RE: Incest Kahani एक अनोखा बंधन
एक अनोखा बंधन--12
गतान्क से आगे.....................
आदित्य को वो दिन याद आ गया जब वो ज़रीना के साथ उसी रूम में रुका था. कितने खुश थे वो दोनो. वो प्यार और तकरार उसे बार-बार याद आ रहा था. ज़रीना का बिस्तर को हथियाना अनायास ही उसके होंटो पर मुश्कान बिखेर गया और और वो हंसते हंसते रो पड़ा, “कहा हो तुम ज़रीना…कहा हो. ”
आदित्य उठा फ़ौरन और उसने अपने घर चलने का फ़ैसला किया. होटेल से चेक आउट करके वो सीधा देल्ही के एरपोर्ट पहुँचा और गुजरात के लिए टिकेट खरीदी. रात 10 बजे की फ्लाइट थी. वो 12 बजे पहुँच गया वापिस अपने सहर. बहुत ही दुखी मन से बढ़ रहा था अपने घर की तरफ. एरपोर्ट से उसने एक टॅक्सी ले ली थी. जब टॅक्सी ने उसे उसके घर के बाहर छ्चोड़ा तो वो भावुक हो गया, “कैसे जाउ इस घर में, तुम्हारे बिना, ज़रीना…कहा हो तुम.”
आदित्य टॅक्सी वाले को भाड़ा देना भी भूल गया. टॅक्सी से उतर कर घर की तरफ चल दिया.
“सर 200 रुपये हुवे.”
“ओह हां…मैं भूल गया सॉरी.” आदित्य ने 200 रुपये निकाल कर टॅक्सी वाले को दे दिए.
“आदित्य ने दरवाजा खोल कर लाइट जलाई तो हैरान रह गया. दरवाजे के पास ही बहुत सारे खत पड़े थे. उसने तुरंर एक खत उठाया…खत ज़रीना का था. आदित्य की आँखे चमक उठी ज़रीना का खत देख कर. उसने सारे खत देखे उठा के. हर खत के पीछे एक ही नाम लिखा था, ज़रीना.
22.04.2003
आदित्य ने सारे खत डेट वाइज़ सेट किए और बैठ गया सोफे पर. घर में हर तरफ धूल मिट्टी बिखरी पड़ी थी. मगर उसका ध्यान सिर्फ़ ज़रीना की चिट्ठियो पर था. उसने सोफे को आछे से झाड़ कर खत रख दिए और पहला खत पढ़ना शुरू किया. खत 8 एप्रिल 2002 की डेट का था.
“मेरे प्यारे आदित्य,
तुम नही आ पाए देल्ही मुझे लेने. क्या पूछ सकती हूँ कि क्यों नही आ पाए. चलो छोड़ो कोई लड़ाई नही करना चाहती तुमसे. एक लड़ाई के बाद ही ये हाल है दूसरी लड़ाई हुई तो पता नही क्या होगा. कोई बात नही मेरे आदित्य. मैं खुद आ गयी हूँ गुजरात. पर ये क्या आदित्य तुम्हारा कुछ आता-पता ही नही है. कहा हो तुम आदित्य. क्या मुझसे कोई भूल हो गयी है जो की मुझे अकेला तड़पने को छ्चोड़ गये हो.
तुम्हे नही पता किन मुश्किलों का सामना करके पहुँची हूँ मैं गुजरात. और यहाँ कुछ समझ नही आ रहा कि कहाँ जाउ. तुम्हारे सिवा कोई भी तो नही है मेरा. अब क्या करूँ आदित्य कुछ समझ नही आ रहा.
परेशान हूँ तुम्हारे लिए. कुछ तो बात ज़रूर होगी वरना तुम मुझे लेने ज़रूर आते. मैं अकेली आई हूँ और बहुत मुश्किल से आई हूँ. तुम मिलोगे तो तुम्हे बताउन्गि. अभी तुम्हे ढूंड रही हूँ हर तरफ. पर तुम्हारा कुछ पता नही चल रहा. तुम्हारे घर के आस पास कुछ पूछने की हिम्मत नही हुई. सुना है कि माहॉल अभी भी तनाव भरा है. मुझे डर लग रहा है आदित्य.
मगर सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि कहा जाउ अब. तुम्हारे घर ताला लगा है. चाबी होती मेरे पास तो घुस जाती खोल कर चुपचाप. वो घर मेरा ही तो है ना आदित्य. हमारा घर है..जहा हम एक महीना साथ रहे थे. वहीं तो हमारे दिलों में प्यार जागा था. हम दोनो का प्यारा घर है वो, प्यार की यादों में डूबा हुवा घर.
हमारे घर के पास जो मार्केट है वही गुजराती रेस्टोरेंट में बैठ कर लिख रही हूँ ये सब. समझ नही आ रहा कि कहा जाउ अब. तुम अगर वापिस आओ तो मेरा खत पढ़ कर तुरंत अपने कॉलेज आ जाना. वही कॅंटीन में मिलूंगी मैं. इंतेज़ार करूँगी तुम्हारा प्लीज़ जल्दी आना…मुझे और कितना तद्पाओगे तुम. खुद तो नही आए मुझे लेने अब मैं आ गयी हूँ तो पता नही कहा हो. तुम मिलो एक बार खूब लड़ूँगी तुमसे. पर इस बार लड़ाई करके दूर नही जाउन्गि तुमसे. बहुत भूल हुई थी मुझसे उष दिन. बिना सोचे समझे मौसी के घर आ गयी थी. मुझे होटेल जाना चाहिए था. उस एक ग़लती की वजह से आज तक हम मिल नही पाए. अब और पता नही कितना इंतेज़ार करना पड़ेगा. खत मिलते ही आ जाना कॉलेज देर मत करना बहुत बेचैन हूँ मैं तुमसे मिलने के लिए. इतनी बेचैन की तुम अंदाज़ा भी नही लगा सकते. जल्दी आना प्लीज़………..
तुम्हारे इंतेज़ार में
तुम्हारी ज़रीना.”
ज़रीना के लिखे हर बोल से आदित्य के तन-बदन में हलचल हो रही थी. आँखे छलक उठती थी उसकी हर एक बोल को पढ़ कर. उस खत से एक बार फिर ये बात क्लियर हो रही थी उसे कि ज़रीना जितना प्यार कोई नही कर सकता उसे.
“ओह…ज़रीना, कितना अनमोल प्यार है तुम्हारा मेरे लिए. तुम्हारा गुनहगार बन गया हूँ. जिस वक्त तुम्हे मेरी सबसे ज़्यादा ज़रूरत थी मैं यहा नही था. मैं कितना बेकार फील कर रहा हूँ कह नही सकता. काश मैं होता यहा उस दिन तो अपनी पलके बिछा कर स्वागत करता तुम्हारा. बहुत बेबस महसूस कर रहा हूँ मैं ये सब पढ़ कर. देखता हूँ अगले खत में क्या है.” आदित्य ने अपने आँसुओ को पोंछते हुवे कहा.
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