RE: Incest Kahani एक अनोखा बंधन
ज़रीना की मौसी ने आदित्य को एमरान का अड्रेस बता दिया और बोली, “संभाल कर रहना बेटा. तुमसे कोई नाता नही है..फिर भी पता नही क्यों तुम्हारी चिंता हो रही है.”
“यही इंसानियत है…आप नेक दिल हैं इश्लीए.. मुझे ज़रीना को तलास करना है. मुझे यकीन है कि वो जहा भी होगी सही-सलामत होगी. भगवान ऐसा अनर्थ नही कर सकते हमारे साथ. धन्यवाद आपका जो आपने हमारे लिए इतना कुछ किया.”
“काश कुछ और भी कर पाती बेटा. जाओ अपना ख्याल रखना.”
आदित्य ने मौसी के पाँव छुवे और चल दिया भारी मन से वाहा से. बहुत ही व्यथित था मन उसका.
आदित्य मौसी के घर से सीधा एमरान के घर पहुँचा. उसने घर का दरवाजा खड़काया तो एक लड़की ने दरवाजा खोला. “क्या एमरान का घर यही है.”
“जी हां कहिए…क्या काम है.” लड़की ने कहा. लड़की का नाम समीना था. वो एमरान की छोटी बहन थी.
“देखो मैं घुमा फिरा कर बात नही करूँगा.”
“किसी ने कहा भी नही जनाब आपसे कि घुमा-फिरा कर कहें. क्या काम है जल्दी बतायें. बहुत काम रहते हैं मुझे” समीना ने कहा.
“मेरा नाम आदित्य है. मैं ज़रीना की तलास कर रहा हूँ. उसी सिलसिले में आया हूँ यहा.” आदित्य ने कहा.
समीना को तो गुस्सा आ गया ये सुन के, “तो तुम हो आदित्य.” समीना ने गला पकड़ लिया आदित्य का. “बताओ मेरे भैया कहा हैं वरना जान से मार दूँगी.”
“कौन है समीना…किसके साथ लड़ रही हो.” अंदर से समीना की अम्मी ने आवाज़ दी.
“देखो…मुझे कुछ नही पता एमरान के बारे में. मगर अगर तुम्हे पता है तो बता दो वरना.” आदित्य ने कहा.
“वरना क्या कर लोगे तुम…तुम्हे जिंदा नही छोड़ूँगी मैं. बताओ कहा हैं मेरे भाई.”
“छ्चोड़ो मुझे…पागल हो गयी हो क्या…छ्चोड़ो.” समीना ने आदित्य के गले को कस के पकड़ रखा था. जब समीना नही मानी तो ठक हार कर आदित्य को उशे धक्का देना पड़ा और वो दूर ज़मीन पर जा कर गिरी. उसका सर ज़मीन से टकराने के कारण हल्का सा खून निकल आया उसके माथे से.
आदित्य ये देख कर विचलित हो गया और आगे बढ़ कर समीना को उठाया, “माफ़ करना…मैं यहा लड़ाई करने नही आया हूँ. ज़रीना को ढूंड रहा हूँ मैं. अपनी ज़रीना को. मुझे नही पता एमरान कहा है. मैं ज़रीना की तलास में यहा आया हूँ. वैसे तुम मुझे कैसे जानती हो.”
“भैया की पॅंट की जेब से मिला था खत तुम्हारा जो कि तुमने ज़रीना के लिए लिखा था. तुम दोनो का प्यार अछा लगा मगर तुम दोनो के प्यार के कारण मेरे भैया ला-पता हैं. मुझे तुम दोनो का ही हाथ लगता था इस सब में. इश्लीए गुस्सा कर रही थी तुम्हारे उपर.”
“कल होश आया था मुझे. कोमा में था मैं एक साल से. ज़रीना को लेने नही आ सका था इस कारण. आज उसकी मौसी के घर गया तो पता चला कि वो गायब है एक साल से. पूछो मत क्या गुज़री है दिल पे. मुझे ज़रीना की मौसी ने बताया की एमरान भी उसी दिन से गायब है. वो गया भी था ज़रीना के पीछे ही. बस अपनी ज़रीना को ढूंड रहा हूँ मैं. उसी की तलास मुझे यहा ले आई. माफ़ करना मुझे…मेरा कोई इरादा नही था आपको चोट पहुँचाने का.”
