RE: Incest Kahani एक अनोखा बंधन
आदित्य की भी हालत कम नाज़ुक नही थी. पेट में चूहे कूद रहे थे लेकिन मज़ाल है कि मूह पे खाने का नाम आए. प्यार भूक प्यास सब भुला देता है. वो भूके पेट होटेल के बिस्तर पर पड़ा हुवा करवट बदल रहा था. पता नही उसे ऐसा क्यों लग रहा था कि अभी दरवाजा खुलेगा और ज़रीना अंदर आएगी. जब भी उसे अपने कमरे के बाहर आहट सुनाई देती तो वो फ़ौरन उठ कर देखता.वो दाए-बाए हर तरफ बड़े गौर से देखता. अब ज़रीना वाहा होती तो दीखती. हर बार निराश और हताश हो कर अदित्य वापिस अपने बिस्तर पर गिर जाता. हालत तो अदित्य की भी बिल्कुल ज़रीना जैसी ही थी बस फ़र्क इतना था कि उसकी आँखे इतनी नही बरस रही थी जीतनी की ज़रीना की. हां ये बात ज़रूर थी कि उसकी आँखो में हर वक्त नमी बनी हुई थी. आँसू भी टपकते थे रह-रह कर जब दिल बहुत भावुक हो उठता था.
“ज़रीना तुम्हे मुझे यू छोड़ कर नही जाना चाहिए था. मेरे बारे में तुमने एक बार भी नही सोचा. कितना प्यार करता हूँ तुम्हे और फिर भी तुमने ऐसा किया. तुम्हे माफ़ नही कर पाउन्गा मैं.” आदित्या ने अपनी आँखो के नीचे से आँसुओ की बूँदो को पोंछते हुवे कहा.
धीरे धीरे कब रात घिर आई पता ही नही चला. पूरी रात ज़रीना को नींद नही आई. आदित्य भी सो नही पाया. हां ऐसा होता है. प्यार कभी-कभी नींद भी छीन लेता है. ऐसी नाज़ुक हालत में सोना वैसे भी नामुमकिन था.
प्यार की एक इंट्रेस्टिंग बात ये भी होती है की सब नाराज़गी और नफ़रत सिर्फ़ उपर का दिखावा होती है. दिल की गहराई में कुछ ऐसी तड़प होती है एक दूसरे के लिए की उसे शब्दो में नही कहा जा सकता. ये बात कोई प्यार करने वाला ही समझ सकता है.
सुबह होते होते अदित्य और ज़रीना दोनो का ही गुस्सा ठंडा पड़ने लगा था. ज़रीना ने फ़ैसला किया कि वो दिन निकलते ही होटेल जाएगी और अदित्य के गले लग जाएगी और उस से खूब लड़ाई करेगी. बस दिक्कत की बात सिर्फ़ ये थी कि वो घर से निकले कैसे. कोई उसे अकेले कही जाने नही देगा और किसी को साथ लेकर वो अदित्य के पास जा नही सकती थी. इश्लीए जैसे ही दिन निकला वो चुपचाप घर से निकल पड़ी. देल्ही में ऑटो तो सारी रात चलते हैं. सुबह सुबह ऑटो मिलने में कोई दिक्कत नही हुई.
पर दिक्कत ये आन पड़ी कि ऑटो वाला ज़रीना को लक्ष्मीनगर की बजाए कही और ही ले आया. दरअसल ऑटो वाला नया था. उसे लक्ष्मीनगर की लोकेशन ठीक से पता नही थी बस यू ही अपने पैसे बनाने के चक्कर में चल पड़ा था अंदाज़े से.
“भैया ये कहा ले आए तुम मुझे ये लक्ष्मीनगर तो नही लग रहा.”
“ओह…ये लक्ष्मीनगर नही है क्या. ग़लती हो गयी मेडम”
ऑटो वाले ने दूसरे ऑटो वाले से लक्ष्मी नगर का रास्ता पूछा और फिर ऑटो को लेकर चल पड़ा.
होटेल पहुँचते पहुँचते सुबह के 9 बज गये. ज़रीना ने तुरंत ऑटो वाले को पैसे पकड़ाए और होटेल में घुस्स कर सीधा अपने उस रूम की तरफ चल पड़ी जिसमे अदित्य और वो एक साथ रुके थे. लेकिन पीछे से रिसेप्षन पर खड़ी एक युवती ने उसे टोक दिया.
“एक्सक्यूस मी मेडम, आप कहा जा रही हैं.”
ज़रीना मूडी और बोली, “रूम नो 114 में ठहरी हूँ मैं.”
“ओह हां मैं भूल गयी सॉरी. पर आपके साथ जो थे वो जा चुके हैं रूम छोड़ कर.”
“क्या?” ज़रीना के तो पैरो के नीचे से जैसे ज़मीन ही निकल गयी.
“कब गये वो?”
“बस अभी अभी निकले हैं”
“कहा गये वो?” ज़रीना का तो दिमाग़ ही घूम गया था.
“मेडम शायद आपने ठीक से सुना नही. वो चेक-आउट करके जा चुके हैं. अब कहा गये हैं हमें नही पता.”
ज़रीना चेहरा लटकाए हुवे होटेल से बाहर आ गयी.
“मेरा ज़रा सा भी वेट नही किया तुमने अदित्य. क्यों प्यार किया मैने तुमसे.” ज़रीना की आँखे फिर से भर आई.
बड़ा ही अजीब सा कुछ हो रहा था अदित्य और ज़रीना के साथ. ज़रीना होटेल पहुँच गयी थी और अदित्य सिलमपुर. बात सिर्फ़ इतनी थी कि दोनो ग़लत समय पर सही जगह पर थे.
आदित्य को ज़रीना की मौसी का घर तो पता था नही. हां बस गली का पता था. अदित्य पीठ पर बेग टांगे गली में चक्कर लगा रहा था. उसने किसी से ज़रीना की मौसी के घर के बारे में पूछने की जहमत नही उठाई. वो बस बार बार गली के चक्कर लगा रहा था.
“क्या वो मुझे भूल गयी इतनी जल्दी. बाहर आकर तो देखना चाहिए उसे मैं कब से घूम रहा हूँ यहा.”
क्रमशः...............................
|