RE: Incest Kahani एक अनोखा बंधन
आदित्य ने अगला खत उठाया. खत 9 एप्रिल 2002 को लिखा गया था.
“ज़रीना ने खुद यहा आकर ये खत डाले हैं. पोस्ट ऑफीस की कोई स्टंप या टिकेट नही है. देखता हूँ इसमे क्या लिखा है ज़रीना ने.” आदित्य ने कहा और पढ़ना शुरू किया.
“मेरे प्यारे आदित्य,
आख़िर बात क्या है आदित्य. कुछ समझ में नही आ रहा. तुम ठीक तो हो ना. कही से भी कोई खबर नही मिल रही तुम्हारी. सारा दिन मैं बैठी रही कॉलेज की कॅंटीन में तुम्हारे इंतेज़ार में. आख़िर क्यों तडपा रहे हो मुझे इतना तुम. तुम्हारे कुछ दोस्तो से भी बात की मैने. पर किसी को कुछ नही पता तुम्हारे बारे में.
तुम कितने निर्दयी निकले आदित्य. अगर कही जाना ही था तुम्हे तो कम से कम कोई मेसेज तो छोड़ जाते मेरे लिए. मैने लिखा था ना तुम्हे कि अगर तुम नही आए मुझे लेने तो मैं खुद आ जाउन्गि. आ गयी हूँ मैं खुद ही. पर अब आ कर सर छुपाने के लिए जगह को तरस रही हूँ. कॉलेज में हॉस्टिल भी नही मिल रहा. मेरे पास कोई भी सबूत नही है कि मैं इस कॉलेज की स्टूडेंट हूँ. सब कुछ तो जल चुका है दंगो में. अब कैसे सम्झाउ इन लोगो को. एक दिन के लिए भी कोई कमरा देने को तैयार नही है. अब कहा जाउ आदित्या कुछ समझ नही आ रहा. मुझे बहुत डर लग रहा है. कल भी कॉलेज में ही मिलूंगी तुम्हे यही कॅंटीन में. देखती हूँ कुछ आज की कहा रुकु. अजीब मुसीबत में डाल दिया है तुमने मुझे. मन तो कर रहा है की ताला तोड़ कर घुस जाउ मैं घर में. मेरा भी हक़ है उस पर. पर वाहा माहॉल ठीक नही है और लोगो ने देख लिया तो मुसीबत हो जाएगी. वैसे भी तुम्हारे बिना मुझे वाहा डर ही लगेगा.
वैसे कितनी अजीब बात हो रही है. कभी मैं तुम्हे देखना भी पसंद नही करती थी इस कॉलेज में और आज आँखे बस तुम्हे ही खोज रही हैं. और इसी बात का फ़ायडा उठा कर तुम मुझे सता रहे हो. मज़ाक कर रही हूँ. मज़ाक में दर्द भी है थोड़ा सा. परेशान जो हूँ. मुझे पता है ज़रूर कोई मजबूरी होगी तुम्हारी आदित्य वरना तुम ज़रूर आते. ये चिट्ठी भी डाल दूँगी तुम्हारे घर में. डर लगता है वाहा जाते हुवे. अपने जले हुवे घर को देख कर अम्मी, अब्बा और फ़ातिमा की याद आती है बहुत. डर लगता है बहुत जब अपने घर को देखती हूँ. पर कोई चारा भी तो नही. ये खत खुद ही डालना होगा तुम्हारे घर में. जहा भी हो जल्दी आ जाओ और देखो की मैं किस हाल में हूँ.
तुम्हारी ज़रीना.”
आदित्या फूट पड़ा इस बार. रोकना मुश्किल हो रहा था, “क्यों मेरे भगवान क्यों किया ऐसा हमारे साथ. प्यार करने वालो के साथ ऐसा हरगिज़ नही होना चाहिए. मैं क्यों नही था यहा…..देखता हूँ आगे क्या किया ज़रीना ने.”