“आप भी मुझे माफ़ कर दीजिए. बहुत दुखी हूँ अपने भाई जान के कारण. इश्लीए आप पर बरस पड़ी. जब से भैया लापता हुवे हैं, इस घर में मातम है. अम्मी बिस्तर पर पड़ी है…अब्बा भी गुजर गये 6 महीने पहले. सब कुछ बिखर गया हमारा. तभी गुस्सा था मुझे तुम दोनो से. मन होता था कि मिल जाओ तुम दोनो एक बार, तो वो हाल करूँ तुम दोनो का की भूल जाओगे सब कुछ.”
“मैं समझ सकता हूँ तुम्हारे ज़ज्बात.” आदित्य ने भावुक हो कर कहा
“क्या नाम है तुम्हारा?”
“समीना…”
“समीना…क्या कुछ भी ऐसा बता सकती हो जो कि मुझे काम आ सके.”
“मुझे खुद कुछ नही पता. जितना आपको पता है उतना ही मुझे पता है. तुम ज़रीना को ढूंड रहे हो.अगर मेरे भैया की भी कुछ खबर लगे तो हमें बता देना. बहुत मेहरबानी होगी आपकी.”
“बिल्कुल ये भी क्या कहने की बात है. चलता हूँ मैं….”
“चाय पी कर जायें आप तो अछा होगा.”
“नही ..नही तकल्लूफ की कोई ज़रूरत नही है.” आदित्य ने कहा.
“जिस दिन वो खत मिला मुझे भैया की जेब से तो समझाना चाहती थी उन्हे. मुझे लग गया था कि उनकी और ज़रीना की शादी ठीक नही रहेगी. मगर उस दिन लौटे ही नही घर भैया. और आज तक उनका कुछ आता-पता नही है.” रो पड़ी समीना बोलते-बोलते.
“मैं समझ रहा हूँ तुम्हारे दुख को. मैं भी ज़रीना के लिए उतना ही परेशान हूँ, जितना की तुम एमरान के लिए.”
“तुम रूको मैं चाय लाती हूँ.”
“चाय की जगह अगर वो खत दे दो तो महरबानी होगी. ज़रीना के लिए है वो. बस उसी का हक़ है उस पर.”
“ला ही रही थी मैं. मैं उसे रख कर क्या करूँगी.” समीना ने कहा.
समीना चाय के साथ-साथ आदित्य का लिखा हुवा खत भी ले आई.
“शुक्रिया आपका इस खत के लिए. चाय नही पी पाउन्गा. कुछ मन नही है अभी. प्लीज़ बुरा मत मान-ना.” आदित्य ने कहा.
“मैं टूट पड़ी थी आप पर जैसे ही आप आए. अगर चाय पी कर जाएँगे तो दिल को शुकून मिलेगा की आपने मुझे माफ़ कर दिया.” समीना के कहा.
“ठीक है आपकी खातिर पी लेता हूँ.” आदित्या ने कहा और चाय का कप उठा लिया ट्रे से.
आदित्य ने चुपचाप चाय पी और समीना का शुक्रिया करके वाहा से चल दिया. उशे कुछ समझ नही आ रहा था कि आख़िर कहा गायब हो गये ज़रीना और एमरान.
आदित्य पूरा दिन वही आस पास घूमता रहा. होटेल जाने का मन ही नही हुवा उसका.
शाम को वापिस आकर बिस्तर पर गिर गया वो. “हे भगवान ये कैसी सज़ा दी है आपने हमें. क्या हम दोनो के साथ ऐसा करना ज़रूरी था. एक बार क्या बीछड़े दुबारा मिलना नामुमकिन सा लग रहा है. अगर हमें प्यार के रिश्ते में बाँधने के बाद यही सब करना था तो इस से अछा यही होता की आप हमें मार डालते. अब कहा ढूंडू ज़रीना को. ” आँखे भर आई आँसुओ से ये बोलते हुवे आदित्य की.
क्रमशः...............................
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