अपना कला-कौशल दिखाना चाहूँगा. और ऐसा करने से आप मुझे नही रोक सकते."
"मोहन.......!" ठाकुर साहब झटके से खड़े होते हुए चीखे. - "हमारा नाम ठाकुर जगत सिंग है, हम क्या कर सकते हैं क्या नही, इसका तुम्हे अभी अंदाज़ा नही. व्यर्थ की ज़िद ना करो. मत भूलो कि तुम इस वक़्त मेरी छत के नीचे बैठे हो. तुम चाहो तो हम तुम्हे इतनी दौलत दे सकते हैं कि तुम्हारी कयि पीढ़ियों तक को काम करने की ज़रूरत महसूस ना होगी."
"व्यर्थ की ज़िद तो आप कर रहे हैं ठाकुर साहब, मैं काग़ज़ के चन्द टुकड़ों के लिए अपनी उमर भर की कला का सौदा नही कर सकता." मोहन बाबू भी तैस में आकर उठ खड़े हुए.
"तो फिर तुम जैसे लोगों से अपनी बात मनवाने के हमें और भी तरीके आते हैं."
"आप हमें धमकी दे रहे हैं?"
"नही....धमकी कमज़ोर लोग दिया करते हैं. हम तो चेतावनी दे रहे हैं. अगर तुमने हमारी बात नही मानी तो हम अपनी बात मनवाने के लिए कुच्छ भी कर सकते हैं."
"आप जो चाहें कर लीजिएगा. किंतु अब मैं यहाँ एक क्षण भी नही रुक सकता. मैं जा रहा हूँ" मोहन बाबू ठोस शब्दों में बोले और अपने कमरे की तरफ बढ़ गये.
ठाकुर साहब और मोहन बाबू की गरमा गर्मी से मेरा दिमाग़ काम करना बंद कर चुका था. मैं केवल मूक-दर्शक बना उनके बीच हो रहे तकरार को देख रहा था.
कुच्छ ही देर में मोहन बाबू अपना सामान हाथों में उठाए कमरे से बाहर निकले.
उन्हे देखकर ठाकुर साहब की आँखें सुलग उठी.
मोहन बाबू हॉल में आए अपना सामान नीचे रखकर ठाकुर साहब और मुझे नमस्ते किए. फिर अपना सामान उठाकर जाने को मुड़े.
"तुम ऐसे नही जा सकते मोहन?" ठाकुर साहब किसी ज़हरीले साँप की तरह फुफ्कार छोड़ते हुए बोले.
"मैं तो जा रहा हूँ ठाकुर साहब. और ये मेरा अंतिम निर्णय है."
"तो फिर हमारा भी अंतिम निर्णय सुन लो मोहन, अगर तुमने हवेली के बाहर कदम रखने की कोशिश भी की, तो हम तुम्हे गोली मार देंगे." ठाकुर साहब ये कहते हुए दीवार पर टाँग रखी बंदूक की तरफ बढ़ गये. उन्होने बंदूक उतारी और मोहन बाबू पर तान दी.
"ठाकुर साहब, आप बंदूक की ज़ोर दिखा कर मुझे डरा नही सकते. मेरा फ़ैसला अटल है." मोहन बाबू ठाकुर साहब की धमकियों की परवाह ना करते हुए बोले. फिर दरवाज़े की तरफ बढ़ गये.
"रुक जाओ मोहन....!" ठाकुर साहब ज़ोर से दहाड़े.
किंतु मोहन बाबू उनकी बातों को अनसुना करते हुए दरवाज़े की तरफ बढ़ते रहे.
ठाकुर साहब की आँखों में खून उतर आया. उन्होने बंदूक संभाली. मेरी धड़कने बढ़ चली. बात यहाँ तक बढ़ जाएगी मैने सोचा ना था. किंतु इससे पहले कि मैं कुच्छ कर पाता "ढायं" की आवाज़ के साथ ठाकुर साहब के बंदूक से एक गोली चली. निशाना था मोहन बाबू की पीठ. गोली उनके पीठ पर अंदर तक धसती चली गयी. मोहन बाबू एक चीख के साथ लहराए और फर्श पर गिरते चले गये. उनके हाथ में थमा सूटकेस इधर उधर बिखर गया.
