Incest Kahani एक अनोखा बंधन
05-07-2020, 02:26 PM,
#25
RE: Incest Kahani एक अनोखा बंधन
एक अनोखा बंधन--13

गतान्क से आगे.....................

आदित्य ने आखरी खत छ्चोड़ कर सारे खत पढ़ लिए. हर खत में ज़रीना ने अपनी तड़प और बेचैनी को बखूबी लिख रखा था. वो डीटेल में स्कूल की आक्टिविटीस भी लिख रही थी. फाइनली आदित्य ने आखरी खत उठाया. वो 1.04.2003 को लिखा हुवा था. आदित्य ने वो भी पढ़ना शुरू किया.

“मेरे प्यारे आदित्य,

धीरे-धीरे एक साल बीत गया और तुम्हारा अभी भी कुछ आता-पता नही है. सच कह रही हूँ बहुत चिंता हो रही है तुम्हारी. लेकिन मैं क्या करूँ कुछ समझ में नही आ रहा. रोज की तरह आज भी गयी थी घर. वही ताला टंगा मिला आज भी. उस ताले ने मेरी जींदगी बर्बाद कर दी है आदित्य. एक साल से देख रही हूँ उस ताले को. रोज खूब भला बुरा कह कर आती हूँ उस ताले को.

वैसे बच्चो को खूब शिक्षा देती हूँ मैं कि उम्मीद का दामन नही छ्चोड़ना चाहिए, मगर खुद मैं बीखर चुकी हूँ. कोई भी उम्मीद नही है जींदगी में. अगर जिंदा हूँ तो इन बच्चो की खातिर. मन लगाए रखते हैं मेरा ये. इन्हें पढ़ाने में वक्त बीत जाता है.

इतने खत लिख दिए हैं तुम्हे, जब तुम आओगे तो पढ़ते पढ़ते थक जाओगे. हां मुझे हल्की सी उम्मीद है अभी भी कि तुम ज़रूर आओगे. ये लिखते वक्त आँसू गिर रहे हैं इस काग़ज़ पर. पढ़ते वक्त तुम्हे अक्षर कुछ धुन्द्ले लगेंगे. अपने आँसू भी भेज रही हूँ इस खत के साथ उन्हे भी पढ़ना और अंदाज़ा लगाना कि किस कदर तदपि हूँ मैं तुम्हारे लिए. बस और नही लिख पाउन्गि अब.

तुम्हारी ज़रीना”

आदित्य बेचैन हो गया अब. आँसुओ की बरसात हो रही थी उसकी आँखो से. आँसू गम और ख़ुसी दोनो रंगो में डूबे हुवे थे. गम था इस बात का कि, बहुत तदपि ज़रीना उसके लिए और ख़ुसी थी इस बात की, कि अब वो अपनी ज़रीना से मिलने जा रहा था. उनके प्यार का इंतेहाँ अब ख़तम होने जा रहा था.

खत पढ़ते-पढ़ते आधी रात हो गयी थी. वो बेचैन हो रहा था अहमद चाचा के स्कूल जाने के लिए. और वो बस बिना सोचे समझे निकलने ही वाला था कि उसकी निगाह घर की हालत पर पड़ी, “शरम करो आदित्य, देखो कितना गंदा हो रखा है घर. चारो तरफ धूल…मिट्टी बिखरी पड़ी है. ज़रीना देखेगी तो क्या कहेगी. पहले उसके स्वागत में ये घर तो चमका लो…फिर ले कर आना ज़रीना को.”

बस फिर क्या था आदित्य पागलो की तरह जुट गया घर की सफाई में. घर के हर कोने को चमकाने में लग गया वो. रात के 3 बजे लगा था सफाई में और सफाई करते-करते सुबह के 7 बज गये. एक पल को भी नही रुका आदित्य. बस लगा रहा घर को चमकाने में. आख़िर उसकी जान से प्यारी ज़रीना जो आ रही थी.

