RE: Incest Kahani एक अनोखा बंधन
एक अनोखा बंधन--10
गतान्क से आगे.....................
आदित्य को ये ध्यान भी नही था कि वो एक साल बाद होश में आया है. कोमा से उठे व्यक्ति के लिए समय और वक्त का ज्ञान असंभव है. लेकिन आदित्य को इतना ध्यान ज़रूर था कि उसे सनडे को ज़रीना को लेने जाना है. उसे क्या पता था की जिस सनडे को उसे ज़रीना को लेने जाना था वो कब का बीत चुका है और जींदगी एक साल आगे बढ़ चुकी है.
"चाचा जी आज दिन क्या है"
"आज शनिवार है बेटा... क्यों."
"शनिवार... मुझे चलना होगा. मुझे कल हर हाल में देल्ही पहुँचना है." आदित्य धीरे से बड़बड़ाया और उठने की कोशिस करने लगा.
रघु नाथ पांडे समझ नही पाया कि आदित्या ने क्या कहा. उन्होने आदित्य के कंधे पर हाथ रखा और बोले, "बेटा क्या बोल रहे थे तुम. और अभी जल्दबाज़ी मत करो उठने की. एक साल बाद होश आया है तुम्हे. शरीर में जंग लग चुका है.थोड़ा वक्त दो अपने शरीर को."
ये सुनते ही आदित्य भोंचका रह गया. उसका सर घूमने लगा. उसे विश्वास नही हो रहा था अपने कानो पर.
"एक साल बाद होश आया...ये कैसे हो सकता है." आदित्य ये मान-ने के लिए बिल्कुल तैयार नही था.
"हां बेटा तुम कोमा में थे. एक साल बाद उठे हो तुम आज. भगवान का लाख लाख शूकर है कि तुम्हे होश आ गया." रघु नाथ पांडे ने कहा.
आदित्य के दिमाग़ की हालत ऐसी नही थी को वो कुछ भी समझ पाए. उसे तो बस इतना पता था कि आज अगर शनिवार है तो कल उसे ज़रीना को लेने देल्ही जाना है. वो अभी भी बीते कल में जी रहा था. मगर जींदगी उसके चारो और बहुत आगे निकल गयी थी.
आदित्य इतना स्तब्ध था कि कुछ भी नही बोल पाया. उसकी नज़र जब दीवार पर टाँगे कॅलंडर पर गयी तो उसकी आँखे भर आई. 2003 का कॅलंडर था वो.
"चाचा जी कौन सा महीना है."
"20 एप्रिल 2003 है आज बेटा. तुम परेशान मत हो, सब ठीक है. तुम्हारी फॅक्टरी ठीक चल रही है. कोई चिंता की बात नही है."
आदित्य की तो हालत खराब हो गयी. ऐसा लग रहा था जैसे की वो फिर से बेहोश हो जाएगा. "एक साल बीत गया. ज़रीना ने बहुत इंतेज़ार किया होगा मेरा. बहुत रोई होगी मेरे इंतेज़ार में वो. मैं क्यों नही जा पाया...क्यों....हे भगवान क्यों किया ऐसा हमारे साथ." आदित्य चिंता में पड़ गया.
रघु नाथ पांडे नही जानता था कि आदित्य के मन में क्या चल रहा है. आदित्य की हालत वैसे उठने लायक नही थी मगर फिर भी वो उठ गया किशी तरह बिस्तर से और बोला, “चाचा जी मुझे देल्ही जाना है तुरंत.”
प्यार की तड़प और बेचैनी शायद ताक़त भर देती है इंसान के शरीर में. वरना आदित्य नही उठ सकता था.
"क्या बात है बेटा, कुछ बताओ तो सही, तुम बहुत परेशान लग रहे हो."
"मुझे बहुत ही ज़रूरी काम है चाचा जी. मुझे हर हाल में देल्ही जाना है." आदित्य किसी को कुछ नही बताना चाहता था. बात ही कुछ ऐसी थी. वैसे भी अगर वो बताता भी तो शायद ही कोई समझ पाता उसकी बात को.
"आदित्य डॉक्टर को फोन किया है मैने वो आता ही होगा. अगर डॉक्टर सफ़र की इज़ाज़त दे तो तुम बेसक जा सकते हो." रघु नाथ पांडे ने कहा.
"डॉक्टर चाहे कुछ भी कहे मुझे जाना ही होगा." आदित्य ने कहा.
"बेटा ऐसी क्या बात है जो की तुम तुरंत जाना चाहते हो." रघु नाथ ने पूछा.
तभी डॉक्टर आ गया.
"लो डॉक्टर साहिब आ गये." रघु नाथ ने कहा.
"बड़ी ख़ुसी हुई मुझे आपको होश में देख कर मिस्टर आदित्य." डॉक्टर ने कहा.
डॉक्टर आदित्य का चेक उप करने के बाद बोला, "सब कुछ ठीक है अब. चिंता की कोई बात नही है. लेकिन अभी आराम ही कीजिए."
डॉक्टर के जाने के बाद आदित्य ने जाने की बात नही की. उसे पता था कि चाचा जी उसे नही जाने देंगे. मगर उसे हर हाल में देल्ही के लिए निकलना था. वो लेट गया वापिस बिस्तर पर चाचा जी को दीखाने के लिए. शाम घिर आई थी. आदित्य रात को आराम से निकल सकता था. उसने अपना पर्स चेक किया. ज़्यादा पैसे नही थे उसमे. शूकर है एटीम कार्ड था उसमे.
रात को सबके सोने के बाद आदित्य चुपचाप घर से निकल दिया. एक टॅक्सी पकड़ी उसने एरपोर्ट के लिए. रास्ते में उसने एक एटीम से पैसे निकलवाए. एक शोरुम से उसने नये कपड़े भी खरीद लिए, क्योंकि जिन कपड़ो में वो था वो मैले लग रहे थे. ना जाने क्यों उसकी नज़र एक जीन्स पर पड़ी और वो उसने खरीद ली. “ज़रीना को पसंद आएगी ये जीन्स.” शोरुम के ट्राइयल रूम में ही उसने कपड़े चेंज कर लिए. उसने खुद जीन्स ही खरीदी थी और खूब जच रही थी उस पर.
टिकेट आसानी से मिल गयी उसे. सुबह 4 बजे की फ्लाइट थी. आदित्य बोरडिंग पास लेकर सेक्यूरिटी चेक कराने के बाद बैठ गया बोरडिंग के इंतेज़ार में.
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