RE: Incest Kahani एक अनोखा बंधन
पहले आदित्य को चिट्ठी मिली ज़रीना की. घर में बैठा था चुपचाप मूह लटकाए हुवे जब डाकिये ने बेल बजाई घर की.
“आदित्य पांडे आप ही का नाम है.” डाकिये ने पूछा.
“जी हां बिल्कुल.” आदित्य ने कहा.
“यहा साइन कर दीजिए, स्पीड पोस्ट आई है आपके नाम.”
आदित्य ने साइन किए और डाकिये ने चिट्ठी अदित्य को पकड़ा दी. जब अदित्य ने चिट्ठी के पीछे भेजने वाले का नाम देखा तो आँखो में वो रोनक आ गयी उसके की वो ज़ोर से चिल्लाया “ज़रीना!”
डाकिये के भी कान फॅट गये. वो सर हिलाता हुवा चला गया.
आदित्य ने फ़ौरन चिट्ठी को लीफाफ़े से निकाला और सोफे पर बैठ कर पढ़ने लगा. चिट्ठी इस प्रकार थी :-
“मेरे प्यारे आदित्य,
तुम चले गये ज़रा सी बात पर मुझे छोड़ कर. क्यों किया ऐसा तुमने. किस हाल में हूँ मैं यहा क्या तुम्हे खबर भी है. कोई दिन ऐसा नही जाता जब तुम्हारे लिए आँसू नही बहाती. हर पल तुम्हारे लिए तड़पति रहती हूँ. तुम तो शायद मुझे भूल गये होंगे. मैं तुम्हारे लिए पापी जो हूँ. तुमने एक मोका भी नही दिया मुझे कुछ कहने का और चले गये. दिल पर क्या बीती है कह नही सकती. ये चिट्ठी तुम्हे लिख रही हूँ क्योंकि अपने दिल के हाथो मजबूर हो गयी हूँ. उस दिन लड़ाई के बाद मैं भी फ़ौरन खाना खाए बिना बाहर आ गयी थी. बहुत ढूँढा तुम्हे पर तुम तो जा चुके थे. क्या यही प्यार था तुम्हारा. मैं क्या करती, मौसी के घर आना पड़ा मुझे. अगले दिन भी मैं सुबह सुबह जैसे-तैसे ऑटो लेकर होटेल पहुँची. लेकिन तुम वाहा से भी निकल गये चेक आउट करके. मेरा इंतेज़ार भी नही किया तुमने. खून के आँसू रोई हूँ मैं तुम समझ नही सकते. बड़ी मुश्किल से वापिस आई थी मौसी के घर. मन तो कर रहा था कि मर जाउ कही जाकर पर इस उम्मीद में वापिस आ गयी कि क्या पता तुम मिल जाओ कही. तुम्हे तो दिखाई थी मौसी की गली मैने. अगर प्यार करते मुझसे तो मुझे ढूंड ही लेते. पर नही तुम्हे तो मुझे छोड़ कर भागने की पड़ी थी. चले गये चुपचाप मुझे छोड़ कर, सोचा भी नही की कैसे जीऊंगी मैं तुम्हारे बिना.
और हां मैने नोन-वेज खाना छोड़ दिया है बिल्कुल. आगे से कभी देखूँगी भी नही नोन-वेज को, खाने की तो दूर की बात है. मुझे अहसास हो गया है कि तुम ठीक थे. पेड़-पोधो और जीव जंतुओ में कुछ तो फरक रहता ही है. चिकन में जीवन ज़्यादा है एक हरी सब्जी के मुक़ाबले. मैं ये बात समझ गयी खुद ही. तुमने तो बहुत बुरे तरीके से समझाने की कोशिस की थी. मुझे आराम से कहते तो मैं ख़ुसी ख़ुसी तुम्हारे लिए कुछ भी छोड़ देती. नोन-वेज तो बहुत छोटी चीज़ है आदित्य.
अब ये बताओ कि अपनी ज़रीना को कब ले जाओगे यहा से. मैं खुद आ जाती पर अकेले सफ़र करते हुवे डर लगता है मुझे. कभी अकेले गयी नही कही. बहुत घबराती हूँ मैं ट्रेन में. अगर नही आओगे तो मुझे आना तो पड़ेगा ही. दिल के हाथो मजबूर जो हूँ. इन दीनो में यही जाना है आदित्य कि बहुत प्यार करती हूँ मैं तुम्हे और तुम्हारे बिना नही जी सकती. आ जाओ आदित्य मैं आँखे बिछाए तुम्हारा इंतेज़ार कर रही हूँ. ले जाओ अपनी ज़रीना को अपने साथ और जैसे जी चाहे वैसे रखो.
तुम्हारी ज़रीना.”
आदित्य की हालत बहुत नाज़ुक हो गयी पढ़ते-पढ़ते. आँसू टपक रहे थे ज़रीना के एक-एक बोल पर. बार बार पढ़ा उसने एक एक लाइन को. दिल में प्यार की मीठी मीठी चुभन हो रही थी. कुछ बोल ही नही पा रहा था आदित्य, लिखा ही कुछ ऐसा था ज़रीना ने. उसने वो चिट्ठी सीने से लगा ली और सोफे पर लेट गया.
ज़रीना को आदित्य की चित्ति अगले दिन मिली. वो तो सोई थी कमरे में जब मौसी ने आवाज़ दी.
“ज़रीना बेटा तुम्हारा खत आया है.”
ज़रीना ये सुनते ही बिस्तर से उठ गयी. “मेरे लिए खत कौन भेज सकता है. कही आदित्य ने तो नही भेजा. पर उसे तो यहा का अड्रेस भी नही पता होगा.”
ज़रीना तुरंत भाग कर बाहर आई. उसने साइन करके चिट्ठी ले ली. पीछे आदित्य का नाम था. वो तो झूम उठी ख़ुसी के मारे. पर मौसी के कारण अपनी ख़ुसी को दबा लिया किसी तरह.
“किसका खत है बेटा.” मौसी ने पूछा.
“है एक सहेली का मौसी मैं आराम से रूम में बैठ कर पढ़ूंगी.”
“ठीक है पढ़ ले. पहली बार तेरी आँखो में चमक देख रही हूँ. शायद ये खत कुछ शुकून देगा तुझे. जा पढ़ले अपनी सहेली का खत आराम से.”
“शुक्रिया मौसी.” ज़रीना फ़ौरन रूम में वापिस आ गयी. रूम में आते ही उसने कुण्डी बंद कर ली. उसका दिल बहुत ज़ोर से धड़क रहा था. ख़ुसी ही कुछ ऐसी थी फ़िज़ा में. बहुत फुर्ती से उसने लीफाफा खोला और चिट्ठी निकाल कर बिस्तर पर बैठ गयी. आदित्य की चित्ति कुछ इस प्रकार थी.
क्रमशः...............................
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