“मैं आ रहा हूँ ज़रीना आ रहा हूँ मैं. बस अब हम और नही तड़पेंगे एक दूसरे के लिए. बहुत कुछ सहा तुमने इस प्यार के लिए. मेरे लिए तो तुम ही भगवान बन गयी हो. जब प्यार ही भगवान होता है तो तुम्हे ये उपाधि दी जा सकती है क्योंकि इतना गहरा प्यार शायद ही कोई किसी को करता होगा. धन्य हो गया हूँ मैं तुम्हे अपनी ज़ींदगी में पाकर. मैं बस नहा लूँ…कही तुम कहो की बदबू आ रही है मुझसे. बस कुछ ही देर में हम मिलने वाले हैं, बहुत लंबे इंतेज़ार के बाद. मैं आ रहा हूँ ज़रीना बस आ रहा हूँ………

22.04.2003. 9:00 सुबह

अपनी प्रेमिका से मिलने के अहसास में डूब गया था आदित्य. पाँव नही टिक रहे थे उसके ज़मीन पर. तन-बदन में एक अजीब सी सेन्सेशन हो रही थी. मीठा मीठा सा अहसास हर वक्त उसे घेरे हुवे था. तड़प और बेचैनी भी उतनी ही थी.ये अहसास हर उस इंसान ने महसूस किए होंगे जिसने कभी प्यार किया होगा. अपने प्यार से मिलने की तड़प हर प्रेमी के अंदर कुछ ऐसा ही अहसास जगाती है.

आदित्य नहा कर बाहर आया तो उसे समझ नही आया की क्या पहने. बेचैनी कुछ इस कदर हावी थी उसके उपर की कुछ डिसाइड करना मुश्किल हो रहा था. उसने आल्मिरा से ब्लू जीन्स निकाली और पहन ली. उसके उपर उसने वाइट शर्ट पहन ली.

“एक बार खूब तारीफ़ की थी ज़रीना ने इस कॉंबिनेशन की. मैं नहा कर ये कपड़े पहन कर निकला था तो वो तुरंत बोली थी, ‘अरे वाह आदित्य, ब्लू जीन्स और वाइट शर्ट कितनी प्यारी लग रही है तुम्हारे उपर.’

आदित्य ने खुद को शीसे में देखा और बोला, “तुम दूर से देखते ही पहचान जाओगी मुझे इन कपड़ो में. आ रहा हूँ ज़रीना…अब और दूर नही रहेंगे हम.”

बालों को खूब ध्यान से सँवारा आदित्य ने. चेहरे पर अच्छे से क्रीम रगड़ ली. कोई कमी नही छोड़ना चाहता था. ये भी प्यार ही है. आप जिसे प्यार करते हैं उसके सामने सुंदर दीखने की चाहत सब में होती है.

“काश बाइक होती तो रात को भी आ सकता था तुम्हारे पास ज़रीना. बाइक उस दिन फॅक्टरी ही छ्चोड़ आया था. चलो कोई बात नही ज़रीना. घर की सफाई कर दी है तुम्हारे स्वागत में. अपना दिल बिछा दिया है घर के दरवाजे पर. जब तुम परवेश करोगी यहा तो घर का कोना कोना महक उठेगा. तुम्हे नही पता ज़रीना. घर के ताले के कारण तुम ही नही तदपि…बल्कि ये घर भी तडपा तुम्हारे लिए. जब मैं इस घर में घुसा तो इस घर की तड़प महसूस की तुम्हारे लिए. बिल्कुल ज़रीना तुम्हारा ही तो घर है ये. हमारा घर है जहा हर कोने में हमारा प्यार बसा है. और सुकून की बात ये है की यहा अब सुख शांति है. हम दोनो चैन से रहेंगे इश् घर में.”
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RE: Incest Kahani एक अनोखा बंधन - by hotaks - 05-07-2020, 02:26 PM

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