RE: Incest Kahani एक अनोखा बंधन
किसी तरह से आदित्य ने दोनो को एक तरफ धकेला और टूट पड़ा उस गुंडे पर जिसके हाथ में चाकू था. होश खो बैठा था आदित्य. होता है प्यार में ऐसा भी कभी. मगर ये ज़्यादा देर नही चला. फिर से उसे जाकड़ लिया गया.
और फिर वो हुवा जिसके बारे में आदित्य ने सोचा भी नही था. चाकू के इतने वार हुवे उसके पेट पर की खून की नादिया बह गयी वाहा. आदित्य को तड़प्ता छोड़ वो गुंडे भाग गये वाहा से.
आदित्य की फॅक्टरी का एक करम्चारी, रमेश आदित्य से कुछ पेपर्स पर साइन लेने उसके घर पहुँचा तो उसने आदित्य को वाहा खून से लटपथ पाया. तुरंत किसी तरह आंब्युलेन्स बुलाई उसने और आदित्य को हॉस्पिटल ले जाया गया.
बहुत सीरीयस हालत में था वो. ऑपरेशन किया डॉक्टर्स ने मगर बचने की उम्मीद कम ही बता रहे थे. खून बहुत बह गया था. चाकू के इतने वार हुवे थे कि पेट छलनी छलनी हो रखा था उसका. बड़ी देर लगी ऑपरेशन में भी. ऑपरेशन के बाद आदित्य को आइक्यू में रख दिया गया. उसे होश नही आया था. सनडे आ गया मगर अभी भी वो कोमा में ही था. आदित्य के बारे में सुन कर मुंबई से उसके चाचा, चाची मिलने आए. दीना नाथ पांडे की मौत के वक्त नही आ पाए थे वो क्योंकि माहॉल ठीक नही था. चाचा का नाम था रघु नाथ पांडे और चाची का नाम था विमला देवी.
“डॉक्टर साहिब कब तक रहेगा कोमा में आदित्य.” रघु नाथ ने पूछा.
“कुछ नही कह सकते. हम जो कर सकते थे हमने किया. अब सब भगवान के उपर है.” डॉक्टर कह कर चला गया.
आज के दिन आदित्य को ज़रीना को लेने देल्ही जाना था. मगर वो तो कोमा में पड़ा था. उशे होश ही नही था कि ज़रीना तड़प रही होगी आदित्य के लिए. या फिर होश था उसे मगर कुछ कर नही सकता था. कोमा चीज़ ही कुछ ऐसी है. बेसहाय बना देती है इंसान को.
………………………………………………………………
ज़रीना तो सुबह से ही बेचैन थी. बेसब्री से इंतेज़ार कर रही थी आदित्य का. उसे मौसी को बिना कुछ कहे घर से निकलना था, आदित्य के पीछे पीछे. बस एक बार दिख जाए आदित्य गली में. आँखे बिछाए बैठी थी वो. छत की बाल्कनी में खड़ी हो गयी सुबह सवेरे ही.
“क्या बात है बेटा आज सुबह जल्दी उठ गयी.” मौसी ने आवाज़ लगाई ज़रीना को.
ज़रीना मौसी की आवाज़ सुन कर चौंक गयी, “सलाम आलेकम मौसी.”
“सलाम आलेकम बेटा. क्या बात है आज सुबह सुबह यहा खड़ी हो. सब ख़ैरियत तो है.”
“हां मौसी सब ख़ैरियत है. बस वैसे ही खड़ी थी.”
“तुमसे कोई मिलने आ रहा है आज.” मौसी ने कहा.
“कौन?”
“एमरान नाम है उसका. यही पड़ोस में रहता है. अछा लड़का है. तेरे बारे में बताया मैने उसे. बहुत दुख हुवा उसे सुन कर तुम्हारे बारे में.
मिलना चाहता है तुम से. आ जाओ नीचे वो आता ही होगा. बहुत अहसान है उसके हम पर. उस से मिलॉगी तो अछा लगेगा हमें.”
“ठीक है मौसी मैं आती हूँ आप चलिए.” ज़रीना ने कहा.
मौसी सोच में पड़ गयी कि आख़िर क्या है बाल्कनी में ऐसा आज जो ज़रीना वाहा से हटना नही चाहती. मौसी के जाने के बाद ज़रीना ने फिर से झाँक कर देखा गली में मगर उसे कोई दीखाई नही दिया. “शायद बाद में आएगा आदित्य. अभी तो सारा दिन पड़ा है. मिल आती हूँ पहले इस एमरान से.”
ज़रीना जब सीढ़ियाँ उतर कर आई तो उसने पाया की एमरान उसका इंतेज़ार कर रहा था.
“तो आप हैं ज़रीना शेख. खुदा कसम बहुत खूबसूरत हैं आप. हमारी नज़र ना लग जाए आपको.” एमरान ने ज़रीना को देखते ही कहा.
“आओ बेटी बैठो. यही है एमरान. बहुत काबिल लड़का है. जब भी कोई काम बोलती हूँ इसे वो ये झट से कर देता है.”
“ये तो आपकी जर्रा नवाज़ी है खाला. हम इतने काबिल भी नही हैं. सब खुदा की रहम है.”
“नही एमरान तुम सच में बहुत काबिल हो. अछा तुम दोनो बाते करो मैं चाय लेकर आती हूँ.”
ज़रीना मौसी को रोकना चाहती थी पर कुछ कह नही पाई.
“लगता है आपको ख़ुसी नही हुई हमसे मिल कर. आप कहें तो हम चले जाते हैं.” एमरान ने कहा.
“जी नही आप हमें ग़लत ना समझे. हम थोड़ा परेशान हैं.” ज़रीना ने कहा.
“समझ सकते हैं हम आपकी परेशानी. हम बेख़बर नही हैं आपकी परेशानी से. खाला हमें सब कुछ बता चुकी हैं. हम यहा आपका गम बाटने आयें हैं.” एमरान ने कहा.
“बहुत बहुत शुक्रिया आपका मगर हम उस बारे में बात नही करना चाहते.”
“समझ सकते हैं हम. गुज़रे दौर की बाते जख़्मो को और हवा ही देती हैं. हम आपसे माफी चाहेंगे अगर हमने आपके जख़्मो को कुरेद दिया हो तो. हमें ज़रा भी इल्म नही था कि इन बातो का जिकर नही होना चाहिए. हम तो बस आपका गम हल्का करना चाहते थे.”
“आपसे इज़ाज़त चाहूँगी. मुझे जाना होगा.”
“रोकेंगे नही आपको. मगर आप बैठेंगी तो हमें अछा लगेगा. आपसे ही मिलने आयें हैं हम.”
क्रमशः...............................
|