RE: Incest Kahani एक अनोखा बंधन
एक अनोखा बंधन----2
गतान्क से आगे.............
“क्या मैं किसी तरह देल्ही पहुँच सकती हूँ, मेरी मौसी है वाहा?”
“चिंता मत करो, माहॉल ठीक होते ही सबसे पहला काम यही करूँगा”
ज़रीना अदित्य की ओर देख कर सोचती है, “कभी सोचा भी नही था कि जिस
इंसान से मैं बात भी करना पसंद नही करती, उसके लिए कभी खाना
बनाउन्गि”
आदित्य भी मन में सोचता है, “क्या खेल है किस्मत का? जिस लड़की को देखना
भी पसंद नही करता था, उसके लिए आज कुछ भी करने को तैयार हूँ. शायद
यही इंसानियत है”
धीरे-धीरे वक्त बीत-ता है और दोनो आछे दोस्त बनते जाते हैं. एक दूसरे के प्रति उनके दिल में जो नफ़रत थी वो ना जाने कहा गायब हो जाती है.
वो 24 घंटे घर में रहते हैं. कभी प्यार से बात करते हैं कभी तकरार से. कभी हंसते हैं और कभी रोते हैं. वो दोनो वक्त की कड़वाहट को
भुलाने की पूरी कॉसिश कर रहे हैं.
एक दिन अदित्य ज़रीना से कहता है, “तुम चली जाओगी तो ना जाने कैसे रहूँगा
मैं यहा. तुम्हारे साथ की आदत सी हो गयी है. कौन मेरे लिए
अछा-अछा खाना बनाएगा. समझ नही आता कि मैं तब क्या करूँगा?”
“तुम शादी कर लेना, सब ठीक हो जाएगा”
“और फिर भी तुम्हारी याद आई तो?”
“तो मुझे फोन किया करना”
ज़रीना को भी अदित्य के साथ की आदत हो चुकी है. वो भी वाहा से जाने के
ख्याल से परेशान तो हो जाती है, पर कहती कुछ नही.
आफ्टर वन मंथ: --
“ज़रीना, उठो दिन में भी सोती रहती हो”
“क्या बात है? सोने दो ना”
“करफ्यू खुल गया है. मैं ट्रेन की टिकेट बुक करा कर आता हूँ. तुम किसी
बात की चिंता मत करना, मैं जल्दी ही आ जाउन्गा”
“अपना ख्याल रखना अदित्य”
“ठीक है…सो जाओ तुम कुंभकारण कहीं की…हे..हे..हे….”
“वापिस आओ मैं तुम्हे बताती हूँ” --- ज़रीना अदित्य के उपर तकिया फेंक कर
बोलती है
आदित्य हंसते हुवे वाहा से चला जाता है.
जब वो वापिस आता है तो ज़रीना को किचन में पाता है
“बस 5 दिन और…फिर तुम अपनी मौसी के घर पर होगी”
“5 दिन और का मतलब? ……मुझे क्या यहा कोई तकलीफ़ है?”
“तो रुक जाओ फिर यहीं…अगर कोई तकलीफ़ नही है तो”
ज़रीना अदित्य के चेहरे को बड़े प्यार से देखती है. उसका दिल भावुक हो उठता
है
“क्या तुम चाहते हो कि मैं यहीं रुक जाउ?”
“नही-नही मैं तो मज़ाक कर रहा था बाबा. ऐसा चाहता तो टिकेट क्यों बुक
कराता?” -- ये कह कर अदित्य वाहा से चल देता है. उसे पता भी नही चलता
की उसकी आँखे कब नम हो गयी.
इधर ज़रीना मन ही मन कहती है, “तुम रोक कर तो देखो मैं तुम्हे छ्चोड़ कर कहीं नही जाउन्गि”
वो 5 दिन उन दोनो के बहुत भारी गुज़रते हैं. आदित्य ज़रीना से कुछ कहना चाहता है, पर कुछ कह नही पाता. ज़रीना भी बार-बार अदित्य को कुछ कहने के लिए खुद को तैयार करती है पर अदित्य के सामने आने पर उसके होन्ट सिल जाते हैं.
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