आदित्य ने तीसरा खत उठाया. “16 एप्रिल 2002, पूरे एक हफ्ते बाद लिखी ज़रीना ने ये.” आदित्य हैरत में पड़ गया कि क्या हुवा होगा ज़रीना के साथ इस एक हफ्ते के दौरान. आदित्य ने पढ़ना शुरू किया.
“मेरे प्यारे आदित्य,
मिल गया है आसरा मुझे चिंता की कोई बात नही है. चिंता की बात बस ये है कि तुम्हारा अभी भी कुछ आता-पता नही है. रोज एक बार ज़रूर जाती हूँ घर तुम्हारे. वही मनहूस ताला टंगा रहता है. तुम्हारी फॅक्टरी भी गयी थी मैं तुम्हे ढूँडने. बड़ी मुश्किल से पता किया था अड्रेस उसका. मगर वाहा अच्छा व्यवहार नही हुवा मेरे साथ. कुछ लोग मुझे छेड़ने लगे वाहा. मैने एक व्यक्ति से पूछा भी तुम्हारे बारे में मगर उसे भी कुछ नही पता था. ज़्यादा देर नही रुक पाई वाहा. बहुत ही बेकार माहॉल है आदित्य वाहा. कुछ करना इस बारे में तुम. जिस तरह से लोग घूर रहे थे मुझे, मुझे बहुत ही डर लग रहा था. एक उम्मीद ले कर गयी थी फॅक्टरी तुम्हारी और भयबीत हो कर लौटी वाहा से.
मैं अब एक छोटे से स्कूल में पढ़ा रही हूँ. उस दिन कॉलेज से तुम्हारे घर आई शाम को तो अहमद चाचा मिल गये मुझे. तुमने भी देखा होगा उन्हे कयि बार हमारे घर आते-जाते हुवे. उन्होने भी अपना सब कुछ खो दिया दंगो में. उनकी दो बेटियों की इज़्ज़त लूटी गयी उन्ही के सामने और उनके बेटे का सर काट दिया गया उन्ही के सामने. उन्हे भी मार डालते वो लोग शुकर है पोलीस आ गयी थी वक्त पर.
अहमद चाचा एक स्कूल चला रहे हैं जिसमे की अनाथ बच्चो को शिक्षा दी जा रही है. बहुत बच्चे अनाथ किए इन दंगो ने आदित्य. कोई 50 बच्चे हैं स्कूल में. मुझे देख कर अहमद चाचा ने मुझे रिक्वेस्ट की, कि मैं उनके साथ जुड़ जाउ क्योंकि उन्हे टीचर की ज़रूरत है. मेरे लिए इस से अछी बात नही हो सकती थी. स्कूल में ही रहने को कमरा मिल गया. और एक नेक काम करने का मोका दिया अल्लाह ने मुझे. बहुत अछा लगा मुझे इस स्कूल से जुड़ कर. मगर अब एक ही चिंता है. तुम पता नही कहा हो, किस हाल में हो. समझ में नही आ रहा कि किस से पता करूँ. जो भी कर सकती थी सब किया मैने, मगर कही भी कुछ पता नही चल रहा तुम्हारे बारे में. अब बहुत ही ज़्यादा चिंता हो रही है तुम्हारी. अगर घर आओ तो सीधे स्कूल आ जाना. मैं वही मिलूंगी. स्कूल बिल्कुल बस स्टॅंड के पास जो मस्ज़िद है उसके पास है. किसी से भी पूछ लेना की अहमद चाचा का स्कूल कौन सा है…सब बता देंगे.
कॉलेज छोड़ दिया है मैने आदित्य. तुम्हारे बिना वाहा जाकर करूँगी भी क्या. तुम आओगे तो फिर से जाय्न कर लेंगे हम दोनो. मगर अकेले नही जाउन्गि वाहा. अहमद चाचा कहते रहते हैं कि कॉलेज जाओ…मगर मैं हरगिज़ नही जाउन्गि. आदित्य अब इंतेहा हो चुकी है….प्लीज़ आ जाओ अब और कितना तड़पावगे तुम. मर ही ना जाउ कही मैं तुम्हारे इंतेज़ार में. प्लीज़…………….
तुम्हारी ज़रीना.”
क्रमशः...............................
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