मैं फटी फटी आँखों से मोहन बाबू को ज़मीन पर तड़प्ते हुए देखने लगा. अभी मैं उस सदमे से बाहर भी नही निकल पाया था कि एक ज़ोरदार चीख से मेरा ध्यान टूटा. मैने आवाज़ की दिशा में देखा. राधा जी सीढ़ियों के पास खड़ी फटी फटी आँखों से खून से लथपथ मोहन बाबू की ओर देखे जा रही थी.
"र.......राधा.....!" ठाकुर साहब के मूह से घुटि घुटि सी चीख निकली.
राधा जी तेज़ी से सीढ़ियाँ उतरती हुई मोहन बाबू के पास आईं.
"म.........मोहन जी !" राधा जी मोहन बाबू के घायल शरीर को देखती हुई बोली - "ये सब कैसे हो गया मोहन जी?"
मोहन बाबू पीड़ा भरी सूरत लिए राधा जी को देखने लगे. राधा जी को देखते ही उनकी आँखों से आँसू छलक पड़े. वे टूटते हुए शब्दों में राधा जी से बोले - "म....माफ़फ.....कीजिए.......राधा जी, मैने.....आपसे.....ग़लत.....कहा.....था....कि, आपके......पति......देवता......हैं.......वे......द.......देवता.......नही.......हैं."
"मोहन जी, आपको कुच्छ नही होगा मोहन जी. मैं अभी डॉक्टर को बुलाती हूँ." राधा जी, मोहन जी की हालत पर बिलखती हुई बोली.
"म.....मेरा.......वक़्त.....पूरा.......हो........चुका.....है.......राधा जी......हो.......सके.....तो......मेरी.......पत्नी......को......इसकी......सूचना.......दे......दीजिएगा." ये अंतिम शब्द कह कर मोहन जी हमेशा के लिए खामोश हो गये.
राधा जी पत्थेर की मूरती बनी मोहन बाबू की लाश को घुरती बैठी रहीं.
ठाकुर साहब राधा जी को यूँ मोहन बाबू के लाश के पास बैठा देख घबरा गये. वे राधा जी के पास गये. फिर उन्हे कंधे से हिलाकर बोले - "राधा, तुम्हे क्या हो गया है राधा? तुम्हे इस हालत में यहाँ नही आना चाहिए था. चलो तुम्हे कमरे तक छोड़ आते हैं."
राधा जी एक झटके से उठी. फिर विक्षिप्त नज़रों से ठाकुर साहब की तरफ देखती हुई बोली - "आपने सुना......मोहन जी क्या कह रहे थे?......मेरे पति देवता नही हैं."
"रधाआअ.......! ये तुम्हे क्या हो गया है राधा?" ठाकुर साहब राधा जी की हालत पर घबराकर बोले - "हमारा बिसवास करो राधा, हम इसकी जान नही लेना चाहते थे."
जवाब में राधा जी पीड़ा भरी नज़रों से ठाकुर साहब को देखने लगी, उनकी आँखों में उस वक़्त ऐसी पीड़ा व्याप्त थी कि जिस पर नज़र पड़ते ही ठाकुर साहब अंदर से सहम गये.
"राधा.......होश में आओ राधा." ठाकुर साहब राधा जी को झंझोड़ते हुए बोले.
"मेरे पति देवता नही हैं. उन्होने निर्दोष मोहन का खून कर दिया." राधा जी बड़बड़ाई.
राधा जी की मानसिक स्थिति बिगड़ चुकी थी. बार बार एक ही शब्द दोहरा रहीं थी. "मेरे पति देवता नही हैं."
राधा जी इसी शब्द को बार बार दोहराते दोहराते अचानक ही हँसने लगी.
ठाकुर साहब पागलों की तरह राधा जी के तरफ देखने लगे.
राधा जी क़ी हँसी तेज़ होती चली गयी. और फिर ठहाकों में तब्दील हो गयी.
मैं हैरान-परेशान सा कभी मोहन बाबू की लाश को देख रहा था तो कभी पागलों की तरह ठहाके लगाती राधा जी को.
मोहन बाबू की दुखद मृत्यु ने राधा जी को पागल कर दिया. पाप ठाकुर साहब ने किया था...किंतु उसकी सज़ा पिच्छले 20 सालों से देवी समान राधा जी को भुगतनी पड़ रही है.
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